शैक्षिक तकनीकी / Educational Technology

प्रस्तावनात्मक कौशल | पुनर्बलन कौशल | Introducing Skill in Hindi | Skill of Reinforcement in Hindi

प्रस्तावनात्मक कौशल | पुनर्बलन कौशल | Introducing Skill in Hindi | Skill of Reinforcement in Hindi

प्रस्तावनात्मक कौशल

(Introducing Skill)

यह वह शिक्षण-कौशत होता है, जो शिक्षक द्वारा नये पाठ की शुरुआत के समय प्रयोग किया जाता है। इस कौशल की यह मान्यता है कि पाठ का प्रस्तुतीकरण जितना आकर्षक तथा रोचक होगा उतना ही छात्रों का ध्यान पाठ की ओर अधिक केन्द्रित होगा। शिक्षक द्वारा छात्रों को नवीन पाठ की ओर केन्द्रित करने के लिए छात्रों के पूर्वज्ञान की परीक्षा ली जाती है जिससे नवीन ज्ञान प्रदान करने में सुविधा रहती है और शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति होती है। प्रस्तावनात्मक कौशल में निम्नलिखित प्रविधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं-

(i) कहानी द्वारा प्रभावी शिक्षण को जन्म देना।

(ii) काव्यांश द्वारा शिक्षण को प्रभावी बनाना व छात्रों को आकर्षित करना।

(iii) प्रतिकृति चित्र अथवा रेखाचित्र द्वारा छात्रों को समझाना।

(iv) अस्तवानात्मक कौशल की परीक्षा के लिये मुख्य रूप से निम्नलिखित दो प्रविधियाँ का प्रयोग किया जाता है-

पुनर्बलन कौशल

(Skill of Reinforcement)

पुनर्बलन से हमारा अभिप्राय है ऐसे उद्दीपनों का प्रयोग करना जिनके प्रस्तुतीकरण या जिन्हें  हटाने से किसी अनुक्रिया के होने की आशा बढ़ जाती है। इन उद्दीपनों में पुरस्कार, शाबाशी देना, प्रशंसा करना, कमियाँ बताना आदि क्रियायें आती हैं।

“The skill of reinforcement implies giving positive reinforcers using appropriate schedule and avoiding negative reinforcer.”

शिक्षण प्रक्रिया में, पुनर्बलन से तात्पर्य है- ऐसे उद्दीपनों (Stimuli) का प्रयोग करना या उन्हें प्रस्तुत करना या उन्हें हटाना ताकि किसी अनुक्रिया (Response) के होने की संभावनाएं बढ़ जाएँ। उदाहरण के लिए- कक्षा में ही उत्तर मिलने पर, कक्षा में अनुशासित रहने पर या कक्षा में सद्व्यवहार करने पर यदि शिक्षक विद्यार्थियों को कोई पुरस्कार दे या प्रशंसा के दो शब्द कह दे तो विद्यार्थियों से फिर वैसे ही व्यवहार की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं। इस प्रक्रिया में शिक्षक द्वारा दिए पुरस्कार या प्रशंसा के शब्द उद्दीपन (Stimulus) का कार्य करते हैं और इन उद्दीपनों के परिणामस्वरूप हुए व्यवहार को अनुक्रिया (Response) कहा जा सकता है।

कक्षा में सकारात्मक पुनर्बलन का ही अधिक प्रयोग किया जाना चाहिए। अर्थात् उन उद्दीपनों (Stimuli) को प्रयोग किया जाना चाहिए जिनके प्रयोग से अनुक्रिया (Response) के होने की संभावनाएं बढ़ जाती है। उदाहरणार्थ- भोजन, पानी, पुरस्कार, शाबाशी सामाजिक मान्यता आदि। सकारात्मक पुनर्बलन से विद्यार्थियों को कक्षा में अधिक-से-अधिक भाग लेने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। नकारात्मक पुनर्बलन के प्रयोग से ही बचना चाहिए, क्योंकि इससे वांछित व्यवहार दुर्बल पड़ सकते हैं। इससे विद्यार्थियों की प्रतिभागिता कम पड़ जाती है।

सकारात्मक पुनर्बलन दो प्रकार का होता है-

  1. शाब्दिक सकारात्मक पुनर्बलन (Positive Verbal Reinforcement)- विद्यार्थियों के अधिगम को स्थायी करने के लिए शिक्षक स्वीकारात्मक कथनों (Accepting Statements) का प्रयोग करता है, जैसे- मैं तुम्हारी बात समझ गया हूँ’ ‘तुम्हें अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है।’ आदि, इसी प्रकार शिक्षक विद्यार्थियों के सुझावों का समर्थन करता है और उत्साहवर्धक शब्दों का प्रयोग करता है, जैसे- बहुत अच्छा, ठीक है, अति उत्तम आगे बढ़ो आदि आदि। इन सभी प्रकार की क्रियाओं को शाब्दिक सकारात्मक पुनर्बल कहते हैं।
  2. अशाब्दिक सकारात्मक पुनर्बलन (Positive Non-Verbal Reinforcement)- कक्षा में कई बार शिक्षक विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिये अशाब्दिक संकेतों का प्रयोग करता है, जैसे-मुसकराना, सिर हिलाना, विद्यार्थियों की बातों को ध्यान से सुनना, विद्यार्थियों की पीठ थपथपाना, विद्यार्थियों के अच्छे उत्तरों को श्यामपट पर लिखना आदि। ये अशाब्दिक सकारात्मक पुनर्बलन का कार्य करते हैं।

