शैक्षिक तकनीकी / Educational Technology

टोली शिक्षण की आवश्यकता एवं महत्व | टोली शिक्षण की कार्यप्रणाली | टोली शिक्षण की परिसीमाएँ | टोली शिक्षण की विशेषताएं

टोली शिक्षण की आवश्यकता एवं महत्व | टोली शिक्षण की कार्यप्रणाली | टोली शिक्षण की परिसीमाएँ | टोली शिक्षण की विशेषताएं | Need and importance of team teaching in Hindi | Team Teaching Methodology in Hindi | Limitations of Team Teaching in Hindi | Features of Team Teaching in Hindi

टोली शिक्षण की आवश्यकता एवं महत्व

वर्तमान समय में वैज्ञानिक जागृति चरम सीमा पर हैं। इससे अनेकों संयंत्रों का प्रादुर्भाव हुआ है। इन संयंत्रों को शिक्षा अनुप्रयोग करके त्वरित रूप से असंख्य विद्यार्थियों तक ज्ञान की ज्योति प्रज्जवलित करने में मदद मिल रही है। इन संयंत्रों का अनुप्रयोग टोली शिक्षण में करके शिक्षक सम्मिलित रूप से विद्यार्थियों को विविध तथ्यों का सजीव विवरण तथा व्याख्या करने में सफल होते हैं। अतः स्पष्ट है कि विविध संयंत्रों का सम्यक् सदुउपयोग करने की दृष्टि से टोली शिक्षण एक आवश्यक शिक्षण पद्धति है।

हमारे देश की आबादी बड़ी त्वरित वेग से बढ़ती चली जा रही है। आबादी के अनुरूप शिक्षक, शिक्षार्थी अनुपात में अत्यधिक वृद्धि होती जा रही है। जो शिक्षक विद्यालयों में नियुक्त भी हैं वे ठीक ढंग से शिक्षण-व्यवसाय के प्रति ईमानदार नहीं है। ऐसी स्थिति में टोली शिक्षण शिक्षकों से पारस्परिक सहयोग की भावना का विकास करने तथा एक दूसरे में ज्ञान के आदान-प्रदान का माहौल बनाती है तथा शिक्षकों की अभाव की पूर्ति में भी मददगार है।

टोली शिक्षण में भाग लेने वाले शिक्षकों में अपने शिक्षण व्यवसाय के प्रति जागरूक रहने तथा अद्यतन ज्ञान की प्राप्ति हेतु उत्सुकता का संचार होता है। ये विविध साहित्यों के अध्ययन तथा सूचनाओं को इकट्ठा करके शिक्षण की नवीन योजना बनाने में तथा उनका क्रियान्वयन करने में समर्थ होते हैं।

टोली शिक्षण में कक्षा के सभी विद्यार्थी को अपनी बात शिक्षकों के समक्ष रखने तथा उनका समाधान करने हेतु मार्गदर्शन की प्राप्ति होती है। इससे विद्यार्थियों की स्वतन्त्र अभिव्यक्ति का अवसर है स्वतः अध्ययन की प्रवृत्ति भी विकसित होती है।

प्रायः देश की आवश्यकता, समसामयिक नवीन प्रवृत्ति के उदय के कारण पाठ्यचर्या में समय सापेक्ष अनेकों नूतन आयाम जुड़ते रहते हैं और उनमें परिवर्तन आता रहता। अतः पाठ्यक्रम परिवर्तन तथा नवीन आयामों से विद्यार्थियों को अवगत कराने में टोली शिक्षण विशेष सहायता करता है।

टोली शिक्षण द्वारा कक्षा में प्रत्येक विद्यार्थी की रुचि, आवश्यकता, क्षमता, अभिरुचि के अनुरूप व्यक्तिगत भित्रताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया के संचालन में भी मदद मिलती है। योजना पद्धति, डाल्टन पद्धति, विनेटका पद्धति आदि व्यक्तिगत मित्रता का पोषण करती है।

टोली शिक्षण की कार्यप्रणाली

टोली शिक्षण की कार्य प्रणाली में निम्नलिखित तथ्यों को महत्व दिया जाता है—

(1) टोली शिक्षण में भाग लेने वाले शिक्षकों एवं कर्मचारियों का चयन करके उनके कार्य एवं उत्तरदायित्व को बताना।

