मानव संसाधन प्रबंधन / Human Resource Management

प्रशिक्षण की विधियाँ एवं तकनीकें | कार्य पर प्रशिक्षण विधियाँ

प्रशिक्षण की विधियाँ एवं तकनीकें | कार्य पर प्रशिक्षण विधियाँ | Methods and Techniques of Training in Hindi | on-the-job training methods in Hindi

प्रशिक्षण की विधियाँ एवं तकनीकें

(Methods and Techniques of Training)

प्रशिक्षण एक सोद्देश्य प्रक्रिया (Purposive activity) है। यह आधुनिक औद्योगीकरण का एक प्रमुख हिस्सा है। प्रशिक्षण सिर्फ नये कर्मचारियों के लिए ही आवश्यक नहीं है, बल्कि यह पुराने कर्मचारियों, पर्यवेक्षकों, प्रबन्धकों आदि के लिए भी आवश्यक है। संगठन की आवश्यकता की पूर्ति के लिए विभिन्न व्यक्तियों के लिए विभिन्न उद्देश्यों को ध्यान में रखकर विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम अपनाये जाते हैं। व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए अनेक विधियों वतकनीकों का प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक उपक्रम अपनी आवश्यकता के अनुरूप इन विधियों व तकनीकी का चयन करता है। प्रशिक्षण विधियों व तकनीकों का चयन कई घटकों पर निर्भर करता है। जैसे – प्रशिक्षण का उद्देश्य, विषय-सामग्री, कर्मचारी के स्तर, गुण, अपेक्षित कौशल व योग्यताएँ, प्रवन्धकीय नीतियाँ, संगठन, विकास का स्तर, कर्मचारियों के प्रकार, निर्णयन कौशल, अन्तर्वैयक्तिक कौशल, सामान्य ज्ञान, कार्यज्ञान, विशिष्ट वैयक्तिक आवश्यकताएँ आदि।

प्रशिक्षण की विभिन्न विधियों एवं तकनीकों को मूल रूप से तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है। रेखाचित्र के द्वारा निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है :

प्रशिक्षण की विधियाँ व तकनीकें

(Methods and Techniques of Training)

कार्य पर प्रशिक्षण (On the Job Training)

द्वार प्रकोष्ठ प्रशिक्षण (Vestibule Training)

कार्य से पृथक् प्रशिक्षण (Off the Job Training)

कार्य पर प्रशिक्षण विधियाँ (On-the Job Training Method)

कार्यस्थल पर प्रशिक्षण की विधियाँ संगठन में ज्ञान व विशिष्टता प्रदान करने हेतु सर्वव्यापी, सर्वमान्य तथा विस्तृत प्रयोग वाली विधियाँ हैं। कार्य पर प्रशिक्षण की विधि ‘कार्य कर सीखने’ (Learning by doing) की अवधारणा पर आधारित है। इस विधि के अंतर्गत कर्मचारियों को कार्यस्थल पर ही प्रशिक्षण दिया जाता है जहाँ वे नियुक्त होते हैं या जो कार्य उनके जिम्मे सौंपा गया है। कार्य पर प्रशिक्षण की विधियाँ सामान्यतः अनौपचारिक (informal) स्वभाव का होता है, जिसमें सीखने वाले को भी किसी विशेष कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता है। इस प्रकार का प्रशिक्षण इन दिनों अनुभवी व्यक्तियों के मार्गदर्शन में रहकर भी दिया जा रहा है। कार्य पर प्रशिक्षण की विधियाँ जाँच व भूल सुधार (Trial and error) की पद्धति पर आधारित होती है। कार्य पर प्रशिक्षण विधियाँ संगठन के लिए काफी लाभकारी होती है और उनके निम्नलिखित लाभ गिनाए जा सकते हैं :

(1) कार्य पर प्रशिक्षण विधियों काफी सामान्य, सरल और सुविधाजनक व व्यावहारिक हैं।

(2) यह बहुत कम खर्चीला है, क्योंकि उसके लिए अलग से विशेष आयोजन की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

(3) यह अधिक-से-अधिक उत्प्रेरण प्रकृति का है, क्योंकि इसमें प्रशिक्षण प्राप्त करने वाला कर्मचारी या प्रशिक्षु यह अनुभव करता है कि उसकी सफलता ही संगठन की सफलता है।

