मानव संसाधन प्रबन्ध का अर्थ

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मानव संसाधन प्रबन्ध या सेविवर्गीय प्रबन्ध का अर्थ एवं परिभाषायें

(Meaning and Definitions of Human Resource Management or Personnel Management)

मानव संसाधन प्रबन्ध या सेविवर्गीय प्रबन्ध से हमारा आशय एक ऐसे विज्ञान से है जो मानव सम्प्रदा के समुचित उपयोग से सम्बन्धित है। सरल शब्दों में, कर्मचारी इस योग्य बनें कि  वे उपलब्ध साधनों का ठीक प्रकार से उपयोग कर  सकें तथा यथाशक्ति अधिक और अच्छा काम करने की प्रेरणा पा सकें। ऐसे किये जाने वाले कार्य को ही कर्मचारी प्रशासन कहते हैं। दूसरे शब्दों में कर्मचारी प्रशासन या सेविवर्गीय प्रबन्ध एक ऐसी तकनीक है, जिसके द्वारा उपक्रम में लगे कर्मचारियों के सन्तोषजनक प्रबन्ध की व्याख्या की जाती है। संक्षेप में, कर्मचारी प्रशासन अथवा सेविवर्गीय प्रबन्ध का अर्थ मानवीय साधनों का नियोजन, निर्देशन, नियन्त्रण एवं विकास से है। जे. आर. टाटा के शब्दों में, “मानवीय सम्पदा पर उचित ध्यान देकर किसी भी औद्योगिक इकाई की उत्पादन क्षमता में वृद्धि की जा सकती है।”

मानव संसाधन प्रबन्ध की प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित हैं

(1) ई. एफ. एल. ब्रे के अनुसार, “सेविवर्गीय प्रबन्ध, प्रबन्ध प्रगति का वह भाग है जो मुख्यतः किसी संगठन के मानवीय तत्वों से सम्बन्ध रखता है।”

(2) डेल योडर के अनुसार, “सेविवर्गीय प्रबन्ध, प्रबन्ध का वह भाग है जो श्रमशक्ति के प्रभावपूर्ण नियन्त्रण एवं उपयोग से सम्बन्धित है, जिसे कि अन्य शक्ति साधनों से अलग माना गया है।”

(3) एडविन बी. फिलिप्पो के अनुसार, “सेविवर्गीय प्रबन्ध का अर्थ प्रवर्तन क्रियाओं के नियोजन, संगठन, निर्देशन एवं नियन्त्रण कार्यों से है।

निष्कर्ष- उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने से स्पष्ट होता है कि, “सेविवर्गीय प्रबन्ध प्रवन्धकीय प्रणाली का वह भाग है जो किसी उपक्रम के मानवीय पहलू से सम्बन्धित है। इसके अन्तर्गत मानवीय संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने हेतु मानव शक्ति का आयोजन, संगठन, निर्देशन, समन्वय एवं नियन्त्रण आदि कार्य किये जाते हैं।”

मानव संसाधन प्रबन्ध की प्रकृति

(Nature of HRM)

मानव संसाधन प्रबन्ध की प्रकृति निम्नलिखित है:

(1) सेविवर्गीय प्रबन्ध एक विभागीय उत्तरदायित्व एवं विशेषज्ञ कार्य है (Personnel Management is a Departmental Responsibility and a Staff Function)-

सेविवर्गीय प्रवन्ध एक विभागीय उत्तरदायित्व क्योंकि कर्मचारियों की नियुक्ति करने, उनको प्रशिक्षण प्रदान करने, उनको कार्य पर नियुक्त करने, उनके पारिश्रमिक को निर्धारित करने, उनके लिये आचार संहिता का निर्माण करने, उसको अधिक कार्य करने के लिये अभिप्रेरित करने का कार्य सेविवर्गीय प्रबन्ध ही करता है। सेविवर्गीय प्रबन्ध को विशेषज्ञ सेवा भी माना जाता है क्योंकि उपक्रम के अन्य विभागों जैसे- उत्पादन विभाग, विपणन विभाग एवं वित्त विभाग आदि में कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। इन सब विभागों मे वाँछित योग्यता वाले कर्मचारियों की नियुक्ति करने में विशेषज्ञ सलाह देने का कार्य सेविवर्गीय प्रबन्ध ही करता है। अतः स्पष्ट है कि सेविवर्गीय प्रबन्ध की प्रकृति विभागीय उत्तरदायित्व को पूरा करने एवं विशेषज्ञ सलाह देने से सम्बन्धित है।

