हम्मूराबी की विधिसंहिता (Code of Hammurabi)
हम्मूराबी की विधिसंहिता (Code of Hammurabi)
बेबिलोनियन त्रशासन को व्यवस्थित करने तथा उसे सशक्त बनाने में हम्मूराबी का महत्वपूर्ण योगदान है। हम्मूराबी की विधिसंहिता वेबितोनियन साम्राज्य के प्रशासन के दर्पण के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित होती है। हम्मूरबी एक विजेता एवं साम्राज्यनिर्माता के साथ-साथ एक कुशल प्रशासक एवं राजनीतिज्ञ भी था। यह जानता था कि सुव्यवस्थित शासन ही बेबिलोनियन साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान कर सकता है। इसकी उत्कृष्ट अभिताषा थी कि समस्त साम्राज्य को एक शासनतंत्र में ला दिया जाय। इसी उद्देश्य से इसने प्रसिद्ध विधिसहिता को रचना की थी। इसकी रचना इसने अपने शासनकाल के अंतिम दो-तीन वर्षों में की थी। इस संहिता की महत्ता बेबिलोनियनों के लिए तो है ही, इससे भी अधिक इसकी महत्ता इस दृष्टि से मानी जा सकती है कि अपने अस्तित्व में आने के लगभग 1,500 वर्ष बाद तक इसे मेसोपोटामिया के विधान के आधार होने का सुयोग मिलता रहा।
यद्यपि यह निर्विवाद रूप से स्वीकार्य है कि हम्मूरबी की विधिसंहिता सुमेरियन शासक शुल्गी की विधिमंहिता पर आधारित वी। लेकिन हम्मूराबी ने यथावश्यक काट-छांट कर इसे अपने साम्राज्य के अनुकूल बनाने का प्रयत्न किया। हम्मूराबी की विधिसंहिता की रचना के पूर्व बेबिलोनियन कानून स्थानीय थे। अर्थात एक नगर का कानून उसी नगर पर लागू हो सकता था दूसरे पर नहीं। हम्मूराबी का महत्वपूर्ण योगदान इस टृष्टि से रहा कि इसने उन सभी स्थानीय परम्पराओं को संग्रहीत कर उन्हें सम्वर्द्धित एवं परिवर्धित कर सामान्य रूप देकर सम्पूर्ण राष्ट्र पर लागू किया। इसमें अपने मौलिक रूप में दो-सौ पचासी धाराएं थी लेकिन अब दो-सौ बयासी धाराएं ही अवशिष्ट हैं। इन्हें वैयक्तिक सम्पत्ति, व्यापारवाणिज्य, परिवार, अपराध, श्रम इत्यादि अध्यायों में विभाजित किया गया है। हम्मूराबी की विधिसंहिता के कुछ प्रमुख विधान इस प्रकार थे-
- राज्य-अपराध से सम्बन्धित वाद में साक्षियों को जो धमकाता था उसे मृत्युदण्ड दिया जाता था।
- देवालय अथवा राजाप्रासाद में चोरी करने वाले तथा चोरी का माल रखने वाले प्राणदण्ड प्राप्त करते
- यदि कोई व्यक्ति मन्दिर से पशु चुरा लेता था तो उसे पशु के मूल्य का तीस गुना अर्थदण्ड देना पड़ता था। लेकिन यदि पशु किसी निम्न वर्ग के सदस्य के यहां से चुराया जाता था तो अर्थदण्ड पशु के मूल्य का दस गुना देना पड़ता था।
- साक्ष्य एवं अनुबन्धपत्र के बिना सोना, चांदी, दास, दृष, मेष एवं गर्दभ खरीदने या उसे रखने क लिए चोर की तरह प्राणदण्ड का विधान था।
- यदि कोई कर्जदार अपने साह को अपनी पत्ली, पुत्र और कन्या दे देता था तो तीन वर्ष तक कार्य कराने के बाद उन्हें मुक्त कर दिया नाता था।