(4) यह कर्मचारियों को अधिक योग्य तथा कार्यकुशल बनाता है।

(5) इस प्रकार की प्रशिक्षण विधि सभी स्तर के कर्मचारियों के लिए उपयुक्त मानी जाती है।

(6) यह पद्धति सबसे कम समय लेती है, क्योंकि इसके लिए कोई अलग से समय निर्धारित करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

(7) इस प्रकार की पद्धति कृत्रिम वर्ग व्यवस्था (Artificial class room arrangement) से बिल्कुल ही अलग है।

(8) यह प्रशिक्षणार्थी को वास्तविक परिस्थितियों से जोड़ती है।

(9) इसमें सैद्धान्तिक ज्ञान को व्यवहार में लागू करने का अवसर मिलता है।

(10) इसमें प्रशिक्षणार्थी की प्रगति एवं प्रशिक्षण स्तर का निरन्तर मूल्यांकन किया जा सकता है।

कार्य पर प्रशिक्षण विधियों की कुछ कमियाँ व सीमाएं भी हैं जो निम्न प्रकार हैं-

(1) यह प्रशिक्षण विधि व्यवस्थित रूप से आयोजित नहीं की जाती है, जिससे प्रशिक्षणार्थी इस प्रशिक्षण में बहुत अधिक रुचि नहीं लेते हैं।

(2) वरिष्ठ पदाधिकारी भी ऐसे प्रशिक्षण में रुचि नहीं लेते हैं और वह अपने कनिष्ठ कर्मचारी को पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं दे पाते हैं।

(3) इस विधि में प्रशिक्षण देने वाले भी उतने सक्षम नहीं होते हैं अतः वे प्रशिक्षण देने में असमर्थ रहते हैं।

(4) इसमें प्रशिक्षण के सभी सिद्धान्तों का पालन करना सम्भव नहीं होता है।

(5) कार्य पर प्रशिक्षण विधि में नये कर्मचारियों को सीधे काम पर लगा देने से असुरक्षा व हानि होने का डर हमेशा बना रहता है।

उपर्युक्त कमियों के बावजूद भी कार्य पर प्रशिक्षण विधि ज्ञान व अनुभव प्रदान करने की सबसे अच्छी विधि है। यह कार्य के वातावरण के साथ सभी वर्ग के कर्मियों अकुशल, अर्द्धकुशल तथा कुशल को जोड़ता है। यह विधि अधिक व्यावहारिक विधि मानी जाती है और इसका उपयोग एक पूरक विधि (Complementary Method) के रूप में किया जाता है।

कार्य पर प्रशिक्षण निम्न रूपों में दिया जा सकता है :

