आर्थिक विकास में मानव पूँजी की भूमिका

आर्थिक विकास में मानव पूँजी की भूमिका | आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

आर्थिक विकास में मानव पूँजी की भूमिका

आर्थिक विकास में मानव पूँजी की भूमिका | आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

आर्थिक विकास में मानव पूँजी की भूमिका

उत्पादन के अनेक साधन होते हैं जिसमें पूँजी एक महत्वपूर्ण साधन हैं। पूँजी आर्थिक विकास का मुख्य आधार है। हर तरह के विकास के लिये पूँजी की आवश्यकता होती है। पूँजी कई प्रकार की हो सकती है जैसे भौतिक पूँजी, वित्तीय पूँजी, मानव पूँजी आदि। सामाजिक प्रणाली को अपने कार्य और प्रचालन को सुचारु रूप देने के लिए ऐसे शिक्षित और प्रशिक्षित लोगों की आवश्यकता होती है, जिनमें कुछ सुपरिभाषित ज्ञान, अभिवृत्ति और कौशल हो। किसी भी राष्ट्र का आर्थिक विकास केवल प्रावृ.तिक साधनों और भौतिक पूँजी पर ही आधारित नहीं होता, वरन उसका वास्तविक कारण है ‘मानव’ जिसके माध्यम से भौतिक साधनों का उत्पादन सम्भव होता है, इसलिए राष्ट्र की उत्पादकता में वृद्धि की दृष्टि से मानव पूँजी का उन्नत होना अति आवश्यक है। इसके लिए व्यक्तियों को अधिक से अधिक तथा विभिन्न प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए। सामाजिक प्रणाली को बनाये रखने और सुधारने के लिये तथा राष्ट्र के आधुनिकीकरण के लिये मानव संसाधन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आज किसी भी देश के आर्थिक विकास के मापन का मेरुदण्ड मानव पूँजी ही है, क्योंकि आज वही राष्ट्र विकसित हैं जहाँ मानव पूँजी के शिक्षा एवं प्रशिक्षण के बल पर उच्च तकनीक एवं प्रौद्योगिक को अपनाकर वैज्ञानिक क्षेत्र को सम्पन्न बनाने में योगदान दिया जाता है। प्रो. अमत्त्यसेन के अनुसार आर्थिक विकास के लिये मानव आधारभूत संरचना में शिक्षा एवं स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण स्थान होता है। आज आर्थिक विकास के क्षेत्र में वही राष्ट्र पिछड़े हैं जहाँ मानव पूँजी के अन्तर्गत शिक्षा व स्वास्थ्य का विकास कम है, क्योंकि देश का शिक्षित और प्रशिक्षित समाज ही आर्थिक विकास को क्षितिज पर पहुँचाता है।

निम्न बिन्दुओं के आधार पर हम समझ सकते हैं कि किस प्रकार मानव पूँजी आर्थिक विकास को प्रभावित करती है-

  1. किसी देश अथवा राष्ट्र की मानव पूँजी जितनी सुदृढ एवं सशक्त होगी अर्थात वहाँ के नागरिकों की क्षमता, योग्यता और निपुणता जितनी अधिक होगी, वे उत्पादन के प्रति जितना अधिक सचेत होते हैं और वे क्रय-विक्रय में जितने अधिक निपुण होते हैं, उस देश अथवा राष्ट्र का आर्थिक विकास उतनी ही अधिक तेजी से होता है।
  2. किये गये अध्ययनों के परिाम बताते हैं कि अनपढ़ व्यक्तियों की अपेक्षा प्राधमिक शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों की उत्पादन क्षमता अधिक होती है। वे मजदूरों के रूप में अपेक्षाकृत अधिक कुशलता से कार्य करते हैं, इससे उत्पादन बढ़ता है और आर्थिक विकास को गति मिलती है।
  3. माध्यमिक स्तर पर भाषा ज्ञान, अभिव्यक्ति कौशल, समायोजन योग्यता के साथ-साथ गणित, विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान विषयों का ज्ञान कराया जाता है और साथ ही शासन तन्त्र एवं नागरिकता की शिक्षा भी दी जाती है। इस सबसे बच्चों का दृष्टिकोण विकसित होता है और वे प्रगतिशील बनते हैं। इस स्तर पर अधिकतर बच्चे जीवन यापन की कला भी सीखते हैं। इस स्तर की सामान्य शिक्षा प्राप्त व्यक्ति मध्यम वर्ग के कर्मचारी जैसे स्टोर कीपर और लिपिक आदि पदों पर कुशलता पूर्वक कार्य करते हैं। दूसरे शब्दों कहा जा सकता है कि इस प्रकार से मानव पूँजी उन्नत होकर अपना और अन्ततोगत्वा राष्ट्र का आर्थिक विकास करते हैं।
  4. उच्च स्तर की सामान्य शिक्षा का उद्देश्य युवकों को साहित्यं, धर्म, दर्शन, राजनीति एवं कला आदि के क्षेत्रों में विशिष्ट ज्ञान एवं कौशल प्रदान करना होता है इस शिक्षा से उनका दृष्टिकोण और अधिक विकसित होता हैं, वे अपने क्षेत्र में विशिष्ट योगदान देते है और देश के आर्थिक विकास में सहायक होते हैं।
  5. देश के बड़े-बड़े डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, प्रोफेसर आदि सभी मानव पूँजी हैं। ये सभी अपने-अपने क्षेत्रों में अपने योगदान से आर्थिक विकास में सहायक होते हैं।
  6. उच्च शिक्षित व्यवसायी बड़े-बड़े उद्योगों को देश में लगाकर राष्ट्र की आय में वृद्धि के कारक बनते हैं और आर्थिक विकास में सहायक होते हैं।

इस प्रकार से यह कहा जा सकता है कि आर्थिक विकास में मानव पूँजी अपनी भूमिका निर्वाह काफी बड़े स्तर से करती है।

आर्थिक विकास का प्रयोजन मनुष्य के जीवन को ऊँचा करना है। भारत जैसे देश में दरिद्रता का उन्मूलन और जनजीवन का उन्नयन ही आर्थिक विकास की कसौटी है। इसके लिये मानव संसाधन को सशक्त बनाने की आवश्यकता रहती है। औद्योगीकरण के साथ-साथ कुशल श्रमिकों, तकनीकी विशेषज्ञों तथा विशेष प्रकार की शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्तियों का महत्व बढ़ता जा रहा है, क्योंकि किसी व्यवसाय में जितनी ऊँची शिक्षा प्राप्त व बौद्धिक व्यक्ति होता है, उसको उतना ही आर्थिक पारिश्रमिक प्राप्त होता है। मानव संसाधन को आवश्यकता एवं उपयोगिता की दृष्टि से देखें तो यह विकास के लिये एक महत्वपूर्ण संसाधन साबित होता है। इसकी क्षमता एवं कार्य कुशलता में अभिवृद्धि करने से अर्थव्यवस्था को एक मजबूत आधार प्राप्त होता है। मानव संसाधन के समुचित उपयोग से देश एक महत्वपूर्ण आर्थिक शक्ति के रूप में उभर सकता है, क्योंकि वृहद आर्थिक उत्पादन उच्च तकनीकी मशीनों तथा दक्ष मानवीय संसाधन (मानवपूजी) द्वारा ही सम्भव है।

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