(2) शिक्षण की योजना बनाना। इसमें विषय का चयन, उद्देश्यों का चयन, व्यवहार की परिवर्तन को लिखना, छात्रों के पूर्व ज्ञान का पता लगाना, शिक्षण की अनुमानित योजना बनाना, अनुदेशन की विधियों का स्तरीकरण करना, छात्रों की उपलब्धि का मूल्यांकन करने के ढंग का निर्धारण करना आदि बातें निर्धारित की जाती है।

(3) शिक्षण की योजना बनाने के बाद उसे क्रियान्वित करने हेतु व्यवस्था बनायी जाती है। इसके अन्तर्गत उपर्युक्त सम्प्रेषण नीतियों का चयन, छात्रों से किये जाने वाले प्रश्नों का चयन अनुभवी शिक्षक द्वारा स्वागत व्याख्यान (Lead lecture) कराने का निश्चय, अन्य शिक्षकों द्वारा अनुवर्ती (Follow Up Work) करवाने का उत्तरदायित्व, छात्रों को पुनर्वलित करने के तौर तरीकों का निश्चय, छात्रों के कार्य कलापों के निरीक्षण के कार्य का उत्तरदायित्व का निर्धारण, छात्रों के गृह कार्य एवं कक्षा कार्य करवाने का दायित्व निर्धारण आदि कार्य किया जाता है।

(4) बनायी गयी व्यवस्था के क्रियान्वयन के बाद छात्रों के मूल्यांकन का कार्य किया जाता है। इसके लिए मौखिक एवं लिखित दोनों तरह की परीक्षाएँ ली जाती है तथा जिन छात्रों की उपलब्धि निम्न रहती हैं उनकी समस्याओं का निदान करे उपचार दिया जाता है तथा आवश्यकता पड़ने पर पूरी व्यवस्था में आवश्यकता परिवर्तन एवं परिशीलन भी किया जाता है।

टोली शिक्षण की परिसीमाएँ

टोली शिक्षण, शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में संचालन में नवीन दृष्टिकोण एवं कौशल का विकास अवश्य करता है, किन्तु भारत जैसे विशाल आबादी वाले राष्ट्र में टोली शिक्षण से विविध विषयों की शिक्षा नहीं दिया जा सकता है। भारत में अभी तक अन्तर अनुशासनात्मक उपागम को ठीक ढंग से महत्व नहीं मिल पाया है और न अभी तक एक विषय के ज्ञान का पारस्परिक सम्बन्ध अन्य विषयों से जोड़ा जा सका है। इसलिए टोली शिक्षण द्वारा पर्याप्त सफलता नहीं प्राप्त की जा सकती है। संक्षेप में टोती शिक्षण की परिसीमाओं को निम्नवत् व्यक्त किया जा सकता है-

  1. टोली शिक्षण के क्रियान्वयन हेतु विद्यालयों में पर्याप्त संख्या में विद्यार्थियों को बैठाने वाले कक्षा-कक्ष एवं फर्नीचर का पूर्णतया अभाव है।
  2. विद्यालयों में शिक्षकों में पारस्परिक गुटबन्धी विद्यमान है। वे एक दूसरे का सहयोग तथा पारस्परिक ज्ञान का आदान-प्रदान भी नहीं करना चाहते है। इससे टोली शिक्षण की योजना को मूर्त रूप नहीं दिया जा सकता है।
  3. टोली शिक्षण में धन का व्यय तथा श्रम अधिक लगता है। इससे सामान्य विद्यालय इसे अपनाने से कतराते है।
  4. टोली शिक्षण में भाग लेने वाले शिक्षकों में प्रत्येक का कार्य, उत्तरदायित्व एवं जवाबदेही तय होती है। इससे शिक्षक प्रायः घबराते हैं और इसे ठीक नहीं मानते है।

टोली शिक्षण की विशेषताएं

टोली शिक्षण की विशेषताएं निम्न हैं-

  1. टोली शिक्षण में कई शिक्षक, शिक्षण प्रक्रिया को अंजाम देते है।
  2. टोली शिक्षण परस्पर सहयोग पर आधारित होता है।
  3. टोली शिक्षण से शिक्षा अधिगम प्रभावी एवं गुणवत्ता युक्त अनुदेशन की रूपरेखा बनाने में सहायता प्रदान करता है।
  4. टोली शिक्षण में सभी शिक्षक बार-बार शिक्षण प्रक्रिया के माध्यम से सभी छात्रों को अवगत कराता है।
  5. टोली शिक्षण में शिक्षण प्रक्रिया सरल, सुरुचि, मधुर तथा उपयोगी होती है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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