  1. कार्यरत विशिष्ट प्रशिक्षण (On the Specific Job Training) – कार्यरत विशिष्ट, प्रशिक्षण, प्रशिक्षण की सबसे अधिक प्रचलित विधि है जिसमें संगठन के सभी स्तर के कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रत्येक कर्मचारी को संगठन में एक विशिष्ट कार्य करना पड़ता है। अतः उस कार्य के अनुकूल उन्हें प्रशिक्षित कर बनाना पड़ता है। इस विधि के अन्तर्गत कर्मचारी को कार्य करते समय ही प्रशिक्षण दिया जाता है। उसे कार्य के दौरान ही कार्य की विशिष्टता, तकनीकी व प्रक्रियाओं की जानकारी दी जाती है। वास्तव में, यह कार्य कर सीखने की प्रक्रिया (Learning by doing Process) है। इस प्रक्रिया में उनके वरिष्ठ या अनुभवी व्यक्ति उनको प्रशिक्षण देते हैं या कभी-कभी विशिष्ट प्रशिक्षकों के द्वारा भी ज्ञान प्रदान किया जाता है। यह नये औरपुराने दोनों प्रकार के कर्मचारियों के लिए उपयुक्त है।
  2. सिखाना (Coaching) – यह भी कार्य-पर-प्रशिक्षण की एक विधि है। इस विधि में सीधे तरीके से किसी विशिष्ट व्यक्ति के निर्देशन व मार्गदर्शन में कार्य किया जाता है, जिसे कोच (Coach) कहा जाता है। इस विधि में कोच स्वयं कार्य करके, उसे प्रदर्शित करके उन्हें दिखाते हैं और गलती होने पर उसमें सुधार करते हैं। कोच ही उनका मूल्यांकन भी करते हैं। इस प्रकार का प्रशिक्षण दस्तकारी (या तकनीकी कार्यों के लिए ज्यादा उपयुक्त है।
  3. प्रशिक्षुता प्रशिक्षण (Apprenticeship Training) – प्रशिक्षुता प्रशिक्षण सम्भवतः सबसे अधिक पुरानी पद्धति है, किन्तु आज भी इसका व्यापक प्रचलन है। यह प्रशिक्षण ऐसे उद्योगों में दिया जाता है, जिसमें निपुणता प्राप्त करने में अधिक समय लगता है। यह विधि विभिन्न व्यावसायिक, दस्तकारी कौशल को विकसित करने हेतु अपनाई जाती है। सामान्यतः इस विधि का उपयोग मशीनमैन, प्रिन्टर, औजार बनाने वाले मैकेनिक, बढ़ई, लुहार, सुनार, फिटर, ड्राफ्टमैन, निर्माण कार्य में प्रयुक्त कारीगरों व इलेक्ट्रीशियन आदि को प्रशिक्षित करने के लिए किया जाता है। इसमें सैद्धान्तिक व व्यावहारिक दोनों प्रकार का ज्ञान प्रदान किया जाता है और इसमें तीन सेचार वर्ष या कभी-कभी सात वर्षों तक भी प्रशिक्षण दिया जाता है। भारत में इस प्रशिक्षण के लिए शिक्षार्थी अधिनियम, 1961 (The Apprentices Act, 1961) बना हुआ है, जिसके अन्तर्गत प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले प्रशिक्षु को कुछ मजदूरी या स्टाइपेन्ड भी दिया जाता है। इस विधि में प्रशिक्षण के साथ-साथ कुछ काम भी लिया जाता है।
  4. अन्तरंग प्रशिक्षण (Intership Training)- इस विधि के अन्तर्गत प्रशिक्षण । विशिष्ट तकनीकी कार्यों, व्यावसायिक पेशों, इन्जीनियरिंग व चिकित्सा आदि के क्षेत्र में संयुक्त रूप से तकनीकी संस्थान व व्यावसायिक प्रतिष्ठान के द्वारा आरोपित की जाती है। इसमें किसी विशिष्ट पेशे से सम्बन्धित सैद्धान्तिक ज्ञान तो कॉलेज, व्यावसायिक शिक्षण संस्थान के द्वारा दिया जाता है तथा व्यावहारिक ज्ञान के लिए औद्यागिक प्रतिष्ठानों आदि का सहयोग किया जाता है। इस विधि में सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक ज्ञान में संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया जाता है। कभी-कभी इस विधि में भी प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले व्यक्तियों को स्टाइपेन्ड दी जाती है।
  5. नौसिखिया प्रशिक्षण (Learner Training)- इस प्रशिक्षण विधि में अर्द्ध- कुशल श्रमिकों को कुशल बनाने का प्रयास किया जाता है, जो इस विशिष्ट कार्य का आधारभूत ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं। इसमें नौसिखिया लोगों को विशिष्ट कार्य की जानकारी प्रदान करने के लिए आधारभूत शिक्षा व प्रशिक्षण दिया जाता है।
