शैक्षिक तकनीकी / Educational Technology

कम्प्यूटर के उपयोग | कम्प्यूटर की सीमाएँ | कम्प्यूटर का विकास

कम्प्यूटर के उपयोग | कम्प्यूटर की सीमाएँ | कम्प्यूटर का विकास | Use of computer in Hindi | Computer Limitations in Hindi | Computer development in Hindi

कम्प्यूटर के उपयोग

(Uses of Computer)

प्रारम्भिक समय में कम्प्यूटर का प्रयोग सिर्फ कुछ विशेष वर्ग एवं कार्यों के लिये ही किया जाता था। लेकिन आधुनिक समय में कम्प्यूटर को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलातपूर्वक प्रयोग किया जा रहा है। विभिन्न क्षेत्रों में इसका प्रभाव किस प्रकार है? आइये जाने-

  1. विज्ञान के क्षेत्र में (In the Field of Science)- विज्ञान के अधिकतर कार्य गणितीय समीकरण पर आधारित होते हैं। यह गणनाएँ काफी जटिल होती हैं जिनको हल या सरल करने में बहुत अधित समय लग सकता है। लेकिन कम्प्यूटर के माध्यम से इन जटिल गणनाओं को कुछ ही सेकण्ड में हल किया जा सकता है। बहुत से कम्प्यूटर्स को विशेष रूप से वैज्ञानिक अनुसन्धान केन्द्रों के लिये तैयार किया जाता है। इनकी सहायता से अनेक महत्त्वपूर्ण प्रयोगों को करना एवं देखना आदि किये जा सकते हैं।

कम्प्यूटर का प्रयोग भौतिक विज्ञान (Physics) रसायन विज्ञान (Chemistry) अन्तरिक्ष विज्ञान (Space Science)’ मौसम विज्ञान (Weather Forecasting), यान्त्रिकी विज्ञान (Mechanical Science), भूगर्भ विज्ञान (Geology) तथा परमाणु विज्ञान (Atomic Science) सभी में किया जा रहा है।

  1. शिक्षा के क्षेत्र में (In the Field of Education)- शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है। शिक्षा के विभिन्न विभाग इसके प्रयोग से लाभान्वित हो रहे हैं। उदाहरण के लिये, पुस्तकालय, परीक्षा, प्रयोगशाला, प्रबन्धन कार्य, अध्यापन तथा अध्ययन आदि। कम्प्यूटर शिक्षा क्षेत्र में जानकारियों का स्रोत एंव भण्डारण स्थान के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका बनाये हुए है। यह शिक्षा प्रबन्धन में, अध्यापन में एवं एक नये विषय के रूप में अपना महत्वता बना चुका है।
  2. व्यापार के क्षेत्र में (In the Field of Business)- व्यापार के क्षेत्र में कम्प्यूटर अपनी भूमिका बना चुका है एवं यह भूमिका कार्य के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। कम्प्यूटर का प्रयोग वित्तीय मॉडल बनाने में (Financial Modelling), स्टॉक प्रबन्धन में (Stok Management), सांख्यिकीय विश्लेषण में (Statistical Analysis), लेखांकन में (Accountancy) वेतन सूची में, (Payroll System), अनुरूपण (Simulation), एवं प्रबन्धन (Administration), आदि में सफल रूप से किया जा रहा है।
  3. मनोरंजन के क्षेत्र में (In the Field of Entertainment) – एक मल्टीमीडिया तकनीकी युक्त कम्प्यूटर सिस्टम द्वारा मनोरंजन किया जा सकता है। इसके द्वारा संगीत सुना जा सकता है, वीडियो फिल्म देखी जा सकती है। इसके अतिरिक्त बालकों के लिये लोकप्रिय विभिन्न प्रकार के कम्प्यूटर गेम्स भी खेले जा सकते हैं। यदि कम्प्यूटर में इन्टरनेट सुविधा भी है तो विभिन्न विषयों पर जानकारियाँ ली जा सकती हैं, समाचार पत्र पढ़े जा सकते हैं। चैट की सहायता से दूर- दराज के सम्बन्धियों एवं मित्रों से बातचीत की जा सकती है।
  4. बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थानों में (In Banking and Finance Institutions) – बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थानों के लिये कम्प्यूटर एक महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। बैंको में इसका प्रयोग खाता धारकों के खातों से सम्बन्धित जानकारी रखने, में धनराशि निकालने एवं जमा करने में, ऋण सम्बन्धित प्रक्रिया एवं अन्य रिपोर्ट बनाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त रिकार्ड रखने में, शेयरों के लेन-देन सम्बन्धी कार्यों में, इलेक्ट्रॉनिक धन हस्तान्तरण पद्धति (electronic Fund Transfer System) में भी कम्प्यूटर का प्रयोग किया जा रहा है।
  5. स्वास्थ्य के क्षेत्र में (In Health Field)- कम्प्यूटर के माध्यम से स्वास्थ्य जगत में बीमारियों की रोकथाम के लिये पूरे विश्व में अनुसन्धान (Research) किये जा रहे हैं। विभिन्न रोगों से सम्बन्धित आँकड़ों के विश्लेषण एवं उपचार हेतु कम्प्यूटर का प्रयोग किया जा रहा है। कई कम्प्यूटरीकृत मशीनें रोग का पता लगाने में भी सहायक होती है। जैसे— (Computerised Axial Topology Scorning), M.R.I. (Magnetic Resonance Imaging) आदि
  6. डेस्कटॉप पब्लिसिंग के क्षेत्र में (In the Field of Desktop Publishing) – प्रकाशन (Publishing) क्षेत्र में कम्प्यूटर द्वारा पुस्तकों या पेज का ले-आउट डिजाइन कर सकते हैं। प्रकाशन के लिये काफी सॉफ्टवेयर बाजार में उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से कम समय में कम्प्यूटर द्वारा प्रोजेक्ट रिपोर्ट, पत्र तथा पुस्तकों के पृष्ठों को आसानी से तैयार किया जा सकता है। कम्प्यूटर द्वारा प्रकाशन का कार्य कम समय में एवं न्यूनतम लागत में लिया जा सकता है।
  7. संचार के क्षेत्र में (In Communication Field)- कम्प्यूटर ने संचार क्षेत्र में क्रान्ति ला दी है। इसकी सहायता से दुनिया के किसी भी व्यक्ति से सेकण्डों में सम्पर्क स्थपित किया जा सकता है, चाहे वह कहीं भी हो। इसके अतिरिक्त किसी भी प्रकार की जानकारी का आदान-प्रदान किया जा सकता है। कम्प्यूटर नेटवर्क द्वारा उस नेटवर्क के किसी भी अन्य कम्प्यूटर पर कार्य किया जा सकता है। कम्प्यूटर नेटवर्क के वृहत रूप इन्टरनेट द्वारा दुनिया के किसी भी विषय या स्थान की जानकारी ली जा सकती है क्योंकि यह असीमित जानकारियों का भण्डार है।

