पर्यावरण शिक्षा का आधुनिक प्रत्यय | विद्यालयी स्तर पर पर्यावरण शिक्षा सम्बन्धी किये जाने वाले क्रियाकलाप

पर्यावरण शिक्षा का आधुनिक प्रत्यय | विद्यालयी स्तर पर पर्यावरण शिक्षा सम्बन्धी किये जाने वाले क्रियाकलाप | Modern concepts of environmental education. Activities related to environmental education at school level in Hindi
पर्यावरण शिक्षा का आधुनिक प्रत्यय
(Modern Concept of Environmental Education)
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में शिक्षा के सभी स्तरों पर छात्र वर्ग में पर्यावरण चेतना जाग्रत करने के उद्देश्य से इसे पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग बनाया गया है। पर्यावरण शिक्षा को बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा के साथ हा जोड़ा गया है। इसे राष्ट्र के प्रत्येक राज्य ने क्रियान्वित भी किया है। प्राथमिक एवं उच्च माध्यमिक स्तर पर विभिन्न विषयों को निर्धारित पाठ्य पुस्तकों में पर्यावरण सम्बन्धी प्रत्ययों को जानकारी, प्रदूषण सुधार सम्बन्धी विषय बिन्दुओं को केन्द्रीभूत करते हुए अनेक पाठों को जोड़ा गया है ताकि 21वीं शताब्दी में आने वाला किशोर छात्र भविष्यगत नागरिक पर्यावरण सुरक्षा के प्रति अपने उत्तरदायित्व को समझ सके तथा शिक्षक अभिभावक के सहयोग से घर एवं विद्यालय का वातावरण स्वच्छ एवं सुन्दर बना सके। अन्य प्रदेशों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश ने भी शिक्षा संस्थान, इलाहाबाद में कार्यरत पर्यावरण शिक्षा के प्रकोष्ठ द्वारा उल्लेखनीय कार्य इस क्षेत्र में किये हैं। राज्य शिक्षा संस्थान द्वारा सभी स्तरों पर पर्यावरण शिक्षा पाठ्यक्रम का नियोजन किया गया है। उसके द्वारा पर्यावरण शिक्षा के दीर्घ एवं अल्पकालीन उद्देश्यों का भी निर्धारण किया गया है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने 1988 में पर्यावरण चेतना को विकसित करने के उद्देश्य से विशिष्ट सन्दर्भदाताओं का एक सम्मेलन ‘एप्रोप्रिएट टैक्नोलॉजी डेवलपमेंट एसोसिएशन’ लखनऊ के सौजन्य से किया था, जिसमें राज्य शिक्षा संस्थान, इलाहाबाद के शिक्षक प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया था। 1989 में राष्ट्रीय पर्यावरण चेतना अभियान के कार्यक्रम को ध्यान में रखकर एक अनुवर्ती कार्यक्रम द्वारा विद्यालयों में लागू किये गये पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रम की प्रभावशीलता का निरीक्षण किया गया था।
अब प्रत्येक पाठ्य पुस्तक में कुछ न कुछ मात्रा में पर्यावरण सम्बन्धी ज्ञान स्थापित करने के उद्देश्य से छात्रों को पाठ्य-पुस्तकों को पुनर्लेखन, परिशोधित योजना भी रूप ग्रहणकर चुकी है जिससे विभिन्न विषयों द्वारा छात्रों में अधिकाधिक रुचि, चेतना, प्रशंसा, पुरस्कार की भावना उत्पन्न की जा सके।
सन् 1981 में एन० सी० ई० आर० टी०, दिल्ली द्वारा जारी किये गये मोनोग्राफ एनवायरनमेंटल ऐजूकेशन-एलीड पेपर को आधार मानकर हमें पर्यावरण शिक्षा को औपचारिक, अनौपचारिक, औपचारिकेतर तथा सतत् केन्द्रों के माध्यमों से एक जन आन्दोलन के रूप में विकसित करने की आवश्यकता है ताकि हम अभीष्ट उद्देश्यों की ओर बढ़ सके।
विद्यालयी स्तर पर पर्यावरण शिक्षा सम्बन्धी किये जाने वाले क्रियाकलाप