- पतिगृह के बाहर समय व्यतीत करने, मूर्खता से व्यवहार करने, पति की सम्पत्ति का दुरुपयोग करने और उसकी अवज्ञा करने पर पति पत्नी को तलाक दे सकता था। ऐसी स्थिति में दहेज में मिली सम्पत्ति का कोई भाग पत्नी को नहीं मिलता था। लेकिन यदि वह यह नहीं कहता था कि ‘मैं तुम्हें तलाक देता हूँ’ तो वह दूसरी पत्नी रख सकता था लेकिन प्रथम पत्नी भी एक दासी की हैसियत से रह सकती थी। सन्तति के अभाव में पुरुष स्त्री को तलाक दे सकता था, किन्तु इस स्थिति में भी उसे दहेज की सम्पत्ति मिलती थी। यदि कोई स्री किसी परपुरुष के साथ पकड़ ली जाती थी तो उसे जल में डुबो दिया जाता था।
- पति द्वारा अपशब्द कहने पर निर्दोष पत्नी दहेज में प्राप्त सम्पत्ति के साथ पितृगृह प्रत्यावर्तित होने की अधिकारिणी थी।
- पिता को चोट पहुंचाने वाले व्यक्ति के हाथ काट लिए जाते थे।
- समान साभाजिक स्तर में किसी व्यक्ति की आंख फोड़ देने पर अपराधी की भी आंख फोड़ दी जाती थी। लेकिन यदि किसी निर्घन व्यक्ति की आंख फोड़ी जाती थी अथवा अंगछेद किया जाता था तो अपराधी को चांदी का एक मिना अर्थदण्ड देना पड़ता था।
- किसी व्यक्ति द्वारा चोट पहुंचाने से यदि किसी शिष्ट महिला का गर्भस्राव हो जाता था तो अपराधी को दस शेकेल अर्थदण्ड देना पड़ता था। लेकिन यदि महिला की मृत्यु हो जाती थी तो अपराधी की पुत्री मृत्युदण्ड प्राप्त करती थी।
- चिकित्सक द्वारा किसी घाव के आपरेशन में जिसे वह एक तांबे के उस्तूरे से करता था, रोगी की मृत्यु हो जाने पर अथवा आंख के आपरेशन में आँख नष्ट हो जाने पर चिकित्सक के हाथ काट लिये जाते थे। पर मृत्यु यदि किसी के दास की होती थी तो चिकित्सक को उसी मूल्य का एक दास देना पड़ता था।
- किसी मकान के धराशायी हो जाने पर यदि गृहस्वामी की मृत्यु हो जाती थी तो शिल्पी को दण्ड दिया जाता था, यदि मृत्यु मकान मालिक के पुत्र की होती थी तो शिल्पी के पुत्र को प्राणका दिया जाता था। और यदि मृत्यु मकान मालिक के दास की होती थी तो मृत्युदण्ड शिल्पी के दा को दिया जाता था।
- यदि कोई नाविक किराये पर जलपोत लेता था और उसे असावधानी से परिचालित कर क्षतिप्रस्त अथवा नष्ट कर देता था तो उसे उसके मालिक को दूसरा जलपोत देना पड़ता था।
- अपराध न सिद्ध होने पर वादी को मृत्युदण्ड दिया जाता था।
- अभिचार के अपराध में अपराधी को नदी में फेंक दिया जाता था और यदि वह डूब जाता था तो उसकी सम्पत्ति वादी को मिल जाती थी।
- यदि कोई व्यक्ति किसी भगोड़े दास या दासी को अपने घर में शरण देता था और शासन को इसकी सूचना नहीं देता था तो उसे प्राणदण्ड मिलता था।
- यदि कोई सैनिक या अधिकारी राज्यादेश पर किसी अभियान में न जाकर अपने स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को भेजता था तो उसे प्राणदण्ड दिया जाता था तथा उसकी जायदाद एवजी को मिल जाती थी।
- यदि सेवाकाल में कोई सैनिक या अधिकारी शत्रु द्वारा पकड़ लिया जाता था और उसकी सम्पत्ति किसी दूसरे को मिल जाती थी तो उसके वापस आने पर पुनः वह जायदाद उसे मिल जाती थी।
- यदि कोई सैनिक या अधिकारी सेवाकाल में मार डाला जाता था तो उसकी जायदाद उसके पुत्र को मिल जाती थी किन्तु उससे यह आशा की जाती थी कि वह भी राज्य की सेवा करेगा।