कम्प्यूटर की सीमाएँ

(Limitations of Computer)

कम्प्यूटर की अपनी कुछ सीमाएँ है, जो निम्नलिखित हैं-

  1. कुछ नये सोचने का अभाव (Lack of New Thinking) – कम्प्यूटर अपने आप कुछ नया नहीं सोच सकता। यह केवल हमारे द्वारा दिये गये निर्देशों के अनुसार ही विभिन्न समस्याओं को हल करता है। यदि कम्प्यूटर को गलत निर्देश तैयार करने पड़ते हैं तो भविष्य में यह सम्भव है कि कम्प्यूटर की यह सीमा समाप्त ही जाये क्योंकि ऐसे कम्प्यूटर को बनाया जाने का प्रयास चल रहा है, जो स्वयं सोच सके।
  2. सामान्य चेतना अभाव (Lack of General Awareness ) – कम्प्यूटर एक इलेक्ट्रॉनिक युक्ति है जो मनुष्य की भाँति उसके विभिन्न कार्यों में सहायक है लेकिन कम्प्यूटर के पास मनुष्य की भाँति सामान्य चेतना (प्रदर्संह एहो) नहीं होती। यह सोच नहीं सकता है। बल्कि एक बालक में कम्प्यूटर से अधिक सामान्य चेतना होती है।
  3. गलतियों से सीखने का अभाव (Lack of Learning from Error) – जिस प्रकार मनुष्य अपनी गलती से सीख लेता है, उसी प्रकार से कम्प्यूटर अपनी गलतियों से कुछ नहीं सीखता। यदि आप कोई कम्प्यूटर गेम खेल रहे तो एक ही ट्रिक (Trick) का बार-बार प्रयोग करके आप कम्प्यूटर को हरा सकते हैं।
  4. निर्देशों के अनुसार ही कार्य करना (Doing work according to Directions) – इसके अतिरिक्त आप कम्प्यूटर को जिस प्रकार निर्देश देंगे वह उसी प्रकार से कार्य करेगा। यदि कोई निर्देश गलत भी है तो वह उसी के अनुसार कार्य करता है, जैसे यदि आप जोड़ के स्थान पर भाग का निर्देश देते हैं तो वह भाग ही करेगा।

