सेविवर्गीय अंकेक्षण कार्यक्रम | औद्योगिक सम्बन्धों के उद्देश्य | औद्योगिक सम्बन्ध का क्षेत्र
सेविवर्गीय अंकेक्षण कार्यक्रम | औद्योगिक सम्बन्धों के उद्देश्य | औद्योगिक सम्बन्ध का क्षेत्र | Departmental Audit Program in Hindi | Objectives of Industrial Relations in Hindi | field of industrial relations in Hindi
सेविवर्गीय अंकेक्षण कार्यक्रम
(Personnel Audit Programme)
सेविवर्गीय अंकेक्षण कार्यक्रम बनाने से तात्पर्य अंकेक्षण कार्यक्रम की कार्य विधि निश्चित करने से है; अर्थात इसमें यह किया जाता है कि अंकेक्षण कार्य किस कम से किया जाता है। अलग-अलग संगठनों में कार्यक्रम निर्धारित तत्व अलग-अलग हो सकते हैं।
डैल योडर के अनुसार एक आदर्श सेविवर्गीय अंकेक्षण कार्यक्रम में निम्न बातें सम्मिलित की जानी चाहिये
(1) कर्मचारी आयोजन- सेविवर्गीय अंकेक्षण के अन्तर्गत कर्मचारी आयोजन एक महत्वपूर्ण तत्व है। इसके अन्तर्गत संगठन में आवश्यक कर्मचारियों का पूर्वानुमान लगाया जाता है। इससे उद्योग में श्रमिकों की आवश्यकता पूर्ति सुगमता से की जा सकती है।
(2) कर्मचारी प्रबन्ध एवं विकास- इसके अन्तर्गत कर्मचारियों की उचित प्रबन्ध व्यवस्था की जाती है एवं उनके विकास के लिये आवश्यक कदम उठाये जाते हैं इसके लिये उद्योग की भर्ती, चयन प्रशिक्षण एवं पदोन्नति नीतियों आदि का उचित रूप से निर्माण किया जाता है।
(3) संगठन- सेविवर्गीय अंकेक्षण का अगला कदम संगठन से सम्बन्धित है। संगठन सुचारू रूप से चल सके, इसके लिये श्रमिकों में सहयोग भावना का विकास किया जाता है, उचित सम्प्रेषण (Communication) की व्यवस्था की जाती है एवं सभी कार्यों के मध्य समन्वय (Co-ordination) की व्यवस्था बनायी जाती है।
(4) वचनबद्धता- सेविवर्गीय अंकेक्षण के इस चरण में कर्मचारियों की उद्योग में उपस्थिति बनाये रखने के लिये उन्हें अभिप्रेरणा दी जाती है और यह प्रयत्न किये जाते हैं कि श्रमिक अपने काम के प्रति अधिकाधिक रुचि लिया करे।
(5) कर्मचारी प्रशासन- इस चरण के अन्तर्गत उद्योग में कर्मचारी प्रशासन का अध्ययन होता है। इसके लिये विभिन्न मामलों पर श्रम-संघों से सलाह लेना, कर्मचारियों का नेतृत्व देना आदि बातें देखी जाती हैं। इसके साथ ही कर्मचारियों के लिये श्रम सहभागिता एवं सामूहिक सौदेबाजी नीतियों का क्रियान्वयन किया जाता है।
(6) कर्मचारी अनुसन्धान एवं अभिनवीकरण- सेविवर्गीय अंकेक्षण के इस चरण में कर्मचारियों के विकास के लिये सभी क्षेत्र में शोध तथा सलाहकार योजना का प्रयोग किया जाता है तथा सृजन-शक्ति की प्रेरणा दी जाती है।
औद्योगिक सम्बन्धों के उद्देश्य
(Objectives of Industrial Relations)
अच्छे औद्योगिक सम्बन्धों की स्थापना स्वस्थ आर्थिक विकास का आधार है। इनका मूल उद्देश्य ही दोनों पक्षों (श्रमिकों एवं प्रबन्धकों के बीच) के मध्य तथा स्वच्छ सम्बन्ध स्थापित करना है।
संक्षेप में औद्योगिक सम्बन्धों के उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-
(1) औद्योगिक शान्ति की स्थापना ताकि कोई औद्योगिक संघर्ष पैदा ही न हो।
(2) श्रमिकों तथा प्रबन्धकों दोनों ही के हितों की रक्षा करना।
(3) श्रमिक-आवर्तन दर तथा अनुपस्थिति दर में कमी लाकर उत्पादन में वृद्धि करना।
(4) पूर्ण रोजगार की स्थिति उत्पन्न कर अधिकतम रोजगार एवं अधिकतम उत्पादन स्तर प्राप्त करना।
(5) औद्योगिक प्रजातन्त्र की स्थापना करना जिसमें श्रमिक स्वयं को औद्योगिक व्यवस्था का जिम्मेदार सहभागी समझें।
(6) उद्योगों की आर्थिक स्थिति में सुधार करना, घाटे में चल रहे या रुग्ण उद्योगों को राजकीय वित्त तथा नियन्त्रण प्रदान करना।
(7) अन्त में, अच्छे औद्योगिक सम्बन्ध सामाजिक असंतुलन, वर्ग-भेद और वर्ग-संघर्ष को भी न्यूनतम करने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
औद्योगिक सम्बन्ध का क्षेत्र
(Scope of Industrial Relations)
औद्योगिक सम्बन्ध एक व्यापक शब्द है अतःइसका कार्यक्षेत्र भी काफी विस्तृत है। इंग्लैण्ड की औद्योगिक सम्बन्ध संस्थान (British Institute of Industrial Relations) ने इसके कार्यक्षेत्र, (1) भर्ती की विधियों, (2) चुनाव, (3) प्रशिक्षण, (4) शिक्षा प्रणालियाँ, (5) उचित रोजगार विधि, (6) रोजगार की शर्तें (7) भुगतान विधियाँ, (8) प्रमापित कार्य की दशायें, (9) कर्मचारी सेवायें, (10) संयुक्त समझौते तथा (11) परिवेदना निवारण पद्धतियाँ आदि को सम्मिलित किया है।
इसी प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (I.L.O.) ने भी उसके क्षेत्र में राष्ट्र एवं सेवा नियोजकों के मध्य सम्बन्ध तथा श्रम संगठनों एवं व्यावसायिक संगठनों के मध्य सम्बन्धों को सम्मिलित किया है। स्ट्रास एवं सेयल्स (Strauss and Sayles) ने सेविवर्गीय प्रबन्ध के क्षेत्र में निम्न को शामिल किया है-
(1) भर्ती, चुनाव एवंकार्य पर नियुक्ति।
(2) कार्य विश्लेषण, कार्य वर्णन एवं कार्य मूल्यांकन
(3) क्षतिपूर्ण एवं मूल्य अंकन योजनायें।
(4) रोजगार अभिलेख ।
(5) कर्मचारी लाभ कार्यक्रम।
(6) विशिष्ट सेवायें।
(7) प्रशिक्षण एवं शिक्षण कार्यक्रम।
(8) श्रम सम्बन्ध ।
(9) जन-सम्पर्क।
(10) सेविवर्गीय नियोजन एवं मूल्यांकन।
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