विपणन प्रबन्ध / Marketing Management

वैयक्तिक विक्रय का अर्थ | वैयक्तिक विक्रय की परिभाषा | वैयक्तिक विक्रय के गुण या लाभ | वैयक्तिक विक्रय के दोष या सीमायें

वैयक्तिक विक्रय का अर्थ | वैयक्तिक विक्रय की परिभाषा | वैयक्तिक विक्रय के गुण या लाभ | वैयक्तिक विक्रय के दोष या सीमायें | Meaning of personal selling in Hindi | Definition of personal selling in Hindi | Merits or advantages of personal selling in Hindi | Defects or Limitations of Personal Selling in Hindi

वैयक्तिक विक्रय का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Personal Selling)

वैयक्तिक विक्रय को विपणन की रीढ़ कहा गया है। वैयक्तिक विक्रय प्रायः सैल्समैन द्वारा किया जाता है। वैयक्तिक विक्रय में किसी उत्पाद के भावी क्रेताओं के साथ उत्पाद के विक्रय उद्देश्य से प्रत्यक्ष रूप में वार्तालाप की जाती है जिसमें उत्पाद के बारे में आवश्यक बातें एवं प्रयोग विधि आदि सभी का वर्णन किया जाता है। कुछ प्रमुख विद्वानों ने वैयक्तिक विक्रय को निम्न प्रकार परिभाषित किया है –

रिचर्ड बसर्किक के शब्दों में, “वैयक्तिक विक्रय में किसी उत्पाद के भावी क्रेताओं से वैयक्तिक सम्पर्क स्थापित करना सम्मिलित है।”

विलियम जे० स्टेन्टन के अनुसार, “वैयक्तिक विक्रय में अकेला व्यक्तिगत संदेश सम्मिलित होता है जो अव्यक्तिगत संदेश, विज्ञापन, विक्रय संवर्द्धन एवं अन्य प्रवर्तन उपकरणों के विपरीत है।”

अमेरिकन मार्केटिंग एसोसिएशन के अनुसार, “यह अधिक भावी क्रेताओं के साथ बातचीत में विक्रय करने के इरादे से की गयी मौखिक प्रस्तुति है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से हम कह सकते हैं कि वैयक्तिक विक्रय में विक्रेता या विक्रय प्रतिनिधि व्यक्तिगत रूप से ग्राहकों से सम्पर्क स्थापित करके संदेशों का सम्प्रेषण करते हैं। संदेश का प्रवाह विक्रेता से क्रेता की ओर होता है। इसमें विक्रेता प्रत्यक्ष रूप से क्रय-विक्रय की क्रियाएँ पूर्ण करते हैं।

वैयक्तिक विक्रय के गुण या लाभ

(Advantages of Personal Selling)

वैयक्तिक विक्रय के मुख्य गुण या लाभ निम्न हैं –

  1. भावी विक्रेताओं की खोज- एक विक्रेता अपने भावी क्रेताओं को व्यक्तिगत रूप से खोजने में समर्थ होता है जबकि विज्ञापन एवं अन्य संवर्द्धन क्रियाएं भावी क्रेताओं में विभेद करने में असमर्थ होती हैं। इसकी तुलना हम एक शिकारी एवं मछेरे से करते हैं। वैयक्तिक विक्रय एक शिकारी है जो कि शिकार का पीछा करता है और विज्ञापन या अन्य संवर्द्धन क्रियाएँ एक मछेरे की तरह हैं जो अपना जाल इस आशय से फेंकता है कि कुछ मछलियाँ फंसेगी। अतः वैयक्तिक विक्रय में भावी क्रेताओं की खोज की जाती है और उन्हें वस्तु के प्रति आकर्षित करके वस्तु बेच दी जाती है।
  2. क्रेताओं का एक स्थान पर विकेन्द्रीकरण – यदि अधिकांश क्रेता एक ही स्थान पर केन्द्रित या स्थित हो तो वैयक्तिक विक्रय श्रेष्ठकर रहता है क्योंकि कम लागत पर अधिक क्रेताओं से सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है। इसके विपरीत, यदि क्रेता विकेन्द्रित है तो उनसे व्यक्तिगत सम्पर्क स्थापित करना अपेक्षाकृत महंगा पड़ेगा।
  3. उत्पादन की प्रकृति- यदि वस्तु का उत्पादन ग्राहकों के आदेश पर किया जाता है तो वैयक्तिक विक्रय की विशेष आवश्यकता नहीं होती है। इसके विपरीत, यदि वस्तु का उत्पादन निर्माता अपनी इच्छाओं से करता है तो स्वाभाविक ही है कि उसको भावी क्रेताओं से परिचित कराने के लिए वैयक्तिक विक्रय की आवश्यकता होती है।
  4. प्रदर्शन की आवश्यकता- उत्पाद की माँग में वृद्धि करने के लिए उत्पाद के प्रयोग का वास्तविक रूप से प्रदर्शन करना श्रेष्ठतर होता है। यह कार्य वैयक्तिक विक्रय द्वारा आसानी से किया जा सकता है, जैसे घरेलू उपयोग योग्य वस्तुओं या औद्योगिक वस्तुओं की विशेषताओं, कार्यों एवं लाभों का वास्तविक प्रदर्शन करके उन्हें अधिक प्रभावशाली ढंग से बेचा जा सकता है।
  5. स्थापना व विक्रयोपरान्त सेवा की आवश्यकता- कुछ वस्तुयें तकनीकी विशेषता रखने वाली होती हैं जिस कारण क्रेता स्वंय अपने यहाँ की वस्तु को स्थापित करने में समर्थ नहीं होते हैं तथा खरीदने के बाद उनकी मरम्मत आदि की आवश्यकता होती है तो इस प्रकार की वस्तुओं का विक्रय वैयक्तिक विक्रय के माध्यम से ही दक्षतापूर्वक किया जा सकता है।

वैयक्तिक विक्रय के दोष या सीमायें

(Demerits of Personal Selling)

उपरोक्त आवश्यकताओं की पूर्ति में जहाँ वैयक्तिक विक्रय सहायक हैं, वहाँ इसमें कुछ बातें दोषों का रूप भी धारण करती हैं, जो निम्न प्रकार हैं-

  1. अच्छे सेविवर्ग का अभाव- प्रायः अच्छे सेविवर्ग का अभाव है। अतः आवश्यकतानुसार विक्रेताओं का चयन करने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है क्योंकि जरा सी असावधानी से यदि कुछ कम कुशल विक्रेता की नियुक्ति हो जाये तो उसके परिणाम भयंकर हो सकते हैं।
  2. संचालन परिव्ययों में वृद्धि- जहाँ एक ओर वैयक्तिक विक्रय की नितान्त आवश्यकता अनुभव की जाती है वहीं दूसरी ओर इस बात की उपेक्षा भी नहीं की जा सकती कि विक्रय सेविवंर्ग के विकास एवं प्रशिक्षण आदि में संचालन की लागतें अधिक आती हैं। इस कारण प्रत्येक संस्था इस सुविधा का लाभ नहीं उठा पाती।
  3. सही समय एवं सही स्थान पर उपस्थित होने की कठिनाई- ग्राहकों के दूर-दूर बिखरे हुए स्थित होने के कारण वैयक्तिक विक्रय में प्रतिनिधि को सही समय एवं सही स्थान पर उपस्थित होने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इस कारण इसकी अवहेलना हो जाती है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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