जनशक्ति का विकास शिक्षा के विकास पर निर्भर है? | Development of manpower is dependent on development of education in Hindi
जनशक्ति का विकास शिक्षा के विकास पर निर्भर है? | Development of manpower is dependent on development of education in Hindi,
शिक्षा से प्राप्त आर्थिक लाभ को प्रायः उस वेतन या अर्थ प्राप्ति या सुविधाओं के मूल्य से आंका जाता है जिसे कोई शिक्षित व्यक्ति व्यवसाय में लगने के बाद अपने श्रम के मूल्य के रूप में प्राप्त करता है लेकिन अर्थशास्त्रियों रूपरेखा में शिक्षा से प्राप्त आर्थिक लाभ का आकलन इतना सरल नहीं। वस्तुतः अशिक्षित व्यक्ति की आय को शिक्षित व्यक्ति की आय से घटाकर शेष को शिक्षा का आर्थिक मान कहा जाता है। परन्तु यह एक बहुत मोटा तथा असंतोषप्रद ढंग से है, क्योंकि इसमें शिक्षा से प्राप्त उन अप्रत्यक्ष आर्थिक लाभों को सम्मिलित नहीं किया गया जो काफी महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि शिक्षा में प्रयुक्त साधन सामग्री का तो आर्थिक इकाइयों में मूल्यांकन किया जा सकता है, लेकिन शिक्षा से प्राप्त सभी परिणामों का नहीं। इसके तीन मुख्य कारण हैं। (जनशक्ति का विकास शिक्षा के विकास पर निर्भर है)
(1) शिक्षा के प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ न गुणों में निश्चित है और न मात्रा में।
(2) शिक्षा के आर्थिक लाभ अधिक भविष्यगत होते हैं।
(3) शिक्षा अधिकांश प्रक्रिया-दशा में अनुत्पादक होती है।
ऐसी दशा में शिक्षा पर किया जाने वाला व्यय अन्य प्रकार के विकास के लिए किये जाने वाले व्यय से कम महत्वपूर्ण और कम अनिवार्य प्रतीत होता है। यह जनिवार्यता तभी बढ़ सकती है जबकि देश के अन्य अधिक आवश्यक क्षेत्रों में प्रयुक्त व्यय में ये यथेष्ट धन जनकल्याण और जनविकास के लिए बचा रह जाए।
कोई भी देश अपने आर्थिक साधनों के उपभोग में तीन प्रकार की योजनाओं को प्राथमिकता देता है।
(1) संकटापन्न अवस्था को दूर करना।
(2) भोजन और वस्त्र की उपलब्धि बढ़ाना।
(3) समाज कल्याण
उपरोक्त तीन प्रकार की योजनाओं की अनिवार्यता की मात्रा के अनुसार राष्ट्रीय एवं सामाजिक स्तर पर नहीं बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर भी शिक्षा व्यय की मात्रा में हेर-फेर होता रहता है। इसीलिए शिक्षा की राष्ट्रीय पूँजी निर्माण की क्षमता का भी समुचित मूल्यांकन नहीं हो पाता। ऐसी दशा में आर्थिक साधनों के उपयोग की उपरिलिखित प्रकृति के कारण किसी भी राष्ट्र के सामने शैक्षिक विस्तार के कार्यक्रम को क्रियान्वित करते समय बहुत से प्रश्न उठ खड़े होते हैं। ये प्रश्न विकासमान देशों में और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं। जहाँ विकास सभी क्षेत्र में जल्दी से जल्दी होना है। ऐसे राष्ट्र में सभी क्षेत्रों में एक साथ विकास करने में अनेक कठिनाइयाँ होती हैं, जिनमें से दो प्रमुख है। एक तो भौतिक साधनों के पूर्ण उपयोग के लिए तकनीकी एवं वैज्ञानिक साधनों तथा उपकरणों की कमी और दूसरे इन यंत्रों का भली-भांति प्रयोग की योग्यता में कमी। इसलिए राष्ट्र में जो भौतिक साधन उपलब्ध भी हैं। उन्हें भली-भाँति उत्पादक बनाने में कठिनाई होती है और उसके अनुत्पादक रहने से राष्ट्रीय पूँजी का निर्माण नहीं हो पाता। इसका सीधा प्रभाव राष्ट्रीय आय पर पड़ता है जिसका उपयोग सामाजिक विकास के कार्यक्रम के लिए आवश्यक है।
प्रायः इस सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण तथ्य स्पष्ट है कि विकासशील देशों में में भौतिक पूँजी की कमी तो है पर जनशक्ति का आधिक्य है और यह स्पष्ट है कि औद्योगिक एवं तकनीकी विकास के लिए भौतिक दक्षता से अधिक मानवीय क्षमताओं के समुचित विकास और प्रयोग पर बहुत कुछ निर्भर करती है। जनशक्ति के समुचित विकास और उपयोग के द्वारा सर्वांगीण सामाजिक विकास किस प्रकार सम्भव है इसकी पुष्टि के लिए विकसित देशों में रूस, अमरीका, जापान, डेनमार्क आदि का उदाहरण दिया जा सकता है।
अतः स्पष्ट है कि जनशक्ति का यथोचित विकास शैक्षिक विकास में निहित है। यह तथ्य विकसित देशों में विकास और शिक्षा के स्तर में वृद्धि करने से ही समृद्धि में वृद्धि हो सकती है। इस सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि अन्य क्षेत्रों में विकास का प्रभाव तभी परिलक्षित होता है जब शिक्षा के विकास का प्रभाव अधिक प्रसारी एवं बहुमुखी होता है।
शिक्षा की इस विकासात्मक विशेषता को आधुनिक अर्थशास्त्री तीन रूपों में विश्लेषित करते हैं-
(1) शिक्षा को पूँजी -निर्माण की प्रक्रिया के रूप में।
(2) शिक्षा का जनशक्ति की उत्पादकता की वृद्धि के साधन के रूप में।
(3) शिक्षा को दीर्घकालीन निवेश के रूप में।
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