अध्यापक शिक्षा में गुणात्मक सुधार हेतु सुझाव | Suggestions for the Qualitative Improvement in Teacher Education in Hindi
अध्यापक शिक्षा में गुणात्मक सुधार हेतु सुझाव | Suggestions for the Qualitative Improvement in Teacher Education in Hindi
कोठारी आयोग के अनुसार-सर्वोत्तम प्रकार की शिक्षक प्रशिक्षण संस्थायें शिक्षा के विकास में महत्त्वपूर्ण कार्य कर सकती हैं। आयोग के अनुसार, कुछ प्रशिक्षण संस्थाओं के अतिरिक्त शेष सब साधारण या निम्न कोटि का है।
प्रशिक्षण संस्थाओं में व्यावसायिक शिक्षा का उपयोगीकरण, शिक्षा एवं मूल्यांकन पद्धतियों में विकास विशेष पाठ्यक्रम या कार्यक्रम का विकास,छात्र शिक्षण में सुधार, विकसित कार्यक्रम का संशोधन आदि अनेक समस्यायें शिक्षक प्रशिक्षण के गुणों को प्रभावित करती है।
अध्यापक शिक्षा में गुणात्मक सुधार हेतु सुझाव
(Suggestions for the Qualitative Improvement in Teacher Education)
शिक्षा-प्रशिक्षण में गुणात्मक-वृद्धि के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिये-
(1) विशेष पाठ्यक्रमों तथा कार्यक्रमों का विकास-
विशेष आवश्यकताओं के अनुरूप नये पाठ्यक्रम को तैयार किया जायें। यह कार्य राष्ट्रीय शिक्षा परिषद् द्वारा किया जाना चाहिये।
(2) विषय ज्ञान की स्थापना-
कोठारी आयोग के अनुसार प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तरों के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में पाठ्यक्रम विषयों के गठन और विस्तृत अध्ययन की व्यवस्था होनी चाहिये।
(3) स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम-
कोठारी आयोग ने शिक्षा में स्नातकोत्तर डिग्री में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया है। इसमें शोध, समस्याओं के अध्ययन, प्रबन्ध तथा शैक्षिक नियोजन आदि पर विशेष ध्यान देना चाहिये।
(4) अध्ययन तथा योग्यतांकन की विधियों में सुधार-
इस सम्बन्ध में आयोग के अनुसार-“खेद है कि इस तथ्य का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा जाता तथा प्रशिक्षण शालाओं में प्रयुक्त अध्ययन तथा योग्यतांकन की विधियाँ आज भी परम्परागत ही हैं।”
इस सम्बन्ध में कोठारी आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिये हैं-
(a) विकसित तकनीक तथा पद्धतियों को अपनाया जाना चाहिये।
(b) अध्ययन वृत्ति का महत्व समझा जाना चाहिये।
(c) सम्पर्क, अनुभव अध्ययन और निर्वाचन चर्चा का प्रारम्भ होना चाहिये।
(5) वृत्तिक अध्ययन को जीवन्त रूप देना-
इस सम्बन्ध में कोठारी आयोग के अनुसार-“इस बात पर उचित ध्यान नहीं दिया जाता कि वृत्तिक अध्ययन के पाठ्यक्रमों में बहुत कुछ ऐसी सामग्री रखी जाती है जो या तो पुरानी होती है या फिर वह ऐसी होती है जिसका स्कूलों में अध्ययन के कार्य से कोई सम्बन्ध नहीं होता। पाठ्यक्रमों में बहुत कुछ भर देने का प्रयत्न समाप्त होना चाहिये तथा विविध पाठ्यक्रमों के समन्वय और समेकन की आवश्यकता पर ध्यान दिया जाना चाहिये।”
(6) माध्यमिक शिक्षकों के लिये वृत्तिक शिक्षा की पाठ्यचर्या-
कोठारी आयोग के अनुसार-“आज इस स्तर पर पाठ्यक्रम में निम्न चीजे हैं-शिक्षा की दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक तथा समाज वैज्ञानिक आधार भूमियों का अध्ययन, अभ्यास के लिए अध्ययन व्यावहारिक कार्य, स्कूल संगठन तथा शिक्षण विधियाँ । आवश्यकता इस बात की है कि अनावश्यक वस्तुओं को निकाल दिया जाये तथा पाठ्यक्रम को ऐसा बनाया जाये कि उसका शिक्षक के दायित्व, भारतीय परिस्थितियों तथा समस्याओं एवं अध्ययन से प्रत्यक्ष सम्बन्ध रहे।”
(7) सामान्य तथा वृत्तिक शिक्षा के समन्वित पाठ्यक्रम-
आयोग के अनुसार, “माध्यमिक शिक्षकों के स्तर पर विषयों तथा वृत्तिक प्रशिक्षण के बीच एक कड़ी स्थापित करने का वैकल्पिक उपाय यह है कि सामान्य तथा वृत्तिक शिक्षण के समकालिक तथा समन्वित पाठ्यक्रम रखे जाने चाहिये।”
(8) प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की अवधि-
आयोग के अनुसार, “प्राथमिक स्तर पर दो वर्ष की न्यूनतम अवधि आवश्यक है तथा जिन क्षेत्रों में आज केवल एक वर्ष की पाठ्य अवधि है, वह सभी जगह दो वर्षों की अवधि पर दी जानी चाहिये। माध्यमिक स्तर पर भी यह अवधि दो वर्ष की कर दी जानी चाहिये।”
(9) छात्र अध्यापन में सुधार-
अधिकतर छात्राध्यापक जिस पाठ को पढ़ाते हैं, उनका निरीक्षण नहीं हो पाता। इस दिशा में सुधार किया जाना आवश्यक है।
(10) पाठ्यचर्याओं में सुधार-
कोठारी आयोग के अनुसार, “अब वह समय आ गया है कि सभी स्तरों पर छात्र शिक्षकों की पाठ्यचर्याओं पर दोबारा से विचार करना होगा। विविध कार्यों के आधार पर ही परीक्ष ली जानी चाहियें।”
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