पत्राचार शिक्षा

पत्राचार शिक्षा : अर्थ एवं परिभाषा | पत्राचार शिक्षा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विकास | पत्राचार शिक्षा के उद्देश्य

पत्राचार शिक्षा : अर्थ एवं परिभाषा | पत्राचार शिक्षा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विकास | पत्राचार शिक्षा के उद्देश्य | Correspondence Education: Meaning and Definition in Hindi | Historical Background and Development of Correspondence Education in Hindi | Objectives of Correspondence Education in Hindi

पत्राचार शिक्षा : अर्थ एवं परिभाषा

(Correspondence Education: Meaning and Definition)

‘पत्राचार शिक्षा’ जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है ऐसी शिक्षा प्रणाली को कहा जाता है जो पत्र या डाक द्वारा सम्पन्न की जाती है। ग्लैटर और वेडेल (1971) के अनुसार-पत्राचार शिक्षा अनुदेशन शिक्षा के लिए एक सुसंगठित व्यवस्था है जो डाक द्वारा दी जाती है। यद्यपि डाक द्वारा दिये गये ट्यूशन को दूरस्थ संचार माध्यमों के साथ-साथ आमने-सामने बैठकर शिक्षण देने आदि क्रियाकलापों से भी जोड़ा जा सकता है।“

“Correspondence education can be defined as organised provision for Instruction and education through post. Although postal tuition can be Supplemented by many other distance media, as well as, by face-to-face Teaching.

पत्राचार शिक्षा या कार्यक्रम के उद्देश्यों इसके द्वारा शिक्षित होने वाले लोगों और इसके द्वारा प्रयुक्त अनुदेशन के माध्यमों के कारण अनेक लोग इसे अनेक नाम देते हैं।

अतः जो लोग इसके द्वारा शिक्षा ग्रहण करने वालों के निवास स्थानों को दूर-दूर होने को आधार मानते हैं वे इसे ‘दूरवर्ती शिक्षण’ या ‘परिसर बाहर शिक्षण’ की संज्ञा देते हैं। जो लोग इसके द्वारा अधिगमकर्त्ता को उसके घर पर ही उसकी शिक्षा व्यवस्था करने के प्रशंसनीय उद्देश्य को ध्यान में रखते हैं ऐसे लोग उसे ‘गृह अध्ययन प्रणाली’ के नाम से पुकारते हैं। किन्तु यह नामकरण पत्राचार शिक्षा के सम्प्रत्यय को पूर्णतया स्पष्ट नहीं करता क्योंकि गृह अध्ययन प्रणाली का रूनी एफ० सरडॉस के अनुसार तात्पर्य है-‘किसी संस्था या व्यक्ति के द्वारा ऐसो सेवाएँ प्रदान करना जो शिक्षण का उत्तरदायित्व अपने पर लेता है। गृह अध्ययन की व्याख्या, अध्ययन स्थल पर बल देने के कारण आत्म अनुदेशन के रूप में सीमित हो जाती हैं।

इंग्लैण्ड के लोगों ने अपने प्रमुख पत्राचार शिक्षण संस्था को खुले विश्वविद्यालय की संज्ञा दो है। इसके पीछे सम्भवतः यही कारण है कि आयु, निवास के स्थान, बुनियादी शैक्षिक योग्यता आदि की ओर ध्यान न देते हुए यह विश्वविद्यालय किसी को भी प्रवेश देता हैं। खुलेपन के इस विचार, विशेषकर विश्वविद्यालय की भौगोलिक सीमाओं से मुक्ति के कारण हाल ही में कुछ उत्साही लेखकों ने इसे ‘बिना दीवार का विश्वविद्यालय’ कहना शुरू कर दिया है। 1966 में ब्रिटेन की सरकार ने एक श्वेत पत्र जारी कर अपने पत्राचार शिक्षण संस्थान का नामकरण ‘खुले आकाश का विश्वविद्यालय’ करना चाहा। इसके पीछे सम्भवतः यही कारण है कि इस शिक्षा प्रणाली में आकाशवाणो को अनुदेशन के अतिरिक्त माध्यम के रूप में अधिकाधिक प्रयोग किया जायेगा।

‘विभिन्न नामकरणों के जाल में फंसी शिक्षा प्रणाली का सम्प्रत्ययात्मक अर्थ सर्वाधिक ‘पत्राचार शिक्षा’ द्वारा ही स्पष्ट होता है, जैसा कि ग्लैटर और वेडेल की परिभाषा से स्पष्ट है।

पत्राचार शिक्षा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विकास

(Correspondence Education : Historical back-ground And development)