(2) सेविवर्गीय एक पेशा है (Personnel Management is a Profession)- सेविवर्गीय प्रबन्ध पेशा है या नहीं, इस पर विचार करने से पूर्व इसके अर्थ एवं लक्षणों पर विचार करना आवश्यक है। मैकफरलैंड के विचारानुसार, “पेशा आजीविका का एक ऐसा साधन है। जिसके लिये प्रारम्भिक प्रशिक्षण आवश्यक होता है, जिसमें प्रबन्धकीय ज्ञान कौशल का समन्वय होता है, जो केवल व्यक्तिगत स्वार्थ पोषण पर ही आधरित न होकर दूसरों की सेवा भाव पर आधारित होता है तथा जिसकी सफलता का एकमात्र मापक केवल वित्तीय प्रत्यय ही नहीं होता।” इस प्रकार स्पष्ट है कि पेशा तकनीकी ज्ञान की आधार शिला पर खड़ा होकर सेवा भाव के उद्देश्य को पूरा करता है। पेशेवर व्यक्ति पर्याप्त ज्ञान से परिपूरक एवं अपने कार्य के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाले होते है। यदि सेविवर्गीय प्रबन्ध को एक पेशे के रूप में मूल्यांकित किया जाये तो स्पष्ट होता है कि इनकी आधारशिला भी तकनीकी ज्ञान एवं सेवाभाव ही है। इसमें भी कर्मचारियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती है तथा उनमें तकनीकी ज्ञान की वृद्धि के लिये हर सम्भव प्रयास किये जाते हैं ताकि अन्य विभागों की सेवा पूर्ण कुशलता के साथ की जा सके। ए. वाटर्स ने भी कहा है कि, “सेविवर्गीय प्रशासन के लिये उससे भी अधिक उच्च स्तर की पेशेगत दक्षता आवश्यक होती है जितनी कि अभी तक अधिकांश संगठनों में विकसित हुई हैं। केवल वास्तविक पेशेवर ही ऐसे महत्वपूर्ण उद्देश्य को प्राप्त कर सकते है।” सेविवर्गीय प्रवन्ध की इन्हीं विशेषताओं को दृष्टिगत रखते हुये डी. जैकिन्स, एफ. वी. मिलर तथा आर. पी. कल्हन जैसे विद्वानों ने सेविवर्गीय प्रबन्ध को एक पेशे की संज्ञा दी है।

(3) सेविवर्गीय प्रबन्ध की उपयोगिता सार्वभौमिक है (Utility of Personnel Management is Universal)-सेविवर्गीय प्रवन्ध किसी एक विभाग या क्षेत्र के लिये नहीं अपितु सभी क्षेत्रों के लिये समान रूप से उपयोगी है। सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, व्यवसायिक अथवा औद्योगिक किसी भी क्षेत्र का कार्य बिना मानवीय शक्ति के सम्पन्न होना ठीक उसी प्रकार असम्भव है जैसे- बिना इंजन के रेलगाड़ी का दौड़ लगाना। औद्योगिक क्षेत्र में भी चाहे वह क्रय-विक्रय हो, चाहे विक्रय, उत्पादन हो अथवा वित्त-विभाग, बिना कर्मचारियों के सहयोग के, पूर्ण रूप से अपंग होते हैं। सेविवर्गीय विभाग ही उनको मानवीय शक्ति रूपी इंजन  का सहारा देकर आगे बढ़ने में सहायता प्रदान करता है। अतः स्पष्ट है कि सेविवर्गीय प्रबन्ध की उपयोगिता सर्वव्यापी है तथा कोई भी विभाग इसकी सेवाओं से अछूता नहीं है।

