संगठनात्मक व्यवहार / Organisational Behaviour

प्रबन्ध में नैतिक आयाम का अर्थ | प्रबन्ध में नैतिक आयाम का उदय | प्रबन्ध में नैतिक आयामों को प्रभावित करने वाले घटक

प्रबन्ध में नैतिक आयाम का अर्थ | प्रबन्ध में नैतिक आयाम का उदय | प्रबन्ध में नैतिक आयामों को प्रभावित करने वाले घटक | Meaning of ethical dimension in management in Hindi | Emergence of Ethical Dimension in Management in Hindi | Factors Affecting Ethical Dimensions in Management in Hindi

प्रबन्ध में नैतिक आयाम का अर्थ

(Meaning of ethical perspective Management)-

आर.सी. अग्रवाल के अनुसार, ” प्रबन्ध में नैतिक आयाम से आशय प्रबन्धकीय नीतियों, निर्णयों, आचरणों, मूल्यों, श्रम-पूँजी के सम्बन्धों तथा अन्य सभी सम्बन्धित वर्गों के प्रति नैतिक उत्तरदायित्वों को पूरा करने से है।”

प्रबन्ध में नैतिक आयाम का उदय (Emergence of of Ethical Persective in Management)-

एक समय था जबकि व्यावसायिक उपक्रमों के स्वामियों (जोकि प्रवन्ध भी स्वयं करते थे) द्वारा मनमाने ढंग से कर्मचारियों, उपभोक्ताओं, पूर्तिकर्ताओं एवं अन्य सम्बन्धित सभी वर्गो के प्रति शोषण किया जाता था। कर्मचारियों को इतना कम पारिश्रमिक दिया जाता था जोकि उनके परिवार के सदस्यों के लिए पेट भरने एवं तन ढँकने तक के लिए भी अपर्याप्त था। कर्मचारियों के आने का समय तो निर्धारित था किन्तु जाने का समय नहीं। श्रमिक कारखाने में प्रातः 6 बजे प्रवेश करता था तथा सायंकाल 7-8 बजे तक कार्य चलता था। नियोक्ता कर्मचारियों के प्रति जब चाहो, रखो और निकालों (Hire and Fire) की नीति पर चलता था। उपभोक्ता सामग्री का अभाव था। जो बनता था, तुरन्त हाथों- हाथ मनमाने दामों पर बिक जाता था। पूर्तिकर्ताओं से मनमाने भावों पर माल क्रय किया जाता था। उन्हें बोलने तक का कोई अधिकार नहीं था। सरकार आँख बन्द करके तमाशबीन की तरह सारा तमाशा देखती रहती थी। इस प्रकार चारों तरफ शोषण का बोलबाला था। सभी के मुख पर ताला पड़ा हुआ था किन्तु धीरे-धीरे समय ने पलटा खाना शुरू किया। कर्मचारियों में एकता की भावना उदय हुई। श्रम संघों की स्थापना हुई जिसने कर्मचारियों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। ‘दुनिया के श्रमिकों! एक हो जाओ’ का नारा बुलन्द हुआ। उत्पादन का आकार बढ़ने से तरह-तरह का माल विक्रय के लिए बाजार में आने लगा। उपभोक्ताओं में जागृति हुई। उपभोक्ता बाजार का राजा है’ का नारा बुलन्द हुआ। जगह- जगह उपभोक्ता समितियों का निर्माण होने लगा जिन्होनें उपभोक्ताओं में अपने अधिकारों के प्रति चेतना उत्पन्न की पूर्तिकर्ताओं ने भी अपने हित के लिए संगठनों की स्थापना की। प्रबन्ध सवामित्व से पृथक् हुआ। स्वामी तो केवल विनियोक्ता बनकर रह गया। सारी प्रबन्ध व्यवस्था प्रबन्धकों के हाथों में आ गयी। सरकार की नींद भी खुली और उसने भी कर्मचारियों, उपभोक्ताओं तथा पूर्तिकर्ताओं को उत्पादकों एवं व्यावसायिक शोषण से मुक्त कराने के लिए विभिन्न प्रकार के नियमों-उप-नियमों की न केवल रचना ही की अपितु उन्हें कड़ाई से लागू भी किया। मालिकों का स्थान प्रबन्ध ने लिया। इन परिस्थितियों के परिणामस्वरूप प्रबन्ध के क्षेत्र में नैतिक अयामों का उदय हुआ। आज के इस बदले हुए पर्यावरण में प्रबन्ध में इतना साहस नहीं कि वह नैतिक अयामों की अवहेलना करे। प्रबन्ध अब एक नैतिक आयाम आधारित प्रणाली बन गया है जिसका पालन समूचे व्यावसायिक जगत में हो रहा है। आज प्रबन्ध के क्षेत्र में नैतिक मूल्यों की ओर सविधिक ध्यान दिया जा रहा है।

प्रबन्ध में नैतिक आयामों को प्रभावित करने वाले घटक

(Factors Affecting Ethical Perspectives in Management)

