शैक्षिक तकनीकी / Educational Technology

शिक्षण की व्यूह रचना का उपयोग | टेलीकांफ्रैंसिंग | टेलीकांफ्रैंसिंग के प्रकार | टेलीकांफ्रैंसिंग के उपयोग की सम्भावनाएँ | टेलीकांफ्रैंसिंग से लाभ

शिक्षण की व्यूह रचना का उपयोग | टेलीकांफ्रैंसिंग | टेलीकांफ्रैंसिंग के प्रकार | टेलीकांफ्रैंसिंग के उपयोग की सम्भावनाएँ | टेलीकांफ्रैंसिंग से लाभ | Use of teaching strategy in Hindi | Teleconferencing in Hindi | Types of Teleconferencing in Hindi | Possibilities of using teleconferencing in Hindi | benefits of teleconferencing in Hindi

शिक्षण की व्यूह रचना का उपयोग (Use of Teaching Strategies)-

शिक्षण की व्यूह रचना (Teaching Strategies) से तात्पर्य शिक्षण के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनायी गयी पूर्व योजना से लगाया जाता है। इस शब्द की व्युत्पत्ति युद्धकला से हुआ है। जिस प्रकार सेना द्वारा दुश्मन के किले पर फतेह करने के लिए क्या-क्या पग उठाया जाना है उसके लिए पहले से ही चक्रव्यूह बना लिया जाता है, उसी प्रकार एक प्रभावी शिक्षक अपने शिक्षण को प्रारम्भ करने से पहले वांछित उद्देश्य की पूर्ति एवं संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर जो कार्य योजना बनाता है उसे शिक्षण की व्यूह रचना के नाम से संज्ञापित किया जाता है।

प्रो. स्टोन्स तथा मैरिस के अनुसार- “शिक्षण की व्यूह रचना पाठ की एक सामान्यीकृत योजना है, जिसमें वांछित व्यवहार परिवर्तन की संरचना अनुदेशन के उद्देश्यों के रूप में शामिल होती हैं, इसको लागू करने के लिए आवश्यक युक्तियों की रूपरेखा सम्मिलित होती है।”

आई. के. डेविस के अनुसार- “शिक्षण की व्यूह रचना में शिक्षण की रीतियाँ, विधियाँ, सहायक युक्तियाँ आदि अंग समाहित होते हैं।”

अतः स्पष्ट है कि शिक्षण की व्यूह रचना निम्नलिखित विशेषताओं से सम्पृक्त होता है-

  1. शिक्षण की व्यूह रचना शिक्षण की बनायी गयी पूर्व योजना है।
  2. शिक्षण की व्यूह रचना में शिक्षण की विधियाँ, रीतियाँ, युक्तियाँ आदि शामिल होता है।
  3. शिक्षण की व्यूह रचना से शिक्षण प्रभावपूर्ण हो जाता है।
  4. शिक्षण की व्यूह रचना से शिक्षण की कार्य-कुशलता में वृद्धि होती है।
  5. शिक्षण की व्यूह रचना उद्देश्यों के आधार पर बनाया जाता है।
  6. शिक्षण की व्यूह रचना अधिगमकर्ता के व्यवहार में वांछित परिवर्तन करता है।
  7. शिक्षण की व्यूह रचना कुशल शैक्षिक प्रबन्धन को दर्शाता है।

शिक्षण की व्यूह रचना का उपयोग करके शिक्षक अपने शिक्षण को प्रभावोत्पादक एवं उत्पादनिर्दिष्ट बना सकता है। इससे अल्प समय में वांछित व्यवहार परिवर्तन को अंजाम देने में सफलता मिलती है। साथ ही साथ व्यूह रचना से विद्यार्थियों को सामूहिक रूप से विचार-विनिमय का अवसर भी मिलता है, जिससे वे अपनी शंकाओं का समाधान आसानी से कर लेते हैं। शिक्षण की व्यूह रचना के आधार पर छात्रों द्वारा गलत उत्तर देने की सम्भावना में कमी आती है और वांछित उद्देश्यों की पूर्ति में सहायता मिलती है। शिक्षण की व्यूह रचना शिक्षण के दौरान कक्षा की परिस्थितियों तथा वातावरण को अधिगम हेतु प्रभावी बनाता है। अतः प्रत्येक शिक्षक को शिक्षण देने से पूर्व शिक्षण की व्यूह रचना में पारंगत होना चाहिए।

टेलीकांफ्रैंसिंग (Teleconferencing)

वर्तमान समय में कम्प्यूटर, इण्टरनेट, टेलीफोन तथा टेलीविजन के आपसी संयोग के आधार पर विचार-विनिमय हेतु संगोषी का अयोजन, प्रत्यक्ष रूप से किसी से घर बैठे वार्तालाप करना अत्यन्त आसान हो गया है। इस सर्वसुलभ व्यवस्था को टेलीकांफ्रेंसिंग (Teleconferencing) कहा जाता है। यह व्यूह रचना शिक्षण/शिक्षा के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है। इसमें विविध संचार माध्यमों का उपयोग किया जाता है तथा द्विमार्गीय प्रसारण द्वारा अन्तः क्रिया समूह को अपने विचार रखने की सुविधा दी जाती है।

टेलीकांफ्रेंसिंग मूलतः संचार माध्यमों पर आधारित, विद्युत चालित, वह इलेक्ट्रानिक व्यवस्था है जिसके द्वारा दो या उससे अधिक सुदूर व्यवस्थित व्यक्ति या समूह में किसी भी विषय- वस्तु पर चर्चा, वार्तालाप किया जा सकता है। इसमें दृश्य-श्रव्य दोनों की व्यवस्था होती है और विचारों के आदान-प्रदान की सुविधा भी रहती है। प्रायः आजकल समाचारों की प्राप्ति हेतु सुदूर स्थित संवाददाता से जो सूचना सचित्र रूप से वार्तालाप के माध्यम से दिखाया और सुनाया जाता है, वह टेलीकांफ्रेंसिंग पर ही आधारित होता है।

