शैक्षिक तकनीकी / Educational Technology

अभिक्रमित अनुदेशन की आवश्यकता | अभिक्रमित अनदेशन की विशेषताएँ | अभिक्रमित अनुदेशन के उद्देश्य | अभिक्रमित अनुदेशन का महत्व | अभिक्रमित अनुदेशन के गुण | अभिक्रमित अनुदेशन के दोष | अभिक्रमित अनुदेशन के सिद्धान्त

अभिक्रमित अनुदेशन की आवश्यकता | अभिक्रमित अनदेशन की विशेषताएँ | अभिक्रमित अनुदेशन के उद्देश्य | अभिक्रमित अनुदेशन का महत्व | अभिक्रमित अनुदेशन के गुण | अभिक्रमित अनुदेशन के दोष | अभिक्रमित अनुदेशन के सिद्धान्त | the need for programmed instruction in Hindi | Features of Programmed Instruction in Hindi | Objectives of Programmed Instruction in Hindi | Importance of Programmed Instruction in Hindi | Properties of Programmed Instruction in Hindi | Defects of Programmed Instruction in Hindi | principles of programmed instruction in Hindi

अभिक्रमित अनुदेशन की आवश्यकता

(Need of Programmed Instruction)

  1. प्रायः यह देखने को मिलता है कि शिक्षण प्रक्रिया में छात्रों का क्रियाशील बनना उनके लिए बहुत बड़ी समस्या है। परन्तु अभिक्रमित अध्ययन में अन्त तक स्वयं को बनाये रखना अत्यन्त सरल है।
  2. इसमें छात्रों को अपनी त्रुटियों का ज्ञान निरन्तर होता रहता है।
  3. इसके माध्यम से छात्र प्रेरणा प्राप्त करते है।
  4. छात्र निरन्तर पुनर्वलन प्राप्त करते हुए अधिगम करने के अवसर भी पाते है।
  5. शिक्षण प्रक्रियाओं में छात्रों को अपनी व्यक्तिगत भिन्नताओं के अनुरूप समुचित अधिगम करने के अवसर भी नहीं उपलब्ध होते, जबकि अभिक्रमित अध्ययन प्रणाली भौतिक दृष्टि से व्यक्तिगत भिन्नता पर आधारित है।

अभिक्रमित अनदेशन की विशेषताएँ

(The Characteristics of Programmed Instruction)

अभिक्रमित अनुदेशन की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं-

  1. अभिक्रमित अनुदेशन द्वारा छात्रों में निरन्तर क्रियाशीलता बनी रहती है।
  2. इसके आधार पर छात्र स्वयं अधिगम करता या सीखता है।
  3. इसके द्वारा सभी छात्रों को अपना स्वयं मूल्यांकन ज्ञात किया जाता है।
  4. इसके द्वारा छात्रों को अपनी कमियों का एहसास हो जाता है।
  5. इसमें किसी भी शिक्षक की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
  6. अभिक्रमित अनुदेशन व्यक्तिगत भिन्नताओं के सिद्धान्त पर आधारित है।

अभिक्रमित अनुदेशन के उद्देश्य (Objectives and Aims) –

अभिक्रमित अनुदेशन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. इसके द्वारा छात्रों को स्वाध्याय के लिए उत्प्रेरित होने का अवसर मिलता है।
  2. इसके द्वारा छात्र अध्ययन की दिशा में प्रेरित होते है।
  3. छात्रों को छोटी-छोटी इकाइयों से ज्ञान प्राप्त करने में सरलता प्राप्त होती है।
  4. अध्यापक के बिना भी अध्ययन की सरल पद्धति के माध्यम से अध्ययन के अवसर प्राप्त होते है।
  5. वे छात्रों को व्यक्तिगत योग्यताओं के अनुरूप अधिगम करने के अवसर देते हैं।
  6. इसके द्वारा स्वमूल्यांकन करने का अवसर मिलता है।

अभिक्रमित अनुदेशन का महत्व

(Importance of Programmed Instruction)

