कायान्तरित या रूपान्तरित चट्टानें | रूप-परिवर्तन के कारण | कायान्तरित चट्टानों की विशेषताएँ | कायान्तरित चट्टानों का आर्थिक उपयोग (लाभ)
- कायान्तरित या रूपान्तरित चट्टानें | रूप-परिवर्तन के कारण | कायान्तरित चट्टानों की विशेषताएँ | कायान्तरित चट्टानों का आर्थिक उपयोग (लाभ)
अंग्रेजी भाषा में इन्हें ‘मेटामोरफिक’ कहा जाता है। ‘मेटामोरफिक’ शब्द मेटा एवं मार्फे शब्दों के सम्मिलन से बना है। अत: मेटा का अर्थ परिवर्तन तथा मार्फे का अर्थ रूप से है अर्थात् “जिन चट्टानों में दबाव, गर्मी एवं रासायनिक क्रियाओं द्वारा उनकी बनावट, रूप तथा खनिजों का पूर्णरूपेण कायापलट हो जाता है, कायान्तरित चट्टानें कहलाती हैं।” विश्व के प्राय: सभी प्राचीन पठारों पर कायान्तरित चट्टानें मिलती हैं। भारत में ऐसी चट्टानें दक्षिण के प्रायद्वीप भाग में पायी जाती हैं, इनके अतिरिक्त विश्व में ये चट्टानें दक्षिण अफ्रीका के पठार और दक्षिणी अमेरिका के ब्राजील के पठार, उत्तरी कनाडा, स्कैण्डेनेविया, अरब, उत्तरी रूस और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के पठार पर पायी जाती है।
चट्टानों का कायान्तरण भौतिक तथा रासायनिक दोनों ही क्रियाओं से सम्पन्न होता है। इसमें चट्टान एवं खनिज का रूप पूरी तरह से परिवर्तित हो जाता है। इन चट्टानों में भूगर्भ के ताप, दबाव, जलवाष्प, भूकम्प आदि कारणों से उनके मूल गुणों में परिवर्तन आ जाता है। रूप-परिवर्तन के बाद इनकी प्रारम्भिक स्थिति भी नहीं बतायी जा सकती। मूल चट्टान के रूपान्तरण से उसके रूप, रंग, आकार तथा गुण आदि में पूर्ण परिवर्तन हो जाता है तथा वह अपने प्रारम्भिक रूप को खो देती है जिससे मूल चट्टान में कठोरता आ जाती है। कभी-कभी एक ही चट्टान कई रूप धारण कर लेती है। चूना-पत्थर के रूपान्तरण से संगमरमर नामक पत्थर का निर्माण होता है। यह रूपान्तरण आग्नेय एवं अवसादी, दोनों ही चट्टानों का हो सकता है।
कायान्तरण अथवा रूप-परिवर्तन के कारण
चट्टानों का कायान्तरण निम्नलिखित कारणों के फलस्वरूप होता है।
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तापमान
कायान्तरण का एक प्रमुख कारण तापक्रम है। भूगर्भ का अत्यधिक तापमान ज्वालामुखी उद्गार एवं पर्वत निर्माणकारी हलचलों को जन्म देता है जिससे चट्टानों का रूप-परिवर्तन हो जाता है।
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सम्पीडन एवं दबाव
कायान्तरण में महाद्वीपों पर पर्वत-निर्माणकारी बलों एवं भूकम्प आदि से चट्टानों पर भारी दबाव पड़ता है जिससे चट्टानें टूटती ही नहीं बल्कि उनका रूपान्तरण अथवा कायान्तरण भी हो जाता है।
- घोलन शक्ति
सामान्यतया जल सभी पदार्थों को अपने में घोलने की शक्ति रखता है, परन्तु जब इस जल में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइ-ऑक्साइड जैसी गैसें मिलती हैं तो इसकी घुलनशक्ति कई गुना बढ़ जाती है। वर्षा का जल इसका प्रमुख उदाहरण है। वर्षा का जल चट्टानों के साथ मिलकर रासायनिक अपरदन का कार्य करता है जिससे वह चट्टानों को अपने में घोल लेता है। इससे चट्टानों की संरचना में रासायनिक रूपान्तरण हो जाता है।
इस प्रकार आग्नेय चट्टानें शिस्ट में, शेल स्लेट में, ग्रेनाइट नीस में, बलुआ पत्थर क्वार्टजाइट में, बिटुमिनस एन्थ्रेसाइट में तथा चूना-पत्थर संगमरमर में रूपान्तरित हो जाती हैं।
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कायान्तरित चट्टानों की विशेषताएँ
कायान्तरित चट्टानों में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं।
- ये चट्टानें संगठित हो जाने से कठोर हो जाती हैं; अत: इन पर अपक्षय एवं अपरदन क्रियाओं का प्रभाव बहुत ही कम पड़ता है।
- इन चट्टानों की संरचना अरन्ध्र होती है; अत: इनमें जल प्रवेश नहीं कर सकता।
- ये चट्टानें रवेदार होती हैं, परन्तु इनमें परतें नहीं पायी जातीं।
- कायान्तरण की क्रिया के कारण इन चट्टानों में जीवाश्म नहीं पाये जाते हैं।
- कायान्तरण आग्नेय एवं अवसादी चट्टानों का होता है, परन्तु बाद में इनमें मूल अर्थात् प्रारम्भिक चट्टान का कोई लक्षण नहीं पाया जाता।
- इन चट्टानों में सोना, हीरा, संगमरमर, चाँदी आदि बहुमूल्य खनिज पाये जाते हैं।
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कायान्तरित चट्टानों का आर्थिक उपयोग (लाभ)
कायान्तरित चट्टानों में अनेक प्रकार के महत्त्वपूर्ण धातु खनिज पाये जाते हैं जो मानव के लिए अनेक प्रकार से उपयोगी हैं। अधिकांश बहुमूल्य खनिज (संगमरमर, सोना, चाँदी और हीरा) कायान्तरित चट्टानों से ही प्राप्त होते हैं।
संगमरमर, जो एक प्रमुख कायान्तरित चट्टान है, भवन-निर्माण में प्रयुक्त होता है। विश्वप्रसिद्ध ताजमहल एवं अनेक महत्त्वपूर्ण मन्दिर इसी प्रकार की चट्टान (संगमरमर) से निर्मित हैं। एन्श्रेसाइट कोयला, ग्रेनाइट एवं हीरा भी बहु-उपयोगी काया्तरित चट्टानें हैं। अभ्रक जैसे खनिज भी बार-बार अवसादी चट्टानों के कायान्तरण होने से बनते हैं। कठोर क्वार्ट्जाइट का निर्माण भी अवसादी चट्टानों के कायान्तरण से ही हुआ है। इसका उपयोग सुरक्षा एवं अन्य विशेष धातु उद्योग में अधिक होता है।
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