शिक्षण तथा अधिगम में मापन का महत्व

शिक्षण तथा अधिगम में मापन का महत्व | मापन की सीमाएँ | मनोवैज्ञानिक मापन के स्तर तथा मापनियाँ

शिक्षण तथा अधिगम में मापन का महत्व | मापन की सीमाएँ | मनोवैज्ञानिक मापन के स्तर तथा मापनियाँ | Importance of measurement in teaching and learning in Hindi | Measurement Limits in Hindi | Levels and Scales of Psychological Measurement in Hindi

शिक्षण तथा अधिगम में मापन का महत्व (Importance of Measurement in Teaching and Learning) –

शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन हुए हैं, विभिन्न प्रकार की तकनीक का विकास शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए किया जा रहा है, विभिन्न विधियों प्रविधियों का प्रयोग हो रहा है। शिक्षा आज वैज्ञानिक विधि द्वारा दी जाती है। अच्छे परिणामों के लिए हमें शिक्षण में मापन की आवश्यकता है न कि हम जो छात्रों को सिखाना चाहते हैं। छात्र वास्तव में  वही सीख रहे हैं तथा इसका परिणाम क्या है जिससे शिक्षा में वांछित सुधार किया जा सके तथा शिक्षण विधियों में भी सुधार किया जा सके। शिक्षण तथा अधिगम में मापन का महत्व संक्षेप में इस प्रकार है-

  1. परीक्षार्थी की योग्यता का निर्धारण- सभी परीक्षार्थियों में योग्यता (Ability) का स्तर समान नहीं होता। यदि विभिन्न योग्यता-स्तर के छात्रों को समान शिक्षा एक हो विधि द्वारा दी जायेगी तो कम योग्यता वाले छात्रों को समझने में कठिनाई होगी तथा अधिक योग्यता वाले बच्चे कम योग्यता वाले बच्चों के साथ कठिनाई का अनुभव करेंगे; अतः योग्यता का मापन करके उन्हें अलग-अलग वर्गों में बाँट सकते हैं।
  2. क्षमता का मापन- विद्यार्थी की क्षमता का निर्धारण किया जा सकता है। यदि किसी छात्र की क्षमता कम है और उसे अधिक कार्य दिया जाय तो वह कर नहीं पायेगा और उस पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा तथा अधिक क्षमता रखने वाले छात्रों को अधिक कार्य देकर ही हम उसे सन्तुष्ट कर सकते है ।
  3. शिक्षण विधियों प्रविधियों का मापन- शिक्षण में विभिन्न प्रकार की शिक्षण विधियों तथा प्रविधियों का प्रयोग होता है। किस पाठ्यक्रम को पढ़ाने के लिए किस विधि या प्रविधि का प्रयोग सबसे अच्छा है इसके लिए-फिर छात्रों को एक पाठ्यक्रम विभिन्न विधियों तथा प्रविधियों द्वारा पढ़ाया जाता है फिर उनको निष्पत्ति का मापन करके यह पता लगाते हैं कि कौन-सी विधि अच्छी है।
  4. निदान (Diagnosis) – विभिन्न विषयों पर नैदानिक परीक्षण बनाये जाते हैं जिनसे छात्रों की शिक्षा सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर किया जाता है। निदान परीक्षण की सहायता से पता चलता है कि छात्र विषयवस्तु के किस भाग को समझने में कठिनाई महसूस करता है।
  5. वर्गीकरण (Classification)– परीक्षण की सहायता से छात्रों को विभिन्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, जैस-विज्ञान वर्ग, साहित्यिक वर्ग, कला वर्ग, तकनीशियन, चिकित्सा इत्यादि।
  6. छात्रों की तुलना करने में-मापन द्वारा उत्कृष्ट बुद्धि तथा मन्द बुद्धि बालकों में अन्तर स्पष्ट कर सकते हैं, और उनकी तुलना की जा सकती है।
  7. कक्षा मानक तथा उम्र मानक तैयार करना – विभिन्न कक्षाओं के लिए मानकों का निर्धारण मापन द्वारा ही किया जा सकता है।
  8. विभिन्न कक्षाओं के लिए पाठ्यक्रम का स्तर निर्धारण-मापन द्वारा पाठ्यक्रम का कठिनाई स्तर तथा छात्रों की योग्यता बुद्धिमत्ता के आधार पर पाठ्यक्रम के निर्धारण में मापन का महत्व है।
  9. समय-निर्धारण- विद्यालय में विभिन्न विषयों को पढ़ाने के लिए समय का निर्धारण उसका मापन विभिन्न कक्षाओं में समयानुसार होते हैं जहाँ पर भी माषन का प्रयोग होता है।
  10. फलांकों का निर्धारण-मापन से छात्रों द्वारा दिये गये उत्तरों के फलांकों का निर्धारण किया जाता है।

