शैक्षिक तकनीकी / Educational Technology

आधुनिक शिक्षा पद्धति में कम्प्यूटर का महत्व | कम्प्यूटर शिक्षा के महत्व की विशेषता | कम्प्यूटर सह अनुदेशन की विशेषताएँ | कम्प्यूटर का शिक्षा में उपयोग

आधुनिक शिक्षा पद्धति में कम्प्यूटर का महत्व | कम्प्यूटर शिक्षा के महत्व की विशेषता | कम्प्यूटर सह अनुदेशन की विशेषताएँ | कम्प्यूटर का शिक्षा में उपयोग | Importance of computer in modern education system in Hindi | Characterizing the importance of computer education in Hindi | Features of Computer Co-instruction in Hindi | use of computer in education in Hindi

आधुनिक शिक्षा पद्धति में कम्प्यूटर का महत्व

कम्प्यूटर शिक्षा के रूप में विभिन्न प्रकार के शिक्षण यंत्रों एवं संगणक जैसे आधुनिक साधनों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण हुए हैं। तकनीकी विकास ने शिक्षा को विशेष रूप से प्रभावित किया है। इसे प्रयोग एवं उपयोग की दृष्टि से तीन वर्गों में बांटा गया है-जैसे (i) व्यवहार तकनीकी के अनुदेशन (ii) शिक्षण तकनीकी (iii) अनुदेशन तकनीकी।

शिक्षण तकनीकी में संगणक को प्रस्तुत किया गया है। शिक्षा के क्षेत्र में टाइम टेबिल का प्रस्तुतीकरण, छात्रों का अभिलेखन तैयार करना, सूचना संचयन तैयार करना, परीक्षाफल तैयार करना, प्रौढ़ और दूरस्थ शिक्षा आदि में संगणक प्रणाली को सार्थक रूप में प्रयुक्त किया जा रहा है। औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा में भी संगणक द्वारा अनुदेशन प्रणाली का विकास किया जा रहा है। इस प्रकार स्पष्ट है कि शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षण अनुसंधान और परीक्षा प्रणाली पर काफी प्रभाव पड़ा है।

संगणक द्वारा अनुदेशन (Instruction Through Computer) – कम्प्यूटर सह अनुदेशन में सीखने वाले ज्ञान के लिए अनेक प्रकार की अधिगम परिस्थितियों को उत्पन्न किया जाता है तो यह प्रक्रिया कम्प्यूटर द्वारा अनुदेशन कहलाती है। इसी को कम्प्यूटर सह-अनुदेशन भी कहा जाता है। इसी प्रक्रिया के अन्तर्गत छात्र/अधिगमकर्ता/पाठ्यक्रम या अभिक्रम संगणक और एक पूर्ण निर्धारित, उद्देश्य का होना आवश्यक है। यह एक स्वचालित यंत्र हैं, इसमें प्रेषित अभिक्रम पाठ्यवस्तु अनुदेशों पर ही आधारित होती हैं। इन नियंत्रित अनुदेशन के आधार पर ही छात्र को अधिगम करने का अवसर प्राप्त होता हैं। सीखने की इस प्रक्रिया में छात्र को अपने उत्तरों की निरन्तर जानकारी मिलती रहती है।

शिक्षण तकनीकी (Education Technology)- तीसरी विशेषता कम्प्यूटर की यह है कि वह अधिगमकर्ता की पूर्व जानकारी को जान-समझकर उसी के अनुसार निर्देशित करता है। इस प्रकार निर्णय प्रक्रिया में सक्षम होने के फलतः संगणक को ‘मानव-मस्तिष्क’ एवं ‘कम्प्यूटर मानव’ कहा जाता है। इसमें शिक्षा का स्थान गौण माना गया है क्योंकि संगणक से ही यह ज्ञात होता है कि अधिगमकर्ता किस स्तर का हैं? तथा उसे किस प्रकार का ज्ञान प्रदान किया जाय। कम्प्यूटर की इस प्रक्रिया में हार्डवेयर साफ्टवेयर और अधिगम व्यवस्था तीनों ही पक्ष शामिल होते है। चूँकि अनुदेशन का आधार मनोविज्ञान का सिद्धान्त है। अनुदेशनों का प्रस्तुतीकरण अभियांत्रिकी के सिद्धान्तों द्वारा किया जाता है। इसके लिए अधिगम सम्बन्धी सारी परिस्थितियों अधिगम के स्वरूपों एवं अधिगम हेतु आवश्यक प्रेरकों को संगणक में मिला दिया जाता है।

कम्प्यूटर सह अनुदेशन प्रणाली का विकास-

बीसवीं शताब्दी के मध्य में बुनियादी संगणक सिद्धान्तों का विकास हुआ। जिसमें कम्प्यूटर की बनावट शुरू हुई हावर्ड विश्व विद्यालय के ‘होवार्ड एच एकिन’ ने सन् 1937 में पूर्णतः स्वचालित कम्प्यूटर यंत्र बनाया तकनीकी दृष्टि से यदि देखा जाय तो कम्प्यूटर को बनाने में अमेरिकी वैज्ञानिकों का विशेष योगदान रहा है। कम्प्यूटर का सबसे पहले उपयोग 1951 में जनगणना के कार्य में किया गया। जनगणना जैसे कठिन कार्यों को सरलता से सम्पन्न कर देने से कम्प्यूटर के प्रयोग में वृद्धि होने लगी। उद्योग वाणिज्य, सेवा, व्यापार, सुरक्षा, संचार, यातायात के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में इसके उपयोग पर विचार किया गया। बीसवीं शताब्दी के छठें शतक में कम्प्यूटर का प्रयोग सामान्य शिक्षा के क्षेत्र में भी किया गया। स्टेन फोर्ड विश्व विद्यालय के प्रोफेसर फ्रेडरिक ने प्रारम्भिक स्तर के छात्रों हेतु अंकगणित आदि विषयों पर ट्यूटोरियल्स का निर्माण करके कम्प्यूटर के उपयोग पर अनेक प्रयोग किये। इस प्रकार धीरे-धीरे शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर प्रणाली का विकास बढ़ता गया। कम्प्यूटर आधारित अनुदेशन की प्रक्रिया संचालित होने लगी।

