समुदाय और शिक्षा | समुदाय का अर्थ | समुदाय और शिक्षा का सम्बन्ध | समुदाय का शिक्षा पर प्रभाव
समुदाय और शिक्षा | समुदाय का अर्थ | समुदाय और शिक्षा का सम्बन्ध | समुदाय का शिक्षा पर प्रभाव
समुदाय और शिक्षा
मानव समाज की बहुत सी इकाइयाँ होती हैं जिनमें समुदाय एक इकाई है। समुदाय मानव द्वारा निर्मित एक विशिष्ट समूह है जो भौगोलिक, सामाजिक, राजनैतिक सीमाओं में बनता है। समुदाय के अन्दर सदस्यों का जीवन व्यतीत होता है और समुदाय मानव जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है। शिक्षा भी समुदाय द्वारा प्रभावित होती है, समुदाय अपने सदस्यों की शिक्षा के स्वरूप, ढंग, विस्तार आदि को निर्धारित करता है। अतएव समाजशास्त्रीय दृष्टि से समुदाय शिक्षा का एक प्रभावशाली साधन माना जाता है।
समुदाय का अर्थ-
समुदाय के लिये अंग्रेजी भाषा में ‘कम्युनिटी’ शब्द का प्रयोग होता है। कम्युनिटी शब्द ‘कम’ और ‘म्युनिस’ शब्दों से मिल कर बना है जिसका अर्थ होता है ‘एक साय’ ‘सेवा करना’ । इस दृष्टि से समुदाय (कम्युनिटी) का अर्थ होता है। एक साथ सेवा के अधिकार कर्तव्य का निर्वाह करने वाली संस्था ।
मैकआइवर तथा पेज ने लिखा है कि “जब कभी किसी छोटे या बड़े समूह के सदस्य इस प्रकार मिल-जुल कर रहते हैं कि वे एक दूसरे के विशिष्ट कार्यों में ही हाथ नहीं बँटाते, बल्कि, सामान्य जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं तो हम उस समूह को समुदाय कहते हैं।”
ऊपर के कथन से स्पष्ट है कि समुदाय “हम भावना” के आधार पर बनी एक सामाजिक संस्था है। समुदाय के सदस्य एक दूसरे के लिए जीवन के विभिन्न कार्य करते हैं। इस दृष्टि से ब्राउनवेल ने कहा है कि “यह (समुदाय) एक प्राथमिक समूह है जिसमें जीवन के अनेक मुख्य कार्य समूह में ही एक दूसरे के सहयोग से किए जाते हैं।
जिन्सबर्ग नाम समाजशास्त्री ने समुदाय का अर्थ अधिक स्पष्ट रूप से इन शब्दों में प्रकट किया है, “समुदाय का अर्थ सामान्य जीवन व्यतीत करने वाले सामाजिक व्यक्तियों के समूह-विशेष से समझना चाहिए। इस सामान्य जीवन में हम उन सभी असीमित और जटिल सम्बन्धों को सम्मिलित करते हैं जो इसका निर्माण करते हैं अथवा इसके परिणाम- स्वरूप उत्पन्न होते हैं।”
समुदाय और शिक्षा का सम्बन्ध-
इसका का घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। किसी समुदाय का संगठन उसके सदस्यों के जीवन-यापन और शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था के लिए किया जाता है। समुदाय शिक्षा प्रदान करने के साथ साथ अपने सदस्यों की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति भी करता है। इस दृष्टि से समुदाय शिक्षा का एक अनौपचारिक और महत्वपूर्ण साधन है।
समुदाय अपने बच्चों, युवाओं और वृद्धों सभी के लिए विभिन्न संस्थाओं और अभिकरणों का निर्माण और आयोजन करता है जहाँ सभी सदस्य परिवार में सीखे हुए ज्ञान का परिमार्जन करते है और अपने संकुचित दृष्टिकोण को व्यापक बनाते है तथा समायोजन के लिए प्रयत्न करते हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में प्राचीन काल, मध्यकाल और आधुनिक काल में समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका पाई जाती रही है। ऐसा स्पष्ट कहा जाता है कि बिना समुदाय के सहयोग से शिक्षा की उचित व्यवस्था सम्भव नहीं है। समुदाय अपने सभी सदस्यों के लिए शैक्षिक पर्यावरण तैयार करता है, प्रस्तुत करता है और फैलाता है जिसमें उनके संस्कार बनते हैं, आचरण बनता है, वे भाषा, विज्ञान, कला सीखते हैं, मूल्य और मान्यता धारण करते हैं। अनौपचारिक और औपचारिक दोनों प्रकार की शिक्षा समुदाय द्वारा प्रदान की जाती है। शिक्षा के लिए यह सहयोग निःसन्देह बहुत बड़ा है।
