राजनीति विज्ञान / Political Science

दक्षिण-पूर्वी एशिया सन्धि संगठन – सीटो 1954 | South-East Asia Treaty Organization- SEATO 1954 in Hindi

दक्षिण-पूर्वी एशिया सन्धि संगठन – सीटो 1954 | South-East Asia Treaty Organization- SEATO 1954 in Hindi

दक्षिण-पूर्वी एशिया सन्धि संगठन – सीटो 1954

नाटो की तरह सीटो भी साम्यवाद के डर के कारण ही पैदा हुआ। चीन में साम्यवादी शासन प्रणाली की स्थापन ने  सारे पश्चिमी देशों को साम्यवाद के बढ़ते खतरे से डरा दिया, विशेषतया दक्षिण-पूर्वी एशिया को। प्रत्युत्तर में अमरीका तथा पश्चिमी शक्तियों ने दक्षिण-पूर्वी एशिया में साम्यवादी विरोधी क्षेत्रीय सुरक्षा व्यवस्था स्थापित करने का निर्णय किया।

  1. सीटो सन्धि (The SEATO Treaty) : सन् 1954 में हिन्द-चीन के सम्बन्ध में जनेवा युद्ध विराम-सन्धि के बाद अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फिलीपाइन, थाइलैंड तथा पाकिस्तान, सभी मनीला (Manila) में सितम्बर, 1954 को मिले तथा इन्होंने दक्षिण-पूर्वी एशिया में सम्भावित आक्रमण या क्रान्ति को संयुक्त रूप से रोकने के लिए कदम उठाने के बारे में विचार किया। इस सम्मेलन के परिणामस्वरूप “प्रशान्त चार्टर” (Pacific Charter) तथा दक्षिण-पूर्वी सामूहिक प्रतिरक्षा सन्धि (South-East Collective Defence Treaty) अर्थात् सीटो (SEATO) बनी। केवल दो राज्यों, जो वास्तव में दक्षिण-पूर्वी एशिया के थे, के साथ यह सन्धि इस क्षेत्र में आक्रमण या (साम्यवादी) क्रान्ति से रक्षा करने के लिए की गई। एक संलेख (Protocol) में तो विशेषतया यह लिखा गया कि लाओस, कम्बोडिया तथा दक्षिणी वियतनाम को ‘सन्धिक्षेत्र (Treaty Area) में शामिल देश माना जाएगा।

सन्धि की प्रस्तावना में हरताक्षर करने वालों ने शान्ति तथा सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र के चार्टर, शान्तिपूर्ण साधनों मानवीय अधिकारों, आत्म-निर्णय तथा सामूहिक एकता में अपना विश्वास प्रकट किया। सन्धि के अनुच्छेद 2 में यह लिखा गया कि, “सन्धि के उद्देश्यों को और अधिक प्रभावशाली ढंग से प्राप्त करने के लिए सदस्य, अलग या संयुक्त रूप से, किसी सशस्त्र आक्रमण या उन क्रान्तिकारी कार्यवाहियों का मुकाबला करने के लिए, जो उनकी भू-क्षेत्रीय अखंडता तथा राजनीतिक स्थिरता के विरुद्ध होगी तथा उनको रोकने के लिए निरन्तर स्वावलम्बन तथा पारस्परिक सहायता द्वारा अपने में व्यक्तिगत या सामूहिक क्षमता पैदा करेंगे। ” अनुच्छेद 3 के अन्तर्गत, सदस्यों ने परस्पर आर्थिक तथा व्यापारिक सम्बन्धों को प्रोत्साहित करने का निश्चय किया। अनुच्छेद 4 में लिखा गया है कि, प्रत्येक सदस्य ने स्वीकार किया है कि “सन्धि क्षेत्र (Trealy Area) के विरुद्ध किसी भी आक्रमण को सभी सदरयों की शांति तथा सुरक्षा भंग करने की कार्यवाही समझा जाएगा। इस तरह की किसी घटना के समय सदस्य राष्ट्र व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से शांति तथा सुरक्षा की पुनः स्थापना के लिए अनुकूल तथा आवश्यक कार्यवाही करेंगे।”

  1. संगठनात्मक ढांचा (Organizational Structure) : सन्धि के अनुच्छेद 5 द्वारा एक परिषद् की स्थापना की गई, जिसमें अनुवन्धित देशों को सदस्यता दी गई। परिषद् सन्धि के संचालन सम्बन्धी मामलों को देखती है। इसमें ‘सन्धि क्षेत्र’ में समय-असमय स्थिति अनुसार, सैन्य या योजना सम्बन्धी परामर्श करने की व्यवस्था है। परिषद् का संगठन इस तरह किया गया कि यह किसी भी समय अपनी बैठक कर सकेगी ।

सीटो की परिषद् वर्ष में एक बार मिलती है तथा सदस्य राज्यों के मंत्री इसमें उपस्थित होते हैं। प्रत्येक राज्य एक सैन्य परामर्शदाता परिषद् में भेजता है आर्थिक विशेषज्ञ कभी-कभी मिलते हैं तथा परिषद् को आर्थिक मामलों में परामर्श देते हैं। परिषद् अपना काम विभिन्न समितियों द्वारा करती है तथा इसका एक सचिवालय भी होता है।

सीटो नाटो से कहीं ज्यादा लचीली व्यवस्था है। इसमें संयुक्त सैन्य बल या कमाण्ड की कोई व्यवस्था नहीं है। यह तथ्य कि इसमें केवल दो दक्षिण-पूर्वी राज्य शामिल हैं-इस क्षेत्र में इसकी भूमिका को और भी कम कर देता है। यहां तक कि इसके निर्माताओं ने भी माना कि, “यह दक्षिण-पूर्वी एशिया में साम्यवादी खतरे का पूर्ण. उत्तर नहीं है।” व्यवहार में यह एक कमज़ोर संगठन ही सिद्ध हुआ है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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