- यदि कोई मद्यविक्रेता स्री अपनी दुकान पर एकत्र डाकुओं की सूचना राजभवन में नहीं देती थी तो उसे प्राणदण्ड दिया जाता था।
- यदि किसी व्यक्ति की प्रथम विवाहिता तथा दासी दोनों से बच्चे हो जाते थे और अपने जीवन काल में वह कभी दासी के बच्चे को अपना बच्चा कह देता था तो उसकी मृत्यु के बाद दोनों को उसकी सम्पत्ति में हिस्सा मिलता था। किन्तु यदि जीवन काल में वह उसे अपना बच्चा नहीं कहता था तो उसे (दासीपुत्र) जायदाद में हिस्सा नहीं मिलता था।
हम्मूराबी की विधिसंहिता की उतक्त धाराओं से हम न केवल इसके स्वरूप से भली-भांति परिचित हो जाते हैं, प्रत्युत इनके माध्यम से हम्मूराबी के उद्देश्यों से भी परिचित हो जाते हैं। इसका प्रथम उद्देश्य दण्ड को कठोर रूप प्रदान करना था इसकी विधिसंहिता में अपराध के लिये कठोर से कठोर दण्ड निर्धारित किये गये थे। वास्तव में बेबिलोनियन दण्डव्यवस्था सुमेरियन दण्डव्यवस्था की अपेक्षा कठोर थी। यद्यपि यह सही है कि हम्मूराबी की विधिसंहिता के बहुत से तत्त्व सुमेरियन विधिसंहिता से ग्रहण किये गये थे लेकिन इसने इन्हें बेबिलोनिया के आवश्यक ढांचे में ढालने का सफल प्रयास किया और दण्डव्यवस्था इतनी अँधिक कठोर हो गयी कि न्याय की पकड़ से उच्च से उच्च अधिकारी भी दण्ड से नहीं बचा। दण्डनिर्धारण में सिमरिया के ‘जैसे को तैसा’ सिद्धान्त हम्मूराबी ने भी अपनी विधिसंहिता में अपनाया। जैसे भवन के धराशायी होने से मकान मालिक की मृत्यु होने पर शिल्पी को मृत्युदण्ड दिया जाता था लेकिन यदि मृत्यु मकान मालिक के पुत्र की होती थी तो मृत्युदण्ड शिल्पी का पुत्र पाता था। इसी प्रकार किसी की लड़की का वध करने पर अपराधी की लड़की का वध किया जाता था दण्डनिर्धारण के समय अभियोक्ता और अभियुक्त की सामाजिक प्रतिष्ठा का ध्यान रखा जाता था निम्न वर्ग के अभियुक्त को उच्च वर्ग के अभियुक्त की अपेक्षा कम दण्ड मिलता था। लेकिन यदि अभियोक्ता उच्च वर्ग का होता था तो अभियुक्त को अधिक दण्ड मिलता था। मृत्युदण्ड से सम्बन्धित अपराधों की संख्या में वृद्धि कर दी गई थी। व्यभिचार, चोरी, बलात्कार, व्यर्थ भ्रमण करने, शत्रु के सम्मुख कायरता प्रद्शित करने इत्यादि के लिए मृत्युदण्ड नियत था। भागे दास को शरण देने वाले तथा व्यभिचारिणी स्त्री को भी यही दण्ड दिया जाता था। इस विधिसंहिता के माध्यम से हम्मूराबी निष्पक्ष न्याय सम्पादित करना चाहता था। इस दृष्टि से हम्मूराबी की विधिसंहिता निस्संदेह उदात्त मानी जा सकती है। हम्मूराबी ने मन्दिरों अथवा पुरोहितों से पृथक राजकीय न्यायालयों की स्थापना की। इनमें न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा इनकी देख-भाल शासक स्वयं करता था और किसी प्रकार की अनियमितता होने पर कठोर दण्ड दिया जाता था। यदि किसी व्यक्ति को निष्पक्ष न्याय नहीं मिलता था तो वह शासक के पास पुनरावेदन कर सकता था। शासक का न्यायालय बेबिलोन का सर्वाच्च न्यायालय था। दूर स्थित नगरों में जहां समयानुसार शासक की उपस्थिति सम्भव नहीं थीं वहां विशेष अधिकारियों की व्यवस्था थी। ये