कम्प्यूटर से सम्बन्धित समस्याएँ (Computer Related Problems) –

कम्प्यूटर के अधिक प्रयोग से जहाँ समाज उन्नति कर रहा है। वहीं उससे निम्नलिखित समस्याएं भी सामने आयीं हैं-

(1) कम्प्यूटर के कारण बालकों का कार्य आसानी से बिना थके बिलकुल सही किया जा सकता है। जिस कारण बेरोजगारी की समस्या बढ़ रही है।

(2) कम्प्यूटर के कारण बालकों ने बाहर जाना, घूमना-फिरना तथा मैदान में खेलना आदि सभी छोड़ दिया है और सिर्फ कम्प्यूटर के सामने बैठकर उस पर खेलते हैं एवं काम करते रहते हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ बढ़ रही हैं।

(3) कम्प्यूटर की सबसे बड़ी समस्या है, ‘कम्प्यूटर वाइरस’। कम्प्यूटर वाइरस कम्प्यूटर का एक ऐसा प्रोग्राम होता है जो कम्प्यूटर के अन्य प्रोग्रामों को खराब कर देता है। यदि वाइरस आपके कम्प्यूटर में चला जाय तो उसमें भण्डारित (Store) डाटा एवं प्रोग्राम को नष्ट कर सकता है। ‘लव बग’ वाइरस जिसका नाम (I Love You) था। वह एक कम्प्यूटर वाइरस ही था।

कम्प्यूटर का विकास

(Development of Computer)

