मानव संसाधन प्रबंधन / Human Resource Management

निष्पादन मूल्यांकन के उद्देश्य | निष्पादन मूल्यांकन की कमियाँ | Objectives of Performance Appraisal in Hindi | Pitfalls of Performance Appraisal in Hindi

निष्पादन मूल्यांकन के उद्देश्य | निष्पादन मूल्यांकन की कमियाँ | Objectives of Performance Appraisal in Hindi | Pitfalls of Performance Appraisal in Hindi

निष्पादन मूल्यांकन के उद्देश्य

(Objectives of Performance Appraisal)

निष्पादन मूल्यांकन मानव संसाधन प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण कार्य हैं। प्रत्येक संगठन में कार्य करने वाले मानव संसाधन की प्रबल इच्छा होती है कि उनके कार्यों एवं योग्यताओं व क्षमताओं का उचित मूल्यांकन किया जाए। यह प्रबन्धकों एवं प्रशासकों का महत्वपूर्ण दायित्व भी है कि वह अपने अधीनस्थों के कार्यों व क्षमताओं का सही व न्यासंगत मूल्यांकन कर उसके वर्तमान एवं भविष्य की सम्भावनाओं के लिए उचित निर्णय ले। मैकग्रेगर (Mo Grager) ने कहा है कि “औपचारिक निष्पादन मूल्यांकन योजनाएं मुख्यतः तीन आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए तैयार की जाती हैं। इसमें से एक संगठन से सम्बन्धित है और अन्य दो कर्मचारियों से सम्बन्धित है। मैकग्रेगर ने कहा है कि निष्पादन मूल्यांकन प्रायः निम्न तीन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है :

(1) निष्पादन मूल्यांकन योजनाएं कर्मचारियों के पारिश्रमिक में वृद्धि, स्थानान्तरण, पदोन्नति या सेवामुक्ति के सम्बन्ध में व्यवस्थित न्याय प्रस्तुत करती हैं।

(2) निष्पादन मूल्यांकन योजनाएं अधीनस्थों को यह कहने का साधन है कि ये कैसे कार्य कर रहे हैं, सुझाव देने, यह अवगत कराने कि उनके बारे में उनके अधिकारी क्या विचार रखते हैं।

(3) निष्पादन मूल्यांकन योजनाएं उच्च अधिकारियों द्वारा अपने अधीनस्थानों को प्रशिक्षण, मार्गदर्शन एवं मन्त्रणा करने के आधार के रूप में प्रयोग में लाई जाती है।

वास्तव में एक संगठन में निष्पादन मूल्यांकन प्रायः निम्नलिखित प्रबन्धकीय उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किए जाते हैं:

(1) पदोन्नति, स्थानान्तरण व निष्कासन के आधार के लिए (Providing Basis for Promotion, Transfer, Termination, etc.) – निष्पादन मूल्यांकन संगठन के भीतर किसे पदोन्नति दी जाए, किनका स्थानान्तरण किया जाए व किसे कार्य से निष्कासित किया जाए, इसका निर्णय लेने के लिए आधार प्रस्तुत करता है। किनकी नियुक्ति को अनुमोदित किया जाए, किसे स्थायी किया जाए, किसे पुरस्कृत किया जाए, इसका निर्धारण करना निष्पादन मूल्यांकन से ही सम्भव है।

(2) कर्मचारियों की प्रभावशीलता में वृद्धि (Enhancing Employees Effectiveness) – निष्पादन मूल्यांकन से किसी भी कर्मचारी की योगयता, कार्यक्षमता व गुणों आदि का पता लगाया जाता है। इससे कर्मचारियों की शक्ति, क्षमता व कमजोरियों का पता चलता है जिससे उचित निर्णय व प्रबन्ध कर कर्मचारियों की प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सकता है।

(3) कर्मचारियों के प्रशिक्षण व विकास की जरूरतों की पहचान करना (Identifying Employee’s Training and Development Needs) – संगठन में किन कर्मचारियों को प्रशिक्षण की आवश्यकता है, बदलते परिवेश की चुनौतियों को समझने व इससे निजात पाने के लिए कर्मचारियों की क्षमता व योग्यता का विकास कैसे किया जाए इसकी पहचान कर उचित निर्णय लिया जा सकता है।

(4) प्रशिक्षण व विकास के कार्यक्रमों की रूपरेखा में योगदान (Aiding Designing, Training and Development Programmes) – कर्मचारियों की प्रशिक्षण व विकास की आवश्यकता के निर्धारण के बाद उसके उचित विकास के लिए प्रशिक्षण व विकास की रूपरेखा तैयार करने में भी निष्पादन मूल्यांकन सहयोग देता है।