भारत में कम्प्यूटर का प्रयोग अभी शुरू ही किया गया है। बीसवीं शताब्दी के अन्त में स्थिति में कुछ पर्याप्त बदलाव आने लगा है। सन् 1984-85 में इलेक्ट्रानिक विभाग के सहयोग से विद्यालय में कम्प्यूटर साक्षरता व कम्प्यूटर शिक्षा की परीक्षण योजना शुरू हुई है, जिसका मुख्य लक्ष्य छात्रों को कम्प्यूटर के बारे में भ्रम को दूर और कम्प्यूटर संचालन की व्यवहारिक जानकारी देना है इस प्रकार भारत में कम्प्यूटरीकरण शनैः शनैः फैलता जा रहा है। इससे भारतीयों की सोच का तरीका अधिक व्यवस्थित बहुआयामी और सोधपरक बनता जा रहा है।

कम्प्यूटर सह अनुदेशन की विशेषताएँ-

कम्प्यूटर सह अनुदेशन की विशेषताएँ निम्नवत् हैं –

  1. यह प्रक्रिया एक मौलिक और नवीन माना गया है।
  2. यह ज्ञानात्मक स्तर के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक है।
  3. यह लगभग सभी शैक्षिक स्तरों में प्रयोग किया जाता है।
  4. यह छात्रों के व्यवहारों को नियंत्रित करने में सहायक है।
  5. यह अयोग्य शिक्षकों की पूर्ति में सहायक है।
  6. छात्र और कम्प्यूटर के सम्पूर्ण आलेख रखा जाता है।
  7. इस प्रणाली में छात्र अपने द्वारा दिये गये उत्तर की सही जानकारी प्राप्त कर लेते है।
  8. उत्तर के गलत होने की स्थिति में छात्रों से अपनी त्रुटि का कारण भी ज्ञात हो जाता है।
  9. इस प्रणाली में छात्र स्वयं को धोखा नहीं दे सकते है।
  10. यह वस्तुतः वस्तुनिष्ठ अध्ययन का ही एक स्वरूप है।
  11. यह अभिक्रमित अध्ययन पर ही आधारित अनुदेशन है।
  12. इसके माध्यम से साधारण व जटिल दोनों विषयों को साधारण ढंग से प्रस्तुत किया जाता है।
  13. यह प्रक्रिया व्यक्तिनिष्ठ प्रभावों से मुक्त है।
  14. इस प्रणाली में एक ही समय में 30 छात्रों को अनुदेशन दिया जाता है।

कम्प्यूटर का शिक्षा में उपयोग

पिछले दशक में कम्प्यूटर का विभिन्न कार्यो एवं क्षेत्रों में तीव्रगति से विस्तार हुआ है। अमेरिका  में कम्प्यूटर का प्रयोग अधिकतर एक महासंगणक के रूप में था, जिसकी सहायता से बड़े-बड़े आँकड़ों को आसानी से अल्प समय में सरलतम रूप में प्रस्तुत किया जा सकता था, लेकिन आज इसका प्रयोग अनेक शैक्षिक गतिविधियों में होने लगा है। उनमें कुछ महत्वपूर्ण उपयोग निम्न हैं-

महासंगणक के रूप में (Super Calculator)- कम्प्यूटर का शिक्षा के क्षेत्र में यह पहला एवं कुछ समय तक एकमात्र उपयोग था। इसमें कम्प्यूटर को अनुसंधान के क्षेत्र में आने वाली कठिनतम एवं अधिक समय लेने वाली गणनाओं का हल प्राप्त करने के लिए उपयोग में लाया जाता था। जैसे-जैसे कम्प्यूटर विभिन्न विषयों के अनुसंधानों के लिए एक अनिवार्य अनुसंधान साधन हो गया है।

आज कम्प्यूटर का उपयोग केवल वैज्ञानिकों एवं अनुसंधानकर्ताओं तक ही सीमित नहीं रह गया है, बल्कि आज यह छात्र एवं अध्यापक के दैनिक जीवन का आवश्यक अंग बन गया है। दैनिक जीवन में छात्र आज कम्प्यूटर का उपयोग प्राफ के वलाव की गणना, आँकड़ों की सांख्यिकीय गणना करने, प्रयोगों के परिणाम ज्ञात करने जैसे कार्यों के लिए भी करते हैं।

भारत में इसका उपयोग अभी प्रारम्भिक चरण में हो रहा है। रेल, डाक, उद्योग, चिकित्सा, सरकारी और निजी प्रतिष्ठानों के बाद अब शिक्षा ने भी इसका स्थान ले लिया है। भारत की विशालता, उनकी जनसंख्या, प्रामों की बहुलता, साधनों, साक्षरों की सीमित संख्या आदि की दृष्टि से कम्प्यूटर का प्रयोग अनेक क्षेत्रों में किया जा सकता है। जैसे— (1) कम्प्यूटर का प्रयोग विद्यालय के प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक किया जा सकता है। (2) इसका उपयोग शिक्षण संस्थाओं के शोध कार्यों में हो सकता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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