भ्रंशन के प्रकार | Types of fault in Hindi
भ्रंशन के प्रकार | Types of fault in Hindi
भ्रंशन के प्रकार
तनावमूलक संचलन की तीव्रता के कारण जब भूपटल में एक तल (plane) के सहारे चट्टानों का स्थानान्तरण हो जाता है, तो उत्पन्न संरचना की भ्रंश कहते हैं। जिस तल के सहारे भूपटल की चट्टानों में खण्डों का स्थानान्तरण होता है, उसे विभंग तल या भ्रंश तल कहते हैं। वास्तव में विभंग तल के सहारे ही गति होती है, जिससे भ्रंश का निर्माण होता है। भ्रंश तल जिसके सहारे गति या संचलन होता है, लम्बवत् हो सकता है, झुका हो सकता है, क्षैतिज हो सकता है, वक्राकार हो सकता है या किसी भी रूप में हो सकता है। अंश उत्पन्न करने वाला संचलन, क्षैतिज, लम्बवत् या किसी भी दिशा में कार्य कर सकता है। चट्टानों में भ्रंश के समय लम्बवत् दिशा में चट्टानी खण्डों का स्थानान्तरण हजारों मीटर तक तथा क्षैतिज दिशा में कई किलोमीटर तक होता है, परन्तु इसका यह तात्पर्य कदापि नहीं है कि समस्त स्थानान्तरण एक ही बार में सम्पन्न हो जाता है। प्रायः यह अनुमान किया जाता है कि सामान्य रूप में भ्रंश संचलन एक बार में कुछ मीटर तक हो सकता है। भ्रंश, वास्तव में भूपटल के निर्बल क्षेत्र को प्रदर्शित करता है, जिसके सहारे लम्बे समय तक संचलन होता रहता है।
भ्रंश के निम्न लिखित चार प्रकार है।
(1) सामान्य भ्रंश (normal fault) :
चट्टानों में दरार पड़ जाने के कारण उसके दोनों खण्ड जब विपरीत दिशाओं में सरक जाते है तो उसे सामान्य भ्रंश कहते हैं। सामान्य भ्रंश में शीर्ष भित्ति या निलम्बी भित्ति अधः क्षेपित खण्ड की ओर होती है अर्थात् यह भ्रंश तल में नीचे की ओर सरक जाती है। भ्रंश तल प्रायः लम्बवत् या खड़े ढाल वाले होते हैं। सामान्य भ्रंश द्वारा निर्मित खड़े ढाल वाले कगार (fault-scarp) को प्रायः भ्रंश कगार कहा जाता है। भ्रंश कगार की ऊंचाई कुछ मीटर से लेकर हजार मीटर तक होती है। परन्तु कगार की वास्तविक ऊंचाई का पता लगाना कठिन होता है, क्योंकि उसमें अपरदन द्वारा ह्रास हो जाता है।
(2) व्युत्क्रम भ्रंश (threat fault) :
जब चट्टानों में दरार पड़ने से चट्टान के दोनों खण्ड आमने-सामने खिसकते हैं तो निर्मित भ्रंश को व्युत्क्रम भ्रंश (threat) कहते हैं। इस तरह के भ्रंश में चट्टान का खंड दूसरे पर चढ़ जाता है। इस क्रिया को उत्क्रम कहा जाता है। इस आधार पर व्युत्क्रम भ्रंश को उत्क्रम अंश या क्षेपित भ्रंश (threat fault) भी कहा जाता है। इस तरह के भ्रंश में शीर्ष भित्ति या निलम्बी दीवार (hanging wall) भ्रंश तल के ऊपर की ओर चढ़ जाती है अर्थात् शीर्ष भित्ति ऊपरी खण्ड के साथ ऊपर की ओर होती है। भ्रंश तल का ढाल सामान्य होता है।
व्युत्क्रम भ्रंश का निर्माण मुख्य रूप से क्षैतिज संचलन के द्वारा उत्पन्न संपीडन द्वारा ही होता है अतः इसे संपीडनात्मक भ्रंश (compressional fault) भी कहा जाता है। जब संपीडन अधिक होता है तो भ्रंश का एक खण्ड दूसरे पर चढ़ जाता है। इस तरह के भ्रंश को अधिक्षिप्त भ्रंश ( overthrust fault) कहते हैं। इसमें भ्रंश तल प्रायः क्षैतिज रहता है।
(3) पार्श्वीय या नतिलमबी सर्पण भ्रंश:
क्षैतिज दिशा में संचलन होने से जब भ्रंश तल के सहारे क्षैतिज गति होती है तो उसे पार्श्वीय भ्रंश (lateral fault) या नतिलम्बी भ्रंश (strike slip fault) कहते हैं। इस तरह के भ्रंश में कगारों की रचना या तो हो ही नहीं पाती, यदि होती भी है तो वह बहुत कम ऊंची होती है। जब शैलखण्ड का संचलन भ्रंश तल की बायी ओर होता है तो उस बाम पार्श्ववर्ती (left lateral) या सिनिस्ट्रल भ्रंश कहते हैं (B) तथा शैलखण्ड का जब स्थानान्तरण भ्रंश तल के दायीं ओर होता है तो उसेपाश्ववर्ती भ्रंश (right lateral fault) या डेक्सट्रल भ्रंश कहते हैं (A)।
(4) सोपानी भ्रंश (step fault):
जब किसी भूभाग में कोई भ्रंशन का इस तरह निर्माण होता है कि सभी भ्रंश तल (fault plane) के ढाल एक ही दिशा में हो तो उसे सोपानी या सीढ़ीदार भ्रंश कहते हैं। इस तरह के भ्रंश के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि भ्रंश द्वारा अध: क्षेपित खंड का अधोगमन एक ही दिशा में हो।
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Thanks a lot sir/mam