अर्थशास्त्र / Economics

औद्योगिक वित्त का अर्थ | औद्योगिक वित्त के प्रमुख स्त्रोत | Meaning of industrial finance in Hindi | Major sources of industrial finance in Hindi

औद्योगिक वित्त का अर्थ | औद्योगिक वित्त के प्रमुख स्त्रोत | Meaning of industrial finance in Hindi | Major sources of industrial finance in Hindi

औद्योगिक वित्त का अर्थ (Industrial Finance)

औद्योगिक वित्त दो शब्द औद्योगिक + वित्त अर्थात् उद्योग जगत् के लिए पूँजी की आवश्यकता से माना जाता है। सरल शब्दों में जब औद्योगिक क्षेत्र के विकास-स्थापना से लेकर पुनर्जीवन (Innovation) अर्थात् बीमार औद्योगिक इकाई के पुनः संचालन, आधुनिकीकरण, यन्त्रीकरण आदि के लिए पूँजी की व्यवस्था ही औद्योगिक वित्त कहलाता है। अन्य शब्दों में औद्योगिक वित्त से तात्पर्य उद्योगों की धन सम्बन्धी आवश्यकताओं की आपूर्ति से होता है।

औद्योगिक वित्त के प्रमुख स्त्रोत

भारतवर्ष में औद्योगिक वित्त के प्रमुख स्त्रीत निम्न हैं – (I) अंशों का निर्गमन, (II) ऋण पत्र, (III) जन निक्षेप, (IV) लाभ का पुनः विनियोग, ( V) बैंक, (VI) भारतीय वित्तीय संस्थाएँ, (VII) देशी बैंकर्स।

(I) अंशों का निर्गमन (Issue of Shares) – भारतीय उद्योग जगत की पूँजी की माँग की पूर्ति के लिए अंश पूँजी (Share Capital) एक प्रमुख वित्तीय स्त्रोत है। उद्योग एक्ट 1956 के अनुसार दो प्रकार के अंशों का निर्गमन किया जा सकता है- (1) समता अंश, (2) पूर्णाधिकार अंश।।

समता अश को साधारण अंश भी कहते हैं। प्रायः भारतीय उद्योग पूँजी की प्राप्ति समता अंश से ही करते हैं। इस प्रकार के साधारण अंश पूँजी को जोखिम पूँजी भी कहते हैं। जबकि पूर्वाधिकार अंश वे हैं, जिसमें पूँजीदाता एक निश्चित दर पर लाभांश प्राप्त करने का पूर्वाधिकार प्राप्त कर लेता है। ऐसे अंश- परिवर्तनीय, अपरिवर्तनीय, संचयी, असंचयी, शोधित, अंशोधित आदि रूपों में भी हो सकते हैं।

 (II) ऋण-पत्रों का निर्गमन (Issue of Debentures) औद्योगिक इकाइयों को वित्त

की आपूर्ति का दूसरा स्रोत ऋण पत्र होते हैं, जिन्हें बॉण्ड्स (Bonds) भी कहते हैं। ध्यान रहे, ऋण पत्र में उल्लिखित धनराशि, कम्पनी को देय होती है।

(III) लाभ का पुनः विनियोग (Re-Investment of Profits)- औद्योगिक जगत में लाभ का पुनः विनियोग से तात्पर्य जब कोई औद्योगिक इकाई स्व आर्जित लाभ का कुछ हिस्सा सदस्यों को वितरित कर दे, शेष धनराशि को पुनः निवेश कर अपनी भावी योजनाएँ पूर्ण करे तो उसे लाभों का पुनः विनियोग कहते हैं।