पुनरावेदनों पर विचार करते थे। उच्च न्यायालय में वाद के निर्णय पर भली-भांति विचार किया जाता था और यदि किसी स्तर पर यह अनुभव किया जाता था कि स्थानीय न्यायालयों में निष्पक्ष निर्णय नहीं किया गया है तो उस न्यायालय के न्यायाधीश को कठोर से कठोर दण्ड दिया जाता था। हम्मूराबी न्यायालयों में वादों की संख्या कम करने की दिशां में भी सचेत था। इसके लिए कुछ नियम बनाये गए थे। न्यायालय में किसी व्यक्ति के प्रति लगाये गए गम्भीर आरोप सिद्ध न हो पाने पर वादी को कठोर दण्ड दिया जाता था। इससे न्यायालय में झूठे मुकदमें कम जाते थे।
हम्मूराबी ने अपनी विधिसंहिता की सहायता से सामाजिक समन्वय एवं सन्तुलन स्थापित करने का निरवशेष प्रयत्न किया। विधिसंहिता के अनुसार बेबिलोनियन समाज तीन वर्गो – (i) उच्च, (ii) सर्वसाधारण एवं (iii) दास – में विभाजित था। प्रथम वर्ग पर कड़ी निगरानी रखी जाती थी तथा इनकी सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाता था। इन्हें हानि पहुंचाने वाले को कठोर दण्ड दिया जाता था, पर यदि वही अपराध सर्वसाधारण वर्ग के सदस्य के साथ किया जाता था तो कम दण्ड दिया जाता था। लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं था कि उच्च वर्ग के सदस्यों को मनमानी करने की छूट थी। हम्मूराबी इनकी कर्त्तव्यपरायणता के प्रति सजग था। कर्त्तव्य के समृचित निर्वाह न करने पर इस वर्ग के सदस्य भी कठोर दण्ड प्राप्त करते थे। दासों की स्थिति सुधारने की दिशा में भी हम्मूराबी ने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किया। स्वामी के अतिरिक्त अन्य कोई न तो उन पर अधिशासन कर सकता था, न अत्याचार ही। स्वदेश के अतिरिक्त उन्हें विदेशों में बेचा भी नहीं जा सकता था उन्हें सम्पत्ति संचय एवं संग्रह की सुविधा मिली थी। संचित धन के माध्यम से वे अपनी स्वतंत्रता खरीद सकते थे। ऋणग्रस्त व्यक्ति ऋण की अदायगी न करने पर दास बना दिये जाते थे, किन्तु कुछ दिन बाद उन्हें छोड़ दिया जाता था ।
सामाजिक समन्वय एवं संतुलन की ही भांति हम्मूराबी अपनी विधिसंहिता के माध्यम से आर्थिक सगठन में भी समन्वय एवं सन्तुलन स्थापित करना चाहता था। इसके आधार स्तम्भ तीन थे – कृषि, वाणिज्य एवं उद्योगधन्धे। इसमें कृषिकर्म का स्थान महत्वपूर्ण था। इसके लिए उपादेय एवं उपयुक्त साधनों की व्यवस्था राज्य की ओर से की जाती थी। इसमें संलग्न व्यक्ति दास, छोटे श्रेणी के जमींदार तथा स्वतंत्र काश्तकार थे। व्यापारिक गतिविधियों का नियमन एवं नियंत्रण भी विधिसंहिता के अनुसार होता था। प्रश्न है, व्यापार का नियंत्रण हम्मूराबी की विधिसंहिता कैसी करती थी? वास्तव में व्यापार में लगे यातायात पर संहिता पर्याप्त नियंत्रण रखती थी। पोत के स्वामी, नाविक तथा व्यापारी की अधिकार सीमाएं नियत थीं। नाविक पोत बड़ी सावधानी से चलाता था। इसके क्षतिग्रस्त अथवा नष्ट होने पर कठोर दण्ड की व्यवस्था थी। लेन-देन, साझेदारी इत्यादि मौखिक नहीं लिखित होती थी। व्यापारिक मागों की सुरक्षा का पूरा -पूरा ध्यान रखा जाता था। कृषि एवं वाणिज्य के साथ-साथ यहां अनेक प्रकार के उद्योगधन्धे प्रचिलत थे। वस्त्रनिर्माण, चर्मोद्योग एवं धातुउद्योग की दृष्टि से बेबिलोन तत्कालीन विश्व में प्रसिद्ध माना जाता था इस पर भी हम्मूराबी की विधिसंहिता का नियंत्रण था।
