विपणन प्रबन्ध / Marketing Management

विपणन नियोजन का अर्थ | विपणन नियोजन की परिभाषा | विपणन नियोजन के तत्व

विपणन नियोजन का अर्थ | विपणन नियोजन की परिभाषा | विपणन नियोजन के तत्व | Meaning of marketing planning in Hindi | Definition of Marketing Planning in Hindi | elements of marketing planning in Hindi

विपणन नियोजन का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Marketing Planning)

विपणन नियोजन संस्था या कम्पनी के समग्र नियोजन (Overall Planning) का एक महत्वपूर्ण भाग है। इसमें विपणन सम्बन्धी साधनों के भावी उपयोग के सम्बन्ध में वर्तमान समय में निर्णय लिये जाते हैं तथा विपणन क्रियाओं को विपणन लक्ष्यों के अनुसार सम्पादित करने के लिए विपणन कार्यक्रम एवं नीतियाँ निर्धारित की जाती हैं।

अमेरिकन मार्केटिंग एसोसिएशन के अनुसार, “विपणन क्रिया के लिए उद्देश्यों का निर्धारण करना एवं इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक कदमों का निर्धारण तथा सूचीयन ही विपणन नियोजन है।” अर्थात् विपणन नियोजन के अन्तर्गत सर्वप्रथम लक्ष्यों अथवा उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है तत्पश्चात् उद्देश्यों अथवा लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विपणन क्रियायें जैसे- क्रय-विक्रय, उत्पादन नियोजन एवं विकास, विज्ञापन, विक्रय संवर्धन एवं विक्रयोपरान्त सेवा आदि के लिए कार्यक्रम, नीतियाँ कार्य-विधियाँ निर्धारित की जाती हैं।

विपणन नियोजन विपणन द्वारा किया जाता है। विपणन विभाग के अधीन संगठित विभिन्न उपविभागों के प्रबन्धक अपने-अपने विभाग के लिए पृथक-पृथक योजनायें विपणन विभाग को प्रस्तुत करते हैं। इसके पश्चात् इन योजनाओं के आधार पर सम्पूर्ण विपणन विभाग के लिए योजना बनायी जाती है। इस प्रकार विपणन नियोजन वह प्रक्रिया है जो व्यवसाय में निरन्तर होती रहती है एवं जिसमें भावी विपणन लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं तथा उन लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु आवश्यक साधनों को जुटाकर विभिन्न विभागों में बाँटा जाता है।

विपणन नियोजन के तत्व

(Elements of Marketing Planning)

विपणन नियोजन करते समय प्रायः उन सभी सामान्य प्रबन्धकीय नियोजन सम्बन्धी विचारों का प्रयोग किया जाता है जो नियोजन के मूल तत्व हैं। विपणन नियोजन के अन्तर्गत दो प्रकार की योजनायें सम्मिलित की जाती है – प्रथम, स्थायी योजनायें जिनमें (1) लक्ष्य (2) पूर्वानुमान (3) नीतियाँ एवं (4) कार्यविधि, आदि निर्धारित की जाती हैं। द्वितीय, तदर्थ उपयोग की योजनायें जिनमें (1) कार्यक्रम (2) अनुसूचियाँ (3) वजट आदि तैयार किये जाते हैं। इन सभी का संक्षिप्त विवेचन निम्न प्रकार हैं-