मापन की सीमाएँ

आज के युग में मापन का अत्यन्त व्यापकता से प्रयोग किया जाता है, फिर भी कुछ कमियों के कारण मापन एक आलोचना का विषय रहा है। इसकी सीमाएँ इस प्रकार हैं। (i) इसका क्षेत्र संकुचित एवं सीमित है। एक समय में हम व्यक्ति के केवल एक या कुछ ही पहलुओं का अध्ययन कर सकते हैं इसके द्वारा सम्पूर्ण व्यवहार या व्यक्तित्व का अध्ययन कदापि सम्भव नहीं होता। (ii) मापन का रूप व्यवस्थित होता है अतएव इसकी प्रक्रिया भी जटिल है। इसमें मानकोक्त पराक्षणों को आवश्यकता होती है तथा अच्छे विश्वसनीय एवं वैध परीक्षणों का समस्त क्षेत्रों में उपलब्ध होना प्रायः असम्भव ही है। (iii) मापन के द्वारा हमें किसी व्यक्ति या प्रक्रिया के विषय में केवल सूचनाएँ मिलती हैं, यह कोई निर्णय नहीं प्रदान करता है। यह केवल किसी पहलू पर अंकों को प्रदर्शित करता है तथा उन अंकों से हमारा क्या तात्पर्य है यह इंगित नहीं करता। अतएव इन सीमाओं के कारण भी मापन-क्रिया का व्यावहारिक जीवन में महत्वपूर्ण ढंग से प्रयोग किया जा रहा है जिसके फलस्वरूप आज का युग ‘मापन युग’ से जाना जाता है।

मनोवैज्ञानिक मापन के स्तर तथा मापनियाँ

मनोवैज्ञानिक मापन में विभिन्न प्रदत्तों को चार स्तरों के अन्तर्गत रखा जाता है। विषय- सामग्री भौतिक हो या सामाजिक अथवा मनोवैज्ञानिक उनका मापन कई प्रकार से हो सकता है। निम्नतम स्तर के मापन में सुगमता अधिक होगी, किन्तु परिशुद्धता बहुत कम मात्रा में पायी जायेगी जबकि उच्चतम स्तर के मापन में जटिलता अवश्य होगी, किन्तु वह माप अधिक परिशुद्ध (accurate) निष्कर्ष प्रदान करेगा। मापन की परिशुद्धता, उसके मापन-स्तर तथा वैज्ञानिकता को दृष्टि में रखते हुए मापन के चार स्तर या मापनियों का प्रयोग किया जाता है- (i) शाब्दिक स्तर (nominal level), (ii) क्रमिक स्तर (original level). (iii) अन्तराल स्तर (interval level). (iv) अनुपात स्तर (ratio level) प्राय: मापन-प्रक्रिया में व्यक्तियों, वस्तुओं निरीक्षणों, घटनाओं, विशेषताओं या प्रतिक्रियाओं को मात्रात्मक (quantitative) या आंकिक (numerals) रूप में व्यक्त किया जाता है। प्रायः प्रत्येक मापनी या स्तर के अपने-अपने नियम, विशेषताएँ सीमाएँ तथा उपर्युक्त सांख्यिकीय विधियाँ होती हैं।

(1) शाब्दिक स्तर या मापनी (Nominal Level or Scale)

मनोवैज्ञानिक मापन का यह सबसे निम्न स्तर हैं, इसे कभी-कभी वर्गीकरण (classification) स्तर के नाम से भी जाना जाता है। मापन को इस सरलतम मापनी में वस्तुओं अथवा घटनाओं को किसी गुण या विशेषता के आधार पर अलग-अलग समूहों में रख दिया जाता है तथा प्रत्येक व्यक्ति या समूह की पहचान के लिए उसे कोई अमुक नाम (name), संख्या (number) या चिन्ह (code) दे दिया जाता है, अतएव एक समूह में शामिल समस्त पदार्थ आपस में समान तथा अन्य समूह के प्रत्येक पदार्थ से भिन्न होते हैं। व्यक्तियों को लिंग के आधार पर स्त्रियों तथा पुरुषों में, रंग के आधार पर काले तथा गोरे में, निवास के आधार पर शहरी-ग्रामीण में, पेशे के आधार पर व्यापारी तथा नौकर आदि वर्गों में विभक्त किया जा सकता है। चूँकि यह एक निम्नस्तरीय मापनी है, अतः मनोवैज्ञानिक तथ्यों के मापन में, इसका प्रयोग बहुत ही कम किया जाता है। इस प्रकार के मापन में केवल गणना (counting) ही सम्भव होती हैं। प्रत्येक समूह में सम्मिलित व्यक्तियों को केवल गिनती की जाती है। इसोलिए उनमें आन्तरिक समजातोयता (internal homogeneity) पायी जाता है।

(2) क्रमिक स्तर या मापनी (Ordinal Level or Scale)

इस स्तर के मापन में व्यक्तियों, घटनाओं, विशेषताओं या प्रतिक्रियाओं को किसी गुण या लक्षण के आधार पर उच्चतम से निम्नतम के क्रम में व्यवस्थित किया जाता है तथा प्रत्येक वस्तु आदि को एक क्रमसूचक अंक प्रदान किया जाता है। उदाहरणार्थ, जब हम किसी कालेज की अमुक-कक्ष के छात्रों को परीक्षा प्राप्तांकों के आधार पर प्रथम, द्वितीय, तृतीय आदि क्रम देते हैं, खिलाड़ियों को पुरस्कार प्रदान करते हैं, घुड़दौड़ करवाते हैं, इस प्रकार की मापनी के प्रयोग में क्रम देने के लिए प्राय: दो विधियों का प्रयोग प्रचलित है।