उपर्युक्त विवेचन से हम्पूराबी की विधिसंहिता के बहुव्यापी उद्देश्यों से हम परिचित हो जाते हैं । निस्संदेह बेबिलोनिया संस्कृति के निर्माण में इसका महत्वपूर्ण योगदान था। हम्मूराबी की विधिसंहिता के सम्बन्ध में एक प्रश्न और विचारणीय है। यह विधिसंहिता धर्मसापेक्ष थी अथवा धर्मनिरपेक्ष ? इसके आद्योपान्त अवलोकन से तो यही निष्कर्ष निकलता है कि इसमें दोनों प्रकार की भावनाएं निहित थीं। प्रारम्भ में यह धर्मसापेक्ष अवश्य लगती है लेकिन अन्त तक पहुंचते-पहुंचते राजनीतिक पक्ष की प्रबलता के कारण धार्मिक पक्ष मंद पड़ जाता है। इस प्रकार यह विधिसहिता सुव्यवस्थित, क्रमबद्ध एवं सुस्पष्ट थी। विल ड्युरैण्ट के अनुसार एक हजार वर्ष बाद बने असीरियन कानूनों यह कहीं अधिक विकसित थी और कई मानों में तो यह किसी भी आधुनिक यूरोपीय कानूनां की बराबरी कर सकती है। रोमन काल के पूर्व इससे श्रेष्ठ कानून नहीं मिलते।
महत्वपूर्ण लिंक
- भारतीय संविधान की विशेषताएँ
- जेट प्रवाह (Jet Streams)
- चट्टानों के प्रकार
- भारतीय जलवायु की प्रमुख विशेषताएँ (SALIENT FEATURES)
- Indian Citizenship
- अभिभावक शिक्षक संघ (PTA meeting in hindi)
- कम्प्यूटर का इतिहास (History of Computer)
- कम्प्यूटर की पीढ़ियाँ (Generations of Computer)
- कम्प्यूटर्स के प्रकार (Types of Computers )
- अमेरिका की क्रांति
- माया सभ्यता
- हरित क्रान्ति क्या है?
- हरित क्रान्ति की उपलब्धियां एवं विशेषताएं
- हरित क्रांति के दोष अथवा समस्याएं
- द्वितीय हरित क्रांति
- भारत की प्रमुख भाषाएँ और भाषा प्रदेश
- वनों के लाभ (Advantages of Forests)
- श्वेत क्रान्ति (White Revolution)
- ऊर्जा संकट
- प्रमुख गवर्नर जनरल एवं वायसराय के कार्यकाल की घटनाएँ
- INTRODUCTION TO COMMERCIAL ORGANISATIONS
- Parasitic Protozoa and Human Disease
- गतिक संतुलन संकल्पना Dynamic Equilibrium concept
- भूमण्डलीय ऊष्मन( Global Warming)|भूमंडलीय ऊष्मन द्वारा उत्पन्न समस्याएँ|भूमंडलीय ऊष्मन के कारक
- भूमंडलीकरण (वैश्वीकरण)
- मानव अधिवास तंत्र
- इंग्लॅण्ड की क्रांति
- प्राचीन भारतीय राजनीति की प्रमुख विशेषताएँ
- प्रथम अध्याय – प्रस्तावना
- द्वितीय अध्याय – प्रयागराज की भौगोलिक तथा सामाजिक स्थित
- तृतीय अध्याय – प्रयागराज के सांस्कृतिक विकास का कुम्भ मेल से संबंध
- चतुर्थ अध्याय – कुम्भ की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
- पंचम अध्याय – गंगा नदी का पर्यावरणीय प्रवाह और कुम्भ मेले के बीच का सम्बंध
Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है | हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है| यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com