पूर्व पाषाण काल

पूर्व पाषाण काल (Pre-Paleolithic Period)- ग्राम्य खानाबदोशी (Pastoral Nomadism)- अवधि, औजार, मानव की दिनचर्या

पूर्व पाषाण काल (Pre-Paleolithic Period)- ग्राम्य खानाबदोशी (Pastoral Nomadism)- अवधि, औजार, मानव की दिनचर्या

पूर्व पाषाण काल – प्रस्तावना (Introduction)

इस समय से हमें मनुष्य के हाथों द्वारा निर्मित पत्थर के तथा अन्य प्रकार के बहुत से औजार मिलते हैं, जो हमें पृथ्वी के तत्कालीन स्वामी अर्थात् हमारे पूर्वजों की क्षमता तथा उनके जीवन के सम्बन्ध में प्रचुर प्रकाश डालते हैं। पृथ्वी पर अधिकाधिक विकसित मस्तिष्क वाले मनुष्य पैदा हो रहे थे। जावा का मनुष्य, पेकिंग का मनुष्य, हाइडलबर्ग का मनुष्य, पिल्टडाउन का मनुष्य, निअण्डर्थल का मनुष्य, क्रोमोग्नन मानव और रोडेशियन मानव का इतिहास इस बात की पुष्टि करता है कि इस काल में मनुष्य धीरे-धीरे अधिकाधिक बुद्धि सम्पन्न होता जा रहा था ।

प्राचीन मानव की सभ्यता और उसके इतिहास का काल विभाजन उनके औजारों के आधार पर किया जाता है। प्राचीन काल में मनुष्य पत्थर के औजार बनाता था, अत: इतिहास के इस काल को पाषाण-काल कहा जाता है। इस काल में आरम्भ में जो पत्थर के औजार बनते थे, उनको न ठीक से काटा-छाँटा जाता था और न उन्हें चिकना किया जाता था। इस काल के अनगढ़ औजारों के आधार पर ही इसे पूर्व पाषाण काल (Pre-Paleolithic Period) कहा जाता है। किन्तु धीरे-धीरे अच्छे किस्म के औंजार बनने लगे। इनको रगड़ वा घिस कर पैना कर लिवा जाता था और उनका रूप भी औजार जैसा दिखाई पड़ता था। इसी आधार पर इस काल को नव पाषाण काल (Ncolithic Age) कहा जाता है। सम्पूर्ण पाषाण काल सामान्यतया लगभग पाँच लाख वर्ष ई. पू. से लगभग 5000 वर्ष ई. पु. तक माना जाता है।

नोट्स- प्राचीन मानव की सभ्यता और उनके इतिहास का काल विभाजन उनके औजारों के आधार पर किया जाता है।

पूर्व पाषाण काल (Pre-Paleolithic Period)

अवधि

पूर्व पाषाण काल बहुत लम्बा था। मानव जातियों के अवशेष पाँच लाख वर्ष पुराने भी पाये गए हैं इन अवशेषों में उषा-पाषाण (Eoliths) भी मिलते हैं, जो बड़े महत्त्वपूर्ण हैं। यह काल एक नाटक के समान था जिसमें बार-बार पर्दा गिरता और उठता था और हर नवीन दृश्य में नवीन पात्र उपस्थित होते थे। ये अवशेष हमें यह बतलाते हैं कि मानव की शुरू की जातियाँ उत्पन्न हो रही थीं, बढ़ रही थों तथा नष्ट हो जाती थीं। इस काल के अन्त में सपिअन मानव रंगमंच पर आया। यह उन्नति करता गया। धीरे धीरें उसकी उन्नति इतनी अधिक हो गई कि वह पाषाण के हृथियारों और औजारों पर निर्भर न रहा। उसने खेती, कपड़ा बुनना आदि ऐसे नये काम आरम्भ कर दिये कि पूर्व पाषाण काल ही समाप्त हो गया और नव पाषाण काल आरम्भ हो गया। यह घटना दस-बारह हजार वर्ष पहले की है। इस प्रकार पूर्व पाषाण काल अब से लगभग पाँच लाख वर्ष पहले आरम्भ हुआ और लगभग दस-बारह हजार वर्ष पहले समाप्त हो गया।