विद्यालयो स्तर पर उत्तर प्रदेश राज्य संस्थान ने एक सुनिश्चित् पाठ्यक्रम विभिन्न क्रियाकलापों के माध्यम से निर्धारित किया है जिससे छात्रों में आवश्यक जागरूकता उत्पन्न की जा सके। फिर भी एक अच्छा शिक्षक बिना किसी अतिरिक्त परिश्रम के छात्रों में पर्यावरण के प्रति संवेदनाओं को आसानी से जाग्रत कर सकता है तथा छात्रों को मनोरंजनात्मक ढंग से अनेक प्राकृतिक मूल्यों को समझा सकता है। इसके लिए शिक्षक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह छात्रों को पठन सामग्री का सूक्ष्मता से अध्ययन करे तथा उन्हें छात्रों की रुचि, मनोरंजन, प्रेरणाओं से सम्बन्धित करे।
उदाहरण के लिए ‘ज्ञान-भारती- भाग एक का पाठ शीर्षक ‘हम बन्च’ को एक कविता कितनी सटीक प्रतीत होती है तथा पर्यावरण का अचूक पाठ सिखाती है जब दो बच्च स्वच्छ घर के समक्ष चित्र में बैठे दिखाकर बगीचे के माहौल में ये पंक्तियां दोहराते प्रतात हो रहे हैं-
फूलों सी अपनी मुस्कान,
हम बच्चे हैं, घर की शान।
करें समय से हम सब काम,
रखें स्वच्छ नित आँगन धाम।
चारों ओर खिले हैं फूल,
दूर-दूर तक धुआं न धूल।
हरा-भरा यह घर का बाग,
देता है ताजे फल साग।
इसी प्रकार का एक उदाहरण कक्षा 3 की ज्ञान भारती के पाठ शीर्षक ‘दीपक गांव लौटा’ में बार्तालाप की प्रविधि द्वारा गांव एवं शहरी जीवन के पर्यावरण का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। इसी प्रकार कक्षा 5 में विकास प्रदर्शिनी पाठ के द्वारा पर्यावरण सम्बन्धी ज्ञान कौशल एवं मूल्य प्रदान किये गये हैं। यथा-दिनेश ने अपने साथी दीपक, बशीर एवं रॉबर्ट से बातचीत है। उसे प्रदर्शनी के बार में बताया है। पंडाल में हमारा भोजन कैसा हो, का चार्ट सुन्दर था। प्रदूषण से बचें और हरित क्रान्ति पर लगे पोस्टर अच्छे थे।
कक्षा 6 में नव भारती भाग 1 एक पर्यावरण शिक्षा का उद्धरण दृष्टव्य है-
धरती कहती है मानव से,
सुख का सच्चा पथ अपनाओ।
जनसंख्या का भार बढ़ा है,
अब न इसे तुम और बढ़ाओ।
मेरे खेत उगलते सोना,
खने हीरे पन्ने देतीं,
पशु पलते मेरे आंगन में,
दूध, दही, फल, साग, अन्न खा
तन मन का बलवान बनाओ।
धरती कहती है… ॥
ऐसी बात नहीं है कि पर्यावरण शिक्षा का यह पाट केवल भाषा की पाठ्य पुस्तके ही पढ़ायगी। छात्रा के पाठ्यक्रम की अन्य पुस्तकं भी इस कार्य को सहयोगात्मक ढंग से आगे बढ़ायेंगी। जैसे नीचे गणित की पुस्तक का एक उद्धरण प्रस्तुत किया गया है-
“एक शहर को नालियों” से प्रति घण्टा 500 घन लीटर गन्दा पानी निकल कर नदी में गिर रहा है। बताओ एक दिन में कितना पानी नदी में गिरकर उसका पानी प्रदूषित करता है।”
इसी प्रकार विज्ञान की पुस्तकें तो सीधा ही पर्यावरण को प्रत्यक्ष रूप से किसी-न-किसी रूप में पढ़ाती हैं, फिर भी उनके सूक्ष्म विवेचन तथा कुशल शिक्षक की आवश्यकता है- उदाहरण हेतु विज्ञान भाग-1 में ‘हवा का दूषित होना’ शीर्षक पृष्ठ 20-21 पर वायु प्रदूषण को विस्तार में बताया गया है।
अतः कुशल शिक्षकों में आवश्यक कौशलों का विकास शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत किया जाय तो हम विभिन्न सामान्य विषयों द्वारा ही छात्रों को पर्याप्त वातावरण सम्बन्धी ज्ञान प्रदान कर सकते हैं।
इसके अतिरिक्त छात्रों में पर्यावरण चेतना का विकास करने हेतु उनमें पर्यावरण सम्बन्धी कुशलताओं क्रियात्मक सृजनात्मक मूल्यों का भी विकास किया जा सकता है।
उदाहरणार्थ, छात्रों से रचनात्मक एवं मौलिक लेखन कार्य कराना, छात्रों द्वारा लेख लिखना। जैसे-
प्रकृति एवं पर्यावरण,
प्रकृति पर्यावरण एवं मानव
पर्यावरण एवं प्रदूषण आदि।
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