अधिगम के नियमों का वर्णन

अधिगम के नियमों का वर्णन | इ० एल० थार्नडाइक के नियमों का वर्णन

अधिगम के नियमों का वर्णन

अधिगम के नियमों का वर्णन | इ० एल० थार्नडाइक के नियमों का वर्णन

प्रश्न 1 अधिगम के नियमों का वर्णन कीजिए।

प्रसिद्ध अमेरिकन मनोवैज्ञानिक इ० एल० थार्नडाइक ने अपने प्रयोगों पर आधारित अधिगम के नियमों-मुख्य नियम और सहायक नियम का प्रतिपादन किया था, जिनका विवरण निम्नवत् है-

अधिगम के मुख्य नियम

इस अधिगम के मुख्य नियम इस प्रकार है-

  1. तत्परता का नियम
  2. अभ्यास का नियम
  3. प्रभाव का नियम उत्तर

 

() तत्परता का नियम – जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को सीखने के लिए तत्पर होता है तो वह उसे शीघ्र ही सीख लेता है, यही अधिगम का तत्परता का नियम है। अधिगमकर्ता किन-किन परिस्थितियों में सन्तुष्ट रहता है तथा किन परिस्थितियों में उसमें खीझ उत्पन्न होती है। थार्नडाइक ने इस प्रकार की तीन परिस्थितियों का उल्लेख किया है-

(1) जब चालन इकाई कार्य को करने के लिए तत्पर होती है तो उसके द्वारा किया गया चालन उसे संतोष प्रदान करता है।

(2) जब चालन इकाई कार्य को करने के लिए तत्पर नहीं होती है तो उसके द्वारा किया गया चालन खीझ उत्पन्न करने वाला होता है।

(3) जब चालन इकाई कार्य को करने के लिए तत्पर होता है तो क्रिया न करने से उसमें खीझ उत्पन्न होती है। उपर्युक्त से स्पष्ट है कि अधिगमकर्ता में संतोष अथवा खीझ होना। अधिगमकर्ता की तत्परता पर निर्भर करता है।

शैक्षिक निहितार्थ – तत्परता के नियम के शैक्षिक निहितार्थ निम्नलिखित हैं-

  1. शिक्षण प्रारम्भ करने से पूर्व शिक्षक को अधिगमकर्ता की रुचि एवं अभिक्षमता जानकारी कर लेनी चाहिए, जिससे यह अवगत हो सके कि अधिगमकर्ता नये ज्ञान को ग्रहण के लिए तत्पर है या नहीं।
  2. शिक्षक को अधिगमकर्ता की तत्परता के अनुरूप शिक्षण करना चाहिए।
  3. अधिगमकर्ता की रुचि के अनुकूल विषय वस्तु पर अधिक बल देना चाहिए। इससे अधिगमकर्ता में आत्मसंतोष होगा और वह विषय वस्तु को भलीभांति समझ सकेगा और अधिक समय तक धारण कर सकेंगें।

(ब) अभ्यास का नियम – अधिगम में अभ्यास का यह नियम स्पष्ट करता है कि अभ्यास से उद्दीपन तथा अनुक्रिया का सम्बन्ध दृढ़ होता है और अभ्यास न करने पर यह सम्बन्ध कमजोर हो जाता है अथवा उसका विस्मरण हो जाता है । थार्नडाइक ने इसके दो रूप प्रस्तुत किये-

(1) जब एक परिवर्तनीय अनुबन्ध परिस्थिति एवं अनुक्रिया में होता है, उस अनुबन्ध की शक्ति, अन्य बातें समान होने पर बढ़ जाती है। इसे थार्नडाइक ने उपयोग का नियम कहा है।

(2) जब एक परिवर्तनीय अनुबन्ध एक अवधि के अन्र्तगत परिस्थिति एवं अनुक्रिया के मध्य नहीं होता है तो अनुबन्ध की शक्ति कम हो जाती है। थार्नडाइक ने इसे अनुप्रयोग का नियम कहा है।

शैक्षिक निहितार्थ – अभ्यास के नियम के शैक्षिक निहितार्थ निम्नलिखित हैं-

  1. जब अधिगमकर्ता किसी पाठ का अभ्यास करता है अथवा बार-बार दोहराता है अथवा बार-बार उपयोग करता है, इससे वह उसे सीख लेता है। इसके दृष्टिगत अधिगमकर्ता को कक्षा-कक्ष में विषय-वस्तु का अभ्यास करने के अधिक अवसर शिक्षक द्वारा उपलब्ध कराये जाने चाहिए।
  2. जब अधिगमकर्ता किसी पाठ का अभ्यास करना / दोहराना / उपयोग करना छोड़ देता है तो वह उसे भूल जाता है। इसके दृष्टिगत अधिगमकर्ता को सीखी हुई विषय को अधिक समय तक धारण रखने के लिए उसे बीच-बीच में दोहराते रहना चाहिए ताकि सीखी हुई विषय-वस्तु विस्मृत न हो।