टेलीकांफ्रेंसिंग की कार्यप्रणाली एवं तकनीकी मूल रूप से टेलीविजन, टेलीफोन, कम्प्यूटर तथा इण्टरनेट के आपसी संजाल (Network) से विकसित किया गया है। इस व्यवस्था का प्रयोग करने के लिए टेलीफोन में कुछ आवश्यक यंत्रों को जोड़कर किसी भी इण्टरनेट लाइन या टेलीफोन लाइन को प्रयोग में लाया जाता है। बातचीत का सजीव प्रसारण टेलीविजन के पर्दे पर मूर्तमान हो उठता है।

टेलीकांफ्रैंसिंग के प्रकार

टेलीकांफ्रेंसिंग के तीन प्रकार होते हैं-

(i) ऑडियो कॉन्फ्रेंस (ii) विडियो कॉन्फ्रेंस (iii) कम्प्यूटर कॉन्फ्रेंस

ऑडियो कॉन्फ्रेंस में भाग लेने वाले व्यक्ति एक दूसरे से बातचीत तो कर सकते हैं, किन्तु एक दूसरे को प्रत्यक्ष देख नहीं सकते। यह मूल रूप से टेलीफोन द्वारा सम्पन्न होता है। जैसे आजकल विविध भारती पर टेलीफोनिक वार्ताएँ प्रसारित होती है।

विडियो कॉन्फ्रेंस में भाग लेने वाले व्यक्ति एक दूसरे को देख एवं सुन सकते हैं तथा वार्तालाप भी कर सकते हैं। जैसा आजकल दूरदर्शन पर समाचार के प्रसारण या चुनाव के नतीजों की प्राप्ति हेतु संवाददाताओं से बातचीत का सजीव प्रसारण किया जाता है।

कम्प्यूटर कॉन्फ्रेंस में अलग-अलग स्थानों पर बैठे व्यक्ति कम्प्यूटर को प्रयोग में लाकर सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं।

टेलीकांफ्रैंसिंग के उपयोग की सम्भावनाएँ-

टेलीकांफ्रेंसिंग जैसे नूतन व्यवस्था के उपयोग की सम्भावनाएँ अप्रलिखित हो सकती है-

(i) प्रभावी शिक्षण प्रबन्धन में।

(ii) दूरस्थ शिक्षा/खुले विद्यालयों/खुले विश्वविद्यालयों में।

(iii) सुविधाविहीन लोगों तक शिक्षा की उपलब्धता सुनिश्चित कराने हेतु।

(iv) समस्याग्रस्त बालकों/अधिगम में पिछड़े बालकों की शिक्षा हेतु।

(v) विषय-विशेषज्ञों के विचारों से लाभान्वित होने हेतु।

(vi) शोध-सर्वेक्षण हेतु।

(vii) शिक्षकों की जवाबदेही हेतु।

(viii) विद्यालयी कार्य प्रणाली के मूल्यांकन हेतु।

(ix) नवीन शैक्षिक योजनाओं, नीतियों की जानकारी हेतु।

(x) अभिभावकों से विचार-विनिमय हेतु।

टेलीकांफ्रैंसिंग से लाभ (Advantage of Tele conferencing)-

टेलीकांफ्रेंसिंग शिक्षण / अनुदेशन की नवीन विधा है। भारत में अभी यह अपने शैशवावस्था में है। किन्तु आगामी दशकों में यह शिक्षण/अनुदेशन के अभिन्न अंग के रूप में व्यवस्थित हो जायेगा, ऐसी सम्भावनाएँ परिलक्षित हो रही है। इस सम्भावना के पीछे टेलीकांफ्रेंसिंग से मिलने वाली सहूलियतें और धन, समय, श्रम की बचत बताया जा सकता है। वास्तव में टेलीकांफ्रेंसिंग के अनेक लाभ हैं। इसे संक्षेप में निम्नवत् प्रकट किया जा सकता है–

  1. टेलीकांफ्रेंसिंग वास्तव एवं प्रत्यक्ष शिक्षण की व्यवस्था प्रदान करता है। 2. टेलीकांफ्रेंसिंग में अधिगमकर्ता सक्रिय होकर अधिगमोन्मुख होते हैं, इससे उनके ज्ञान में स्थायित्व आता है। 3. टेलीकांफ्रेंसिंग विविध ज्ञान एवं अनुभवों के संग्रहण में उपयोगी है। 4. टेलीकांफ्रेंसिंग से विषय- विशेषज्ञों की सेवाएं आसानी से प्राप्त की जा सकती है। 5. टेलीकांफ्रेंसिंग से छात्रों को अभिप्रेरित करने तथा पृष्ठय पोषण आसानी से दिया जा सकता है। 6. टेलीकांफ्रेंसिंग द्वारा शिक्षण/अनुदेशन सामग्री का परिमार्जन एवं परिशोधन कर प्रभावी बनाया जा सकता है। 7. टेलीकांफ्रैंसिंग से सुदूर स्थानों तक बिखरे लोगों तक ज्ञान की ज्योति जलायी जा सकती है। 8. टेलीकांफ्रेंसिंग से विद्यालय के स्थान पर संसाधन केन्द्रों द्वारा छात्रों तक विविध सूचनाएँ पहुँचायी जा सकती है। 9. टेलीकांफ्रेंसिंग से उचित निर्देशन एवं परामर्श की प्राप्ति सम्भव है। 10. टेलीकांफ्रैंसिंग दूरस्थ शिक्षा में अत्यन्त प्रभावकारी है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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