विपणन प्रबन्ध / Marketing Management

विपणन अनुसंधान | विपणन अनुसंधान की प्रक्रिया | विपणन अनुसंधान की सीमायें

विपणन अनुसंधान | विपणन अनुसंधान की प्रक्रिया | विपणन अनुसंधान की सीमायें | Marketing Research in Hindi | Marketing Research Process in Hindi | Limitations of Marketing Research in Hindi

विपणन अनुसंधान

आधुनिक युग में ग्राहकों की रुचियों, आवश्यकताओं एवं उनके आर्थिक स्तरों मे अधिक परिवर्तन होते रहते हैं। उत्पादन का पैमाना बड़ा होता है, प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति पायी जाती हैं वस्तु के उपभोक्ता दूर-दूरतक बिखरे होते हैं। इन सब कारणों से आधुनिक युग में विपणन एक जटिल समस्या बन गयी है। इस समस्या का समाधान करने के लिए विपणन अनुसंधान एक उपयोगी तकनीक है। इसके द्वारा उत्पाद विश्लेषण, विपणि विश्लेषण, उपभोक्ता व्यवहार, सर्वेक्षण, विज्ञापन एवं विक्रय अनुसंधान तथा वितरण विश्लेषण करके संस्था के लिए महत्वपूर्ण सूचनाएं प्राप्त की जाती हैं और विपणन समस्याओं पर निर्णय लिये जाते हैं।

विपणन अनुसंधान की प्रक्रिया

(Procedure or Process of Marketing Research)

विपणन अनुसंधान का प्रमुख उद्देश्य विपणन सम्बन्धी समस्याओं का विश्लेषण करके उनके हल के लिए निर्णय लेने के कार्य में सहायता प्रदान करना है। विपणन अनुसंधान में विपणन समस्याओं के समाधान के लिए मॉडल का निर्माण किया जाता है अर्थात् समस्या के समाधान के विकल्पों का पता लगाया जाता है, उनके सम्बन्ध में आँकड़े एकत्र किये जाते हैं और तत्पश्चात् आँकड़ों का विश्लेषण करके समस्या के सर्वोत्तम हल के सम्बन्ध में निर्णय लिये जाते हैं। विभिन्न संस्थाओं में विपणन अनुसंधान की प्रक्रिया भिन्न-भिन्न हो सकती है। सामान्य रूप से विपणन अनुसंधान की निम्न प्रक्रिया अपनायी जा सकती है

