रेखाचित्र से आप क्या समझाते हैं?  | रेखाचित्र एवं कहानी में अंतर | रेखाचित्र और संस्मरण में अन्तर

रेखाचित्र से आप क्या समझाते हैं?  | रेखाचित्र एवं कहानी में अंतर | रेखाचित्र और संस्मरण में अन्तर

रेखाचित्र से आप क्या समझाते हैं?

रेखाचित्र अंग्रेजी के ‘स्केच’ (sketches) का पर्यायवाची शब्द है। पाश्चात्य साहित्य में रेखाचित्रों की एक समृद्ध परम्परा रहीं है। यह ‘स्केच’ शब्द चित्रकला का शब्द है। स्केच उन चित्रों को कहते हैं, जिनमें केवल रेखाओं की सहायता से ही किसी भी व्यक्ति या वस्तु का भावपूर्ण चित्र प्रस्तुत कर दिया जाता है जिसे देखकर उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व हमारे सामने साकार हो जाता है। सरलता और संक्षिप्तता’ ऐसे चित्रों की प्रधान विशेषताएँ होती है। जो कार्य चित्रकार कलम पेन्सिल या तूलिका द्वारा करता है वही कार्य साहित्यकार शब्दों के द्वारा करता है। शब्दों के माध्यम से किसी व्यक्ति वस्तु अथवा दृश्य का ऐसा चित्र प्रस्तुत कर देना कि पाठक के सामने उसका जीवन्त चित्र उपस्थित हो जाय, रेखाचित्र कहलाता है। पाश्चात्य साहित्य में यह विधा काफी समृद्ध रही है। हिन्दी के अनेक साहित्यकारों ने भी इस क्षेत्र में स्तुल्य प्रयल किये हैं।

‘स्केच’ शब्द अंग्रेजी के चित्रकला-क्षेत्र से लिया गया है। चित्रकला की अनेक शैलियाँ होती है-रेखाचित्र छायाचित्र संश्लिष्टचित्र व्यंग्यचित्र प्रभावचित्र आदि साहित्य में यह नाम समान प्रयोजन की सिद्धि करने वाले शब्दचित्र या रेखाचित्र के लिए स्वीकार कर लिया गया है। रेखाचित्र के स्वरूप विवेचन के क्रम में कुछ विद्वानों के मतों का विवेचन अनिवार्य हो जाता है डॉ0 नगेन्द्र ने रेखाचित्र की परिभाषा इस प्रकार हैं-“जब चित्रकला का यह शब्द साहित्य में आया तो इसकी परिभाषा भी स्वभावतः इसके साथ आयी अर्थात् रेखाचित्र एक ऐसी रचना के लिए प्रयुक्त होने लगा जिसमें रेखाएँ हो, पर मूर्तरूप अर्थात् उतार-चढ़ाव -दूसरे शब्दों मे कथनक का उतार-चढ़ाव-आदि न हों, तथ्य का उद्घाटन मात्र हो।”

डॉ. भगीरथ मिश्र ने रेखाचित्र की परिभाषा इस प्रकार प्रस्तुत की है-“अपने सम्पर्क में आये किसी विलक्षण व्यक्तित्व अथवा संवेदना को जगानेवाली सामान्य विशेषताओं से युक्त किसी प्रतिनिधि चरित्र के मर्मस्पर्शी स्वरूप की देखी-सुनी या संकलित घटनाओं की पृष्ठभूमि में इस प्रकार उभारकर रखना कि उसका हमारे हृदय में एक निश्चित प्रभाव अंकित हो जाये, रेखाचित्र या शब्दचित्र कहलाता है।”

उपर्युक्त परिभाषा से यह स्पष्ट हो जाता है कि रेखाचित्र में प्रमुखताः किसी प्रतिनिधि चरित्र के मर्मस्पर्शी स्वरूप को ही संक्षिप्त घअनाओं के माध्यम से उभारने का प्रयत्न किया जाता है। अतः रेखाचित्र कहानी और संस्हमरण की विशेषताओं को अपने रचना-प्रकार में समाहित कर लेता है। इस तथ्य का भी उद्घाटन होता है कि रेखाचित्र’ और शब्दचित्र दोनों संज्ञाएं एक ही विधा के लिए प्रयुक्त की जा सकती है।