पूर्व पाषाण काल के औजार

हाइडलबर्ग मानव के हथियार और औजार पहले के मानव के औजारों से कहीं अधिक विशाल थे। इस मानव के समय का एक विचित्र औजार मिला है; यह है एक हाथी की छेददार हड्डी जिसको घिसकर बल्ले के समान बनाया गया है।

इंग्लैंड में पिल्टडाउन में जिस मानव की खोपड़ी तथा जबड़े की हड्डी मिली थी उसके हथियार पहले के हथियारों से अच्छे, भली प्रकार घिसे हुए और चिकने हैं। इस मानव के अवशेषों के साथ गेंडे के दाँत, हिप्पों की अस्थियाँ और हिरन की टाँगों की हड्डियाँ भी मिलीं जिनसे इस ‘उषा मानव’ (Dawn Man) के जीवन की झाँकी दिखलाई पड़ती है।

इस उषा मानव के पश्चात् का कोई और मानव- अवशेष हमें सहस्रों वर्ष तक नहीं प्राप्त होता, परन्तु हथियारों-औजारों के अवशेष प्राप्त होते हैं जिनमें क्रमश: होती हुई उन्नति स्पष्ट है। ये सब अवशेष पाषाण ही के हैं इन औजारों में पत्थर के चाकू, छेद करने व खुरचने के औंजार, फेंककर मारने के पत्थर आदि स्पष्ट और सुघड़ दिखाई पड़ने लगते हैं।

इस प्रकार अब हम 50,000 या 60 000 वर्ष पहले मानव के हथियारों और अवशेषों तक आ पहुंचते हैं। यह काल नेअण्डर्थल मानव (Homo Neanderthalensis) का काल है। इस समय मानव गुफाओं में निवास करने लगा था जहाँ इसके और इसकी वस्तुओं के अनेक अवशेष मिले हैं इस काल के मानव को अग्नि जलाना और उसकी रक्षा करना आता था।

केवल नेअण्डर्थल मानव ही गुफाओं में रहने वाला प्राणी नहीं था उस काल के शेर रोछ, बाघ आदि भी गुफाओं में घुस कर विश्राम करना चाहते थे परन्तु मानव के पास सबसे बड़ा शस्त्र था आग। इस आग से डराकर वह इन पशुओं को सरलता से गुफाओं से निकाल बाहर कर सकता था तथा फिर उन्हें बाहर ही रहने पर बाध्य कर सकता था। गुफाओं के भीतर प्रकाश करने के लिए मशालें थीं उस काल का मनुष्य गुफा के द्वारों पर लकड़ी आदि से रोक लगा लेता था जिससे भयानक पशु बाहर ही रहें। गुफा के द्वार पर भी आग जला देता था ताकि जंगली पशु गुफा में न घुसें। गुफा में वह अपने काम के औजार इंधन और भोजन एकत्रित रखता था। इन औजारों में लकड़ी के भाले, मुग्दर और पाषाण के नुकीले टुकड़े थे । ऐसा प्रतीत होता है कि वह पत्थर की कुल्हाड़ियों का भी प्रयोग करता था।

नेअण्डर्थल मानव के लगभग साथ ही साथ सपिअन मानव का विकास हो रहा था। स्पिअन मानव के शस्त्रास्त्र और औजार आदि अधिक सुघड़ थे। वे पाषाण के बने हुए, परन्तु बड़े चिकने थे। हड्डिओं की बनी सुइयाँ, पिन, भाले, हारपून, फेंकने के दंड, बूमरेंग जैसे प्रारम्भिक अस्त्र आदि अद्भुत कारोगरी से युक्त थे। इन औजारों तथा गुफाओं की दीवारों पर चित्रकला का समारम्भ दिखाई पड़ता है।