  1. समस्या को परिभाषित करना (Defining the Problem) – विपणन अनुसंधान के प्रथम चरण में समस्या को परिभाषित किया जाता है। यदि समस्या को परिभाषित न किया जाये या वास्तविक समस्या की जानकारी प्राप्त न की जाये तो अनुसंधान द्वारा उसका सही हल नहीं खोजा जा सकता। समस्या की जानकारी करने के लिए प्रबन्धकों को अनुसंधानकर्ता की सहायता लेनी चाहिए क्योंकि हो सकता है कि प्रबन्धकों ने समस्या का सही अर्थ न समझा हो। उदाहरण के लिए, एक कम्पनी की बिक्री में कमी होने लगी तो प्रबन्धकों ने अनुमान लगाया कि कम्पनी के विज्ञापन की प्रभावशीलता कम हो गई है लेकिन वास्तविकता कुछ और ही थी। अनुसंधानकर्त्ता ने अन्वेषण करके बताया कि विज्ञापन तो प्रभावशाली था लेकिन कम्पनी की वितरण प्रणाली दोषपूर्ण थी तथा फुटकर व्यापारियों को माल ठीक प्रकार नहीं पहुँचता था। ऐसी स्थिति में यदि अनुसंधानकर्ता बिक्री की कमी की समस्या पता नहीं लगाता तो हो सकता था कि प्रबन्धक विज्ञापन पर और अधिक व्यय करने का या विज्ञापन के माध्यम को बदलने का निर्णय ले लेते। लेकिन बिक्री फिर भी कम ही रहती क्योंकि इसके लिए तो वितरण व्यवस्था को सुधारने की आवश्यकता है। अतः समस्या को पहले परिभाषित कर लेना चाहिए।
  2. स्थिति विश्लेषण (Situation Analysis) – इसके अन्तर्गत अनुसंधानकर्त्ता कम्पनी बाजार, प्रतिस्पर्धा एवं सम्पूर्ण उद्योग का विश्लेषण करता है। स्थिति विश्लेषण के अन्तर्गत समस्या को परिवर्तित एवं परिमार्जित करने के लिए प्रयत्न किये जाते हैं जिससे कि यह जानकारी हो सके कि समस्या के हल के किन-किन तथ्यों की आवश्यकता है एवं इन तथ्यों को कहाँ से और किस प्रकार एकत्रित किया जाये। इस प्रकार के विश्लेषण से समस्या का क्षेत्र छोटा एवं स्पष्ट हो जाता है।
  3. सूचनाओं के उपलब्ध स्रोतों की जाँच करना (Checking of Available Research of information) – विपणन अनुसंधान के लिए जिन स्रोतों से सूचनायें प्राप्त करनी हैं, उनकी पूर्ण जाँच करनी चाहिए क्योंकि कभी-कभी सूचनाओं के स्रोतों द्वारा पक्षपातपूर्ण सूचनायें भी दी जा सकती हैं, जैसे – कुछ विक्रेता अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के कारण कम्पनी को सही सूचना नहीं देते हैं। अतः अनुसंधान के लिए यह आवश्यक है कि जिन स्रोतों से सूचनायें प्राप्त करनी हो उनकी जाँच करके यह पता लगाना चाहिए कि वे स्रोत निष्पक्ष सूचना दे रहे हैं या नहीं।
  4. आँकड़ों का संकलन (Collection of Statistics) – सूचनाओं के स्रोतों की जाँच करने के बाद समस्या से सम्बन्धित आँकड़े एकत्रित किये जाते हैं। आँकड़े एकत्रित करने के स्रोतों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है आन्तरिक स्रोत एवं बाह्य स्रोत। आन्तरिक स्रोतों के अन्तर्गत कम्पनी के विक्रय या लागत संलेखों, विक्रेताओं की रिपोर्ट, ग्राहकों से पत्र व्यवहार