अरब लीग – 1945 | ARAB LEAGUE – 1945
अरब लीग – 1945 | ARAB LEAGUE – 1945
अरब लीग सबसे अधिक विस्तृत गैर-पश्चिमी क्षेत्रीय समझौता माना जा सकता है। यह मार्च, 1945 को हुआ था जब मिस्र, इराक, जार्डन, लेबनान, सऊदी अरब सीरिया तथा यमन ने इसको बनाने के लिए संधि पर हस्ताक्षर किए। बाद में एलजीरिया, कुवैत, लीबिया, मोरोको, सूडान तथा ट्यूनीशिया भी इसमें शामिल हो गए।
- उद्देश्य (Objectives) : अरब लीग के मुख्य उद्देश्य हैं, “सदस्य राज्यों के बीच सम्बन्धों को सुदृढ़ करना, उनके बीच सहयोग लाने के लिए उनकी नीतियों में साम्जस्य तथा उनकी स्वतन्त्रता तथा प्रभुसत्ता की सुरक्षा करना। समझौते में, विशेषतः आर्थिक तथा वित्तीय, संचार, सांस्कृतिक राष्ट्रीयता तथा उनसे सम्बन्धित मामलों, सामाजिक मामलों तथा स्वास्थ्य समस्याओं के सन्दर्भ में सदस्य राज्यों के बीच सहयोग का उल्लेख है।
- संगठनात्मक ढांचा (Organisational Structure) : लीग का मुख्य अंग परिषद् या मजलिस (Majlis) है। इसमें समान प्रतिनिधित्व द्वारा सभी सदस्य देश शामिल होते हैं। इसकी बैठक साल में दो बार होती है। कम से कम दो सदस्यों की प्रार्थना पर इसकी विशेष सभा भी बुलाई जा सकती है । यह परिषद् अपने सदस्य राज्यों की बहुपक्षीय संधियों के कार्यान्वयन का निरीक्षण करती है। यह सदस्यों के बीच झगड़ों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने का प्रयत्न भी करती है। एक राजनीतिक समिति तथा कई अन्य समितियां परिषद् के कार्यों में सहायता देती हैं। समिति के निर्णय जब तक सर्वसम्मत नहीं होते, तब तक किसी सदस्य के लिए अनिवार्य नहीं होते।
जब से यह सन्धि हुई तभी से इसका मुख्यालय काहिरा (Cairo) ही रहा है। लीग का एक सचिवालय भी है जिसका मुखिया महा सचिव (Secretary General) होता है, जो लीग का प्रबन्धकीय अफसर भी होता है। न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में अरब लीग का एक स्थायी निरीक्षक रहता है। लीग एक अन्तर्राष्ट्रीय इकाई की तरह काम करती है। तथा अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं जैसे संयुक्त राष्ट्र की विशिष्ट एजेन्सियों के साथ अनौपचारिक प्रबन्ध तथा औपचारिक समझौते करती है। मई, 1986 में नई दिल्ली ने अरब लीग के प्रतिनिधि को कूटनीतिक स्तर देने का फैसला किया।
अरब लीग अपने सदस्यों के आपस में तथा दूसरे राष्ट्रों के साथ राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक सम्बन्धों को निर्दिष्ट करने तथा इन्हें आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसने सदस्य राष्ट्रों के बीच कितने ही महत्त्वपूर्ण आर्थिक, व्यापारिक तथा सांस्कृतिक सहयोग सम्बन्धी समझौते किए हैं। यह अरबों की एकता बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। परन्तु आज तक यह संस्था विश्व को एक करने के अपने मुख्य उद्देश्य में पूर्णतया सफल नहीं हो पाई है।
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