सपिअन मानव के सम्बन्ध में कहा जाता है कि इसने धनुष-बाण भी बना लिए थे। अनुमान है कि पूर्व पाषाण काल के लगभग अन्त में धनुष-बाण का प्रयोग आरम्भ हुआ होगा। कुल्हाड़ी का प्रयोग होता था, इस बात के प्रमाण हैं। इस समय मानव को पत्थरों व हड्डियों में छेद करने की विधि का भी ज्ञान हो चुका था। कोमाग्नान मानव तो औजार बनाने की कला में काफी दक्ष हो गया था। उसने कुछ ऐसे औजार बना लिए थे जिनकी मदद से वह पत्थरों को घिस कर उन्हें चिकना और पैना बना लेता था या पत्थरों में छेद कर लेता था ।

औजारों के विकास के दृसरे चरण में बड़े नुकीले, कई-कई नोक वाले, लम्बे, बड़े और तेज धार वाले औजार बनने लगे। भाले, बर्छी आदि ऐसे ही औजार थे। इन औजारों से जहाँ मानव को अपनी रक्षा करने में अधिक सामर्थ्य प्राप्त हो गया वहीं उसे शिकार में भी अधिक सुविधा प्राप्त हो गई।

पूर्व पाषाण काल के मानव की दिनचर्या-

वद्वानों ने तत्कालीन मानव के अनेक अवशेषों और शस्त्रास्त्रों-औजारों को देखकर उसके जीवन के विषय में अनुमान लगाकर उसका सजीव वर्णन किया है। इस वर्णन से हमें मानव-जीवन के आरम्भिक रूप का पता चलता है और हम यह समझ सकते हैं मानव के सामने उन्नति का कितना लम्बा मार्ग था, जो उसे तय करना था।

तत्कालीन मानव घड़े या मिट्टी के अन्य बर्तन बना नहीं सकता था। अत: वह पानी भर कर नहीं रख सकता था। इसलिए पानी पीने के लिए उसे नदी या झरने पर जाना पड़ता था। ऐसी स्थिति में उसने नदी या झरने के आस-पास ही अपने रहने या उठने-बैठने के स्थान बनाये थे वह घर बनाना भी नहीं जानता था। अत: गुफाओं में रहता था। बैठने या रहने के स्थान के बीच अग्नि जला देता था क्योंकि उन दिनों ठंडी हवा चलती रहती थी और रात को पाला पड़ता था। अग्नि ही उसे भयानक जीवों से बचा सकती थी मानव-झुण्ड के सब सदस्य बच्चे, स्त्रियाँ और झुण्ड का पुरुष नेता-पत्तों और बारीक टहनियों के बने फर्श पर अग्नि के समीप बैठकर काम करते थे । स्त्रियाँ खालों  मांस साफ करती थीं, पुरुष पाषाण के टुकड़ों को नुकीला बनाते थे। स्त्रियाँ और बच्चे मिलकर ईंधन इकट्ठा करते थे।

झुण्ड का नेता केवल पुरुष होता था, शेष स्त्रियाँ, कन्याएँ और बालक होते थे जैसे ही कोई बालक बड़ा हो जाता था, पुरुष नेता उसे मार डालता था वा झुण्ड से निकाल देता था। ऐसे निकाले हुए पुरुषों के साथ कभी-कभी कन्याएँ भी चली जाती थीं। जब पुरुष नेता चालीस वर्ष या उससे अधिक अवस्था तक पहुंच कर दुर्बल हो जाता था तो झुंड का कोई नवयुवक उसको मारक स्वयं झुड का नेता बन जाता था।