  6. कार्य आवर्तन (Job Rotation)- कार्य आवर्तन को पद आवर्तन ( के नाम से भी जाना जाता है। यह एक बहुमुखी प्रशिक्षण की विधि है, जिसमें कर्मचारियों को सौंपे जाने वाले कार्यों व उत्तरदायित्वों में परिवर्तन करके उन्हें विभिन्न कार्यों का अनुभव कराया जाता है। यह विधि प्लाण्ट व कार्यालय, विभिन्न विभागों के कार्यों पर पद स्थापित कर उस कार्य की विशिष्टता व कार्य का अनुभव प्रदान करने में सहायक होती है। बैंकों में इस विधि का प्रचलन अधिक है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें किसी कर्मचारी के अनुपस्थित रहने पर विभाग का काम नहीं रुकता है और दूसरा कर्मचारी उस कार्य को कर पाने में सक्षम हो पाता है। इस विधि से कर्मचारियों में आपसी अनौपचारिक सम्बन्धों का विकास होता है, किन्तु इसमें बार-बार कार्य बदलने से कर्मचारी असंतुष्ट भी हो जाते हैं।
  7. अस्थायी पदोन्नति (Temorary Promotion)- इस प्रकार का प्रशिक्षण उस परिस्थिति में दिया जाता है जब कोई पद अस्थायी रूप से खाली हो जाता है अर्थात् उस पद पर कार्यरत व्यक्ति लम्बी छुट्टी पर चले गये हों, या फिर व्यावसायिक दूर में चले गये हों या बीमार पड़ गये हों, तो उनके स्थान पर ‘कार्यवाहक’ के रूप में दूसरे कर्मचारी को अस्थायी पदोन्नति देकर उस स्थान की पूर्ति की जाती है, ताकि संगठन का कार्य सुगमता से चलता रहे, किन्तु मूल कर्मचारी के वापस आने पर वह व्यक्ति अपने स्थान पर चला जाता है। इस क्रम में दूसरे के पद पर कार्य करने का भी अनुभव उन्हें प्राप्त हो जाता है।
  8. अनौपचारिक प्रशिक्षण (Informal Training)- इस विधि में नये कर्मचारियों को प्रबन्धक कम्पनी के नियमों, उत्पाद, निर्माण प्रक्रिया, कम्पनी के लक्ष्य व योजनाओं के बारे में बातचीत के माध्यम से जानकारी दी जाती है। कर्मचारी को कारखाने के संयंत्र, सुरक्षा विभाग या अन्य चीजों से अवगत कराया जाता है। यह परिचय प्रशिक्षण विधि का ही एक रूप है।
  9. अनुरूपण (Simulations) – अनुरूपण विशिष्ट प्रकार के कार्यों के लिए आयोजित किया जाता है और यह द्वार प्रकोष्ठ प्रशिक्षण का विस्तार है। इसमें प्रशिक्षणार्थी वास्तविक कार्य दशाओं से घनिष्ठ रूप से परिचित होते हैं, किन्तु उससे मिलती-जुलती बनावटी (Duplicate) कार्यदशाओं का निर्माण कर प्रशिक्षण दिया जाता है। यह विधि वहाँ ज्यादा उपयुक्त होती है, जहाँ वास्तविक कार्य दशाओं में कार्य करना महँगा सिद्ध होता है या जहाँ दुर्घटना की सम्भावना रहती है या जहाँ मूल्यवान कच्ची सामग्री के दुरुपयोग की सम्भावना रहती है। इस विधि का महत्व वायुयान उद्योग में अधिक है।
  10. प्रदर्शन एवं उदाहरण (Demonstation and Example)- यह विधि कौशल प्रशिक्षण के लिए विशेष उपयोगी है, जिसमें प्रशिक्षक सम्पूर्ण क्रियाओं को प्रदर्शित कर दिखलाता है। प्रदर्शन के समय व्याख्यान भी दिया जाता है और उसके साथ-साथ क्रियाओं को करके भी बताया जाता है। इसमें ‘क्यों’, ‘कैसे’, ‘कहाँ’, और ‘क्या’ आदि का विश्लेषण कर चीजों को प्रदर्शित किया जाता है और कई उदाहरण भी दिये जाते हैं। यह सीखने की अच्छी विधि है।
  11. मार्गदर्शन एवं परामर्श (Guidance and Counselling) – मार्गदर्शन एवं परामर्श प्रशिक्षण की एक सुगम विधि है। इसमें अर्द्ध कुशल श्रमिकों या कर्मचारियों को उनके कार्य निष्पादन के दौरान सामान्य मार्गदर्शन व परामर्श प्रदान कर प्रशिक्षित किया जाता है। इस विधि में प्रशिक्षणार्थी को उस विषय की अर्द्ध जानकारी तो रहती है और जहाँ कहीं किसी प्रकार की कठिनाई रहती है तो मार्गदर्शन व परामर्श के द्वारा उसे दूर कर कुशल बनाने का प्रयास किया जाता है। इसमें कर्मचारी परामर्श, निर्देशन व स्व-अनुभव का प्रयोग करते हुए कार्य के विविध पहलुओं को सीखते हैं।

उपर्युक्त कार्य पर प्रशिक्षण के अतिरिक्त भी इसकी कई पद्धतियाँ हैं जैसे विशिष्ट प्रोजेक्ट या टास्क, अनुभवी व्यक्ति द्वारा प्रशिक्षण आदि, किन्तु यहाँ यह स्पष्ट कर देना उचित होगा कि कार्य पर प्रशिक्षण कभी न समाप्त होने वाली प्रक्रिया (On the Job Training is a never- ending Process) है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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