डॉ० गोविन्द त्रिगुणयत्र रेखाचित्र की परिभाषा इस प्रकार प्रस्तुत करते है- रेखाचित्र वस्तु व्यक्ति अथवा घटना का शब्दों द्वारा विनिर्मित यह मर्मस्पर्शी और भावमय रूप-विधान है जिसमें कलाकार का संवेदनशील हृदय और उसकी सूक्ष्म पर्यवेक्षण दृष्टि अपना निजीपन उड़ेलकर प्राण- प्रतिष्ठा कर देती है।”

रेखाचित्र एवं कहानी में अंतर

कुछ हिन्दी विद्वानों ने रेखाचित्र को कहानी या निबन्ध-कला की सहायक शैली माना है अथवा कहानी और निबन्ध की रचना सीमाओं को फैलाकर रेखाचित्र को उन्ही के अन्तर्गत समाविष्ट करने का प्रयास किया है। डॉ0 लक्ष्मीनारायण लाल कहानी की शिल्प-विधि के सम्बन्ध में लिखते है- “रेखाचित्र से लेकर सूचनिका कैमरा विधान और न्यूजरील-विधान तक ने कहानी रचना की सीमा को बढ़ा दिया है।”

यशपाल रेखाचित्र को कहानी की कला से प्रेरणा पाकर उत्पन्न हुई कला की नव विकसित स्वतन्त्र शाखा मानते हैं कहानी और रेखाचित्र के मौलिक अन्तर को स्पष्ट करते हुए शिप्ले लिखा है-रेखाचित्र में कहानी जैसी गहराई नही होती उसमें कथात्मकता का गौण स्थान हो सकता है और मनोवैज्ञानिक परिवेश पर अधिक बल दिया जा सकता है।”

जैनेन्द्र जी ने कहानी और रेखाचित्र के अन्तर को स्पष्ट करते हुए लिखा है-यदि रेखाचित्र में एक पहलू होता है ता कहानी में दो अगर रेखचित्र में दो मानिये तो कहानी में तीन यानी अगर रेखाचित्र मे केवल लम्बाई ही है तो कहानी में लम्बाई के अतिरिक्त चौड़ाई भी होती है अगर रेखचित्र मे लम्बाई और चौड़ाई होती है तो कहानी मे मोटाई और गोलाई और माननी पड़ेगी।

जैनेन्द्र जी का उपर्युक्त विश्लेषण ‘कहानी’ और ‘रेखाचित्र’ के अन्तर को पूर्णतः स्पष्ट करता है। इन दोनों विधाओं के विभेदक बिन्दू इस प्रकार हैं-

  1. कहानी कल्पित और सच्ची घटना या चरित्र पर आधारित होती है, परन्तु रेखाचित्र किसी वास्तविक व्यक्ति के चरित्र का ही साकार रूप होता है।
  2. कहानी गतिशील होती है, जबकि रेखाचित्र गतिहीन अर्थात् स्थिर होता है।
  3. कहानी प्रधान रूप से सामाजिकता को लिये हुए चलती है, जबकि रेखाचित्र विशुद्ध रूप से वैयक्तिक होता है।
  4. कहानी पात्र के चरित्र के सम्पूर्ण या केवल एक पहलू को अपनी परिधि में समेट लेती है, परन्तु रेखाचित्र चरित्र की सम्पूर्ण बाह्य रेखाओं को हमारे सामने स्पष्ट कर देता है।
  5. तीव्रता कहानी का महत्वपूर्ण गुण है, परन्तु रेखाचित्र में गति की यह तीव्रता नहीं होती है।
  6. कहानी के लक्ष्य अनेक हो सकते हैं, परन्तु रेखाचित्र का लक्ष्य केवल एक होता है-चरित्र का उद्घाटन।
  7. कहानी में रसात्मकता, संवेदनशीलता और मनोरंजकता अधिक होती है। रेखाचित्र में चरित्रिक विशेषताओं पर ही अधिक बल दिया जाता है।