भोजन- आदिम काल का मानव पहले शाकाहारी था अनेक प्रकार के वृक्षों के फल -फूल और कंद आदि खाकर वह गुजारा करता था। कुछ पौधों की जड़े नरम तथा स्वादिष्ट होती थीं। अत: इनके प्रति उसका विशेष अनुराग था। वह शहद की मक्खियों के छत्ते तोड़ कर उनमें से शहद खा जाता था शहद उसका सुस्वाद भोजन था। इस प्रकार वह पूर्णतः शाकाहारी था। किन्तु आगे चलकर वह पक्षियों के अंडे, घोंधे, मेंढक, केकड़े और मछलियों को पकड़ कर खाने लगा। ये चीजें उसे थोड़ा परिश्रम करने के बाद मिल जाया करती थीं।

शिकार- धीरे-धीरे मनुष्य पत्थर के औजार बनाने तथा उनका इस्तेमाल करने लगा। इन औजारों का इस्तेमाल वह अपनी रक्षा के अलावा शिकार के लिए भी करता था अपने पत्थर के औजारों से वह छोटे-बड़े पक्षियों और जानवरों को मार कर खा लेता था। बड़े पक्षियों के शिकार में कई मनुष्यों की जरूरत पड़ती थी। ऐसे अवसर पर वे एक साथ मिलकर शिकार करते व बाद में उसे बाँटकर अपना पेट भरते थे। अब मनुष्य शिकारी जीवन व्यतीत करने लगा। शिकार के काम में रुचि बढ़ने पर मनुष्य ने अच्छे, बड़े, तेज धार वाले और अधिकाधिक सुधरे औजार बनाने आरंभ कर दिये। प्राय: ऐसा होता था कि दिन भर तलाश करने के बाद कोई शिकार हाथ न आता था, या जो शिकार मिलता था, उससे पेट न भरता था, ऐसी स्थिति में मनुष्य मरे हुए पशुओं के सड़े-गले शव भी खा जाता था कभी-कभी भूख में वह हड्डियों को भी चबा जाता था।

अभी तक मनुष्य अपना भोजन एकत्र करके नहीं रखता था क्योंकि वह बर्तन वगैरह नहीं बना पाया था। रोज शिकार करना और पेट भर लेना उसका नियम था।

आग का ज्ञान- आरम्भ में आदिम मानव को आग का ज्ञान नहीं था ज्वालामुखी पर्वतों से निकलते हुए लावे को देखकर डर जाता था। जंगल में आग लग जाने पर वह भौंचक्का हो जाता था। वह समझ नहीं पाता था कि यह सब क्या है। किन्तु कालान्तर में वह आग के उपयोग को समझ गया। आग के उपयोग ने उसके जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन कर दिया, किन्तु सबसे पहले आग की उपयोगिता का ज्ञान उसे कैसे हुआ? हो सकता है कि कभी अनायास ही उसने दो पत्थरों को आपस में रगड़ दिया हो और उसमें से निकली चिंगारी ने उसे आग पैदा करने की कला सिखा दी हो। या ऐसा भी हो सकता है कि जंगल में लगी आग में जले हुए किसी पक्षी या जीव को मनुष्य ने खाया हो और बह उसे बहुत स्वादिष्ट लगा हो। अत: वह जंगल की आग में से कुछ जलता भाग उठाकर अपने रहने की गुफा में ले आया हो।

आग मनुष्य के जीवन में बड़ी उपयोगी थी। मनुष्य अपनी गुफा में और गुफा के बाहर भी आग जलाये रहता था। गुफा के भीतर आग से उसे प्रकाश मिलता था और गर्मी मिलती थी, जो उसे ठंड से बचाती थी। गुफा के बाहर आग होने से वहाँ जंगली जानवर नहीं आते थे। इस प्रकार मनुष्य की जंगली जानवरों से भी रक्षा हो जाती थी इसके अतिरिक्त आग का ज्ञान हो जाने के कुछ समय बाद मनुष्य ने अपना भोजन आग में पकाकर खाना शुरू कर दिया। आग का ज्ञान मनुष्य के विकास में अत्यन्त उपयोगी तथा महत्त्वपूर्ण चरण था।

