शिक्षाशास्त्र / Education

शिक्षा दर्शन के उद्देश्य | शिक्षा दर्शन की आवश्यकता

शिक्षा दर्शन के उद्देश्य | शिक्षा दर्शन की आवश्यकता | Objectives of Education Philosophy in Hindi | Need of education philosophy in Hindi

शिक्षा दर्शन के उद्देश्य

शिक्षा-दर्शन आधुनिक समय में शिक्षा शास्त्र का एक अंग है और दर्शन से सम्बन्धित हैभी है। ऐसी स्थिति में शिक्षा दर्शन के उद्देश्य दोनों विषयों, शिक्षा शास्त्र एवं दर्शन-शास्त्र को छूते हैं। इसके उद्देश्य नीचे दिये जा रहे हैं-

(i) प्रमुख उद्देश्य- शिक्षक, शिक्षार्थी, पाठ्यक्रम, शिक्षालय शिक्षालय व्यवस्था पाठ्य-पुस्तक आदि के बारे में समीक्षात्मक एवं निर्णयात्मक रूप से चिन्तन करना है।

(ii) शिक्षा की क्रिया सफल बनाने के विचार से शिक्षा के उद्देश्य निश्चित करना शिक्षा-दर्शन का एक अन्य उद्देश्य है।

(iii) शिक्षा-दर्शन का तीसरा उद्देश्य छात्रों और अध्यापकों को सही मार्ग पर ले जाने का संकेत देना है जिससे वे बहक न जावें।

(iv) शिक्षा-दर्शन को चौया उद्देश्य छात्रों एवं अध्यापकों को वह सामर्थ्य प्रदान करना है जिससे कि वे कठिन एवं अनिर्णीत स्थितियों में समस्याओं का समाधान कर सकें।

(v) शिक्षा दर्शन का पाँचवाँ उद्देश्य शिक्षा का उत्पाद्य संस्कृति निर्धारित करना, सुरक्षित करना और पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरण करने का आदेश देना भी है।

(vi) शिक्षा दर्शन का छछठां उद्देश्य समन्वयात्म एवं संश्लिष्टात्मक दृष्टिकोण (Integrating and Synthetic view point) प्रदान करना होता है तभी एक निर्णय लेना सम्भव होता है, प्राचीन एवं नवीन विचारधाराओं को जोड़ना सरल होता है।

(vii) शिक्षा-दर्शन का सातवाँ उद्देश्य छात्रों एवं अध्यापकों को उचित आदर्श, मूल्य प्रतिमान आदि प्रदान करना तथा जीवन-दर्शन को निर्माण करने की ओर इन्हें उन्मुख करना है ताकि एक सशक्त व्यक्तित्व का निर्माण किया जाना सम्भव हो सके।

(viii) शिक्षा दर्शन का आठवाँ उद्देश्य समाज, राष्ट्र एवं विश्व की सहायता करने वाले लोगों को तैयार करना है जिससे समाज, राष्ट्र और विश्व की बुराइयाँ दूर की जा सकें।

(ix) शिक्षा दर्शन का नवौं उद्देश्य विश्व को समझने का कहा जा सकता है। प्रो० राधाकृष्णन् ने कहा है कि “दर्शन विश्व की समस्याओं को समझने का एक मानवीय प्रयास है।” (Philosophy is a human effort to comprehend the problems of universe.) और चूँकि शिक्षा-दर्शन शिक्षा के क्षेत्र में दर्शन के सिद्धान्तों का प्रयोग है अतएव शिक्षा-दर्शन शिक्षा की क्रिया द्वारा विश्व को समझने का एक मानवीय प्रयास का उद्देश्य रखता है। (Philosophy of education aims at a human effort to comprehend the universe through educational activity) |

(x) शिक्षा दर्शन का अन्तिम उद्देश्य राष्ट्र और विश्व की शिक्षा-नीति निर्धारित करना तथा शिक्षा की योजना बनाना होता है। (Determination of educational policy and making educational plans) I

शिक्षा दर्शन की आवश्यकता

शिक्षाशास्त्र का अध्ययन दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है अतएव उसके सभी अंगों का अध्ययन भी आगे बढ़ा है। शिक्षा की प्रक्रिया के लिए बहुत सी चीजों की जरूरत पड़ती है इस विचार से भी शिक्षाशास्त्र में शिक्षा-दर्शन आदि की ओर ध्यान देना पड़ता है। यहाँ हम शिक्षा दर्शन की आवश्यकता के लिए कुछ कारणों की ओर ध्यान देंगे।