  1. लक्ष्यों का निर्धारण (Determination of Objectives) – संस्था की क्रियायें जिन परिणामों की प्राप्ति के लिए निर्देशित की जाती हैं, वे संस्था के लक्ष्य अथवा उद्देश्य ही होते हैं। संस्था के उद्देश्य अथवा लक्ष्य नियोजन के आधार स्तम्भ होते हैं। अतः लक्ष्य अथवा उद्देश्य का निर्धारण नियोजन का प्रथम कदम होता है। इसके आधार पर संस्था की भावी नीतियाँ, कार्यक्रम एवं कार्यविधियाँ आदि निर्धारित की जाती हैं। एक, विपणन प्रबन्धक का यह कर्त्तव्य है कि संस्था के विपणन लक्ष्यों को निर्धारित करे और अपने विभाग के कर्मचारियों के सम्मुख संस्था के लक्ष्यों की स्पष्ट व्याख्या करे तथा उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कर्मचारियों को प्रेरित करे। उदाहरण के लिए विपणन प्रबन्ध को संस्था की बिक्री की मात्रा के सम्बन्ध में लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए फिर कार्यक्रम तैयार करने चाहिए।
  2. पूर्वानुमान (Forecasts)- विद्यमान सूचनाओं और आँकड़ों के विश्लेषण के आधार पर भविष्य के बारे में अनुमान लगाना ही पूर्वानुमान कहलाता है। इस प्रकार पूर्वानुमान भविष्य के बारे में जानकारी प्राप्त करने की कला है। पूर्वानुमान व्यावसायिक नियोजन का आधार होता है। इसके द्वारा भारी जोखिमों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है और संस्था उनका सामना करने के लिए सतर्क हो जाती है। विपणन प्रबन्ध को बिक्री पूर्वानुमान के आधार पर उन विक्रय क्षेत्रों की आसानी से जानकारी हो जाती है जिन पर अधिक नियन्त्रण रखने की आवश्यकता है।
  3. नीतियाँ (Policies)- नीतियाँ निर्धारित कार्य की रूपरेखा होती हैं जो संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किये जाने वाले कार्यों के मार्ग दर्शन के लिए स्थापित की जाती हैं। ये एक प्रकार की स्थायी योजना होती हैं जो सहायकों के लिए पथ-प्रदर्शन का कार्य करती हैं। ये बार-बार उदय होने वाली समस्याओं का स्थायी समाधान प्रस्तुत करती हैं। नीतियाँ एक सामान्य विवरण अथवा भावी कार्यविधि के विषय में सामान्य सहमति होती हैं। विपणन के सम्बन्ध में नीतियों के अनेक लाभ होते हैं जैसे – अधीनस्थ अधिकारियों का मार्ग दर्शन निर्णय में एकरूपता तथा संगतता लाना, संगठनात्मक संघर्षों की समाप्ति तथा अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों के समर्पण एवं विकेन्द्रीयकरण में सहायता मिलना आदि।
  4. कार्यविधि (Procedure)- कार्यविधि कार्यवाही भी मार्ग दर्शक होती है। दूसरे शब्दों में कार्यविधि वह विधि या तरीका है जिसके अनुसार कार्यवाही की जाती है। कार्यविधि के निश्चित हो जाने से संस्था में किये जाने वाले प्रयत्नों का क्रम निश्चित हो जाता है। विपणन कार्यविधि पहले से निर्धारित हो जाने से विपणन कार्यवाही में समानता आती है, निर्णय लेने में सरलता होती है और विभागीय सम्बन्ध अधिक सुदृढ़ हो जाते हैं।
  5. कार्यक्रम (Programme) – कार्यक्रम एक विशिष्ट योजना है जो किसी विशेष समस्या के समाधान के लिए बनाये जाते हैं। कार्यक्रम नीतियों तथा कार्यविधि के प्रकाश में बजट की सहायता से बनाये जाते हैं। ये कार्यक्रम अल्पकालीन अथवा दीर्घकालीन हो सकते हैं। ये सीमित क्षेत्र से विस्तृत क्षेत्र के लिए हो सकते हैं। विपणन के क्षेत्र में विज्ञापन, विक्रय संवर्धन आदि के सम्बन्ध में कार्यक्रम बनाये जाते हैं। ये कार्यक्रम संस्था की सम्पूर्ण क्रियाओं को प्रभावित करते हैं।
  6. अनुसूची (Schedule)- अनुसूची के अन्तर्गत यह निर्धारित किया जाता है कि कौन सा कार्य किस प्रकार और किस समय किया जायेगा। विपणन के क्षेत्र में विज्ञापन और विक्रय संवर्द्धन के कार्य किस-किस समय लागू किये जायेंगे, इसके लिए अनुसूची तैयार की जाती है ताकि उचित समय पर ये कार्यक्रम अपनाकर संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके।
  7. बजट (Budget)- बजट एक ऐसी योजना है जिसके अन्तर्गत विभिन्न क्षेत्रों के लिए प्रगति लक्ष्य निश्चित किये जाते हैं और इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए समय, धन और अन्य साधनों के व्यय के लिए अनुमान दिये जाते हैं। वास्तविक प्रगति से बजटीय प्रगति की तुलना करके प्रबन्धक यह जानकारी प्राप्त कर सकते हैं कि किन-किन क्षेत्रों में लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सका है, इसके लिए कौन-कौन उत्तरदायी हैं और इसके क्या-क्या विशेष कारण रहे हैं। अतः ये बजट नियन्त्रण कार्य में सहायक होते हैं। विपणन विभाग के अन्तर्गत विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलग-अलग बजट बनाये जाते हैं।
  8. नियम (Rules)- विपणन नियोजन प्रक्रिया में योजना का निर्णय करते समय निश्चित नियम बनाये जाते हैं। इन नियमों के आधार पर योजनाओं को क्रियान्वित किया जाता है। कुण्टज एवं ओ ‘डोनेल के अनुसार, “नियम योजनायें हैं जो आवश्यक क्रिया मार्ग बताते हैं तथा इनका चयन, अन्य योजनाओं की तरह विकल्पों में से होता है।”
  9. मोर्चाबन्दी (Strategies)- व्यावसायिक समय में प्रत्येक विपणन को आन्तरिक एवं बाह्य मोर्चाबन्दी करनी पड़ती है। मोर्चाबन्दी एक व्यावसायिक योजना है जो कि व्यवसाय में प्रतिद्वन्द्वियों की योजनाओं को ध्यान में रखकर तैयार की जाती है।

इस प्रकार विपणन नियोजन प्रक्रिया में उपुर्यक्त गर्णित विभिन्न तत्वों को ध्यान में रखकर ‘योजनाओं का निर्माण किया जाता है।

विपणन प्रबन्ध – महत्वपूर्ण लिंक

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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