निवास स्थान- पूर्व पाषाण काल का मनुष्य मकान नहीं बना सकता था। उसे प्रकृति की शक्तियों से भय लगता था। जंगली जानवरों से उसे अपनी जान का खतरा था। शीत की मार उसे बहुत तकलीफ देती थी। अत: आरम्भ में मनुष्य ने गुफाओं में रहना उपयुक्त समझा। गुफाओं में भी वह बहुत अन्दर की ओर नहीं जाता था क्योंकि वहाँ घना अंधेरा रहता था। गुफा-जीवन में भी उसे जंगली जानवरों का खतरा रहता था क्योंकि सर्दी से बचने के लिए जंगली जानवर भी गुफा में चले जाते थे। अत: मनुष्य गुफा के द्वार पर लकड़ी के टुकड़े या बड़ी-बड़ी डालें लगा देता था ताकि जंगली जानवर अन्दर न घुस सकें। फिर भी उसे हमेशा भय ही रहता था।

आग का ज्ञान होने के बाद उसे बड़ी सविधा हो गई। अब उसकी गफा में प्रकाश हो गया। जंगली जानवर भी आग के डर के मारे गुफा के पास नहीं जाते थे। मनुष्य को शीत से बचने का उपाय भी मालूम हो गया। अब मनुष्य गुफा से बाहर भी रहने लगा। प्राय: किसी पानी वाले स्थान के पास भी वे खुले में आग जलाकर रहने लगते थे। यहाँ भी आग उन्हें सर्दी और जंगली जानवरों से बचाती थी।

वस्त्र- उस समय मनुष्य को कपड़े का ज्ञान होने का प्रश्न ही नहीं पैदा होता। मनुष्य एकदम नंगा रहता था। आगे चलकर उसने पेड़ों की पत्तियों और छाल से अपने शरीर को ढकना शुरू किया। अभी उसकी शीत की समस्या हल नहीं हुई थी। तभी मनुष्य ने पशुओं की खाल को अपने शरीर पर लपेटना शुरू किया। कुछ समय बाद उसने खाल को सीने के लिए सूई जैसा एक औजार भी बनाया इस प्रकार वह खाल के कपड़े पहनने लगा।

आदिम मानव की चित्रकारी- पूर्व पाषाण काल का मानव कला के प्रति भी रुचि रखता था उसकी कला के दो उद्देश्य हो सकते हैं। कुछ विद्वानों की राय है कि वह प्रायः ऐसे जानवरों के चित्र बनाता था, जिनका वह शिकार करता था। इस काल के मानब का विश्बास था कि चित्र बनाने से उसे अधिकाधिक शिकार मिलने लगेगा। कुछ विद्वानों की राय है कि इन चित्रों के पीछे कोई प्रयोजन नहीं होता था। अपने खाली समय में वह ऐसे पशुओं के चित्र खींच डालता था, जो उसके जाने-पहचाने होते थे। उनके चित्र उस जमाने को देखते हुए, बड़े सुन्दर थे। क्रोमाग्नन मानव द्वारा बनाए गए चित्र गुफाओं में पाये गए हैं । मीरा की गुफाओं में आदिम मानव द्वारा बनाए गए बैल , घोड़े, सुअर आदि के चित्र मिले हैं । इनमें कुछ चित्रों में रंग भी भरे हुए हैं कुछ चित्र (Skelch) मात्र हैं और कुछ पूरे हैं। पेड़-पौधों के भी कुछ चित्र हैं। इसके अतिरिक्त इस काल के मनुष्य ने अपने भालों में भी उन पशुओं के चित्र बनाए हैं जिनका वह शिकार करता था। पशुओं की हड्डियों और उनके सींगों पर भी अंकित चित्र मिले हैं। जॉन एस. हालैण्ड नामक इतिहासकार का कहना है कि ‘अनेक चित्र, जो गुफाओं के तीसरे भाग में पाये गए हैं। शायद धार्मिक प्रेरणा से बनाये गए हों, बहुत सुन्दर ढंग से बने हैं। उनमें रंग भरे हुए हैं और बड़े सजीव हैं ।’

