शैक्षिक मूल्यांकन का सम्प्रत्यय | मूल्यांकन क्या है? | शैक्षिक कार्यक्रमों में मूल्यांकन की भूमिका
शैक्षिक मूल्यांकन का सम्प्रत्यय | मूल्यांकन क्या है? | शैक्षिक कार्यक्रमों में मूल्यांकन की भूमिका
शैक्षिक मूल्यांकन का सम्प्रत्यय
(Concept of Educational Evaluation)-
प्राचीन काल में शैक्षिक मूल्यांकन छात्र निष्पत्तियों की जाँच तक ही सीमित था । किन्तु अब शिक्षा में मूल्यांकन एक नवीन अवधारणा है। मूल्यांकन की यह नवीन अवधारणा परम्परागत परीक्षा की धारणा से भिन्न है। इस नवीन धारणा के अनुसार शिक्षा के अन्तर्गत केवल छात्र निष्पत्तियों का मापन करना ही पर्याप्त नहीं होता है अपितु शिक्षण प्रक्रिया, शिक्षण विधियों, प्रविधियों, पाठ्य वस्तु, सहायक सामग्री, शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति एवं शिक्षक प्रभावशीलता आदि सभी तत्त्वों की उपयुक्तता एवं सार्थकता का मूल्यांकन करना आवश्यक होता है। इस प्रकार शैक्षिक मूल्यांकन एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा अधिगम परिस्थितियों तथा सीखने के अनुभवों के लिए प्रयुक्त की जाने वाली सभी निष्पत्तियों के आधार पर यह पता लगाया जाता है कि शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक विधियों एवं प्रविधियों की उपादेयता की जाँच की जाती है तथा छात्र निष्पतियों के आधार पर यह पता लगाया जाता है कि शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हो सकी है।
शिक्षा एवं मनोविज्ञान में ‘मूल्यांकन’ शब्द को कई प्रकार से प्रयुक्त किया गया है तथा इसे अनेक तरह से परिभाषित भी किया गया है। यहाँ पर हम जेम्स एम.ली. द्वारा प्रस्तुत मूल्यांकन की एक परिभाषा उद्धृत कर रहे हैं-
जेम्स एम.ली. के अनुसार, “मूल्यांकन, विद्यालय कक्षा तथा स्वयं के द्वारा निर्धारित शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के सम्बन्ध में छात्रों की प्रगति की जाँच हैं। मूल्यांकन का प्रमुख प्रयोजन छात्रों की सीखने की प्रक्रिया को अग्रेसर एवं निर्देशित करना है। इस प्रकार मूल्यांकन नकारात्मक नहीं अपितु एक सकारात्मक प्रक्रिया है।”
इस प्रकार मूल्यांकन एक शैक्षिक प्रक्रिया है। इसके अन्तर्गत शिक्षक यह निश्चित करता है कि उसकी शिक्षण व्यवस्था तथा शिक्षण अधिगम को आगे बढ़ाने की क्रियाएँ कितनी सफल रही हैं। यह सफलता शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति में पृष्ठपोषण का कार्य करती हैं। यदि उद्देश्यों की प्राप्ति में कमी होती है तब शिक्षक शिक्षण परिस्थितियों का मूल्यांकन करके उसमें आवश्यक सुधार एवं परिवर्तन करता है। इस प्रकार शैक्षिक मूल्यांकन के तीन प्रमुख कार्य होते हैं-
(i) शैक्षिक कार्यक्रम या अधिगम प्रणाली का मूल्यांकन (Evaluation of Educational Programme or Learning System)
(ii) अधिगम या निष्पत्ति का मापन करना (Measuring Learning or Achievement)
(iii) अधिगम उद्देश्यों के द्वारा व्यवस्था करना (Managing by Learning Objectives) I
इन कार्यों के माध्यम से शिक्षक अपने शिक्षण को प्रभावशाली बना सकते हैं तथा अपनी असफलताओं को सफलताओं में परिवर्तित कर सकते हैं। इनकी विस्तृत चर्चा से पूर्व मूल्यांकन को और सुस्पष्ट करने के लिए हम इसके साथ प्रयुक्त होने वाले दो अन्य शब्दों ‘मापन” एवं ‘परीक्षण’ को भी स्पष्ट करना उचित समझते हैं जिससे इन तीनों शब्दों को समझने एवं प्रयुक्त करने में कोई प्रेम उत्पन्न न हो।