अभिक्रमित अनुदेशन के महत्व को निम्नलिखित खण्डों में देखा जा सकता हैं-

  1. अभिक्रमित अनुदेशन ज्ञान प्राप्ति के लिए निरन्तर लीन बनाये रखती है।
  2. इसके द्वारा छात्र अपना ज्ञान अर्जित करने के लिए अत्यन्त रुचि बनाये रखते है।
  3. इसके अन्तर्गत छात्र सम्भव पुनर्वलन प्राप्त करते हैं।
  4. इसमें दण्ड और अनुशासन कठोर नहीं होते।
  5. इसमें छात्र निडर होकर अपना ज्ञानार्जन करते रहते हैं।
  6. इस विधि के अन्तर्गत छात्रों को स्वयं मूल्यांकन करने का अवसर प्राप्त होता है।
  7. इस प्रकार का अनुदेशन लगभग सभी विषयों में प्रयोग किया जाता है।
  8. यह व्यक्तिगत भिन्नता के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त को साकार करने में सहायक पद्धति है।

अभिक्रमित अनुदेशन के गुण

(Merits of Programmed Instruction)

  1. अभिक्रमित अनुदेशन में छात्रों को अधिक व्यय वहन नहीं करना पड़ता है।
  2. यह छात्र की स्मृति को विकसित करता है।
  3. इसमें छात्र निडरतापूर्वक सीखने के अवसर प्राप्त करते है।
  4. इस विधि के अन्तर्गत समयानुसार ज्ञानार्जन किया जाता है।
  5. इसके माध्यम से छात्रों में एकाग्रता का विकास होता है।
  6. इस विधि के द्वारा छात्रों को घर बैठे अधिगम के पर्याप्त अवसर उपलब्ध हो जाते हैं।
  7. इसमें प्रत्येक छात्र को अपनी गति के अनुसार अधिगम का अवसर प्राप्त होता है।
  8. इस विधि में छात्र सीखने की रुचि रखते हैं।
  9. इसमें छात्र अपनी क्षमतानुसार अधिगम करते हैं।
  10. यह छात्रों को अधिगम करने में अभिप्रेरित करती है।
  11. इसमें व्यापक स्तर पर अनुसंधान किया जाता है।

अभिक्रमित अनुदेशन के दोष

(Demerits of Programmed Instruction)

  1. अभिक्रमित अनुदेशन के अन्तर्गत छात्रों का रुचि लेना आवश्यक है प्रायः कोई भी छात्र इसमें रुचि नहीं लेते। 2. विकास सम्बन्धी समस्याओं का निराकरण कक्षा में शिक्षको द्वारा ही सम्भव है। 3. अभिक्रमित अनुदेशन एक व्यय साध्य और कठिन कार्य हैं इसके लिए पाठ्य वस्तु और निर्माताओं को विशेष रूप से प्रशिक्षित करना आवश्यक है।

अभिक्रमित अनुदेशन के सिद्धान्त

(Principles of Programmed)

अभिक्रमित अध्ययन के वर्तमान जन्मदाता प्रो. बी.एफ. ने अभिक्रमित अध्ययन या अनुदेशन के निम्नांकित पाँच आधारभूत सिद्धान्तों का उल्लेख किया हैं-

(1) लघु पद सिद्धान्त (Principle of Small Steps) – इस सिद्धान्त के अनुसार शिक्षण-सामग्री का विश्लेषण कर उसे छोटे-छोटे अर्थपूर्ण पदों या अंशों में विभक्त दिया जाता है तथा छात्र के सम्मुख एक समय में एक छोटा पद या अंश ही प्रस्तुत किया जाता है जिससे कि वह उसे  सुगमता से समझ सके। शिक्षण सामग्री के इस छोटे अंश या पद को ‘फ्रेम’ कहते हैं।

(2) तुरन्त जाँच या पृष्ठपोषण का सिद्धान्त (Principle of Immediate Confirmation)- अभिक्रमित अध्ययन का द्वितीय आधारभूत सिद्धान्त परिणाम या उत्तर की तुरन्त जाँच हैं। जब छात्र द्वारा किसी अभिक्रमित अध्ययन सामग्री में दिये किसी प्रश्न का उत्तर सही या गलत है, इसकी जानकारी उत्तर लिखने के तुरन्त पश्चात् उसे दे दी जाती है। उत्तर सही होने की स्थिति में वह अगले पद की ओर अग्रसरित हो जाता है। यदि उसके द्वारा दिया गया उत्तर गलत है तो कम से कम वह सही उत्तर को पढ़ता है कि अगली बार सही उत्तर देने की सम्भावना को बढ़ा देता है। यह एक सत्य है कि सीखने के दौरान यदि छात्र को सफलता या सन्तुष्टि प्राप्त हो जाये तो वह सीखी हुई शिक्षण-सामग्री अधिक स्थायित्व प्राप्त कर लेती है। इस प्रकार तुरन्त पृष्ठपोषण कर लेने पर को पुनर्बलन मिलता रहता है और वह सही उत्तरों के आधार पर क्रमानुसार पदों के माध्यम से आगे अप्रसरित होता हुआ शिक्षण सामग्री में सम्पूर्णता प्राप्त कर लेता है।