आदि को सम्मिलित किया जाता है। बाह्य स्रोतों से आँकड़े एकत्रित करने के दो स्रोत हैं- (1) प्राथमिक स्रोत एवं द्वितीयक स्रोत। प्राथमिक स्त्रोत से आँकड़े एकत्रित करने की चार प्रमुख विधियाँ हैं- (क) अवलोकन विधि (ख) प्रयोगात्मक विधि (ग) सर्वेक्षण विधि (घ) ऐतिहासिक विधि। इन विधियों में संस्था के अनुसंधानकर्ता स्वयं ही आँकड़े एकत्रित करते हैं। द्वितीय स्रोत के अन्तर्गत आँकड़े एकत्रित करने के पाँच प्रमुख स्रोत हैं – (1) दैनिक समाचार पत्र एवं पत्रिकायें (2) सरकारी प्रकाशन (3) व्यापारिक, पेशेवर एवं व्यावसायिक संस्थायें (4) प्रकाशित सर्वेक्षण एवं (5) विश्वविद्यालय अनुसंधान संगठन।
  5. आँकड़ों का सारणीयन (Tabulation of Data) – आँकड़ों का संकलन करने के पश्चात् उनका सारणीयन किया जाता है। सारणीयन से आशय आँकड़ों को सरल एवं स्पष्ट रूप से तालिका के रूप में प्रस्तुत करने से है ताकि उनका आसानी से विश्लेषण करने के पश्चात् किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके।
  6. आँकड़ों का विश्लेषण एवं निर्वचन (Analysis and Interpretation of Data)- आँकड़ों का संकलन एवं सारणीयन करने से ही समस्या का समाधान नहीं होता अपितु इसके लिए आँकड़ों का विश्लेषण किया जाता है। आँकड़ों के विश्लेषण के आधार पर महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकालने चाहिए। इसके पश्चात् आँकड़ों के विश्लेषण से प्राप्त निष्कर्षों की व्याख्या करनी चाहिए कि इस विश्लेषण से क्या परिणाम निकलता है। वास्तव में यही अनुसंधान का उद्देश्य होता है।
  7. लिखित प्रतिवेदन तैयार करना (To Prepare Written Report) – अनुसंधानकर्ता को आँकड़ों के निर्वचन के आधार पर अपनी सिफारिशों का एक लिखित प्रतिवेदन रिपोर्ट के रूप में विपणन प्रबन्धक को प्रस्तुत करना चाहिए। विपणन प्रबन्धक को लिखित प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के पश्चात् अनुसंधानकर्ता और विपणन प्रबन्धक को मौखिक विचार-विमर्श करना चाहिए ताकि विपणन प्रबन्धक को प्रतिवेदन स्पष्ट एवं विस्तार से समझाया जा सके और विपणन प्रबन्धक के प्रश्नों का उत्तर अनुसंधानकर्त्ता द्वारा दिया जा सके। अनुसंधान प्रतिवेदन निर्णयात्मक होना चाहिए। अनुसंधान प्रतिवेदन में अनुसंधान का उद्देश्य, क्षेत्र एवं अनुसंधान योजना का उल्लेख होना चाहिए।
  8. प्रतिवेदन का अनुसरण (Follow up the Report) – वैसे तो विपणन प्रबन्धक को अनुसंधान प्रतिवेदन देने के पश्चात् विपणन अनुसंधान प्रक्रिया समाप्त हो जाती है, लेकिन कुछ विद्वानों का कहना है कि प्रतिवेदन के अनुसरण कार्य को भी विपणन अनुसंधान प्रक्रिया में ही सम्मिलित करना चाहिए क्योंकि इस प्रकार अनुसंधान का तब तक कोई महत्व नहीं है जब तक कि उस विपणन अनुसंधान प्रतिवेदन में की गई सिफारिशों को कार्य रूप में परिणित न कर दिया जाये।