पूर्व पाषाण युग का मनुष्य शायद यह भी मानता रहा होगा कि जिस औजार पर वह पशुओं के चित्र बनाएगा, उस औजार से वह अधिकाधिक शिकार कर पायेगा।

मूर्तियाँ- तत्कालीन मानव द्वारा ब्रनाई हुई मिट्टी पत्थर और हाथी के दाँत की कुछ मूर्तियाँ भी मिली हैं। इन मूर्तियों या प्रतिमाओं के रूप-नक्श तो साफ नहीं हैं लेकिन अनुमान है कि ये मूर्तियाँ ही हैं। ये सब बातें तत्कालीन मानव की कलाप्रियता का प्रमाण हैं।

आभूषण- अपने को सजाने और सँवारने की प्रवृत्ति मनुष्य में जन्मजात होती है। आदिम मानव में भी यह प्रवृत्ति थी। अपने साधनों से वह अपने को सजाता-सँवारता था पत्थर हड्डियाँ, सीपियाँ, घोंधे, शंख और सींग ही उन दिनों उपलब्ध थे। इन्हीं से बह अपने को सजाता था। अस्त्र शस्त्र भी एक प्रकार से उसके आभूषण ही थे। सीपियों, घोघों, शंख और सींगों को वह कभी-कभी पिरो कर उनकी माला भी बना लेता था। सुई की शक्ल जैसा उसका एक औजार होता था, जो उसके खाल के कपड़े सीने के साथ ही माला बनाने के काम भी आता रहा होगा।

धर्म और विश्वास- धर्म की भावना का सम्बन्ध ईश्वर से होता है। पूर्व पाषाण काल का मनुष्य ईश्वर के बारे में न कुछ जानता था और न समझता था। किन्तु प्रकृति के कार्यों को देखकर उसे आश्चर्य और विस्मय अवश्य होता था। बिजली की कड़क, आँधी-तृफान, भीषण पशु. वन की आग, प्रकाश और अंधकार उसे भय और आशंका से भर देते थे। वह ईश्वर की बात तो सोच नहीं सकता था, अत: प्रकृति के इन कायों को देखकर किसी अज्ञात शक्ति से भयभीत हो उठता था।

आदिम मानव में धर्म और विश्वास जैसी कोई चौज नहीं थी । किन्तु प्रकृति के प्रति जिज्ञासा तथा आतंक की भावना उसमें अवश्य थी। वह जादू-टोने में विश्वास करता था लोगों का ख्याल है कि वह चित्र और मूर्तियाँ भी टोने के रूप में ही बनाता था। आदिम मानव के चित्रों में किसी देवी या देवता के चित्र नहीं मिले हैं। इन चित्रों के संबंध में उसका विश्वास था कि उसे शिकार करने में अधिकाधिक सफलता मिलेगी। शिकार ही उसका एकमात्र आर्थिक कार्य था। अत: उसमें सफलता प्राप्त करने के लिए बनाए गये चित्रों को हम जादू-टोने या अन्धविश्वास वाले चित्र ही कह सकते हैं।

इसी प्रकार का एक अन्य अन्धविश्वास उनमें यह था कि वे मरे हुए व्यक्ति के शरीर पर एक लाल रंग का पाउडर-सा छिड़कते थे। शायद उनका यह विश्वास था कि इस पाउडर के छिड़कने से मृतक फिर से जीवित हो जाएगा। ये अपने मृतक को बड़ी अच्छी तरह से दफनाते थे। मृतक के शव के साथ भोजन की वस्तुएँ और अस्त्र-शस्त्र भी रख देते थे। शव के साथ इन वस्तुओं के रखने के पीछे क्या उद्देश्य था, यह बता सकना कठिन है। किन्तु वे शायद यह विश्वास करते होंगे कि ये वस्तुएँ मृतक के अगले जन्म में काम आयेंगी । वे सम्भवत: पुनर्जन्म में विश्वास करते रहे होंगे।