मापन, मूल्यांकन एवं परीक्षण (Measurement, Evaluation and Tests) –
मापन, मूल्यांकन एवं परीक्षण शब्दों को कई बार समानारथा समझते हुए एक-दूसरे के लिए प्रयुक्त कर दिया जाता है। किन्तु यह ठीक नहीं है। वास्तव में इन तीनों के अलग-अलग कार्यात्मक अर्थ है तथा वे एक-दूसरे के स्थान पर प्रयत्न नहीं किये जा सकते हैं। इनमें से किसी एक का दूसरे के स्थान पर प्रयोग निश्चित रूप में सम्प्रेषण योग्य भाव को विकृत कर देता है। अतः इन तीनों प्रत्यय के अन्तर को समझना आवश्यक है। मापन, मूल्यांकन प्रक्रिया का एक अंग है। जब हम किसी विद्यार्थी द्वारा निष्पादित कार्य को किसी पैमाने के द्वारा कोई अंक अर्थात् प्राप्ताक (Score) प्रदान करते हैं तब उसे मापन की क्रिया कहा जाता है। उदाहरणार्थ- किसी विद्यार्थी का विज्ञान में प्राप्ताक 60/100 उसकी विज्ञान विषय की निष्पत्ति का मापन है। यदि हम एक विद्यार्थी के इस प्राप्ताक की तुलना कक्षा के दूसरे विद्यार्थियों के विज्ञान विषय के प्राप्तांक से करते हैं तथा इस बारे में निर्णय करते हैं कि पहले विद्यार्थी की विज्ञान विषय में स्थिति अच्छी/खराब/औसत अथवा संतोषजनक/असंतोषजनक है तब हम मूल्यांकन की प्रक्रिया अपना रहे होते हैं। इस प्रकार मूल्यांकन मापन का अपेक्षा एक व्यापक पद है किन्तु मापन मूल्यांकन प्रक्रिया में सहायक होता है। इसके अतिरिक्त मापन एक परिमाणात्मक प्रक्रिया है जबकि मूल्यांकन गुणात्मक प्राक्रिया है।
उदाहरणार्थ- ‘उषा ने 100 मीटर की दरी दौड़कर 10.5 सेकण्ड में पूरी की यह एक मापन का परिणाम है। किन्तु यह ऐसा कहा जाता है कि ‘उषा ने 100 मीटर की दूरी करने में अन्य सभी प्रतियोगियों से कम समय लिया, तब यह ‘मूल्यांकन’ है।
परीक्षण मापन का एक साधन होता है। परीक्षण अनेक प्रकार के होते हैं जिनके द्वारा किसी व्यक्ति या व्यक्तियों की किसी विशेषता का मापन किया जा सकता है जैसे- शिक्षक निर्मित परीक्षा, साक्षात्कार, समूह-वार्ता, प्रतियोगिता, एसाइनमेन्ट एवं प्रोजेक्ट कार्य आदि। शिक्षा में मापन हेतु परीक्षणों का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है। परीक्षण में सामान्यतया किसी समूह के सभी सदस्यों को एक ही प्रकार के कार्य करने को दिये जाते हैं जिसके ‘लिए एक निश्चित समय होता है तथा कुछ अपवादों को छोड़कर पूर्व सूचना भी प्रदांन की गई होती है। कभी-कभी बिना पूर्व सूचना के भी कक्षागत परिस्थितियों में परीक्षण प्रदान किये जा सकते हैं।
इस प्रकार स्पष्ट है कि परीक्षण मापन का एक साधन है, मापन परिमाणात्मक परिणामों के द्वारा मूल्यांकन को आधार प्रदान करता है तथा मूल्यांकन मापन से अधिक व्यापक प्रक्रिया है जिसकी प्रकृति गुणात्मक होती है। मूल्यांकन के लिए कभी-कभी आंकलन (Assessment) शब्द का भी प्रयोग किया जाता है। मूल्यांकन के अन्तर्गत बालक के सम्पूर्ण व्यवहार परिवर्तन तथा शिक्षण-प्रक्रिया के उपकरणों, विधियों एवं प्रविधियों आदि का मापन सम्मिलित होता है।
शैक्षिक कार्यक्रमों में मूल्यांकन की भूमिका (Role of Evaluation in Educational Programmes)-
शिक्षा में मूल्यांकन की परम्परा अति प्राचीन है किन्तु पहले इसकी भूमिका बहुत सीमित होती थी। उस समय मूल्यांकन का प्रयोग, किसी पाठ या पाठ्यक्रम के अन्त में शिक्षार्थियों द्वारा प्राप्त अधिगम की मात्रा को मापने हेतु किया जाता था। किन्तु मूल्यांकन की यह परम्परागत भूमिका है।