अन्य देशों की भाँति भारत में भी आज समुदाय अपने सभी सदस्यों के मानसिक, शारीरिक, नैतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक व राष्ट्रीय विकास के लिए विभिन्न साधनों को जुटाता है और उन्हें उद्योग-व्यवसाय में लगाए रहता है, आर्थिक सहायता देता है तथा जनतंत्र का एक सुयोग्य, सबल और शिष्ट नागरिक बनाता है जिससे समुदाय सभी सदस्यों को सम्पूर्णतया शिक्षित बनाने का दायित्व पूरा करता है। यहीं हमें समुदाय की प्रभावशाली भूमिका पूरी होती दिखाई देती है। अतएव समुदाय का शिक्षा से सम्बन्ध घनिष्ठ होता है।
समुदाय का शिक्षा पर प्रभाव-
विलियम ए० यीगर ने लिखा है कि समुदाय मनुष्य का व्यक्तित्व एवं उसकी क्रियाओं का विकास पूर्णरूप से करता है और इस पूर्ण विकास का साधन शिक्षा ही होती है। समुदाय का प्रभाव शिक्षा पर काफी पड़ता है। किस तरह समुदाय शिक्षा को प्रभावित करता है इस पर विचार करना जरूरी है।
(1) शिक्षा का स्वरूप निश्चित करना- जैसा समुदाय होता है वैसी ही शिक्षा- प्रणाली होती है। अमरीका, भारत, इंग्लैंड और रूस की शिक्षा प्रणाली वहाँ के समुदाय द्वारा निश्चित होती है। किसे क्या पढ़ाना चाहिए और कैसे पढ़ाना चाहिए यह समुदाय की प्रकृति द्वारा प्रभावित होता है। भारत में जनतांत्रिक समुदाय है और रूस में साम्यवादी समुदाय है, दोनों की शिक्षा प्रणाली और शिक्षा की वस्तु अलग-अलग है।
(2) शिक्षा में परिवर्तन करना- ओटावे ने लिखा है कि जब तक समुदाय की संस्कृति नहीं बदलती है तब तक उसकी शिक्षा में भी परिवर्तन नहीं हो सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि समुदाय की परिस्थिति में भी परिवर्तन होता है उसका प्रभाव शिक्षा पर अवश्य पड़ता है। आज भारत में तकनीकी शिक्षा पर जोर इसीलिए दिया जा रहा है कि लोगों का दृष्टिकोण अब वैज्ञानिक और तकनीकी हो गया है। समुदाय के लोगों के जीवन में धर्म का कोई महत्व अब नहीं रहा इसीलिए धर्मनिरपेक्ष शिक्षा दी जा रही है। जनतंत्र बन जाने से नागरिकता की शिक्षा दी जा रही है और सभी नागरिकों को शिक्षा पाने का अधिकार है।
(3) शिक्षा पर नियंत्रण रखना- आज समुदाय के द्वारा शिक्षा पर पूर्ण नियंत्रण रखा जाता है। प्राचीन काल और मध्यकाल में भी समुदाय का नियंत्रण था। शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, विद्यालय और शिक्षक सभी समुदाय के नियंत्रण में होते हैं। इसीलिए डीवी ने कहा है कि विद्यालय समाज का प्रतिनिधि है। होवर्क ने इससे भी आगे कह डाला है कि विद्यालय समाज की प्रकृति बदलता है और विद्यालय के साधन हैं उनके विचार और आदर्श ऐसी परिवर्तन के लिए उत्तरदायी हैं। परन्तु इन सभी को साधने वाला या नियंत्रण में रखने वाला समुदाय ही है।
(4) शिक्षा के अनौपचारिक साधनों की व्यवस्था करना- विद्यालयों के अलावा शिक्षा के अनौपचारिक साधनों की व्यवस्था समुदाय करता है। पुस्तकालय, प्रयोगशाला, वाचनालय, संग्रहालय, कला-संगीत अभिनय संस्थाओं सभी की व्यवस्था समुदाय करता है और तदनुकूल शिक्षा का प्रचार व प्रसार भी होता है। सामाजिक-शिक्षा, अभिभावक-शिक्षा व समिति, जनसंख्या-शिक्षा, पर्यावरण-शिक्षा, नागरिक-शिक्षा आदि की व्यवस्था समुदाय के ही द्वारा की जाती है।