कम्प्यूटर का विकास बहुत लम्बे समय एवं जटिलताओं में हुआ। इसकी विकास यात्रा को विभित्र पीढ़ियों में विभाजित किया गया है। यह पीढ़ियाँ कम्प्यूटर की तकनीकी अथवा हार्डवेयर में आये परिवर्तन पर आधारित है। यह पीढ़ियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. शून्य पीढ़ी (Zeroth Generation) – इस पीढ़ी का समय अन्तराल सन् 1642 से 1945 तक माना गया है। इस समय अन्तराल में बने सभी कम्यूटर शून्य पीढ़ी में आते हैं। यह कम्प्यूटर यान्त्रिक (Mechanical Computer) कहलाते थे। इस पीढ़ी में कम्प्यूटर की मूल संरचना प्राप्त हुयी थी। डाटा के संग्रहण (Stor), आगमन निर्माण (Input output) पंच कार्ड द्वारा होता था। इस पीढ़ी में ही कम्प्यूटर का प्रथम प्रोग्राम लेडी एडा अगस्ता लव लेस (Lady Ad’a Augusta Love Lace) द्वारा असेम्बली भाषा में लिखा था। इस पीढ़ी के मुख्य कम्प्यूटर में पास्कल की मशीन, डिफरेन्स इंजन, एनालिटिकल इंजन, मार्क I तथा मार्क II हैं।
  2. प्रथम पीढ़ी (First Generation) – इस पीढ़ी का समय अन्तराल सन् 1945 से सन् 1955 तक माना गया है। इस पीढ़ी में इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर्स का निर्माण किया गया। कम्प्यूटर सर्किट निर्माण के लिये निर्वात् बल्वों (Vacuum Tubes) का प्रयोग किया गया। यह इस पीढ़ी का मुख्य हार्डवेयर था। इस पीढ़ी के कम्प्यूटर आकार में अत्यन्त विशाल, बहुत भारी तथा संचार में अति जटिल होते थे तथा यह कम्प्यूटर विश्वसनीय भी नहीं थे क्योंकि निर्वात बल्ब कभी भी फ्यूज हो सकते थे। इनकी देख-रेख पर अत्यधिक व्यय तथा चलाने में अत्यधिक बिजली की खपत होती थी। इस पीढ़ी में ही आधुनिक डिजिटल कम्प्यूटर का मूल डिजाइन (वॉन न्यूमैन मशीन) के रूप में प्राप्त हुआ था। इस पीढ़ी के मुख्य कम्प्यूटर (ENIAC, ANIVAC, ADVAC, 701 एवं 702 मुख्य हैं।
  3. द्वितीय पीढ़ी (Second Generations) – इस पीढ़ी में कम्प्यूटर में निर्वात बल्बों की जगह एक नये हार्डवेयर ट्रान्जिस्टर का प्रयोग किया गया था। ट्रान्जिस्टर अधिक विश्वसनीय एवं छोटे आकार की युक्ति थी। उसके प्रयोग से कम्प्यूटर का वजन एवं आकार अत्यधिक कम हुआ तथा अन्तराल 1955 से 1965 तक रहा। इस पीढ़ी में उच्चस्तरीय भाषाओं (High-level Languages), मैग्नेटिकि टेप एवं मैग्नेटिक डिस्क का निर्माण हुआ। इस पीढ़ी के प्रमुख कम्प्यूटरों में PDP-1, PDP-8, 7090 एवं 6600 हैं। मिनी कम्प्यूटर का जन्म भी इसी पीढ़ी में हुआ।
  4. तृतीय पीढ़ी (Third Generation) – इस पीढ़ी का समयान्तराल सन् 1965 से 1975 तक माना जाता है। इस पीढ़ी में इन्टीग्रेटेड सर्किट (Integrated Circuit) नामक हार्डवेयर का आविष्कार हुआ। इसे संक्षिप्त में I.C तथा चिप भी कहते हैं। यह एक छोटी सी सिलिकॉन धातु की चिप होती है, जिस पर सैकड़ों ट्रान्जिस्टर लगाये जा सकते हैं इसके आविष्कार से कम्प्यूटर हार्डवेयर में क्रान्ति आयी, जिससे कम्प्यूटर का आकार, वजन कम हुए एवं क्षमता, प्रोसेसिंग तथा विश्वसनीयता बढ़ी इसी पीढ़ी में ही की-बोर्ड, मॉनीटर, प्रिन्टर, हार्ड डिस्क एवं अन्य भण्डारण युक्तियाँ आयीं तृतीय पीढ़ी मुख्य कम्प्यूटर में I.B.M. के 360, 370, 4300, 3080 एवं PDP- II हैं।
  5. चतुर्थ पीढ़ी (Fourth Generations)- तृतीय पीढ़ी के प्रारम्भ में SSI (Small Scale Integration) तकनीक प्रयुक्त की गयी, जिसमें 20-30 ट्रान्जिस्टरों को एक चिप पर लगाया गया। एए तकनीक का सुधार कर नयी तकनीक MSI (Medium Scale Integration) लायी गयी जिसमें सैकड़ों ट्रान्जिस्टरों को एक ही चिप पर लगाया गया। MSI में सुधार कर LSI (Large Scale Integration) तकनीक लायी गयी। इसके उपरान्त इंटिग्रेशन तकनीक का उत्कृष्ट रूप VLSI ( Very Large Scale Integration) आयी, जिसके द्वारा लाखों ट्रान्जिस्टरों को एक ही चिप पर लगाया जा सकता है। इसका प्रयोग करके पूरा CPU (Control Processing Unit) को एक ही चिप पर बनाया जा सकता था। कम्प्यूटर का आकार बहुत छोटा, वजन हल्का हुआ, साथ ही साथ इसकी प्रयोग क्षमता एवं गति में बहुत बढ़ोत्तरी हुई। इस तकनीक से माइक्रोप्रोसेसर का विकास हुआ एवं माइक्रो कम्प्यूटर बाजार में आये। इस पीढ़ी का समयान्तराल 1971 से 1985 तक माना गया है। इसी पीढ़ी में अर्द्ध-चालक स्मृति (RAM, ROM.) कैलर मॉनीटर, स्कैनर, माउस एवं ऑडियो-वीडियो सिस्टम भी आये। चतुर्थ पीढ़ी के मुख्य कम्प्यूटरों में इन्टेल के माइक्रोप्रोसेसर IBM के PC/AT/ OC/XT एवं Cray-1 हैं। esá. I (Cray-1) विश्व का सबसे पहला सुपर कम्प्यूटर था, जिसे क्रे (पिंड) नामक व्यक्ति ने अपनी कम्पनी के रिसर्च में सन् 1974 में बनाया था।
  6. पंचम पीढ़ी (Fifth Generation)- इसका समयान्तराल सन् 1985 से वर्तमान समय तक माना गया है। इस पीढ़ी के कम्प्यूटर की प्रोसेसिंग क्षमता, डाटा भण्डारण तथा मुख्य मेमोरी की भण्डारण क्षमता में प्रत्येक वर्ष दुगनी एवं तिगुनी वृद्धि हुई। इस पीढ़ी में बहुत शक्तिशाली सुपर कम्प्यूटर, लैपटॉप (Laptop) कम्प्यूटर, जेब में रखे जाने योग्य नोटपैड या पॉम टॉप (PDA or Palm top) एवं डिजिटल डायरी कम्प्यूटर आदि विभिन्न वैरायटी प्रयोगकर्ता (ळी) को उपलब्ध हुई। इस पीढ़ी में अन्य हार्डवेयरों में वैब कैमरा, डिस्क ड्राइव, माइक्रोफोन ऑप्टिकल डिस्क तथा कैश स्मृति आदि भी आये। पंचम पीढ़ी के कम्प्यूटरों में डेस्कटॉप कम्प्यूटर, पोर्टेबिल कम्प्यूटर तथा लैपटॉप कम्प्यूटर आदि मुख्य हैं।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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