जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting Climate in Hindi
जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting Climate in Hindi
किसी स्थान या प्रदेश की जलवायु को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं:
- अक्षांश अथवा विषुवत वृत्त से दूरी: विषुवत् वृत्त के निकटवर्ती स्थान, दूरस्थ स्थानों की अपेक्षा अधिक गर्म होते हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि विषुवत वृत्त पर सूर्य की किरणें हमेशा लगभग लम्बवत् पड़ती हैं। शीतोष्ण और ध्रुवीय कटिबंधों में सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं। किसी भी क्षेत्र में लम्बवत् किरणें तिरछी किरणों की अपेक्षा अधिक सकेन्द्रिक होती हैं। इसके अतिरिक्त तिरछी किरणों की अपेक्षा लम्बवत् किरणों को धरातल पर पहुंचने में वायुमण्डल की कम दूरी तय करनी पड़ती है। यही कारण है कि निम्न अक्षांशों में उच्च अक्षांशों की अपेक्षा तापमान ऊंचा रहता है। विषुवत वृत्त के निकट होने के कारण मलेशिया में इंग्लैंड (विषुवत वृत्त से दूर) की अपेक्षा अधिक गर्मी पड़ती है।
- समुद्र तल से ऊंचाई: पर्वतों पर मैदानों की अपेक्षा अधिक ठंड रहती है। शिमला अधिक ऊंचाई पर स्थित होने के कारण ही जालंधर की अपेक्षा अधिक ठंडा है यद्यपि दोनों नगर एक ही अक्षांश पर स्थित हैं। तापमान ऊंचाई बढ़ने के साथ घटता जाता है। प्रत्येक 165 मीटर ऊंचाई पर औसतन 1° सेल्सियस तापमान कम हो जाता है। इस प्रकार ऊंचाई पढन के साथ-साथ तापमान निरंतर कम होता रहता है।
- महाद्वीपीयता अथवा समुद्र से दूरी: पानी गर्मी का कुचालक है अर्थात यह बहुत देर में गर्म होता है और बहुत देर में ठंडा होता है। समुद्र के इस समकारी प्रभाव के कारण तट के निकट के स्थानों का ताप परिसर कम और आर्द्रता अधिक होती है। महाद्वीपों के आंतरिक भाग समुद्र के इस समकारी प्रभाव से वंचित रहते हैं। अत: वहां ताप परिसर अधिक और आर्द्रता कम होती है। उदाहरणार्थ मुम्बई और नागपुर दोनों नगर लगभग एक ही अक्षांश पर स्थित हैं, परंतु समुद्र के प्रभाव के कारण मुम्बई में नागपुर की अपेक्षा तापमान नीचे रहता है और अधिक वर्षा होती है।
- प्रचलित पवनों का स्वरूप: समद्र की ओर से आने वाली पवनें (अभितट पवनें) नमी से युक्त होती हैं और वे अपने मार्ग में पड़ने वाले क्षेत्रों में वर्षा करती हैं। महाद्वीपों के आंतरिक भागों से समुद्र की ओर आने वाली पवनें (अपतट पवनें) शुष्क होती हैं और वे वाष्पीकरण में सहायक होती हैं। भारत में ग्रीष्मकालीन मानसून पवनें समुद्र से आती हैं। अतः वे देश के अधिकांश क्षेत्र पर वरषा करती हैं। इसके विपरीत शीतकालीन मानसून पवनें स्थल भाग से आने के कारण सामान्यतया शुष्क होती हैं।
- मेघाच्छादनः मेघ विहीन मरुस्थलीय भागों में दिन के समय वायु के अत्यधिक गर्म होने के कारण छाया में भी ऊंचे तापमान पाए जाते हैं। रात के समय यह गर्मी धरातल द्वारा शीघ्र विकिरत हो जाती है। अत: मरुस्थलों मे दैनिक ताप परिसर अधिक होता है। इसके विपरीत बादलों से घिरे आकाश और भारी वर्षा के कारण तिरुवनन्तपुरम में ताप परिसर बहुत कम होता है।