(5) विद्यालय के नेताओं को सहायता देना- समुदाय के द्वारा आज विद्यालयों के छात्र नेताओं एवं अध्यापक नेताओं एवं प्रबंधक नेताओं को भौतिक सहायता समय-समय पर दी जाती है। इस सहयोग और संबंध पर बल देते हुए क्रो और क्रो जैसे लेखकों का विचार है कि समुदाय का उत्तरदायित्व और सहयोग इस दिशा में अवश्य होना चाहिए । इसका अर्थ यह है कि समुदाय ऐसे नेताओं को तैयार करने में पूरा-पूरा हाथ बँटावे। गांधीजी ने और आज हमारी सरकार ने विद्यालयों में छात्र संघ बनाकर स्वतंत्र विचार वाले नेता को तैयार किया यद्यपि अब इसका दुरुपयोग हो रहा है।
शिक्षा का समुदाय पर प्रभाव-
एक ओर जहाँ समुदाय शिक्षा को प्रभावित करता है तो दूसरी ओर शिक्षा भी समुदाय को प्रभावित करती है। शिक्षा समुदाय को बनाती है और उसे सुरक्षित रखने में सहयोग देती है। साम्यवादी समुदाय के बनाने में उसे जीवित रखने में तथा आगे बढ़ाने में साम्यवादी शिक्षा का ही हाथ है। इसी प्रकार जनतंत्रवादी समुदाय भी जनतंत्रवादी शिक्षा का परिणाम कहा जाता है।
निम्न बिन्दुओं पर शिक्षा का प्रभाव देखा जा सकता है-
(1) समुदाय की परम्परा सुरक्षित रखना- बी० एन० झा ने लिखा है कि (समुदाय) समाज की परम्परा को शिक्षा के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाया जाता है और इस प्रकार वह सुरक्षित रखी जाती है। परम्परा में भाषा, साहित्य, कला, सभ्यता, संस्कृति सभी निहित होते हैं।
(2) समुदाय को प्रगतिशील बनाना- डीवी ने लिखा है कि शिक्षा के द्वारा समाज (समुदाय) के कल्याण, सुधार और उन्नति की रुचि का पुष्पित होना पाया जाता है । विभिन्न अनुसंधानों, प्रयोगों और आविष्कारों द्वारा समुदाय को प्रगतिशील बनाना शिक्षा द्वारा ही सम्भव हुआ है।
(3) सामाजिक परिवर्तन और नियंत्रण लेना- शिक्षा के कारण ही समाज की स्थिति में परिवर्तन और नियंत्रण होता है। भारत में जातीयता, प्रान्तीयता, धार्मिक कट्टरता, साम्प्रदायिकता, दलबन्दी, संकीर्णता आदि अपने देश में इसीलिए फैली हुई है क्योंकि शिक्षा की अव्यवस्था है। समुदाय के प्रति कुछ अधिक निष्ठा है। फिर भी एक राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था से सामाजिक संकीर्णताओं में परिवर्तन लाने का प्रयास हो रहा है और समुदाय (समाज) पर नियंत्रण रखा जा रहा है। अन्य देशों में शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन और नियंत्रण की पूरी व्यवस्था मिलती है। रूस इसका उत्तम उदाहरण है।
(4) शिक्षा का सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक जीवन पर प्रभाव होना- समुदाय के जीवन के विभिन्न पक्ष होते हैं- सामाणिक, आर्थिक, राजनैतिक, नैतिक, सांस्कृतिक आदि। इन सभी पर शिक्षा का प्रभाव पड़ता है। लोगों में सामाजिक चेतना और जागरुकता शिक्षा के द्वारा ही लाई जाती है। औद्योगिक और व्यावसायिक शिक्षा के द्वारा ही आर्थिक विकास होता है। “समुदाय की राजनैतिक विचारधारा उस सीमा तक प्रतिबिम्बित होती है जहाँ तक कि उसके सब सदस्यों को शैक्षिक अवसर प्रदान किए जाते हैं।” यह उक्ति को और को की है और सही है। शिक्षा इस प्रकार राजनैतिक जागृति, नेतृत्व और प्रगति के लिए उत्तरदायी है। शिक्षा नैतिक विकास में योगदान देती है; शिक्षा अच्छाई-बुराई को बताकर समुदाय के सभी सदस्यों को बुराई से बचने को कहती है। महापुरुषों और महात्माओं के उपदेश शिक्षा ही हैं जो दुष्कर्म से बचाती है। शिक्षा संस्कार बनाती है और संस्कारों के अभ्यास से संस्कृति का निर्माण होता है। इसी संस्कृति के विकास में शिक्षा को लगाया जाता है। अब स्पष्ट है कि शिक्षा समुदाय पर कितना अधिक प्रभाव डालती है।