(i) शिक्षा की क्रिया का एक आधार दर्शन होने के कारण आवश्यकता- शिक्षा की क्रिया में दर्शन, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र तथा इतिहास का आधार होना बताया गया है। अतएव दर्शन का आधार होने से शिक्षा दर्शन के अध्ययन की आवश्यकता पड़ती है। इस सम्बन्ध में फिश्टे ने लिखा है कि “शिक्षादर्शन के बिना पूर्ण स्पष्टता को प्राप्त नहीं कर सकेगी।”

(ii) व्यापक दृष्टिकोण बनाने के कारण की आवश्यकता- दर्शन जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रवेश किए हुये है और शिक्षा भी उन क्षेत्रों से किसी न किसी प्रकार जुड़ी हुई है। इसलिए आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, नैतिक आदि सभी क्षेत्रों के साथ शिक्षा एवं दर्शन का लगाव होता है, अतएव इन सबके प्रति व्यापक दृष्टिकोण रखना तभी सम्भव है जब हम शिक्षा-दर्शन समझें। अस्तु इस कारण इसके अध्ययन की आवश्यकता होती है।

(iii) शिक्षार्थी की दृष्टि से आवश्यकता- किस राष्ट्र का जीवन-दर्शन कैसा है इसका प्रभाव शिक्षार्थी पर अवश्य पड़ता है। उदाहरण के लिये आज भारत में ‘इमरजेंसी’ ने शिक्षार्थी की क्रियाओं को दबा दिया है। अतएव आज शिक्षार्थी पढ़ाई-लिखाई छोड़कर अन्य क्रियाओं की ओर नहीं ध्यान देता है। यहाँ भी शिक्षा दर्शन की आवश्यकता परिस्थिति को समझने के लिए पड़ती है।

(iv) शिक्षक की दृष्टि से आवश्यकता- शिक्षा दर्शन शिक्षक की दृष्टि से इसलिए आवश्यक है कि इसकी सहायता से शिक्षक को शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, विधि, अनुशासन आदि सभी कुछ निर्धारित करने में सरलता होती है। शिक्षक भी अपने जीवन-दर्शन का भी निर्माण इसी के आधार पर करता है।

(v) जीवन के लक्ष्य-निर्धारण की दृष्टि से आवश्यकता- मनुष्य अपने जीवन में क्या होना चाहता है यह निश्चय शिक्षा दर्शन ही करता है। इस जीवन लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए मनुष्य को तदनुकूल शिक्षा के पाठ्यक्रम, योजना, व्यवस्था सब कुछ निश्चित करना पड़ता है। इन सब में शिक्षा दर्शन की आवश्यकता पड़ती है।

(vi) जीवन की समस्याओं के समाधान की दृष्टि से आवश्यकता- शिक्षा दर्शन जीवन की सभी प्रकार की समस्याओं को हल करने में हाथ बँटाता है। अतएव इस दृष्टि से भी इसकी आवश्यकता पड़ती है। हरेक समस्या के लिए जिस चिन्तन-मनन की जरूरत होती है वह शिक्षा दर्शन से मिलता है।

(vii) समाज, राष्ट्र व विश्व के आदर्श मूल्यों के विचार से आवश्यकता- शिक्षा का कार्य विश्व के लोगों को अपने समाज एवं राष्ट्र के अनुकूल आदर्श, मूल्य, मान्यता हैएवं प्रतिमान प्रदान करना होता है। इन सबका निर्धारण शिक्षा दर्शन की सहायता से होता है, अतएव इस विचार से भी शिक्षा दर्शन की आवश्यकता बताई गई है।

(viii) लोगों में परस्पर अनुकूलन, समायोजन एवं अनुशासन स्थापित करने के कारण आवश्यकता- दर्शन मानवों में परस्पर अनुशासन लाने का प्रयास करता है और शिक्षा उसके वातावरण के साथ समायोजन एवं अनुकूलन में सहायता देती है। अस्तु शिक्षा-दर्शन लोगों को यह बताता है कि वे परस्पर एक दूसरे के साथ कैसा सम्बन्ध रखें, कैसे जीवन-यापन करें और एक-दूसरे के साथ कार्य करने में अपने आप पर नियन्त्रण रखें। एतदर्थ शिक्षा दर्शन की कैसे आवश्यकता कही जाती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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