(i) पंक्ति क्रम विधि एक सीधी विधि है जिनमें वस्तुओं आदि को कोटिक्रम के अनुसार क्रमबद्ध कर लिया जाता है।

(ii) युग्म तुलना विधि (paired comparison method) है, जिसमें समूह के समस्त सदस्यों का श्रृंखला के समस्त पदार्थों की युग्म या जोड़ों में तुलना की जाती है, इसे अत्यधिक परिशुद्ध विश्वसनीय एवं वैज्ञानिक पद्धति नहीं समझा जाता है। इस स्तर में वस्तुओं को क्रमिक रूप देने के लिए जो अंक दिये जाते हैं, उसमें सामान्य गणितीय संक्रियाओं (गुणा, भाग, जोड़, घटाना) का प्रयोग नहीं होता बल्कि इसमें क्रमों पर आधारित सांख्यिकीय विधियाँ ही उपयुक्त रहती हैं। इन क्रमसूचक अंकों से मध्यांक (median), शतांशीय मान (percentile) क्रमबद्ध सह- सम्बन्ध गुणांक (P) की गणनाएँ सम्भव होती हैं, जिनसे मनोवैज्ञानिक तथ्यों के वर्णन में सहायता मिलती है। यह मापनी दो व्यक्तियों के मध्य अन्तर तो बताती है किन्तु इसके द्वारा यह ज्ञान नहीं हो पाता कि दो व्यक्तियों के मध्य वास्तविक अन्तर कितना है।

(3) अन्तराल स्तर या मापनी (Interval Level or Scale)

मापन के तृतीय स्तर में क्रमिक स्तर की समस्त विशेषताएँ निहित हैं। इसमें दो वस्तुओं, व्यक्तियों या वर्गों के मध्य की दूरी या अन्तर को अंकों के माध्यम से ज्ञात किया जाता है तथा प्रत्येक अंक का अन्तर या दूरी सम होतो है किन्तु इसमें यह ज्ञात नहीं होता कि उसमें से कोई भी अंक शून्य से कितनी दूर है क्योंकि इसमें वास्तविक शून्य (point) बिन्दु (exact zero) नहीं पाया जाता है। अतएव सम दूरी पर व्यवस्थित अंक ही इस मापनी की स्थिर इकाई हैं। इसकी गणितीय संक्रियाओं में हम केवल अंकों को जोड़ या घटा सकते हैं। इसकी सबसे प्रमुख कमी यह है कि इसमें वास्तविक शून्य बिन्दु नहीं होता अतः इस मापनी द्वारा सापेक्षिक मापन (relative. measurement) तो सम्भव है निरपेक्ष (absolute) मापन नहीं। यह सत्य हो सकता है कि एक छात्र किसी परीक्षण में शून्य प्राप्तांक हासिल करता है इससे यह अभिप्राय नहीं है कि वह छात्र उस विषय में कुछ भी ज्ञान नहीं रखता है। वर्ष, महीना, सप्ताह, घण्टा, मिनट आदि भी अन्तराल मापनी के उदाहरण हैं। इस मापनी के प्रयोग से जो अंक या संख्या प्राप्त होती है उनसे अनेक भाँति की सांख्यिकीय गणनाएँ; जैस-मध्यमान, मौनक विचलन आदि सम्भव हैं।

(4) अनुपात स्तर या मापनी (Ratio Level or Scale)

भौतिक तथा मनोवैज्ञानिक मापन की अन्तिम या सर्वोच्च स्तर मापनी अनपात मापनी है। यह मापनी अन्य मापनियों की अपेक्षा श्रेष्ठ, उच्चस्तरीय तथा वैज्ञानिक समझो जाती है। इसमें अन्तराल मापनी की समस्त विशेषताओं के साथ-साथ एक सत्य शून्य बिन्दु विद्यमान रहता है जो अन्य किसी भी मापनी से नहीं होता है। इसलिए इसे अन्तराल मापनी से भी अधिक श्रेष्ठ समझा जाता है। अनुपात मापनी में वास्तविक शून्य बिन्दु (true zero point) कोई कल्पित बिन्दु नहीं होता बल्कि इसका आशय किसी शीलगुण या विशेषता की शून्य मात्रा से है। भौतिक मापन में अनेक उदाहरण ऐसे हैं जहाँ कि निरपेक्ष शून्य बिन्दु पाया जाता है, इस मापनी की प्रत्येक इकाई को दी गयी संख्या मार्पित गुण की विभिन्न मात्राओं के मध्य अनुपात को प्रकट करती है। इसमें गणितीय संक्रियाओं के प्रयोग को कोई निश्चित सीमा न होकर समस्त संक्रियाओं- गुणा, जोड़, भाग, घटाने का प्रयोग किया जाता है।

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