शैक्षिक तकनीकी / Educational Technology

रेखीय एवं शाखीय अभिक्रमण | शिक्षा में अनुदेशन शिक्षण, अधिगम एंव प्रशिक्षण | रेखीय अभिक्रमित अध्ययन की विशेषाएँ | शाखीय य आंतरिक प्रकार अभिक्रमित अध्ययन | रेखीय अभिक्रम की मान्यतायें/अवधारणायें | रेखीय अभिक्रम की सीमाएँ | शाखीय अभिक्रम/अनुदेशन की विशेषताएँ | शाखीय अभिक्रम की सीमाएँ

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रेखीय एवं शाखीय अभिक्रमण

शिक्षा में अनुदेशन, शिक्षण, अधिगम एवं प्रशिक्षण

(Instruction, Teaching, Learning and Training in Education)

(1) अनुदेशन (Instruction)- अनुदेशन तकनीकी का अर्थ है, सूचना देना। यह तकनीकी शिक्षा मनोविज्ञान पर आधारित है जिसमें केवल शिक्षक को ही क्रियाशील रहना पड़ता है। छात्र को नहीं। मैक्समूलर के शब्दों में “अनुदेशन तकनीकी प्रशिक्षण एवं अधिगम की सम्पूर्ण प्रक्रिया की विशिष्ट उददेश्यानुसार प्रारूपित करने एवं उसका मूल्यांकन करने की एक क्रमवद्ध विधि है।

अनुदेशन तकनीकी का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। क्योंकि इसमें अधिगम से सम्बन्धि सभी तत्व सम्मिलित हैं। अधिगम किसी भी प्रकार का हो लेकिन वह अनुदेशन के बिना सम्भव नहीं है। इसीलिए यह अधिगम का मूलाधार है। इससे स्पष्ट होता हैं कि अनुदेशन के सम्बन्ध उन क्रियाओं से है जो अधिगम को सुलभ और सुगम बनाती है। कुछ लोग भ्रमवशः शिक्षण, प्रशिक्षण, अधिगम और अनुदेशन जैसे शब्दों का एक अर्थ ही लगाते हैं इसी को स्पष्ट रूप से इस प्रकार समझा जा सकता है –

(2) शिक्षण- शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य छात्रों और सीखने वालों के व्यवहार में बदलाव लाना है। यह बदलाव ज्ञानात्मक, अवबोधात्मक और सृजनात्मक सभी स्तरों पर होता है। इस प्रकार की उद्देश्यों के पूर्ति हेतु अध्यापक और छात्र की उपस्थिति अनिवार्य होती है क्योंकि शिक्षण प्रक्रिया इन दोनों के संयुक्त प्रयासों अवरोह अभिक्रम के प्रवर्तक थॉमस एवं गिलबर्ट (1962) थे जिसका उपयोग अन्य कक्षाओं के लिए होती है।

रेखीय या श्रंखला अभिक्रम/वाहा अभिक्रम

(Liner Programmed)

रेखीय अथवा बाहा अभिक्रमित अध्ययन- इस प्रकार के अभिक्रमित अध्ययन को विकसित करने का श्रेय प्रो. बी. एफ. स्किनर को जाता है। रेखीय अभिक्रमित अध्ययन को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है। “एक ऐसा अभिक्रमित सामग्री क्रम जिसमें कि प्रत्येक छात्र एक रेखीय क्रम में एक निश्चित पदों पार करता हुआ आगे बढ़ता है।

इस प्रकार के अभिक्रमित अध्ययन में अधिगम के तारतम्य और अनुक्रिया सभी के लिए एक समान होती है। इसमें सभी को समान मार्ग से गुजरना होता है। इस प्रकार के अभिक्रमित अध्ययन को स्किनरीयन अभिक्रमित प्रकार के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह सर्वप्रथम स्किनर के द्वारा ही प्रयुक्त किया गया था। इस प्रकार की योजाना का आधार स्किनर की क्रिया-प्रसूत अनुबन्धन सिद्धान्त (Theory of Operant Conditioning) है। स्किनर ने समूहों तथा कबूतरों पर अनेक प्रयोगों के मध्यम से यह स्थापित कर दिया कि जानवरों या मानवों को हम वांछित उद्देश्यों की ओर अग्रसर कर सकते हैं यदि हम शिक्षण सामग्री को छोटे-छोटे पदों के रूप में एक निश्चित क्रम में प्रस्तुत कर दें तथा प्रत्येक पद को सन्तुष्टि या अनुकूल अनुभवों के माध्यम से धनात्मक पुनर्बलन मिलाता है।

अभिक्रमित अध्ययन के दौरान छात्रों को अनुक्रिया की रचना करनी होती है। यह अनुक्रिया बाह्य अथवा आन्तरिक व्यवहारों दोनों ही रूप में हो सकती है। क्योंकि रेखीय अभिक्रमित अध्ययन में बाह्य अनुक्रियाओं का बाहुल्य होता है। अतः इस प्रकार के अभिक्रमित अध्ययन को बाह्य अभिक्रमित अध्ययन के नाम से भी जाना जाता है।

