मध्यमकालीन ऋण देने वाली संस्थाएँ | दीर्घकालीन, मध्यकालीन तथा अल्पकालीन ऋणों से आशय

मध्यमकालीन ऋण देने वाली संस्थाएँ | दीर्घकालीन, मध्यकालीन तथा अल्पकालीन ऋणों से आशय | Medium Term Lending Institutions in Hindi | Meaning of long term, medium term and short term loans in Hindi
मध्यमकालीन ऋण देने वाली संस्थाएँ (Term-Loan Agencies) –
मध्यमकालीन ऋणों में सबसे प्रमुख स्थान वित्तीय निगमों (Financial Corporations) का है। इनमें अखिल भारतीय स्तर के तथा राज्य-स्तर के वित्तीय निगम आते हैं। अखिल भारतीय स्तर के निगमों में निम्न उल्लेखनीय हैं- भारत का औद्योगिक विकास बैंक (IDBI), भारत का औद्योगिक वित्त-निगम (IFCI), औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम (ICICI), भारत का औद्योगिक पुनर्निमाण निगम (IRCI), जीवन बीमा निगम (LIC), जनरल इन्श्योरेन्स कोरपोरेशन (GIC), यूनिट ट्रस्ट (UTI), भारत का लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI), आदि। राज्य स्तर पर राज्यों के वित्त निगम (State Financial Corporations) तथा राज्य औद्योगिक विकास निगम (State Industrial Development Corporation) अथवा राज्य औद्योगिक एवं विनियोग निगम (State Industrial & Investment corporations) प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं। वित्तीय निगमों के बाद व्यापारिक बैंकों का स्थान आता है जिनमें राष्ट्रीयकृत बैंकों की भूमिका मुख्य रूप से उल्लेखनीय रही हैं। अन्तर कम्पनी ऋणों (Inter-corporate Loans) के आधार पर भी औद्योगिक कम्पनियों को मध्यमकालीन कोष प्राप्त होते रहे हैं। अब कुछ वर्षों से जन-निर्पेक्षों (Public Deposits) का महत्व इस दृष्टि बढ़ रहा है जिनके आधार पर एक से तीन वर्षों की अवधि के लिए कम्पनियाँ जनता से डिपोजिट स्वीकार करती हैं और उन पर अच्छा ब्याज भी देती हैं।
Main Sources of Medium-Term Funds
Loans from Financial Corporations
- IDBI, IFCI, ICICI, IIBI
- LIC, GIC
- UTI, NABARD
- SIDBI
- SFC, SIDC’s
Rights or Public Debentures
- Maturity 7 years
- Interest @12.5% for Convertible
- @14% for non-Convertible
- Buy-back Provision after One year
Public Deposits
- Public Sector Corporations
- Public Limited Companies
- Interest 12% One year, 13% Two year, 14% Three year
Loans from Commercial Banks
- Nationalised Banks Other Commercial Banks
- Refinance Facility Available From- IDBI, NABARD, EXIM BANK & SIDBI
उत्तर दीर्घ कालीन, मध्यमकालीन तथा अल्पकालीन ऋणों से आशय:–
व्यावसायिक कोषों का विभाजन काल-क्रमानुसार दीर्घकालीन, मध्यमकालीन तथा अल्पकालीन ऋणों के रूप में किया जाता है। मध्यमकालीन एवं अल्पकालीन कोषों से हमारा तात्पर्य क्या है। काल-क्रमानुसार कोषों का विभाजन किन्हीं वैधानिक प्रावधानों के आधार पर न होकर, वस्तुता प्रचलित व्यवहारों के आधार पर किया गया है। उधार के आधार पर प्राप्त किये गये अल्पकालीन कोषों की अवधि एक वर्ष या इससे कम होती है। ऐसे ऋण व्यावसायिक सूत्रों से बाजार से अथवा बैंकों से प्राप्त किये जाते हैं और ये अधिक से अधिक एक वर्ष में देय (Payable) होते हैं। ऐसे कोषों का सम्बन्ध मुख्यतः कार्यशील पूंजी के प्रबन्ध से अधिक होता है, क्योंकि इन कोषों का उपयोग चल सम्पत्तियों अथवा दैनिक व्ययों के लिए किया जाता है। मध्यमकालीन कोषों के विषय में मतैक्य नहीं है फिर भी यह निश्चित है कि से एक वर्ष से अधिक अवधि के होते हैं। विवाद वास्तव में इनकी अधिकतम अवधि के विषय में है। एक मत के अनुसार इनकी अवधि एक से तीन वर्ष तक होती है, जबकि अन्य मत के अनुसार, ऐसे ऋण एक वर्ष से लगाकर तीन से पाँच वर्षों की अवधि के हो सकते है। देश काल के अनुसार कहीं-कहीं पाँच से सात वर्षों तक के ऋणों को मध्यमकालीन कोषों की श्रेणी में ही सम्मिलित किया जाता है। इससे अधिक की अवधि के ऋणों को दीर्घकालीन माना जाता है जो सात वर्ष से दस या बारह वर्षों तक के होते हैं।
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