विपणन प्रबन्ध / Marketing Management

विपणन संगठन संरचना को प्रभावित करने वाले घटक | Factors Influencing Marketing Organisations Structure in Hindi

विपणन संगठन संरचना को प्रभावित करने वाले घटक | Factors Influencing Marketing Organisations Structure in Hindi

विपणन संगठन संरचना को प्रभावित करने वाले घटक या तत्व

(Factors Influencing Marketing Organisations Structure)

विपणन संगठन संरचना को प्रभावित या निर्धारित करने वाले प्रमुख घटक या तत्व निम्नलिखित हैं-

  1. उत्पादों या वस्तुओं की प्रकृति (Nature of Products) – किसी भी संस्था के विपणन संगठन की संरचना का निर्माण करते समय सर्वप्रथम उस संस्था द्वारा विक्रय किए जाने वाले उत्पादों की प्रकृति को ध्यान में रखना चाहिए। उत्पादों की प्रकृति संगठन संरचना को सर्वाधिक रूप से प्रभावित करती है।

उत्पादन अनेक प्रकार के होते हैं जैसे- उपभोक्ता उत्पाद, औद्योगिक उत्पाद आदि। उपभोक्ता उत्पादों में भी कुछ दैनिक उपयोग के होते हैं तो कुछ अन्य टिकाऊ होते हैं जो एक लम्बे समय तक उपयोग में लाये जाते हैं। दैनिक उपयोग के जो उत्पाद होते हैं, यथा- ब्रेड, मक्खन, सिगरेट, बीड़ी, साबुन, रसोई का सामान, कपड़े आदि का विपणन संगठन विस्तृत होता है। जबकि दूसरी ओर टिकाऊ उत्पादों यथा- रेफ्रीजरेटर, कार, स्कूटर, टी०वी० आदि विक्रय करने वाली संस्थाओं का विपणन संगठन सीमित ही होता है।

इसी प्रकार आवश्यक आवश्यकता के उत्पादों के विक्रय के लिए विस्तृत विपणन संगठन की आवश्यकता होती है जबकि आराम एवं विलासिता के उत्पादों के लिए छोटे विपणन संगठन भी पर्याप्त होते हैं। औद्योगिक उत्पादों के विपणन संगठन भी सीमित आकार के ही होते हैं।

यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि यदि विक्रय किये जाने वाले उत्पाद नाशवान प्रकृति के हैं तो विपणन संगठन बड़ा ही बनेगा। तकनीकी उत्पादों की मांग भी सीमित होती है। अतः विपणन संगठन भी सीमित ही होगा।

