प्रयास एवं त्रुटि सिद्धान्त के शैक्षिक निहितार्थ

प्रयास एवं त्रुटि सिद्धान्त के शैक्षिक निहितार्थ | उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त के शैक्षिक निहितार्थ

प्रयास एवं त्रुटि सिद्धान्त के शैक्षिक निहितार्थ | उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त के शैक्षिक निहितार्थ

प्रयास एवं त्रुटि सिद्धान्त के शैक्षिक निहितार्थ

उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धान्त ‘करके सीखने’ (Learning by doing) की विधि है। इसीलिए इसे ‘प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त’ (Theory of trial and Error) भी कहा जाता है। यह सिद्धान्त इस बात पर बल देता है कि सीखने के लिए क्रिया करना आवश्यक है। ‘करके सीखने’ में बालक को स्वयं प्रयत्न करने एवं भूलों को सुधारने का अवसर मिलता है। कुछ मनोवैज्ञानिकों का यह मानना है कि बिना कोई क्रिया किये केवल अनुकरण से ही सीखना सम्भव नहीं होता है। एक छोटा बालक भी अनुकरण करते समय उस कार्य को करने के लिए प्रयास करता है। इस तरह से कार्य करने में प्रारम्भ में उसकी क्रियाओं में त्रुटियां होती हैं जिसे वह पुनः प्रयास करके दूर करता है। बच्चे बोलना और चलना इसी प्रकार सीखते हैं। भाषा, गणित, एवं विज्ञान जैसे विषयों के अध्ययन-अध्यापन में इस विधि का विशेष महत्व है। प्रयोगात्मक कार्य, प्रयोगशाला विधि, प्रोजेक्ट विधि आदि इसी सिद्धान्त पर आधारित हैं। इन सभी में ‘करके सीखने’ अर्थात् प्रयास एवं त्रुटि के आधार पर सीखने को महत्व प्रदान किया जाता है। अतः शिक्षा के क्षेत्र में प्रयास एवं त्रुटि या ‘उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धान्त’ की उपयोगिता बहुत अधिक हैं इस सिद्धान्त के शैक्षिक निहितार्थों को निम्नलिखित रूपों में स्पष्ट रूप से देखा और समझा जा सकता है।

  1. उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धान्त अभ्यास द्वारा करके सीखने को महत्वपूर्ण मानता है। अभ्यास के द्वारा सीखा हुआ ज्ञान स्थायी एवं दृढ़ होता है। अतः कक्षा – शिक्षण में अभ्यास पर बल दिया जाना चाहिए।
  2. यह सिद्धान्त सीखने में अभिप्रेरणा को महत्व प्रदान करता है। अधिगम में अभिप्रेरकों जैसे प्रोत्साहन (Incentive) पुरस्कार, दण्ड, प्रशंसा, स्वीकारोक्ति आदि का बहुत प्रभाव पड़ता है।
  3. प्रयास एवं त्रुटि विधि एक तरह से सुधार की विधि है। इसमें बालक को पहले की गई गलतियों को सुधारने या दूर करने का अवसर मिलता है। अतः इस प्रकार पुनःप्राप्त अवसर एवं अनुभव से वह भविष्य में लाभ उठाता है।
  4. यह सिद्धान्त अभ्यास पर आधारित होने के कारण बालकों में परिश्रम एवं धैर्य जैसे महत्वपूर्ण गुणों के विकास में सहायक होता है।
  5. इस सिद्धान्त के अंतर्गत शिक्षक बालकों को एक बार असफल होने पर पुनः प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करता रहता है जिससे उनमें हीन भावना नहीं आती है।
  6. इस विधि में बालक स्वयं करके सीखता है। अतः उसमें आत्मविश्वास एक आत्मनिर्भरता जैसे गुणों का विकास सहजता से हो जाता है।
  7. पिछड़े एवं मन्दबुद्धि बालकों के लिए प्रयास एवं त्रुटि विधि बहुत उपयोगी होती है।
  8. इस सिद्धान्त के अन्तर्गत प्रयास एवं त्रुटि विधि द्वारा प्रतिभाशाली छात्रों को कठिन समस्याओं के समाधान हेतु पर्याप्त अवसर मिल जाता है जिससे वे सफलता प्राप्त कर लेते हैं।
  9. उद्दीपन-अनुक्रिया सम्बन्ध स्थापित होने से प्राणी को सन्तोषप्रद अनुभव प्राप्त होने हैं। व्यक्ति उसी क्रिया को करना चाहता है जिसका परिणाम उसके लिए हितकर होता है तथा जिससे उसे सुख एवं सन्तोष मिलता है। अतः शिक्षक इस नियम का प्रयोग अधिगम की उन्नति हेतु कर सकते हैं।
  10. उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धान्त में सफल क्रिया को महत्व प्रदान किया जाता है। प्राणी द्वारा की गई सफल अनुक्रियाओं से उसमें आत्माविश्वास की भावना का विकास होता है। बार-बार सफलता प्राप्त करने से व्यक्ति का आकांक्षा स्तर भी ऊंचा हो जाता है। इसके विपरीत बार-बार की असफलता से निराशा बढ़ती है। अतः इस सिद्धान्त के अनुसार शिक्षक द्वारा सीखने की ऐसी उपयुक्त परिस्थितियों का निर्माण किया जाना चाहिए जिससे छात्रों को अधिक से अधिक सफलता के अवसर मिलते रहें।

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