(3) अनुबद्ध प्रतिक्रिया का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त को प्रो० स्किनर ने प्रतिपादित किया है। उनका मत है कि जो व्यक्ति सीखने की इच्छा रखता है वह अपनी क्रिया का प्रतिक्रिया के रूप में निरन्तर प्रत्युत्तर प्राप्त रहता हो, तो अत्यन्त उत्साह और तत्परता पूर्वक अधिगम करता है और अभिक्रमित अनुदेशन के अन्तर्गत छात्र अपनी उत्तरों की पुष्टि करते रहते है। अतः वे सचेत होकर अधिगम करते हैं।

(4) स्वमूल्यांकन का सिद्धान्त- प्रायः यह देखा गया है कि परम्परागत शिक्षण पद्धति के अन्तर्गत छात्रों का उचित एवं निष्पक्ष मूल्यांकन नहीं हो पाता है। इससे छात्र यह भी नहीं जान पाते कि वास्तव में उनका उपलब्धि स्तर क्या हैं? परन्तु अभिक्रमित अनुदेशन के अन्तर्गत छात्रों को अपना मूल्यांकन सही तरीके से करने का अवसर मिलता है। अतः सीखने के दौरान उन्हें अपनी उपलब्धि का निरन्तर बोध होता रहता है।

(5) स्वप्रेरणा का सिद्धान्त-अधिगम की दिशा में स्वप्रेरणा को एक महत्वपूर्ण कारक माना गया हैं स्किनर ने इस सम्बन्ध में विभिन्न प्रकार के प्रयोगों से इसकी पुष्टि की। सीखने की दिशा में कोई भी छात्र स्वाभाविक रूप से तभी अभिप्रेरित होता है। जबकि उसकी अनुक्रिया सार्थक सिद्ध होती है।

अभिक्रमित अनुदेशन के नियम (व्यवहारिक सिद्धान्त) (Law of Programmed Instruction) – अभिक्रमित अनुदेशन के उपरोक्त सिद्धान्त वे होते हैं जिन पर अनुदेशन की पाठ्यवस्तु निर्भर रहती है। इनमें से प्रत्येक सिद्धान्त का अनुसरण पाठ्यक्रम बनाते समय किया जाता है। संक्षेप में अभिक्रमित अनुदेशन के व्यवहारिक सिद्धान्त अथवा नियम इस प्रकार है-

  1. छोटे-छोटे पदों का नियम-इस प्रकार के नियम द्वारा सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को छोटे-छोटे पदों में बाँट करके उन्हें एक क्रम में प्रस्तुत किया जाता है। प्रत्येक छोटा पद एक ढाँचा कहलाता है। प्रत्येक लघु पद में छात्रों को अनुक्रिया के लिए खाली जगह दिया जाता है और उसी के सम्मुख सही अनुक्रिया भी दी जाती है।
  2. स्वगति सीखने का नियम- इसमें वैयक्तिक भिन्नता के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तानुसार प्रत्येक छात्र अपनी व्यक्तिगत क्षमता एवं गति के अनुसार ही अधिगम कर पाता है। अभिक्रमित अनुदेशन के द्वारा छात्रों में स्वगति के अनुसार अधिगम करने की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है इसके अन्तर्गत प्रत्येक छात्र अपनी-अपनी योग्यता क्षमता व गति के अनुसार ही छोटे-छोटे पदों का अध्ययन एवं अनुक्रिया करते है।

अभिक्रमित अनुदेशन के प्रकार (Types of Programmed Instruction) –

अभिक्रमित अनुदेशन के प्रकार निम्नलिखित है—

  1. संगणक/आधारित अभिक्रम
  2. रेखीय/शृंखला अभिक्रम
  3. निर्देशित अभिक्रम
  4. अवरोह अभिक्रम
  5. शाखीय अभिक्रिया

उपरोक्त समस्त अभिक्रमों के प्रवर्तक पश्चिमी देशों से सम्बन्धित हैं। रेखीय श्रृंखला अभिक्रमित अनुदेशन के प्रवर्तक प्रख्यात मनोवैज्ञानिक स्किनर थे। सन् 1956 में यह अभिक्रम तैयार किया गया और इसे माध्यमिक तथा प्राथमिक कक्षाओं के लिए प्रयोग किया गया।

शैक्षिक तकनीकी – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!