राष्ट्रीय आय का अर्थ

राष्ट्रीय आय का अर्थ तथा परिभाषा | भारतीय राष्ट्रीय आय की गणना में आने वाली कठिनाइयाँ | राष्ट्रीय आय का महत्व

राष्ट्रीय आय का अर्थ तथा परिभाषा | भारतीय राष्ट्रीय आय की गणना में आने वाली कठिनाइयाँ | राष्ट्रीय आय का महत्व

Table of Contents

राष्ट्रीय आय का अर्थ (Meaning of National Income)-

राष्ट्रीय आय का अर्थ – अर्थशास्त्र में राष्ट्रीय आय का आशय किसी अर्थव्यवस्था की एक वर्ष की मौद्रिय आय में उत्पादित सभी वस्तुएँ एवं सेवाओं की गणना से है। इस प्रकार राष्ट्रीय आय में सकल राष्ट्रीय उत्पादन (Gross National Product) व शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन (Net national Product) की गणना की जाती है।

राष्ट्रीय आय की परिभाषाएँ-

राष्ट्रीय आय की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

प्रो0 मार्शल के अनुसार, “देश की वास्तविक शुद्ध वार्षिक आय या देश का आगम या राष्ट्रीय लाभांश उसे कहते हैं, जो देश के प्राकृतिक साधनों पर श्रम तथा पूंजी द्वारा कार्य करने पर प्रतिवर्ष भौतिक एवं अभोतिक वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन होता है, का शुद्ध योग है।”

भारतीय राष्ट्रीय आय की गणना में आने वाली कठिनाइयाँ

राष्ट्रीय आय की गणना में प्रमुख कठिनाइयाँ निम्नलिखित हैं-

  1. सामान्य कठिनाइयाँ (General Difficulties)-

राष्ट्रीय आय की गणना में सामान्य कठिनाइयाँ निम्न हैं-

(अ) राष्ट्रीय आय की गणना में सेवाओं (Services) से राष्ट्रीय आय गणना की एक प्रमुख कठिनाई सम्मुख रहती है कि कौन-सी सेवाओं को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाये और किन सेवाओं को सम्मिलित न किया जाये, क्योंकि कुछ सेवाएँ प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित होती हैं, लेकिन कुछ सेवाएँ अप्रत्यक्ष रूप में धन सम्बन्धित हैं।

(ब) वस्तुएँ राष्ट्रीय आय की गणना के आधार वर्ष में उत्पादित अथवा निर्मित नहीं होती हैं, बल्कि उनका उत्पादन वर्ष बाद अथवा अधिक समयावधि में सम्भव है लेकिन राष्ट्रीय आय में उसी वर्ष को लिया जाता है जैसे-अनेकों व्यावसायिक फसलें, फलदार बाग, औद्योगिक उत्पाद आदि।

  1. विशिष्ट कठिनाइयाँ (Specific Difficulties)-

राष्ट्रीय आय की गणना में कुछ विशिष्ट कठिनाइयाँ निम्न हैं-

(अ) वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रचलन होना-

राष्ट्रीय आय की गणना में द्रव्य विनिमय प्रणाली का प्रयोग अनिवार्य है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में वस्तु-विनियोग प्रणाली आज भी प्रचलित है, जैसे हल के बदले अनाज, अनाज के बदले सब्जियाँ, गेहूँ के बदले चना अथवा जो आदि का विनिमय होता है। ऐसी दशा में राष्ट्रीय आय पूर्णतः अनुमान अपूर्ण व असत्य सूचनाओं पर आधारित होती है।

(ब) व्यक्ति द्वारा विभिन्न कार्य (Various Works by the Same Person) –

राष्ट्रीय आय की गणना में एक व्यक्ति द्वारा कार्य करने से वास्तविक आय का ज्ञान कठिन हो जाता है, क्योंकि भारतीय कृषक-कृषि कार्य, बुनकर का कार्य, मुर्गीपालन, पशु पालन एक साथ करता है। ऐसे लोगों की आय गणना कठिन हैं। राष्ट्रीय आय की गणना कितनी कठिन है, इसका सहज अनुमान हो जाता है।