रेखाचित्र और संस्मरण में अन्तर

रेखाचित्र’ और ‘संस्मरण’ में बहुत साम्य है। संस्मरण और रेखाचित्र गहराई के साथ एक -दूसरे से सम्बद्ध हैं इसीलिए प्रायः एक ही रचना को किसी विद्वान ने संस्मरण कहा है तो किसी ने रेखाचित्र। रेखाचित्र और संस्मरण में समानता के अनेक बिन्दु मौजूद हैं-रेखाचित्र भी संस्मरणमूलक होता है, तटस्थता और वस्तुनिष्ठता रेखाचित्र में एक सीमा तक ही सम्भव है। संस्मरण की चित्रात्मकता और रेखाचित्र की संस्मरणात्मकता दोनो विधाओं में अनेक प्रकार की समानताएं उत्पन्न कर देती हैं। बनारसीदास चतुर्वेदी ने इन दोनों विधाओं में भेद करने में कठिनाई महसूस करते हुए लिखा है-“संस्मरण, रेखाचित्र और आत्म-चरित्र इन तीनों का एक-दूसरे से इतना घनिष्ठ सम्बन्ध है कि एक की सीमा दूसरे से कहाँ मिलती है और कहाँ अलग हो जाती है, इसका निर्णय कठिन है।” महादेवी वर्मा की कृति ‘अतीत के चलचित्र’ के चरित्रों के चित्रण में लेखिका आत्मनिष्ठता और भावुकता से बच नहीं पायी हैं। ये चरित्र कितने साधारण क्यों ने हों, इन्होने अपनी असाधारण विशिष्टताओं के कारण रचनाकार के मन में अपना स्थान बना लिया है।

साधारणतः संस्मरण और रेखाचित्र में अधिक अन्तर न होकर समानता ही अधिक मिलती है। सूक्ष्म विश्लेषण करने पर दोनों विधाओं में कुछ ऐसे अन्तर दिखायी पड़ते हैं जो दोनों को दो विधाओं के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए पर्याप्त है। इन दोनों विधाओं के विभेदक बिन्दु इस प्रकार हैं-

  1. संस्मरण प्रायः प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा प्रसिद्ध व्यक्तियों के ही लिखे जाते हैं परन्तु रेखाचित्र के लिए ऐसा कोइ बन्धन नहीं है।
  2. संस्मरण का सम्बन्ध देश, काल और पात्र तीनों से होता है। रेखाचित्र में प्रायः देश, काल से सम्बन्ध नहीं होता है।
  3. संस्मरण लेखक अपने विषय में भी लिखता चलता है लेकिन रेखाचित्रकार आत्मकथन नहीं करता।
  4. संस्मरण लेखक कोई भी शैली अपना सकता है, परन्तु रेखचित्रकार के लिए आवश्यक है कि वह सदैव चित्रात्मक शैली को ही अपनाये।
  5. संस्मरण में विस्तार का अवकाश है परन्तु रेखाचित्र में नपे तुले शब्दों और वाक्यों से काम चलाना पड़ता है।।

रेखाचित्र की विशेषताएँ-

प्रत्येक साहित्यिक विधा की अपनी तात्विक शिल्पगत और संरचनागत विशेषताएँ होती है। रेखाचित्र के स्वरूप-विवेचन के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है कि रेखचित्र निबन्ध कहानी संस्मरण और गद्यकाव्य के अत्यधिक निकट होने के कारण साहित्य समीक्षकों ने साम्य बिन्दुओं को तलाशने का प्रयास किया है। यहाँ रेखाचित्र की उन्हीं विशेषताओं का उल्लेख किया गया है जो अन्य विधाओं से अलग हैं इस दृष्टि से रेखाचित्र की वास्तविक विशेषताएँ अग्रलिखित है।-

  1. रेखाचित्र में आलेख्य व्यक्ति वस्तु या घटना का समग्न चित्रण नहीं होता, बल्कि रेखाओं द्वारा उसका ढांचा मात्र अंकित किया जाता है।
  2. रेखचित्र में वर्णन का विस्तार नहीं होता, उसमें संक्षिप्तता होती है।
  3. रेखाचित्र का वर्ण्य-विषय यथार्थ पर आधारित होता है। काल्पनिक घटनाओं और दृश्यों का महत्व नहीं होता है।
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