शिक्षाशास्त्र / Education

दूरवर्ती शिक्षा में मूल्यांकन प्रणाली | दूरवर्ती शिक्षा की मूल्यांकन प्रक्रिया

दूरवर्ती शिक्षा में मूल्यांकन प्रणाली | दूरवर्ती शिक्षा की मूल्यांकन प्रक्रिया

दूरवर्ती शिक्षा में मूल्यांकन प्रणाली (Evaluation System in Distance Education)-

मूल्यांकन शैक्षिक प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। शिक्षा पद्धति चाहे जिस प्रकार की हो मूल्यांकन के बिना वह पूर्ण नहीं होती है। किन्तु विभिन्न शैक्षिक प्रणालियों में मूल्यांकन प्रक्रिया में कुछ अन्तर होना स्वाभाविक होता है। दूरवर्ती शिक्षा की प्रक्रिया औपचारिक शिक्षा से भिन्न होती है। अतः इसकी मूल्यांकन प्रक्रिया में भी कुछ भिन्नता होती है। यह भिन्नता दूरवर्ती शिक्षा की अपनी विशिष्टताओं के कारण होती है। यह विशिष्टताएँ इस प्रकार की होती हैं-

  1. दूरवर्ती शिक्षा प्रणाली में शिक्षार्थियों को उनकी योग्यताओं, सुविधाओं एवं अपनी गति से सीखने का अवसर प्रदान किया जाता है। अतः इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्यांकन प्रक्रिया भी सुनिश्चित की जाती है। इसलिए दूरवर्ती शिक्षा में परीक्षा प्रणाली लचीली होती है।
  2. इस प्रणाली में अनुदेशन सामग्री का प्रारूप एक स्थायी आलेख के रूप में होता है किन्तु शिक्षार्थी के स्वतः अभिप्रेरणा, अनुभव आदि से उसमें सुधार एवं विकास की सम्भावना होती है। अतः शिक्षार्थियों को परीक्षा प्रदान करने तथा मूल्याकन में इस तथ्य को ध्यान में रखना होता है।
  3. इस प्रणाली में अनुदेशन हेतु विभिन्न माध्यमों का प्रयोग किया जाता है. किन्तु सशक्त माध्यम का सर्वाधिक प्रयोग करने का प्रयास किया जाता है। प्रत्येक माध्यम की अपनी विशेषताएँ होती हैं तथा उन्हें प्रभावशाली बनाने में विशेषज्ञों की अहम् भूमिका होती है। अतः मूल्यांकन में माध्यमों की प्रभावशीलता का ध्यान रखना होता है।
  4. दूरवर्ती शिक्षा में प्रवेश ( नामांकन) का मानदण्ड बहुत अधिक लचीला होता है। इसलिए इसके शिक्षार्थियों के ज्ञान स्तर, कौशल विकास तथा उनके शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्यों में पर्याप्त विषमता होती है। चूँकि उन्हें प्रदायन की जाने वाली अनुदेशन सामग्री एक जैसी होती है। अतः मूल्यांकन में पर्याप्त सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है।
  5. दूरवर्ती शिक्षा में पाठ्य-सामग्री का निर्माण विषय विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है शिक्षार्थियों की विषमता के कारण वह सामग्री उनकी कठिनाइयों का समुचित समाधान ने में सदैव सफल नहीं हो पाती हैं। अंतः इसमें लचीला मूल्यांकन प्रक्रिया की आआवश्यकत होती है।
  6. दूरवर्ती शिक्षा के अन्तर्गत शिक्षक एवं शिक्षार्थी के बीच आमने-सामने की अन्तःक्रिया नहीं हो पाती है। सम्पर्क कार्यक्रम की अवधि बहुत छोटी होने के कारण शिक्षार्थियों को शिक्षकों से सम्पर्क करने तथा अपनी कठिनाइयों को दूर करने का अवसर भी नहीं मिल पाता है। शिक्षार्थियों को जो पाठ्य-सामग्री लिखित या विभिन्न सम्प्रेषण माध्यमों से प्रदान की जाती है, वह सभी के लिए उपयुक्त भी नहीं होती है तथा उससे उन्हें त्वरित पृष्ठपोषण भी नहीं मिल पाता है। कभी-कभी छात्रों द्वारा भेजे जाने वाले उत्तर-पत्रक भी उनके द्वारा स्वयं हल किये हुए नहीं होते हैं बल्कि किसी अन्य द्वारा हल किये हुए होते हैं। अतः उनकी विश्वसनीयता संदिग्ध होती है। अतः मूल्यांकन प्रक्रिया में इन तथ्यों को ध्यान में रखना होता है।

अतः दूरवर्ती शिक्षा में मूल्यांकन प्रक्रिया के दो प्रमुख आधार होते हैं-

(a) उत्पादन तथा निर्णय अभिविन्यास उपागम आधारित (Based on Product and Decision Oriented Approach)

(b) प्रक्रिया पर आधारित (Based on Process)

दूरवर्ती शिक्षा में मूल्यांकन प्रक्रिया (Evaluation Process in Distance Education)-

दूरवर्ती शिक्षा में मूल्यांकन प्रक्रिया दो अवस्थाओं में सम्पन्न की जाती है-

(i) रूपदेय अवस्था (Formative Stage)-

यह अवस्था अधिगम की अवस्था होती है। इसमें छात्र को अनुदेशन प्रदान किया जाता है तथा वह सीखता है। इस अवस्था में मूल्यांकन का उद्देश्य शिक्षार्थियों को पृष्ठपोषण प्रदान करना होता है। अतः अनुदेशन या पाठ्य सामग्री की प्रत्येक इकाई के अन्त में प्रश्न दिये जाते हैं। छात्रों को इन प्रश्नों के उत्तर लिखने होते हैं। इस प्रकार शिक्षार्थियों के अधिगम अनुभवों का प्रारम्भिक मूल्यांकन किया जाता है। यह प्रविधि शिक्षार्थियों के स्वतः मूल्यांकन हेतु भी उपयोगी होती है।

(ii) अन्तिम अथवा योगदेय अवस्था (Final or Summative Stage)-

सत्र या वर्ष के अन्त में छात्रों को प्रदान की जाने वाली परीक्षा का उद्देश्य उनकी निष्पत्तियों एवं अनुदेशन के उद्देश्यों की प्राप्ति के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करना होता है। इस अन्तिम परीक्षा में प्रश्नों का विस्तार क्षेत्र सम्पूर्ण पाठ्यक्रम होता है। चूँकि दूरवर्ती शिक्षा में शिक्षार्थी को अपने अनुसार आगे बढ़ने का अवसर दिया जाता है। अतः अन्तिम परीक्षा हेतु भी उन्हें सुविधा होती है। इसलिए यह परीक्षा पूरे सत्र में एक से अधिक बार भी सम्पन्न की जा सकती है। इस प्रकार इस परीक्षा तथा इसके मूल्यांकन में भी लचीलापन होता है। वासतव में दूरवरती शिक्षा का उद्देश्य शिक्षार्थी को उसकी आवश्यकता एवं सुविधानुसार चुने गये पाठ्यक्रम को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराना होता है। अंतः मूल्यांकन में इसका विशेष ध्यान रखना होता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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