(स) प्रभाव का नियम – अधिगम में प्रभाव का नियम यह व्यक्त करता है कि कोई भी प्राणी किसी कार्य / अनुक्रिया को उसके प्रभाव के आधार पर सीखता है क्योंकि किसी कार्य / अनुक्रिया का प्रभाव प्राणी पर संतोषप्रद अथवा खीझप्रद होता है। प्रभाव संतोषप्रद होने पर वह उस कार्य अनुक्रिया को सीख लेता है और खीझप्रद होने पर वह उस कार्य / अनुक्रिया को दुबारा करना नहीं चाहता है। अतः उसे भूल जाता है। थार्नडाइक इसके लिए दो परिस्थितियों का उल्लेख किया है-

  1. जब एक परिवर्तनीय अनुबन्ध परिस्थिति एवं अनुक्रिया में होता है और कार्यों की संतोषप्रद दशा द्वारा अनुसरण किया जाता है तो अनुबन्ध की शक्ति बढ़ जाती है।
  2. जब एक परिवर्तनीय सम्बन्ध एक परिस्थिति और अनुक्रिया में होता है और कार्यों की एक खीझप्रद दशा द्वारा अनुसरण किया जाता है तो उसकी शक्ति कम हो जाती है। उपर्युक्त में मनोवैज्ञानिक द्वारा प्रस्तुत अपत्तियों के परिणामस्वरूप थार्नडाइक ने 1932 में अपने प्रभाव के नियम में संशोधन करके प्रस्तुत किया था। यथा-
  • पुरस्कार और दण्ड का प्रभाव एक समान और परस्पर प्रतिकूल नहीं पड़ता है।
  • पुरस्कार के प्रभाव से किसी कार्य अनुक्रिया की पुनरावृत्ति की सम्भावना बढ़ जाती है।
  • दण्ड के प्रभाव से किसी कार्य / अनुक्रिया की पुनरावृत्ति की सम्भावना कम नहीं होती है।

शैक्षिक निहितार्थ – प्रभाव के नियम के शैक्षिक निहितार्थ निम्नलिखित हैं-

  1. शिक्षक को कक्षा का वातावरण मनोरम, रोचक एवं प्रभावपूर्ण बनाना चाहिए ताकि अधिगमकर्ता अच्छे वातावरण में सीख सके, ज्ञानार्जन कर सकें।
  2. शिक्षकों को कक्षा में छात्रों को दण्ड नहीं देना चाहिए और न ही उन्हें डराना या धमकाना चाहिए।
  3. शिक्षक को कक्षा में अधिगम को प्रभावोत्पादक परिस्थितियां उत्पन्न करनी चाहिए ताकि अधिगमकर्ता को आत्म-सन्तुष्टि प्राप्त हो सके।

अधिगम के सहायक नियम

उपर्युक्त अधिगम के मुख्य नियमों के अतिरिक्त थार्नडाइक ने निम्नलिखित सहायक नियमों का भी प्रतिपादन किया था-

  1. बहु-अनुक्रिया का नियम
  2. वृत्ति अथवा अभिवृत्ति का नियम
  3. तत्त्वों की प्रबलता का नियम
  4. अनुरूपता द्वारा अनुक्रिया का नियम
  5. साहचर्यात्मक स्थानान्तरण का नियम

(1) बहु-अनुक्रिया का नियम – सीखने की किसी भी परिस्थिति में व्यक्ति विविध अनुक्रियाएं करता है। इनमें से लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक अनुक्रिया को वह सीख लेता है और जो अनुक्रिया सहायक नहीं होती है, उसे वह भूल जाता है।

(2) वृत्ति अथवा अभिवृत्ति का नियम – इस नियम के अनुरूप अधिगमकर्ता में किसी कार्य को करने अथवा किसी पाठ को सीखने की तत्परता उसकी वृत्ति अथवा अभिवृत्ति पर निर्भर करती है।

(3) तत्त्वों की प्रबलता का नियम – तत्त्वों की प्रबलता के नियमानुसार सीखने की किसी भी परिस्थिति में सार्थक एवं निरर्थक दोनों प्रकार के तत्त्व विद्यमान रहते हैं। जिनकी प्रबलता भिन्न-भिन्न होती है। व्यक्ति / अधिगमकर्ता सार्थक तत्त्वों को अलग कर अपना लेता है।

(4) अनुरूपता द्वारा अनुक्रिया का नियम – इस नियम के अनुसार अधिगमका किसी नई परिस्थिति / समस्या में वैसी ही अनुक्रिया करता है, जेसी अनुक्रिया पूर्व में सीखी गई परिस्थिति / समस्या में की गयी थी।

(5) साहचर्यात्मक स्थानान्तरण का नियम – इस नियम के अनुसार एक अनुक्रिया उद्दीप्त करने वाली स्थिति में परिवर्तन की श्रृंखला के माध्यम से अक्षुण्ण रखी जा सकती है और यह अन्य में पूर्णता नये उद्दीपन से भी दी जा सकती है।

 

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