निष्कर्ष-
उपर्युक्त विवेचन से इसका का प्रभाव पारस्परिक पड़ता दिखाई देता है। इस सम्बन्ध में क्रो और क्रो महोदय की उक्ति उपयुक्त जंचती है- “समुदाय नहीं के लिए कुछ चीज की आशा नहीं कर सकता। यदि वह अपने युवकों से अपने समुदाय की भली भाँति सेवा चाहता है तो उसे उन्हें वे सब शैक्षिक सुविधाएँ प्रदान करनी चाहिए जो एक युवक के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से उस सेवा के लिए समर्थ बनाने हेतु अपेक्षित है।
वास्तव में शिक्षा समुदाय की देन है अतएव प्रत्येक समुदाय से यही अपेक्षा रहती है कि वह अपने शैक्षिक कर्तव्य का पालन बड़ी ईमानदारी के साथ करे। उच्च आदर्शों, मूल्यों, मान्यताओं, परम्पराओं, रीतियों, आदि को स्थापित करना समुदाय का काम है और इन्हें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक सभी बालकों, युवकों तथा वृद्धों तक विभिन्न अभिकरणों द्वारा पहुँचाना शिक्षा का काम है। यदि दोनों अपने-अपने कर्तव्य पूरा करें तो प्रत्येक दिशा में प्रगति होगी। समुदाय की विभिन्न संस्थाएँ-विद्यालय, परिवार, समितियाँ, गोष्ठियाँ-अपने-अपने कार्य करते चलें तभी शिक्षा की उपलब्धि होगी और समुदाय की उन्नति सम्भव होगी। समुदाय शिक्षा के पग साथ-साथ उठने में ही मानव का कल्याण होगा। इसे सभी लोगों को समझना है और धारण करना है।
शिक्षाशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
- भारतीय दर्शन का तात्पर्य | दर्शन का अर्थ | फिलॉसफी से दर्शन की भिन्नता | भारतीय आदर्शवाद
- भारतीय यथार्थवाद | न्याय-वैशेषिक दर्शन में यथार्थवाद | भारतीय दर्शन में व्यावहारिकतावादी प्रवृत्ति | व्यावहारिकतावाद का अर्थ | भारतीय दर्शन में व्यावहारिक प्रवृत्ति
- व्यक्ति और समाज | शिक्षा के वैयक्तिक और सामाजिक उद्देश्य | व्यक्ति तथा समाज के बीच सम्बन्ध
- जनतंत्र का अर्थ | जनतंत्र के मूलतत्व | जनतंत्र की विशेषताएँ
- जनतंत्र और शिक्षा | शिक्षा में जनतंत्र का अर्थ | जनतंत्र में शिक्षा की आवश्यकता | जनतंत्र में शिक्षा के उद्देश्य
- भारतीय जनतंत्र की शिक्षा | जनतंत्र को शिक्षा द्वारा सफल बनाना
- शिक्षा के मूल्य | मूल्य का तात्पर्य | मूल्य, मूल्यों और मूल्यांकन
- शैक्षिक समाजशास्त्र | शिक्षा का समाजशान | शैक्षिक समाजशास्त्र की परिभाषा | शैक्षिक समाजशास्त्र का विषय-विस्तार
- संस्कृति और शिक्षा | संस्कृति का अर्थ | संस्कृति की परिभाषाएँ | संस्कृति की विशेषताएँ | संस्कृति के सिद्धान्त | संस्कृति और शिक्षा
- संस्कृति और शिक्षा का सम्बन्ध | संस्कृति का शिक्षा पर प्रभाव | शिक्षा का संस्कृति कर प्रभाव
- सामाजिक स्तरीकरण और शिक्षा | सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ| सामाजिक स्तरीकरण की परिभाषाएँ | सामाजिक स्तरीकरण के आधार
- सामाजिक स्तरीकरण और शिक्षा | शिक्षा पर स्तरीकरण का प्रभाव | शिक्षा का स्तरीकरण पर प्रभाव
- धर्म और शिक्षा | धर्म का अर्थ | धर्म और शिक्षा का सम्बन्ध | शिक्षा में धर्म का स्थान
- धर्म और शिक्षा | धर्म का अर्थ | धर्म और शिक्षा का सम्बन्ध | शिक्षा में धर्म का स्थान
- धर्म निरपेक्ष देश में धार्मिक शिक्षा | धर्म शिक्षा के साधन
Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com