मूल्यांकन प्रक्रिया (व्यवहार में परिवर्तन) – (Evaluation Process)
शैक्षिक उद्देश्य – (Educational objectives)
अधिगम अनुभव – (Learning experiences)
मूल्यांकन की नवीन अवधारणा ने शिक्षा के क्षत्र में इसका भूमिका को अधिक व्यापक एवं महत्त्वपूर्ण बना दिया है। अब मूल्यांकन प्रक्रिया की शिक्षा के तीन प्रमुख तत्त्वों में से एक तत्त्व या भाग माना जाता है। शिक्षा क ये तीन प्रमुख तत्त्व या अंग हैं- शैक्षिक उद्देश्य, अधिगम अनुभव एवं मूल्यांकन प्रक्रिया। इनमें से प्रत्यक तत्त्व शेष अन्य दो तत्त्वों के साथ लाभार्थी एवं लाभकारी के रूपों में दुहरी भूमिका का निवेहन करता है। दूसरे शब्दों में इसे हम इस प्रकार कह सकते हैं कि इनमें से प्रत्येक तत्त्व एक तरफ तो अन्य दो तत्त्वों से पोषण प्राप्त करता है तथा उसी समय दूसरी तरफ उन्हीं दोनों तत्त्व की शाक्त प्रदान करता है। बी.एस. ब्लूम ने शिक्षा के इन तीन प्रमुख तत्त्वों को त्रिभुजाकार रेखाचित्र के द्वारा इस प्रकार प्रदर्शित किया है-
चित्र से स्पष्ट है कि किसी शैक्षिक कार्यक्रम की प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करती है कि इसके तीनों तत्त्वों के मध्य दुहरी भूमिका कितने प्रभावशाली ढंग से सम्पन्न होती है। इस दृष्टि से मूल्यांकन प्रक्रिया मात्र शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के मापन हेतु उपकरण के रूप में ही नहीं प्रयुक्त होती है अपितु यह शैक्षिक उद्देश्यों को उपयुक्त ढंग से संशोधित, पुनरीक्षित एवं विकसित करने तथा अधिगम अनुभवों को गतिमान प्रक्रिया में रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। इसी प्रकार शैक्षिक उद्देश्यों एवं अधिगम अनुभवों के द्वारा मूल्यांकन प्रक्रिया भी परिवर्तित, पुनरीक्षित एवं विकसित होती रहती है।
इस प्रकार इस अन्तर्सम्बन्धित क्रियातंत्र के अन्तर्गत मूल्यांकन प्रक्रिया किसी शैक्षिक कार्यक्रम की क्रियाओं में प्रारम्भिक, माध्यमिक एवं अन्तिम में से किसी भी स्थिति पर सम्भव हो सकती है। एक आदर्श शैक्षिक कार्यक्रम में मूल्यांकन सभी तीनों स्थितियों पर होना चाहिए किन्तु प्रत्येक स्थिति पर इसके उद्देश्य एवं कार्य भिन्न- भिन्न होंगे।
प्रारिम्भक स्थिति पर मूल्यांकन का कार्य पाठ्यक्रम में प्रवेश हेतु शिक्षार्थी की योग्यता को पहचानना होता है जिससे प्रवेशार्थियों को प्रदान किये जाने वाले अधिगम अनुभवों को उपयुक्त गुणात्मक एवं परिमाणात्मक रूप दिया जा सके।
माध्यमिक स्थिति पर इसका कार्य पाठ्यक्रम की प्रभावशीलता, शिक्षार्थी तथा उसकी सीखने की गति की जाँच करने में शिक्षक की सहायता करना होता है। इस प्रकार इस स्थिति पर मूल्यांकन, निर्धारित शैक्षिक उद्देश्यों की ओर उन्मुख अधिगम की प्रगति के निरीक्षण में शिक्षक का सहायता प्रदान करता है।
अन्तिम स्थिति पर यह शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति को सुनिश्चित करने तथा छात्र उपलब्धियों को ग्रेड या श्रेणी प्रदान करने में शिक्षक को सहायता प्रदान करता है। इस प्रकार शैक्षिक कार्यक्रम अथवा प्रक्रिया में मूल्यांकन की अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
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