रेखीय अमिक्रमित अध्ययन में छात्र के सामने शिक्षण सामग्री का एक छोटा-सा अंश या पद प्रस्तुत किया जाता है। उसके बाद छात्र को इस अंश या पद से सम्बन्धित प्रश्न का उत्तर देने को कहा जाता है। उत्तर आ जाने के पश्चात् छात्र को सही का ज्ञान कराया जाता है। यदि इसका उत्तर सही उत्तर से मिल जाता है तो उसे पुनर्बलन मिलता है। और वह अगले पद की ओर अग्रसर हो जाता है। इस प्रकार एक पद के पश्चात् प्रश्न, प्रश्न के पश्चात उत्तर को पुनः और पुर्नवलन के पश्चात् दूरे पद, फिर प्रश्न अथवा पुनर्बलन यह क्रम चलता रहता है। जब तक कि छात्र पूर्व व्यवहार से अन्तिम व्यवहार तक नहीं पहुँच जाता है। इसमें उद्देदीपन अनुक्रिया की एक श्रृंखला या रेखा-सी बन जाती हैं।

रेखीय अभिक्रमित अध्ययन की विशेषाएँ

(1) रेखीय प्रकार में छात्र विभित्र छोटे-छोटे पदों के माध्यम से एक रेखीय मार्ग पर गति करते हुए अन्तिम व्यवहार तक पहुँचता है-

(2) इसमें छात्र के उत्तर की सही उत्तर से जाँच कराकर पृष्ठपोषण (Feedback) होता है।

(3) सभी छात्र एक प्रकार के मार्ग पर ही चलते हुए अन्तिम लक्ष्य पर पहुँचते हैं।

(4) अभिक्रमित अध्ययन के प्रारम्भ में सीखने को सरल बनाने के लिए उदबोध (Prompts) या संकेतों (Cues) का प्रयोग किया जाता है। जिन्हें कि धीरे-धीरे निकाल लिया जाता है।

(5) अनुक्रिया तथा उसके क्रम पर नियंत्रण रखा जाता हैं छात्र को अपने प्रकार से अनुक्रिया करने का कोई अधिकार नहीं होता है।

(6) इस प्रकार के अध्ययन में छात्र स्वयं उत्तरों का निर्माण करता है।

(7) इसमें शिक्षण-सामग्री का निर्माण तथा प्रस्तुतीकरण इस प्रकार किया जाता है कि छात्र की त्रुटि की सम्भावना लगभग शून्य हो जाती है।

शाखीय य आंतरिक प्रकार अभिक्रमित अध्ययन

शाखीय प्रकार के अभिक्रमित अध्ययन को विकसित करने का मुख्य श्रेय नार्मल ए. क्राउडर को हैं शाखीय प्रकार के अभिक्रमित अध्ययन को निम्न रूप में परिभाषित किया जा सकता है। “यह वह अभिक्रमित अध्ययन विधि है जो कम्प्यूटर जैसे बाह्य माध्यम के बिना भी छात्रों की आवश्यकताओं के अनुसार कार्य करती है।”

इस प्रकार की अभिक्रमित अध्ययन विधि को क्राउडर अभिक्रमित अध्ययन विधि के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि सर्वप्रथम क्राउडर ने भी इस विधि का विकास किया था। इस अभिक्रमित अध्ययन का आधार कोई सीखने का सिद्धान्त न होकर, केवल विषय-सामग्री को प्रस्तुत करने की तकनीकी है। इसमें प्रभावशाली शिक्षण के विभिन्न सिद्धान्तों का प्रयोग करके शिक्षण को प्रभावशाली बनाया जाता है।

चूंकि शाखीय अभेक्रमित अध्ययन में अनुक्रियाएँ छात्र द्वारा नियंत्रित होती हैं छात्र अपनी  सूझ-बूझ एवं आवश्यकता के अनुसार अनुक्रिया या उत्तर देता है। अतः इसे आन्तरिक अभिक्रमित अध्ययन (Intrinsic learning) के नाम से जाना जाता है।

शाखीय अभिक्रमित अध्ययन में छात्रों की आवश्यताओं को ध्यान में रखते हुए विभिन्न पद दिये जाते हैं। इन पदों का आकार रेखीय अभिक्रमित अध्ययन के पदों की तुलना में कुछ बड़ा होता है। एक पर्दे (फ्रेम) पढ़ लेने के पश्चात छात्र को बहुविकल्पी प्रश्न दिया जाता है। जिसमें कि एक उत्तर होता है। यदि छात्र का उत्तर सही उत्तर से मिल जाता है। तो उसे आगे पद (फ्रेम) पर बढ़ने को कहा जाता है। यदि छात्र का उत्तर सही उत्तर से नहीं मिलता है तो उसे उपचारात्मक निर्देश दिये जाते है। तथा फिर पूर्व पद पर आने तथा उत्तर देने को कहा जाता है। यह क्रिया तब तक चुलती रहती है जब तक कि वह सही उत्तर नहीं दे देता। केवल सही उत्तर देने पर ही अगले पद पर बढ़ने को कहा जाता है। इस प्रकार इसमें प्रतिभाशाली व कमजोर छात्रों के लिए अलग पदों के माध्यम से अन्तिम लक्ष्य (व्यवहार तक पहुँचने को कहा जाता है।) एक प्रतिभाशाली छात्र कमजोर की तुलना में पदों को पढ़कर शीघ्र अंतिम व्यवहार (लक्ष्य) तक पहुँच जाता है।