  1. उत्पादों की संख्या (Number of Products) – यदि विक्रय किये जाने वाले उत्पादों की संख्या बहुत अधिक है तो विपणन संगठन भी विस्तृत होगा और जब विक्रय किये जाने वाले उत्पादों की संख्या सीमित है तो विपणन संगठन भी छोटा होगा।
  2. बाजार का प्रकार (Types of Markets) – बाजार का प्रकार भी विपणन संगठन संरचना को प्रभावित करता है। स्थानीय बाजार में विपणन संगठन छोटा होता है जबकि सम्पूर्ण राज्य एवं राष्ट्र में माल का विक्रय करने पर विपणन संगठन बहुत ही बड़ा होता है परन्तु यदि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विक्रय किया जाता है तो विपणन संगठन और भी विस्तृत होगा, जहाँ सम्पूर्ण प्रकार से विशिष्टीकरण करना सम्भव हो सकेगा।
  3. उत्पादों का मूल्य (Price of Products)- उत्पादों का मूल्य विपणन संगठन संरचना को प्रभावित करने वाला महत्वपूर्ण तत्व है। उच्च मूल्य वर्ग के उत्पादों की माँग सीमित होती है। अतः उनका विपणन संगठन भी छोटे आकार का ही होता है। जबकि कम मूल्य वर्ग के उत्पादों को प्रत्येक व्यक्ति आसानी से खरीद सकता है। अतः उनकी मांग अपेक्षाकृत अधिक होती है। फलतः विपणन संगठन भी बड़े आकार का बनाना पड़ता है।
  4. प्रबन्धकों की क्षमताएँ एवं योग्यताएँ (Capacities and Abilities of Executives) – यदि सर्वोच्च प्रबन्धकों की क्षमताएँ एवं योग्यताएँ बहुत ही अच्छी हैं तो रेखा संगठन (Line Organisation) का निर्माण कर सकते हैं और सभी निर्णय आसानी से किये जा सकते हैं। परन्तु यदि प्रबन्धकों की क्षमताएँ एवं योग्यताएँ उत्तम नहीं हैं तो रेखा संगठन के स्थान पर अन्य संगठन का निर्माण करना होगा, जिससे उन्हें निर्णय एवं कार्यों को पूरा करने में सहायता मिल सके।
  5. संस्था की विपणन नीतियाँ (Marketing Policies of the Institution) – संस्था की विपणन नीतियाँ विपणन संगठन को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। जो संस्था आक्रामक विपणन नीति अपनाती है उसका संगठन अधिक विस्तृत एवं जटिल होता है। जबकि, सामान्य सरल नीति अपनाने वाली संस्था का विपणन संगठन भी सरल ही होता है। इसी प्रकार कुछ संस्थाएँ निरीक्षण को कड़ा करके विक्रय में वृद्धि करना उचित समझती हैं तो कुछ संस्थाएँ क्षेत्र विशेष का अनुसंधान एवं अन्य उपाय करके विक्रय वृद्धि करना उचित समझती है। अतः संगठन संरचना में विशेषज्ञों का स्थान होगा, जबकि निरीक्षण पर ध्यान देने वाली संस्था का क्षेत्रीय (Field Organisation) संगठन विस्तृत होगा।
  6. संस्था की वित्तीय स्थिति (Financial Status of Institution)- एक संस्था की वित्तीय स्थिति भी उसके विपणन संगठन को प्रभावित करती है। यदि वित्तीय स्थिति अच्छी है तो वह संस्था प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ताओं को माल विक्रय कर सकती है। इस स्थिति में विपणन संगठन विस्तृत होगा परन्तु यदि संस्था की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं है तो वह माल थोक व्यापारी को ही विक्रय करेगी। इससे संगठन सरल एवं छोटा होगा।
  7. संस्था की प्रतिस्पर्द्धात्मक स्थिति (Competitive Position of the Institution)- विपणन संगठन संरचना का निर्माण करते समय संस्था की बाजार में प्रतिस्पर्द्धात्मक स्थिति को ध्यान में रखना चाहिए। यदि किसी संस्था को अनेक संस्थाओं में प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है तो उसे विस्तृत विपणन संगठन की आवश्यकता पड़ेगी। उसमें रेखा अधिकारियों (Line Officers) के साथ-साथ, स्टाफ अधिकारियों की भी व्यवस्था करनी होगी। परन्तु यदि संस्था के उत्पादों को आसानी से बेचा जा रहा हो तो विपणन विभाग के कार्य सीमित होंगे। परिणामस्वरूप विपणन संगठन भी सरल एवं छोटा ही होगा।
  8. प्रबन्धकों की नीतियाँ (Managerial Policies)- प्रबन्धकों की नीतियाँ भी विपणन संगठन के स्वरूप एंव संरचना को प्रभावित करती हैं। कुछ प्रबन्धक सभी अधिकारों को अपने ही पास केन्द्रित रखना पसंद करते हैं। ऐसे प्रबन्धकों की दशा में विपणन संगठन सीमित आकार का ही होगा। दूसरी ओर कुछ प्रबन्धक ऐसे भी होते हैं जो अपने अधीनस्थों को अधिकारों का प्रत्यायोजन या विकेन्द्रीकरण करते हैं। ऐसे में संगठन का आकार विस्तृत होगा।
  9. ग्राहकों की प्रकृति (Nature of Customers)- ग्राहकों की प्रकृति भी विपणन संगठन संरचना को प्रभावित करती है। यदि ग्राहक भावना प्रधान उद्देश्यों से वस्तु क्रय करने वाले हैं तो विस्तृत विपणन संगठन संरचना के निर्माण की आवश्यकता पड़ती है। इसके विपरीत यदि ग्राहक विवेक प्रधान उद्देश्यों से प्रेरित होकर माल का क्रय करने वाले हैं तो विपणन संगठन संरचना छोटी हो तो भी काम चल जाता है। संरक्षण उद्देश्यों की दशा में तो संगठन सरचना अत्यन्त समिति भी हो सकती है। इसी प्रकार स्त्री पुरुष, बालक, युवा, तथा वृद्ध भी संगठन संरचना को प्रभावित कर सकते हैं।
  10. उपक्रम का आकार (Size of Enterprise)- यदि संस्था छोटे आकार की है तो स्वभावतः उसका विपणन कार्य भी सीमित होगा और उनके लिए छोटे एवं सरल विपणन संगठन का निर्माण ही पर्याप्त होगा। परन्तु यदि संस्था का आकार बहुत ही बड़ा है तो स्वभावतः विपणन क्षेत्र भी बढ़ा ही होगा। उसके लिए अधिक विस्तृत एवं जटिल विपणन संगठन की संरचना की जायेगी, जिससे सभी प्रकार की विशिष्ट सहायता उपलब्ध हो सके एवं विशिष्टीकरण का लाभ मिल सके। उदाहरण के लिए, हिन्दुस्तान लीवर, डी0सी0एम0, रिलायन्स इन्डस्ट्रीज आदि का बहुत बड़ा आकार है। अतः उनका विपणन संगठन भी बहुत विशाल है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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