(स) राष्ट्रीय आय की गणना में जन-सहयोग का अभाव (Lack of Public Co-operation in Census of National Income)-

सामान्यतः लोग करों से बचने के लिए आय को छिपाते हैं। यदि गांववासी की आय की गणना करें जो जन-सामान्य आय को कम से कम बतायेंगे अथवा कुछ बढ़ा-चढ़ाकर बतलाते मिलेंगे। अंतः राष्ट्रीय आय की गणना में जन-सहयोग न मिलना एक समस्याप्रद पहलू है।

(द) विशुद्ध सांख्यिकी का अभाव (Lack of Correct Statistics)-

देश में उत्पादन, रोजगार, पूंजी निवेश, बचत, उपभोग, व्यय सम्बन्धी ऑकड़े सरकारी कर्मचारी एकत्र करते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में पटवारी, ग्राम सेवक आदि ग्रामीण उत्पादन सम्बन्धी सूचनाएँ एकत्र करते हैं। चूँकि यह कर्मचारी प्रायः अप्रशिक्षित होते हैं फलतः राष्ट्रीय आय से सम्बन्धित साँख्यिकी विश्वसनीय नहीं है।

राष्ट्रीय आय का महत्व

राष्ट्रीय आय के महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं-

  1. राष्ट्रीय आय से आर्थिक प्रगति का मापन (Estimate Economic Development by National Income)-

राष्ट्रीय आय से आर्थिक प्रगति का मूल्यांकन किया जा सकता है कि आर्थिक प्रगति में देश का औद्योगिक उत्पादन किस स्तर का है। अतः राष्ट्रीय आय से आर्थिक प्रगति का मूल्यांकन किया जा सकता है ।

  1. तुलानात्मक आर्थिक अध्ययन (Comparative Economic Study)-

राष्ट्रीय आय से विभिन्न उत्पादन क्षेत्रों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय से अन्य देशों की तुलना भी कर सकते हैं। इस प्रकार विकसित व अर्द्ध- विकसित देशों की श्रेणी विभाजन का मूल्य आधार राष्ट्रीय आय है।

  1. आर्थिक कल्याण का मूल्यांकन (Evaluation of Economic Welfare)-

राष्ट्रीय आय से देश के आर्थिक कल्याण का ज्ञान होता है कि आर्थिक कल्याण के कौन-कौन से कार्य हुए हैं? देश के पिछड़े भागों का अनुमान भी राष्ट्रीय आय से होता है जो आर्थिक कल्याण की नीतियों का निर्माण करने में सहायक होती है।

  1. आर्थिक नियोजन (Economic Planning)-

आर्थिक नियोजन का मूलभूत ढाँचा आय पर निर्भर होता है, क्योंकि सरकार योजनाबद्ध विकास कार्यक्रम करती है। इसलिए राष्ट्रीय आय का मानक आर्थिक प्रगति का भी सूचक है।

  1. आर्थिक नीतियों का निर्माण (Creation of Economic Policies)-

देश की राष्ट्रीय आय विभिन्न प्रकार की आर्थिक नीतियों के निर्माण में सहायक है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार नीति में उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है, जनसंख्या नियंत्रण पर ऐच्छक परिवार कल्याण कार्यक्रम घोषित हुआ है, प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम पर विशेष बल दिया जा रहा है। अतः भारत की राष्ट्रीय आय को देखकर कृषि, व्यापार, शिक्षा व जनसंख्या पर विशेष कार्यक्रम घोषित किये गये हैं।

  1. भविष्य की प्रवृत्तियाँ (Future Tendencies)-

राष्ट्रीय आय से भविष्य की प्रवृत्तियों का अनुमान भी लगाया जाता है। भविष्य में उद्योग, कृषि, खनन, व्यापार, यातायात, शिक्षा, प्रतिरक्षा में कौन-कौन क्षेत्र अग्रसर रहेगा, विकास दर क्या होगी? इसके विपरीत राष्ट्रीय आय से यह संकेत मिलता है कि भावी प्रवृत्ति देश के प्रतिकूल होने पर सुधार सम्बन्धी उपाय किये जा सकते हैं।

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