(IV) जन निक्षेप (Public Deposit)- जन निक्षेप से तात्पर्य जब जनता द्वारा जमा किया गया धन औद्योगिक संस्थाओं के विकास में लगा दिया जाता है और जनता के धन पर उसे ब्याज प्राप्त होता रहे तो ऐसे निरवेश को जन निक्षेप कहा जाता है। भारतवर्ष में जन निक्षेप की व्यवस्था सदियों पुरानी है, क्योंकि जनता का धन औद्योगिक विकास में विनियोग होता है। महाराष्ट्र के सूती उद्योग, चानी उद्योग, रासायनिक एवं इन्जीनियरिंग उद्योग जन निक्षेप पर ही चल रहे हैं।

(V) बैंकों द्वारा ऋण (Debts from Banks) – भारतवर्ष के औद्योगिक क्षेत्र को ऋण प्राप्त करने का सबसे सुगम साधन बैंक माना जाता है जो औद्योगिक इकाइयों को ऋण प्रदान करती हैं। ध्यान रहे बैंकिग संस्थाएँ अल्पकालीन व मध्यकालीन औद्योगिक वित्त की पूर्ति करती हैं। देश में 2011 ई0 तक 87560 बैंकिंग संस्थाओं ने औद्योगिक क्षेत्र को ऋण प्रदान किया है।

(VI) देशी बैंकर्स (Private Financers)- भारतीय परिवेश में निजी बैंकर्स पर प्रतिबन्ध तो नहीं है, लेकिन ऐसी बैंकिग व्यवस्था में शोषण प्रवृत्ति होने के कारण इनकी संख्या घटती जा रही है। देशी बैंकर्स उन्हें कहते हैं जो व्यक्ति, फर्म या संस्था के रूप में निषेक्ष को स्वीकार करते हुए हुण्डियों में व्यापार करते हैं, इनकी ब्याज दर ऊँची होती है, ऋण वसूली में धोखाधड़ी भी करते हैं, व्यक्तिगत जमानत पर भी ऋण प्रदान करते हैं, लेकिन वसूली की क्रिया उत्पीड़नात्मक देखी जाती है।

(VII) भारतीय वित्तीय संस्थाएँ (Indian Financial Institution)- भारतीय औद्योगिक जगत की वित्तीय आवश्यकता की पूर्ति मुख्यतः वित्तीय संस्थाओं/निगम से होती है। मुख्य संस्थाएँ निम्न हैं-

(क) भारतीय औद्योगिक वित्त निगम लिमिटेड

(ख) राज्य वित्त निगम

(ग) भारतीय औद्योगिक विकास बैंक

(घ) भारतीय औद्योगिक निवेश बैंक

(ड) यूनिट टूस्ट ऑफ इण्डिया

(च) भारतीय जीवन बीमा निगम

(छ) भारतीय लघु उद्योग विकास बेंक

(ज) भारतीय औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम

(क) भारतीय औद्योगिक वित्त निगम लिमिटेड (Industrial Finnace Corp. of India Ltd.)

  1. स्थापना – 1 जुलाई, 1948
  2. ॠण – अल्प, मध्यम व दीर्घकालीन ऋण प्रदान करना।
  3. प्रबन्ध- एक अध्यक्ष, एक प्रबन्ध सचालक व 12 संचालक।
  4. वित्तीय संसाधन – अंश पूँजी 100169 करोड़
  5. ऋण स्वरूप- (I) अधिकतम 25 वर्ष के लिए ऋण, (II) ऋण पत्रों को क्रय करना, (III) आयातित माल के लिए गारन्टी, (IV) विदेशी बैंक से ऋण लेने पर गारन्टी।

(ख) राज्य वित्त निगम (State Finance Corp.)