औपचारिक शिक्षा के एक सशक्त प्रणाली के रूप में पत्राचार शिक्षा सर्वथा नवीन नहीं है। केवल पत्राचार की बात करें तो संचार एवं सम्प्रेषण के रूप में इसका प्रयोग सम्भवतः उतना ही पुराना है जितना कि अक्षरों तथा लिखने की कला का आविष्कार। आजकल पत्रचार शिक्षा के क्षेत्र में नये आयाम जोड़े हैं और प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक की सुविधा को जनसुलभ बना दिया है। वर्तमान पत्रचार शिक्षा जिसमें व्यक्तिगत पत्राचार से ऊपर उठकर पत्राचार का उपयोग शिक्षा, अनुदेशन एवं प्रशिक्षण के लिए किया जाने लगा है, के जनक के रूप में एक अंग्रेज श्री पिटमैन का नाम लिया जाता है। सम्भवतः 1860 में सर्वप्रथम इन्होंने अपने छात्रों को लिखित निर्देश डाक द्वारा भेजकर प्रशिक्षित करने का प्रयास किया था। इन प्रारम्भिक साधारण प्रयासों ने आगे चलकर एक शताब्दी से भी कम समय में एक पूर्ण विकसित नवीन शिक्षा प्रणाली का रूप में धारण किया जो आज जनसंख्या के एक बहुत बड़े अंश को लेकर समतावादी समाज की रचना करने में सक्रिय है।

19वीं शताब्दों के अन्त तक अनेक यूरोपीय देशों जैसे-जर्मनी, इंग्लैण्ड और स्वीडन ने इसे  अपनाकर पत्राचार शिक्षा के क्षेत्र में पथ प्रदर्शक का कार्य किया। 20वीं शताब्दी के मध्य तक संयुक्त राज्य अमेरिका और रूसी समाजवादी गणराज्य ने इस प्रणाली को बहुत बड़े पैमाने पर अपनाया। फलस्वरूप पत्रचार शिक्षा प्रणाली को न्यूजीलैण्ड, जापान और अन्य बहुत से देशों में उच्च प्राथमिकता दी जाने लगी। द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका से प्रताड़ित देशों ने अपनी तात्कालिक शैक्षिक समस्याओं एवं आवश्यकताओं की पूर्ति एक दशक से कम समय में ही पत्रचार शिक्षा प्रणाली को अपना कर पूरा कर लिया।

विश्व मंच पर पत्राचार प्रणाली की इन सफलताओं से इस शताब्दी के छठे दशक में तत्कालीन केन्द्रीय शिक्षा मंत्री डॉ० कालू लाल श्रीमाली अत्यन्त प्रभावित हुए। उनको कल्पनाशीलता ने भारतीय युवकों की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु इस प्रणाली का प्रायोगिक उपयोग करना चाहा। उन्हीं की प्रेरणा और निर्देशन के आधार पर 1962 में एक ‘पाइलॉट प्रोजेक्ट’ (Pilot Project) के अन्तर्गत दिल्ली विश्वविद्यालय में पत्राचार शिक्षा विद्यालय की स्थापना हुई।

इस पत्राचार विद्यालय ने विभिन्न महाविद्यालयों से उत्तीर्ण छात्रों की बाढ़ की महाविद्यालयों परिसर में प्रवेश से ही नहीं रोका अपितु अनेक लोगों के मन में विश्वविद्यालय शिक्षा प्राप्त करने की आशा जगाकर उन्हें उच्च शिक्षा का अवसर भी प्रदान किया। 1964 में भारत सरकार ने ‘भारतीय शिक्षा आयोग’ का गठन किया। इस आयोग ने पत्राचार शिक्षा प्रणाली का प्रशंसा करते हुए लिखा- एक ऐसी विधि का होना आवश्यक है जो शिक्षा को लाखों ऐसे लोगों तक पहुँचाए जो स्वयं अपने प्रयास से और अपनी सुविधा के समय पर अध्ययन करना चाहते हैं।

हम मानते हैं कि पत्रचार या गृह अध्ययन पाट्यक्रम इस स्थिति का सही उत्तर प्रदान करता है। इस आयोग ने यह मत भी प्रकट किया है कि ऐसा कोई कारण नहीं है कि हम आशंकित हो  कि पत्राचार पाठ्यक्रम द्वारा की गयी शिक्षा स्कूलों और कालेजों में दी जाने वाली शिक्षा को तुलना में घटिया किस्म की होगी। पत्राचार प्रणाली के सम्बन्ध में विदेशों और भारत में हुए शैक्षिक अनुसन्धानों द्वारा भी इस बात की पुष्टि हुई है कि इस प्रकार की आशंका बेबुनियाद है।