मानव संसाधन प्रबन्ध या सेविवर्गीय प्रबन्ध का क्षेत्र

Scope of HRM or Personnel Management)

मानव संसाधन प्रबन्ध या सेविवर्गीय प्रबन्ध के क्षेत्र में उन सभी कर्तव्यों, अधिकारों एवं दायित्वों का समावेश हो जाता है, जो मनुष्यों का निर्माण करने एवं उनको प्रबन्ध का सहयोगी बनाने के लिये आवश्यक हैं।

(1) कर्मचारियों की नियुक्ति तथा कार्य सौंपना- सेविवर्गीय प्रबन्ध के अन्तर्गत यह महत्वपूर्ण कार्य किया जाता है। सेविवर्गीय विभाग द्वारा संस्था के लिये आवश्यक कर्मचारियों को नियुक्त किया जाता है, जिसके लिये आवेदन आमन्त्रित किये जाते हैं, तत्पश्चात् वैज्ञानिक विधि से परीक्षा एवं साक्षात्कार लेकर उनका चुनाव किया जाता है। इसके बाद कर्मचारियों को उनकी एकयोग्यता, अनुभव एवं कार्य के अनुसार काम सौंपा जाता है।

(2) कर्मचारी कल्याण कार्य- कर्मचारी प्रबन्ध के क्षेत्र में कर्मचारियों के कल्याण के लिये बीमा, चिकित्सा, मनोरंजन, शिक्षा, आवास तथा अन्य सुविधाओं की व्यवस्था भी सम्मिलित की गई है।

(3) सेविवर्गीय लेखे रखना- कर्मचारियों से सम्बन्धित सभी सूचनाओं, जैसे- श्रम प्रबन्ध अनुबन्ध, श्रमिकों के सम्बन्ध में नई-नई नीतियों तथा अन्य सूचनाओं के लेखे भी सेविवर्गीय प्रबन्ध के द्वारा रखे जाते हैं।

(4) उचित पारिश्रमिक की व्यवस्था- सेविवर्गीय प्रबन्ध के क्षेत्र में श्रमिकों एवं कर्मचारियों को उचित पारिश्रमिक दिलाने की व्यवस्था भी सम्मिलित है। इसके अन्तर्गत मजदूरी भुगतान की विभिन्न पद्धतियाँ काम में लायी जाती हैं। इनमें मुख्य रूप से श्रमिकों के कार्य मूल्यांकन, प्रारम्भिक नीति, लाभांश एवं बोनस योजनायें तथा कर्मचारियों के स्तरो को निर्धारित करने से सम्बन्धित नीतियाँ शामिल की गई हैं।

(5) कार्य-विश्लेषण- कर्मचारियों के कार्य विभाजन के लिये कार्य-विश्लेषण करना आवश्यक होता है। किसी कार्य को पूरा करने के लिये किस योग्यता के कर्मचारियों की आवश्यकता होगी, इसका पता कार्य से सम्बन्धित क्रियाओं का विश्लेषण करके ही लगाया जा सकता है तथा कार्य के प्रकृति के अनुरूप कर्मचारियों को नियुक्त किया जा सकता है। यह कार्य कर्मचारी प्रबन्ध द्वारा ही किया जाता है।

(6) कर्मचारी प्रशिक्षण एवं विकास- कर्मचारियों का उपक्रम में कार्य करने हेतु चुनाव करने के पश्चात् उनको उचित प्रशिक्षण दिया जाता है। यह प्रशिक्षण नये व पुराने दोनों प्रकार के कर्मचारियों को दिया जा सकता है। प्रशिक्षण सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों ही प्रकार का किया जाता है। कार्य को प्रभावी ढंग से तथा कम लागत में पूरा करने के लिये कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना अत्यन्त आवश्यक है।

मानव संसाधन प्रबंधन महत्वपूर्ण लिंक

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