एक प्रबन्धक प्रबन्ध के क्षेत्र में अपने कार्यों का निष्पादन करते समय नीतिगत ढंग से व्यवहार करेगा अथवा अनीतगत ढंग से, यह विभिन्न घटकों पर निर्भर करता है। उनमें से प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं-

(1) संगठन-सरंचना का प्रारूप (Form of Organisation Structure) – पीटर एफ. ड्रकर (Peter F. Durker) के अनुसार, “संगठन संरचना एक अत्यन्त महत्वपूर्ण साधन है तथा गलत संरचना व्यवसाय की कार्यक्षमता को भंयकर रूप से प्रभावित करेगी और यहाँ तक कि गलत संरचना समूचे व्यवसाय का विनाश तक कर सकती है।” संगठन संरचना के विभिन्न प्रारूप होते हैं। व्यावसायिक इकाइयाँ अपने आकार, प्रकार, कार्यक्षेत्र तथा नैतिक आयाम के अनुसार उनमें किसी एक का चयन करती हैं। संगठन में योग्यता अंकन प्रणाली, कार्य निष्पादन प्रणाली, पारिश्रमिक देने की प्रेरणात्मक प्रणाली, दण्ड की व्यवस्था संगठन सरंचना के ही अंग है।

(2) वैयक्तिक मूल्य (Individual Values)- अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग वैयक्तिक मूल्य पाये जाते हैं। व्यक्ति ये मूल्य अपने विकास के प्रारम्भिक काल में अपने माता-पिता, मित्र- मण्डली, शिक्षक एवं सम्बन्धियों से सीखता है। जब कोई व्यक्ति किसी संगठन में प्रवेश करता है तो उसके व्यक्तिगत मूल्यों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। उदाहरण के लिए, जब कोई व्यक्ति किसी निजी क्षेत्र जैसे- मारवाणी के संस्थान में रोजगार के लिए जाता है तो उससे सबसे पहला प्रश्न यही पूछा जाता है कि आप किस परिवार से हो तथा उक्त परिवार का पिछला नैतिक आधार क्या रहा है। इसका उसके चयन में महत्वपूर्ण स्थान होता है। उदाहरण के लिए, यदि उसके परिवार का कोई सदस्य चोरी या भ्रष्टाचार के मामले में दण्डित किया गया हो तो सामान्यतः ऐसे परिवार से आये वयक्ति का चयन नहीं किया जाता है।

(3) संगठनात्मक संस्कृति (Organsational Culture)- संगठनात्मक संस्कृति भी प्रबन्ध में नैतिक आयाम को प्रभावी ढंग से प्रभावित करती है। प्रत्येक संगठन की अपनी-अपनी संस्कृति होती है। स्वा स्थ संगठन उच्च नैतिक स्तर की स्थापना करता है जिसके परिणामस्वरूप उक्त उपक्रम द्वारा निर्मित उत्पाद के क्रेताओं का तांता लग जाता है, साथ में उसके उत्पाद के साथ निर्माता समूह की छाप भी जाती है, जैसे-टाटा प्रोडक्ट्स (Tata Product), फिलिप्स प्रोडक्ट्स (Philips Products), बजाज प्रोडक्ट्स (Bajaj Products,, हिन्दुस्तान लीवर्स प्रोडक्ट्स (Hindustan Levrs Products) आदि। कार्यरत कर्मचारियों का मनोबल भी उच्चकोटि का होता है। उच्च संगठनात्मक संस्कृति वाले उपक्रमों में कर्मचारियों की उच्च कार्यकुशलता, कृत्य सन्तुष्टि, अनुशासन, प्रभावी नियन्त्रण, उच्च नैतिक मापदण्ड, सभी क्षेत्र में गुणवत्ता, उच्च नैतिक व्यवहार, ग्राहक सन्तुष्टि, ग्राहक सेवा, अभिप्रेरण दृष्टिकोण, स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति आदि देखने को मिलता है।

(4) नैतिक विकास का स्तर (Moral Development Level)- प्रबन्ध में नैतिक आयाम संस्था में कार्यरत व्यक्ति एवं समूहों के नैतिक विकास को प्रभावित करते हैं। जिन संस्थाओं में विभिन्न क्षेत्रों में नैतिक आयामों के क्रियान्वयन पर बल दिया जाता है, उनमें कार्यरत कर्मचारी गलत कार्य करने से डरते हैं, जैस- उत्पाद में मिलावट करना, कम तौल-नाप करना, निम्न श्रेणी का उत्पाद तैयार करना, उपभोक्ताओं को ठगना, वितरण माध्यमों (जैसे-थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी) से किये गये अनुबन्धों का पालन नहीं करना, विभिन्न स्तरों पर करों की चोरी करना, किस्म नियन्त्रण की योजनाओं को फाइलों तक सीमित कर देना आदि। ऐसे व्यावसायिक उपक्रमों में कार्यरत कर्मचारियों का, जहाँ नैतिक विकास पर बल दिया जाता हो, नैतिक स्तर उच्चकोटि का होता  है, कर्मचारी ऐसे उपक्रमों में सेवा करने का अवसर प्राप्त होना अपना सौभाग्य समझते हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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