  1. स्थापना- सितम्बर 1951 प्रत्येक राज्य के नाम पर संस्था स्थापित।
  2. ऋण- लघु व मध्यम आकार के उद्योगों को ऋण।
  3. प्रबन्ध – एक संचालक मण्डल 10 सदस्य (औद्योगिक वित्त निगम, रिजर्व बैंक, व्यापारिक बैंक, सहकारी बैंक, अन्य वित्तीय संस्थाओं से सदस्य नियुक्त होते हैं।)
  4. वित्तीय साधन अंश पूँजी (न्यूनतम 1 करोड़, अधिकतम 10 करोड़)। वर्तमान में 50 करोड़ तक निर्धारित। ऋण पत्र, जमा राशि, उधार रिजर्व बैंक, राज्य सरकार एवं औद्योगिक बैंक से संचित कोष।
  5. ऋण स्वरूप- प्रत्येक राज्य में लघु व मध्यम आकार के उद्योगों को ऋण सहायता, वित्त निगम 20 वर्ष तक के लिए ऋण प्रदान करता है। लिमि0 कम्पनी, सहकारी संस्थाओ एवं अकेले स्वामित्य की इकाईयों को ऋण प्रदान करना, अंशों व ऋण पत्रोंका अभिगोपन।

(ग) भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (IDBI) (Industrial Development Bank of India)

  1. स्थापना- जुलाई, 1964
  2. ऋण- औद्योगिक इकाइयों को दीर्घकलीन व मध्यकालीन ऋण प्रदान करना, अनुसन्धान के लिए ऋण।
  3. बैंकिंग क्षेत्र- भारत में 514 स्थानों पर बैंक की स्थापना जबकि 780 शाखाएँ।
  4. प्रबन्ध- अध्यक्ष, प्रबन्ध निदेशक, पूर्णकालिक निरदेशक, केन्द्र सरकार के दो अधिकारी, तीन निदेशक व्यावसायिक क्षेत्र से, इस प्रकार 11 निदेशक, 9 अन्य निदेशक होते हैं, बैंकिंग संस्था का पुनर्गठन (FCI, ICICI, IRCI, UTI, LIC, SBI) अन्य बैंकिंग संस्थाएँ।
  5. वित्तीय संसाधन- अंश पूँजी 1000 करोड़ रु0, वर्तमान में 2000 करोड़ रु0 तक जमा राशि, विदेशी मुद्रा से ऋण, ऋण पत्र, रिजर्व फण्ड रु0 13980 करोड़ रु0 तक।
  6. वित्तीय सहायता- बैंक मुख्य रूप से दीर्घकालीन ऋण, पत्रों का क्रय, स्थगित भूगतानों पर गारन्टी, शेयर क्रय करना, नियात के लिए पुनः वित्त सुविधा, अंशों, बॉण्ड के अधिगोपन, अनुसन्धान एवं सर्वे के लिए वित्तीय सहायता।

(घ) भारतीय औद्योगिक निवेश बैंक लिमिदेड (Industrial Investments Bank of India, Ltd.)

  1. स्थापना- वर्ष 1971
  2. प्रमुख कार्य- औद्योगिक इकाइयों का पुनः निर्माण, पुनः स्थापना, प्रबन्ध व्यवस्था में सुधार।
  3. पूँजी- अंधरपूँजी निर्माण, अधिकृत पूँजी 200 करोड़ के स्थान पर 1000 करोड़ रू० हो चुकी है।
  4. ऋण- औद्योगिक क्षेत्र को अल्पकालीन व मध्यकालीन ऋण प्रदान करती है। ध्यान रहे उक्त बैंकिंग संस्था 1985 तक भारतीय औद्योगिक पुनर्निर्माण बैंक कहलाती थी।

(ड) यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया एवं अन्य वित्तीय संथाएँ (Unit Trust of India and other Finance Institute)-

वर्तमान समय में यू0 टी) आई (U.T.IL) निजी क्षेत्र की कम्पनी हैं जो प्रारम्भ में यू0 टी) आई) ऐसेट मैनेजमेन्ट (UTIAMC) कहलाती थी। इसी प्रकार भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, भारतीय औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम, भारतीय जीवन बीमा निगम आदि वित्तीय संस्थाएँ हैं जो औद्योगिक विकास में योगदान दे रही हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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