सामुदायिक भावना- इस काल में मनुष्य समूह या समुदाय में रहता था समूह या समुदाय में रहने का कारण यह नहीं था कि इस काल में मनुष्य बड़ा सभ्य और सुसंस्कृत हो गया था वास्तव में अकेले रहने में उसे डर लगता था। मुख्यत: विशालकाय जंगली जानवरों से उसे अपनी जान का खतरा रहता था ये जंगली जानवर प्राय: झुण्डों में रहते थे। हो सकता है कि उन्हीं की देखा-देखी मनुष्य भी समूह में रहने लगे हों। वैसे भी अकेले रहने की अपेक्षा समूह में रहकर वे अपने को अधिक सुरक्षित समझते रहे होंगे। इसके अतिरिंक्त इन विशाल जानवरों का शिकार भी कोई अकेला मनुष्य नहीं कर सकता था। कुछ व्यक्तियों का समूह ही चारों तरफ से आक्रमण करके उनका शिकार कर सकता था। इसलिए भी समूह में रहना आवश्यक था। यही नहीं यदि उनकी गुफा में कोई जंगली पशु घुस आता था, तो उसे भगाने के लिए भी कई व्यक्तियों की आवश्यकता होती थी। इन सब बातों के परिणामस्वरूप उन्होंने समूह में रहना अपने लिए अच्छा समझा। अपने मारे हुए शिकार को वे बाँट कर खाते थे बस यहीं तक उनमें सामुदायिक भावना थी।

पूर्व पाषाण काल में मनुष्य का कोई घर, परिवार या उनकी कोई सम्पत्ति नहीं होती थी।  गुफायें ही उनके मिले-जुले घर थे। समूह ही उनका परिवार था। पत्थर हाथीदाँत या सींग की वस्तुएँ ही उनकी सम्पत्ति थीं। उनमें विवाह आदि की भी कोई प्रथा नहीं थी। उस काल में मनुष्य को बोलना नहीं आता था। कई बार वे चिल्ला उठते थे किन्तु उसका कोई अर्थ किसी की समझ में नहीं आता था। शायद इशारे या संकेत से वे अपने बीच बातचीत करते रहे हों या अपनी बात दूसरों को समझाते रहे हों।

सारांश (Summary)

  • प्राचीन मानव की सभ्यता और उसके इतिहास का काल विभाजन उनके औजारों के आधार पर किया जाता है।
  • पूर्व पाषाण काल अब से लगभग पाँच लाख वर्ष पहले आरम्भ हुआ और लगभग दस-बारह हजार वर्ष पहले समाप्त हो गया।
  • इस समय मानव गुफाओं में निवास करने लगा था जहाँ इसके और इसकी वस्तुओं के अनेक अवशेष मिले हैं। इस काल के मानव को अग्नि जलाना और उसकी रक्षा करना आता था।
  • सपिअन मानव के सम्बन्ध में कहा जाता है कि इसने धनुष-बाण भी बना लिए थे। अनुमान है कि पूर्व पाषाण काल के लगभग अन्त में धनुष-बाण का प्रयोग आरम्भ हुआ होगा।
  • तत्कालीन मानव घड़े या मिट्टी के अन्य बर्तन बना नहीं सकता था। अत; वह पानी भर कर नहीं रख सकता था। इसलिए पानी पीने के लिए उसे नदी या झरने पर जाना पड़ता था।
  • आदिम काल का मानव पहले शाकाहारी था। अनेक प्रकार के वृक्षों के फल-फूल और कंद आदि खाकर वह गुजारा करता था।
  • मनुष्य अपना भोजन एकत्र करके नहीं रखता था क्योंकि वह बर्तन वगैरह नहीं बना पाया था रोज शिकार करना और पेट भर लेना उसका नियम था ।
  • आग का ज्ञान मनुष्य के विकास में अत्यन्त उपयोगी तथा महत्त्वपूर्ण चरण था।
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