इसी प्रकार नकारात्मक पुनर्बलन दो प्रकार का होता है-

  1. शाब्दिक नकारात्मक पुनर्बलन (Negative Vrbal Reinforcement)- कई बार कक्षा में अधिगम स्थायी करने के लिए कई उद्दीपनों को हटाना भी आवश्यक होता है, जैसे-‘गलत’, ‘बेहूदा’, ‘तुम्हारा यह वाक्य मुझे बिल्कुल पसंद नहीं’ आदि आदि। लेकिन इन उद्दीपनों को प्रयोग करने से विद्यार्थियों को यह लगेगा कि शिक्षक भरी कक्षा में उनकी आलोचना कर रहा है या मजाक उड़ा रहा है, अतः इस प्रकार के पुनर्बलन से बचना ही ठीक होता है।
  2. अशाब्दिक नकारात्मक पुनर्बलन (Negative Non-Verbal Reinforcement)- कक्षा में कई अवसरों पर शिक्षक अशाब्दिक नकारात्मक पुनर्बलन का प्रयोग कर बैठते हए, जैसे- गुस्से में देखना, चाँटा दिखाना, मुक्का दिखाना, पैर पटकना, आँखे तिरछी करके देखना या आँखें तरेरना आदि। शिक्षक को ऐसे अशाब्दिक नकारात्मक पुनर्बलन से भी बचना चाहिए।

सावधानियाँ (Precautions )

इस कौशल के प्रयोग में निम्नलिखित सावधानियों का अनुकरण करना अति आवश्यक है-

  1. पुनर्बलन के लिए विभिन्न नवीन कथनों का प्रयोग किया जाना चाहिए। केवल कुछ ही कथनों को बार-बार नहीं दोहराना चाहिए।
  2. पुनर्बलन के आवश्यकता से अधिक प्रयोग से बचना चाहिए। प्रत्येक अनुक्रिया को पुनर्बलन नहीं करना चाहिए।
  3. पुनर्बलन सभी विद्यार्थियों के लिए हो, न कि केवल उत्तर देने वालों के लिए या होशियार बच्चों के लिए ही हो। कक्षा में शर्मीली प्रकृति के बच्चे भी होते हैं, उन्हें भी पुनर्बलन चाहिए। कक्षा- क्रियाओं या स्कूल क्रियाओं में भाग न लेने वाले विद्यार्थियों को भी पुनर्बलन चाहिए।
  4. उपयुक्त शब्दों तथा कथनों का प्रयोग करके पुनर्बलन दिया जाना चाहिए। ऐसा न हो कि सरल प्रश्नों के उत्तर में अधिकतम प्रशंसा कर दी जाए और कठिन प्रश्नों के उत्तर मिलने पर विद्यार्थियों को ‘ठीक है’ कहकर बिठा दिया जाए। इससे शिक्षक के पक्षपातपूर्ण व्यवहार की शंकाएं उत्पन्न हो जाएंगी।

शोध अध्ययन हमें यह बताते हैं कि धनात्मक पुनर्बलन का प्रभाव, ऋणात्मक पुनर्बलन की तुलना में ज्यादा अच्छा पड़ता है। अतः पुनर्बतन कौशल का अभ्यास इस प्रकार कराया जाता है कि शिक्षक धनात्मक पुनर्बलन का प्रयोग अधिक से अधिक तथा ऋणात्मक पुनर्बतन का प्रयोग कम-से- कम कक्षा शिक्षण के क्षेत्र में करे।

पुनर्बलन कौशल के घटक (Components) –

  1. अंशसात्मक कथनों का प्रयोग
  2. हावभाव तथा अन्य अशाब्दिक ससंकेतों का प्रयोग।
  3. छात्रों के विचारों एवं भावों से अपनी सहमत प्रकट करना
  4. नकारात्मक शाब्दिक कथनों का प्रयोग
  5. नकारात्मक अशाब्दिक कथनों का प्रयोग
  6. छात्रों के सही उत्तरों को श्यामपट्ट पर लिखना।
  7. पुनर्बलन का समुचित उपयोग।
  8. छात्रों के सुझाव का समर्थन।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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