विपणन अनुसंधान की सीमायें

(Limitations of Marketing Research)

विपणन अनुसंधानकर्ता को प्रत्येक पग-पग पर अनेक विकल्पों में से किसी एक का चयन करना पड़ता है। ऐसे निर्णय लेते समय वह जानता है कि उसे अनेक सीमाओं का सामना करना है। इन सीमाओं को ध्यान में रखकर अनुसंधानकर्त्ता अपना कार्य सम्पादित करता है। इन सीमाओं में कुछ सीमायें तो ऐसी होती हैं जिन पर उनका नियन्त्रण नहीं होता है, जैसे- समय और धन से सम्बन्धित सीमायें। इसके विपरीत, कुछ सीमायें ऐसी होती हैं जिन पर उसका कुछ थोड़ा बहुत नियन्त्रण होता है, जैसे कुशलता एवं पक्षता से सम्बन्धित सीमायें। विपणन अनुसंधान से सम्बन्धित निर्णय इन सीमाओं से अवश्य ही प्रभावित होते हैं। विपणन अनुसंधान की प्रमुख सीमाओं का विवेचन निम्नलिखित हैं।

  1. समय की सीमा (Limitation of Time) – अनुसंधानकर्ता के सम्मुख समय की सीमा होती है कि उसे इतने समय में अपना प्रतिवेदन दे देना चाहिए। यदि वह समय पर्याप्त है तो वह अपना कार्य अच्छी प्रकार से सम्पादित कर सकता है। यदि समय कम है तो अनुसंधानकर्ता समय की कमी के कारण अपना अनुसंधान कार्य सही ढंग से नहीं कर सकता क्योंकि समयाभाव की स्थिति में वह सभी आवश्यक व्यक्तियों के साक्षात्कार नहीं कर सकता है और आँकड़े भी सही मात्रा में संकलित नहीं कर पाता है। अधिकतर ऐसी स्थिति में द्वितीयक समंकों (Secondary Data) का प्रयोग किया जाता है। ये द्वितीयक समंक संस्था के उद्देश्यों के अनुसार शत-प्रतिशत सही हो, ऐसी सम्भावना कम ही होती है। अतः ऐसी स्थिति में विपणन अनुसंधान कार्य सही ढंग से नहीं हो पाता है।
  2. धन की सीमा (Limitation of Money) – प्रायः अनुसंधानकर्ताओं की यह शिकायत होती है कि उनके पास अनुसंधान कार्य के लिए पर्याप्त धन नहीं है। अनुसंधानकर्ता निर्धारित धन की सीमा के अन्तर्गत ही अपना कार्यक्रम निर्धारित करते हैं। ऐसी स्थिति में प्रायः लघु न्यादर्श के आधार पर या द्वितीयक संमकों के आधार पर आँकड़े एकत्रित करते हैं। वे पर्याप्त मात्रा में आवश्यक व्यक्तियों से साक्षात्कार नहीं कर पाते हैं जिसके परिणामस्वरूप अनुसंधान की सत्यता संदिग्ध रहती है। यह स्मरणीय है कि हमारा यह आशय नहीं है कि अच्छा अनुसंधान केवल अधिक धन होने पर ही सम्भव है, परन्तु इस बारे में दो मत नहीं हैं कि पर्याप्त धन से अच्छा अनुसंधान कार्यक्रम अपनाने में सहायता मिलती है।
  3. कुशलता या दक्षता की सीमा (Limitation or Skill) – विपणन अनुसंधान की सफलता काफी मात्रा में अनुसंधानकर्ता की योग्यता, कुशलता एवं अनुभव पर निर्भर करती है। एक अनुसंधानकर्ता को सांख्यिकी विधियों का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए क्योंकि अनुसंधान कार्य में संमकों के संकलन, सारणीयन, विश्लेषण एवं निर्वचन की आवश्यकता पड़ती है। इसके अतिरिक्त द्वितीय संमकों के सम्बन्ध में अनुसंधानकर्ता को उनकी विश्वसनीयता की जाँच करनी होती है। यदि अनुसंधान कार्य ऐसे व्यक्तियों के द्वारा कराया जाता है, जो कि न तो ठीक प्रकार से प्रशिक्षित है और न अनुभवी, तो उस अनुसंधान से निकाले गए परिणाम सही ही होंगें, इसकी बहुत कम सम्भावना है। अतः अनुसंधानकर्त्ता प्रशिक्षित, कुशल, योग्य एवं अनुभवी होना चाहिए लेकिन ऐसे अनुसंधानकर्त्ता अधिक पारिश्रमिक की माँग करते हैं। इस कारण अधिकांश संस्थायें जिनके वित्तीय साधन कम होते हैं वे अनुसंधान कार्य के लिए अधिक योग्य, प्रशिक्षित एवं अनुभवी अनुसंधानकर्त्ता नियुक्त नहीं कर पाती हैं।
  4. पक्षपात की सीमा (Limitation of Biasness) – विपणन अनुसंधान की प्रत्येक क्रिया में पक्षपात की सम्भावना रहती है। धन, समय एवं कुशलता की सीमा भी पक्षपात को जन्म देती है। उदाहरण के लिए, यदि धन एवं समय कम होने के कारण केवल न्यादर्श के आधार पर ही समंक एकत्रित करते हैं तो न्यादर्श के चुनाव करते समय पक्षपात किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त यदि प्रश्नावलियों के आधार पर समंक एकत्रित करते हैं और प्रश्नावलियों में यदि ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तरदाता (Respondent) के मनोबल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तो ऐसी स्थिति में उत्तरदाता के मनोबल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तो ऐसी स्थिति में उत्तरदाता सही सूचना नहीं देते। अतः अनुसंधान में पक्षपातपूर्ण अध्ययन अनुसंधानकर्त्ता या सूचना प्रदान करने वाले पक्षकारों द्वारा किया जा सकता है। पक्षपातपूर्ण सूचनाओं और पद्धतियों के आधार पर निकाले गये निष्कर्ष सही परिणाम प्रस्तुत नहीं करते हैं। अतः ऐसी स्थिति में अनुसंधान का उद्देश्य ही असफल हो जाता है।
  5. उपभोक्ता व्यवहार पर अनुसंधान (Research on Consumer Behaviour) – विपणन अनुसंधान में उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। कुछ उपभोक्ता प्रदर्शन की भावना रखते हैं, जबकि अन्य कुछ विवेकशील होते हैं। पहली प्रकार के उपभोक्ता चाहते कुछ हैं लेकिन अपने शब्दों द्वारा कुछ और व्यक्त करते हैं। कभी-कभी ऐसी स्थिति में उनकी मनः स्थिति को ज्ञान प्राप्त करना कठिन ही नहीं अपितु असम्भव हो जाता है।

विपणन अनुसंधान की उपरोक्त सीमाओं का अध्ययन करने के पश्चात यह निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए कि विपणन अनुसंधान का कोई महत्व नहीं है। यदि अनुसंधान कार्य में सावधानी बरती जाये तो समस्याओं के समाधान के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लेने में सहायता मिलती है।

विपणन प्रबन्ध – महत्वपूर्ण लिंक

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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