- समुद्री धाराएं: समुद्री जल में तापमान और घनत्व की समानता बनाए रखने में समुद्र का जल एक स्थान से दूसरे स्थान को गतिमान रहता है। समुद्री धाराएं जल की गतियां हैं जो उच्च तापमान से निम्न तापमान तथा निम्न तापमान से उच्च तापमान की ओर एक निश्चित दिशा में बहती हैं। गर्म धाराएं तटवर्ती भागों के तापमान को बढ़ाकर कभी-कभी वर्षा में सहायक होती हैं (जबकि ठण्डी समुद्री धाराएं तटवती भागों का तापमान कम कर, कोहरा उत्पन्न करती हैं)। उत्तरी अटलांटिक महासागर में बजेन नामक बन्दरगाह (नार्वे) गर्म उत्तरी अटलांटिक महासागरीय प्रवाह के कारण जाड़े में बर्फ के जमने से बचा रहता है, यद्यपि क्यूबैक बन्दरगाह अपेक्षाकृत निम्न अक्षांशों में स्थित है। समुद्र की ओर से आनेवाली पवन गर्म धारा के उऊपर से गुजरते समय गर्म हो जाती है और आंतरिक भागों के तापमान को ऊचा कर देती है। इसी प्रकार ठण्डी धाराओं के ऊपर से गुजरने वाली पवनें ठण्डी होकर आतरिक भागों में तापमान को कम करके, कोहरा और धुंध उत्पन्न करती हैं।
- पर्वत मालाओं की स्थितिः पर्वत मालाएं हवाओं के रास्ते में प्राकृतिक अवरोध का कार्य करती हैं। समुद्र की ओर से आने वाली पवनें मार्ग में पर्वतों के आने पर ऊपर चढ़ने को बाध्य होती हैं। ऊपर चढ़ने पर तापमान गिरने लगता है और ये पवनाभिमुख ढाल वर्षा रहित होता है तथा वृष्टि छाया प्रदेश कहा जाता है। महान हिमालय वाष्प युक्त मानसून पवनों को तिब्बत जाने मे रुकावट पैदा करते हैं और उत्तर की ओर से आने वाली ठण्डी हवाओं को भारत में आने से रोकते हैं। इसी कारण से भारत के उत्तरी मैदानों में भारी वर्षा होती है जबकि तिब्बत, एक स्थायी वृष्टि छाया प्रदेश बना हुआ है।
- भूमि का ढाल एवं अभिमुखता: भूमि के मन्द दाल पर सूर्य की किरणों का संकेन्द्रण होने के कारण ऊपर की वायु का तापमान बढ़ जाता है। तीव्र ढाल पर किरणों के फैलने के कारण तापमान कम होता है। इसके साथ ही सूर्य के सम्मुख पड़ने वाले पर्वतीय ढाल वाले क्षेत्रों से अपेक्षाकृत गर्म होते हैं। हिमालय पर्वतमाला के दक्षिणी ढाल, उत्तरी ढालों की अपेक्षा अधिक गर्म हैं।
- मिट्टी की प्रकृति और वनस्पति आवरण: मिट्टी का गठन, संरचना एवं संघटन उसकी प्रकृति को बताते हैं। ये गुण अलग-अलग मिट्टियों में बदलते रहते हैं। पथरीली या रेतीली मिट्टी गर्मी की सुचालक होती है (जबकि काली चिकनी मिट्टी गर्मी को जल्दी सोख लेती है)। वनस्पति विहीन मिट्टियों से विकिरण तेजी से होता है। अतः मरुस्थल दिन में गर्म और रात में ठंडे होते हैं। वन विहीन क्षेत्रों की तुलना में वनों से ढके क्षेत्रों में ताप परिसर कम होता है।
इन प्रमुख कारकों के सम्मिलित प्रभाव के कारण उच्च अक्षांशों की पश्चिमी तटीय भूमियां पूर्वी तटीय भूमियों की अपेक्षा शीत ऋतु में गर्म रहती हैं। उपोष्ण कटिबन्धों के निकट निम्न अक्षांशों की पूर्वी तटीय भूमियां पश्चिमी तटीय भूमियों की अपेक्षा ग्रीष्म ऋतु में गर्म रहती हैं। महाद्वीपों के सीमान्तों पर सामान्यतया अनुसमुद्री जलबायु पाई जाती है। महाद्वीपों के आंतरिक भागों में महाद्वीपीय जलवायु पाई जाती है।
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