रेखीय अभिक्रम की मान्यतायें/अवधारणायें-

रेखीय या शृंखला अभिक्रम की प्रमुख मान्यतायें निम्नलिखित है।

  1. रेखीय अनुदेशन के पदों की सफलता इस तथ्य पर पर अवलम्बित होती हैं कि छात्र कम से कम मात्रा त्रुटि करें।
  2. चूंकि त्रुटियों में कमी होने से छात्रों को अधिक पुनर्बलन प्राप्त होता है।
  3. यह कोशिश जारी रहती है कि छात्र किसी भी पद पर 10 प्रतिशत से ज्यादा त्रुटि न करे। आदर्श पद वही उत्तम माना जाता है। जिसे पढ़ लेने के बाद प्रत्येक छात्र द्धीक तरह से उत्तर दे सकें।
  4. छात्रों के सीखने में तत्परता अत्यन्त सहायक कारक है। छात्र तत्परता की स्थिति में अधिगमों की मात्रा ज्यादा रखी जाती है।
  5. पाठ्य वस्तु का छोटे-छोटे पदों में विभाजन करने से छात्र अधिक अधिगम करते हैं।
  6. पूर्व ज्ञान के आधार पर नवीन ज्ञान करने के कारण छात्र अधिक मात्रा में सीखते हैं।

रेखीय अभिक्रम की सीमाएँ (Limitations of Linear Programme) –

रेखीय अभिक्रम की सीमायें निम्नवत् हैं-

  1. इसकी सुगमता छात्रों की ईमानदारी पर निर्भर करती है। इस प्रकार न होने पर यह अध्ययन असफल रहता है।
  2. इस अभिक्रम के माध्यम से छात्रों को अधिक प्रेरणा नहीं प्राप्त हो पाती है।
  3. इसमें सामाजिक अभिप्रेरणा का कोई महत्व नहीं रहता है।
  4. यह सभी विषयों में प्रयोग के लिए नहीं हो सकता।
  5. यह चिन्तन-मनन की प्रक्रिया को विकसित करने में विशेष सहायक नहीं माना जाता है।
  6. इसमें छात्र पूर्णा रूप से प्रश्न का उत्तर देने में स्वतंत्र नहीं होते हैं।
  7. यह सुधारात्मक प्रशिक्षण में प्रयोग नहीं होता है।
  8. प्रतिभाशाली छात्रों में यह अभिक्रम अधिक रूचिकर नहीं रहता।
  9. इसका निर्माण करना भी अपेक्षाकृत कुछ अधिक कठिन कार्य है।

शाखीय अभिक्रम/अनुदेशन की विशेषताएँ-

शाखीय/आन्तरिक अभिक्रम की पप्रमुख विशेषताये इस प्रकार हैं-

  1. शाखीय या आन्तरिक अभिक्रम में कोई भी छात्र अपने को धोखे में नहीं रख पाता है।
  2. इसमें प्रत्येक छात्र को अपनी कमी व त्रुटि के कारणों का ज्ञान हो जाता है।
  3. इसमें छात्रों को अपने उत्तर चयन करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त होती है।
  4. रेखीय अनुदेशन की अपेक्षा शाखीय अनुदेशन का ढाँचा अधिक व्यापक व सुस्पष्ट होती है।
  5. इसमें अध्ययनशील छात्रों को महत्व प्रदान किया जाता है।

शाखीय अभिक्रम की सीमाएँ-

शाखीय अभिक्रम की अपनी कुछ सीमायें होती हैं। जो इस प्रकार है-

  1. चूँकि शाखीय अनुदेशन में एक प्रश्न के उत्तर अनेक तरीकों से दिये जाते हैं इसलिये इन स्तरों में से सही उत्तर का चयन करने के लिए छात्रों द्वारा अनुमान के आधार पर उत्तर चयन करने की सम्भावना रहती है।
  2. इसकी रचना करने में प्रशिक्षित अध्यापकों की आवश्यकता पड़ती है।
  3. इसके अंतर्गत छात्रों को समस्त ढाँचों का पूर्ण ज्ञान भी नहीं हो पाता है।
  4. इसके अन्तर्गत सम्पूर्ण विषय-वस्तु को मिलना अत्यन्त कठिनता का काम है।
  5. यह अनुदेशन केवल उच्च कक्षाओं में उपयोगी है, माध्यमिक एवं प्रामिक स्तर की कक्षाओं में नहीं।
  6. इसमें हमेशा संशोधन करते रहने की जरूरत पड़ती है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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