आयोग की संस्तुतियों ने अनेक भारतीय विश्वविद्यालयों को प्रोत्साहित किया कि वे बड़े पैमाने पर पत्राचार शिक्षा प्रणाली को अपनायें। भारतीय विश्वविद्यालय भी उच्च शिक्षा हेतु प्रवेश के लिए इच्छुक छात्रों की बढ़ती हुई संख्या और उन्हें स्थान देने के लिए नये-नये विद्यालय स्थापित करने की माँग के दबाव से त्रस्त एवं चिन्तित थे। ऐसी स्थिति में शिक्षा आयोग की संस्तुति ने मनचाहे वरदान का कार्य किया। फलस्वरूप 1964 के पश्चात पत्राचार शिक्षा प्रणाली का देश में अभूतपूर्व विस्तार हुआ।

सर्वप्रथम, दिल्ली प्रशासन के शिक्षा निदेशालय ने माध्यमिक विद्यालय स्तर पर पर परीक्षा हेतु  पत्राचार विद्यालय का प्रारम्भ किया। तत्पश्चात् कई एक माध्यमिक शिक्षा परिषदों ने भी हाईस्कूल  परीक्षा और माध्यमिक स्तरीय शिक्षक प्रशिक्षण परीक्षा के लिए पत्राचार पाठ्यक्रम प्रारम्भ किये। केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद् ने इस नवाचार को अपनाकर जुलाई, 1979 में दिल्ली में खुले स्कूल’ की स्थापना की जो छात्रों को केन्द्रीय शिक्षा परिषद की परीक्षा के लिए तैयार करता है।

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में 1968 में ही राजस्थान विश्वविद्यालय तथा पंजाबी विश्वविद्यालय, (पटियाला) में पत्राचार पाठ्यक्रम के संस्थानों की स्थापना हुई। इसके एक साल बाद ही मैसूर और मेरठ में पत्राचार संस्थानों का जन्म हुआ। 1971 में इस प्रणाली के विकास के लिए बहुत ही शुभ वर्ष था क्योंकि इसमें पाँच और पत्राचार संस्थान चण्डीगढ़, शिमला, मदुर, बम्बई और लुधियाना में स्थापित हुए। विस्तार की यह प्रक्रिया आगे बढ़ती गया और आज 33 विश्वविद्यालयों, 8 केन्द्रीय संस्थानों (क्षेत्रीय महाविद्यालयों सहित) और अनेक व्यक्तिगत संस्थाओं के द्वारा चलाये जाने वाले पत्राचार शिक्षा केन्द्र हैं, जो विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रमों के लिए पत्राचार माध्यम को अपनाते हैं।

अतः हम कह सकते हैं कि पत्राचार शिक्षा प्रणाली जो दूरवती शिक्षा प्रणाली का हा एक प्रमुख रूप है दिन-प्रतिदिन अधिकाधिक लोकप्रिय होती जा रही है। क्योंकि अब इसे लोग औपचारिक संस्थागत शिक्षा प्रणाली के एक कम खचली एवं प्रभावकारी विकल्प के रूप में मानने लगे हैं। प्रमाणस्वरूप एक उदाहरण देना समीचीन होगा। आजकल उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् ने इण्टरमीडिएट स्तर पर व्यक्तिगत (Private) परीक्षार्थियों के लिए पत्राचार पाठ्यक्रम को अपनाना अनिवार्य है।

पत्राचार शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Correspondence Courses) —

पत्राचार शिक्षा कार्यक्रम मुख्यतः माध्यमिक शिक्षा परिषदों और विश्वविद्यालयों द्वारा छात्रों को विभिन्न परीक्षाओं के लिए तैयार करने के उद्देश्य से चलाये जाते हैं। कुछ स्थानों पर डिग्री या प्रमाणपत्रों से असम्बद्ध पत्राचार शिक्षा कार्यक्रम इसलिए भी चलाये जाते हैं कि लोग उन कौशलों का विकास करें जो उनके सेवा पूर्व और सेवारत प्रशिक्षण के अंग हैं। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने 1978 के अपने प्रकाशन एडल्ट एजूकेशन कम्पोनेन्ट्स इन डेवलपमेन्ट स्कीम्स ऑफ गवर्नमेन्ट ऑफ इण्डिया में पत्राचार पाठ्यक्रमों के उद्देश्यों का उल्लेख इस प्रकार किया है-

(1) व्यक्तियों को उनकी निजी सुविधानुसार शिक्षा प्रदान करना और उन्हें अपने खाली समय को शैक्षिक प्रक्रियाओं में लगाने हेतु सहायता प्रदान करता है।

(2) बहुत बड़ी संख्या में लोगों को ज्ञान अर्जित करने और व्यावसायिक दक्षता बढ़ाने के लिए शिक्षा की वैकल्पिक विधि का प्रबन्ध करना।

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