(5) कार्य अलगाव को दूर करने (Removing Work Alienation)-  संगठन में कार्यरत कर्मचारी का मनोबल गिरने से या अन्य कारणों से कार्य अलगाव की स्थिति उत्पन्न होने लगती है। निष्पादन मूल्यांकन से कार्य अलगाव की स्थिति को दूर करने में सहायता मिलती है।

(6) असन्तोष को दूर करना (Removing Discontent) – संगठन में श्रमिकों में असन्तोष के कई कारण हैं। कर्मचारियों के बीच उत्पन्न असन्तोष को दूर करने में मूल्यांकन सहायक होता है और संगठन में एक स्वस्थ एवं सकारात्मक वातावरण निर्मित होता है।

(7) अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों का विकास (Developing Interpersonal Relationship) – संगठन में विद्यमान विभिन्न समूहों, वरिष्ठों व अधीनस्थों के बीच आपसी सम्बन्धों को विकसित करने में भी निष्पादन मूल्यांकन सहायक होता है।

(8) मजदूरी प्रशासन में योगदान (Aiding Wage Administrations) – निष्पादन मूल्यांकन से किसी भी कर्मचारी की वास्तविक क्षमता की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। अतः उनको उनकी क्षमता के अनुकूल मजदूरी, अन्य भत्ते व आनुषंगिक लाभ या अन्य सुविधाएं दी जा सकती हैं। इससे कुशल मजदूरी प्रशासन की पद्धति का विकास होता है।

(9) संवादवाहन का विकास (Improving Communication) – निष्पादन मूल्यांकन पदाधिकारियों एवं उनके अधीनस्थों के बीच कुशल संवादवाहन पद्धति विकसित करता है और दोनों को एक-दूसरे को समझने का पूरा अवसर मिलता है।

(10) नियन्त्रण स्थापित करना (Exercising Control)- निष्पादन मूल्यांकन संगठन में कर्मचारियों के मनोबल को बनाए रखता है। संगठन में अच्छी कार्य संस्कृति विकसित कर संगठन में नियन्त्रण स्थापित करने में सहायक होता है।

निष्पादन मूल्यांकन की कमियाँ

Pitfalls of Performance Appraisal

प्रायः एक निष्पादन मूल्यांकन प्रक्रिया में निम्नलिखित कमियां (Pitfalls) परिलक्षित होती है:

  1. मानकों का परिवर्तन (Shifting Standards) – निष्पादन मूल्यांकन निष्पक्ष तथा समान होने चाहिए और यह समरूप (Uniform) मानकों पर आधारित होनी चाहिए। उसके मानकों में हमेशा परिवर्तन नहीं होना चाहिए। प्रायः ऐसा पाया जाता है कि मूल्यांकनकर्ता प्रति वर्ष मूल्यांकन के मानकों को परिवर्तित कर देते हैं जिससे कर्मचारियों में संशय की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और उसका मूल्यांकन उचित नहीं हो पाता है। जैसे यदि पिछले वर्ष में वस्तुओं के गुणों (Qualities) को निष्पादन मूल्यांकन का आधार बनाया गया था, किन्तु इस उत्पादन की मात्रा (Quantity) को मूल्यांकन का आधार बना दिया जाए तो इससे निष्पादन मूल्यांकन पर अनुकूल प्रभाव नहीं होंगे।
  2. अंकनकर्ता के अंकन पद्धति में अन्तर (Difference in Ratter’s Pattern) प्रायः यह पाया जाता है कि मूल्यांकनकर्ता के मूल्यांकन पद्धति व तरीके तथा प्रवृत्ति में अन्तर पाया जाता है। कुछ मूल्यांकनकर्ता अधिक कठोर (Harsh) तो कुछ उदार (Lenient) होते हैं। कठोर व उदार दृष्टिकोण व व्यवहार का भी प्रभाव निष्पादन मूल्यांकन पर होता है और सही मूल्यांकन नहीं हो पाता है। निष्पादन मूल्यांकन एक मानसिक व भावनात्मक प्रक्रिया भी है। अतः मूल्यांकनकर्ता का दृष्टिकोण निष्पादन मूल्यांकन को प्रभावित करता है।
  3. केन्द्रीय दृष्टिकोण (Central Tendency) – निष्पादन मूल्यांकन प्रक्रिया में मूल्यांकनकर्ता को उचित मूल्यांकन कर श्रेणीबद्ध करना होता है। उन्हें ‘उत्तम’ (Outstanding) या ‘निम्न’ (Poor) आदि में वर्गीकृत करना पड़ता है। अतः मूल्यांकनकर्ता एक आसान व केन्द्रीय दृष्टिकोण या वीच का दृष्टिकोण विकसित कर अधिकांश को ‘औसत’ की श्रेणी में डाल देती है। इससे कर्मचारियों का सही मूल्यांकन नहीं हो पाता है।
  4. प्रथम छवि (First Impression) – निष्पादन मूल्यांकन की प्रक्रिया में मूल्यांकनकर्ता प्रथम बार में जो प्रभाव दृष्टिकोण विकसित करता है उसकी छवि उनके आंखों पर बैठ जाती है और वह हमेशा कर्मचारी को उसी रूप में देखते हैं जबकि व्यक्ति की छवि उसके कार्यों व क्षमताओं के आधार पर वनती व बिगड़ती रहती है। निष्पादन मूल्यांकन प्रक्रिया को कम समय में निष्पादित करना होता अतः मूल्यांककी का मूल्यांकन सही नहीं हो पाता है और उसे हतोत्साहित भी होना पड़ता है।
  5. नवीनतम व्यवहार ( Latest Behaviour) – निष्पादन मूल्यांकन की यह भी एक बड़ी कमजोरी है कि इसमें मूल्यांकनकर्ता के समक्ष व्यक्ति की जो नवीनतम व्यवहार, क्रियाकलाप रहता है उसे ही मूल्यांकन का आधार बना लिया जाता है और उसके पुराने व्यवहारों व क्रियाकलापों को अनदेखा (Ignore) कर दिया जाता है। अतः निष्पादन मूल्यांकन के समय ही कर्मचारी अपने मूल्यांककों के समक्ष उचित व्यवहार (Decent Behaviour) के साथपेश आकर उचित दृष्टिकोण विकसित कर मूल्यांकन कराने का प्रयत्न करता है।
  6. चमक प्रभाव या महिमा प्रभाव (Halo Effect) – कभी-कभी मूल्यांकनकर्ता चमक प्रभाव से भी प्रभावित होते हैं। कुछ मूल्यांकनकर्ता व्यक्तियों का मूल्यांकन उच्च या निम्न तो करते ही हैं, किन्तु कभी-कभी कुछ ऐसे कर्मचारी हैं जिनकी क्षमता औसत है या औसत से भी नीचे है, किन्तु वह अच्छे खिलाड़ी है और रणजी ट्रॉफी या इसी प्रकार के अन्य खेलकूद में अपनी सहभागिता दर्ज करते रहे हैं तो उन्हें भी उच्च या उत्तम श्रेणी में मूल्यांकन कर दिया जाता है। मूल्यांकन के समय उनकी कार्यक्षमता का नहीं बल्कि उनके खेलकूद की चमक या महिमा का प्रभाव उनके ऊपर रहता है।
  7. सिंह प्रभाव (Horn Effect) – कुछ मूल्यांकनकर्ता सिंह प्रभाव से प्रभावित होते हैं। उनका दृष्टिकोण हमेशा अपने को सबसे ऊंचा और दूसरे को नीचा दिखाना होता है। वे इस भावना से ग्रसित होते हैं कि उनके अधीनस्थ कुछ नहीं करते हैं। या जो कुछ भी वह करते हैं वह सही नहीं करते हैं या सही से नहीं करते हैं। यह उचित नहीं है। किसी भी व्यक्ति की क्षमता विभिन्न परिस्थितियों पर निर्भर करती है। यदि बॉस पूर्वाग्रह से ग्रसित होंगे तो मूल्यांकन सही नहीं हो सकेगा।
  8. मूल्यांकनकर्ता का पूर्वाग्रह (Ratter’s Bias) – कुछ मूल्यांकनकर्ता पूर्वाग्रह से ग्रसित होते हैं। वह कई प्रकार के पूर्वाग्रह जैसे- लिंग, रंग, जाति, धर्म, उम्र, कपड़े पहनने के ढंग, राजनीतिक दृष्टिकोण, सामाजिक स्तर आदि से प्रभावित होते हैं। इसका प्रभाव मूल्यांकनकर्ता के ऊपर होता है और उन घटकों से प्रभावित होकर मूल्यांकन सही नहीं कर पाते हैं। मूल्यांकनकर्ता अपने पद और प्रतिष्ठा का प्रयोग पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर करते हैं जिससे तथ्यों से हटकर गलत व झूठी मान्यताओं व अनुभवों के आधार पर मूल्यांकन कर बैठते हैं, अतः निष्पादन प्रभावित होता है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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