नीति आयोग

नीति आयोग | नीति आयोग की स्थापना | नीति आयोग के उद्देश्य

नीति आयोग | नीति आयोग की स्थापना | नीति आयोग के उद्देश्य

नीति आयोग की स्थापना (Establishment of Niti Aayog)-

1991 के बाद आर्थिक उदारीकरण के दौर में यॉजनाओं की आवश्कता को लेकर कई तरह के प्रश्न उठाए गए। कुछ अर्थशा्त्रियों ने तर्क दिया कि उदारीकरण व निजीकरण के दौर में अब योजना आयोग का मूल औचित्य ही समाप्त हो गया है तथा उसे समाप्त कर देना चाहिए। इस तर्क को स्वीकार करते हुए भारत ने योजना आयोग को अब खत्म कर दिया है तथा 1 जनवरी, 2015 को उसके स्थान पर एक नए आयोग की स्थापना की, जिसे नीति आयोग का नाम दिया गया है (यहाँ नीति या NITI का अर्थ है National Institution for Transforming India)। नीति आयोग नीति संबंधित निर्णय लेने वाला एक ‘विचार-संगठन’ (think-tank) है, जिसका लक्ष्य राज्यों को नीति निर्णयों में बराबर का भागीदारी बनाना है। यह आयोग केन्द्र तथा राज्य सरकारों को युक्तिगत (strategic) तथा तकनीकी सलाह प्रदान करेगा और इस प्रयास में योजना आयोग के विपरीत (जिसमें विचारों को ऊपर में ‘थोपा’ जाता था) विचारों को सबसे निचले स्तर से लेकर उनका राष्ट्रीय स्तर पर समग्रीकरण किया जाएगा (अर्थात् स्थानीय संस्थाओं और राज्यों को नीति निर्णयों में महत्त्वपूर्ण भूमिका दी जाएगी) । नीति आयोग की आवश्यकता पर जोर देते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि “65 वर्ष पुराने योजना आयोग का ओचित्य अब समाप्त हो चुका है। उसकी आवश्यकता सरकारी आधिपत्य वाली अर्थव्यवस्था (Command economy) में तो थी परन्तु अब बदले हुए हालात में नहीं। भारत एक विविधीकृत अर्थव्यवस्था है और उसके विभिन्न राज्य आर्थिक विकास के अलग-अलग चरणों में हैं। इन सब राज्यों की अपनी-अपनी शक्तियां व कमजोरियां हैं। इस संदर्भ में ‘सबके लिए एक ही दृष्टिकोण’ वाले आर्थिक आयोजन का कोई अर्थ नहीं है। इस प्रकार की व्यवस्था रखने पर भारत विश्व स्तर पर, प्रतिस्पर्धात्मक गुणवत्ता प्राप्त नहीं पाएगा।” नए गठित नीति आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होंगे (जैसे योजना आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री हुआ करते थे) । नीति आयाग के प्रथम उपाध्यक्ष अरविन्दबीपानगड़िया हैं।

नीति आयोग की स्थापना पर जारी की गई सरकारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि “नीति आयोग विकास प्रक्रिया निर्देशात्मक एवं नीति युक्त आगत (input) के रूप में काम करेगा।” विज्ञप्ति में आगे कहा गया है कि “योजना आयोग के युग में केन्द्र से निचली प्रशासन इकाइयों की ओर जहाँ एकतरफा नीति प्रवाह था, वहाँ अब केन्द्र तथा राज्य सरकरों के बीच सहा अर्थ में (एवं लगातार) भागीदारी की प्रथा का श्रीगणेश होगा।” इससे अब राष्ट्रीय विकास की प्राथमिकताओं पर सामान्य तथा समरूप दृष्टिकोण उभरेगा तथा सहकारी संघवाद ( cooperative federalism) का नया दौर शुरू होगा, जिसके पीछे मूल भावना यह है कि मजबूत राज्यों से ही मजबूत राष्ट्र बनता है।

नीति आयोग का लक्ष्य यह भी होगा कि ग्रामीण स्तर पर उपयोगी योजनाओं का निर्माण किया जाएगा तथा फिर उनका क्रमशः ऊपर वाली सरकारी तंत्र की इकाइयों (जिला, राज्य व केन्द्र) तक क्रमबद्ध तरीके से समायोजन किया जाए। आयोग, समाज के उन वरगों पर ज्यादा ध्यान देगा, जिन्हें आर्थिक प्रगति व विकास से कम लाभ हो पाने का खतरा है।

इसके अलावा, नीति आयोग राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के सहयोगी द्वारा ज्ञान (Knowledge), नव प्रवर्तनों (innovations) तथा उद्यमी क्षमताओं की सहायक प्रणाली (supporn system) के निर्माण का प्रयास करेगा विकास कार्यक्रमों के कार्यान्वयन को और तेज करने के लिए वह अंतः-क्षेत्रीय तथा अंतः-विभागीय मुद्दा के जल्द निपटान की भी कोशिश करेगा। नीति आयोग विभिन्न कार्यक्रमों के कार्यान्वयन पर नजर रखेगा तथा प्रौद्योगिकी सुधार तथा क्षमता-निर्माण पर जोर वेगा।

नीति आयोग के उद्देश्य

उपरलिखित माध्यमों से नीति आयोग निम्नलिखित उद्देश्यों व अवसरों को प्राप्त करने का प्रयास करेगा-

  1. एक ऐसे प्रशासनिक तंत्र का निर्माण, जिसमें सरकार की भूमिका एक ‘सहायक (enabler) की भूमिका हो न कि ‘प्रथम व अंतिम संभरक’ (first and last provider) की।
  2. मात्र ‘खाद्य सुरक्षा’ के सीमित दायरे से निकलकर कृषि उत्पादन के उचित मिश्रण (mix) पर जोर तथा किसानों को अपने उत्पाद से प्राप्त होने वाले वास्तविक प्रतिफलों पर जोर।।
  3. यह सुनिश्चित करना कि विश्व स्तर पर होने वाली संगोष्ठियों में भारत अहम व प्रभावी भूमिका निभा सके।
  4. यह सुनिश्चित करना कि आर्थिक रूप से सक्षम मध्य वर्ग कार्यरत बना रहे तथा उसके संभाव्य का पूरी तरह इस्तेमाल हो सके।
  5. भारत की उद्यम-क्षमता तथा वैज्ञानिक व बौद्धिक कुशलता का पूरा प्रयोग। नीति आयोग निम्न प्रयासों द्वारा यह सुनिश्चित करेगा कि भारत अपनी मुश्किल

चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना कर सके-

  1. भारत के जनांकिकी लाभ (demographic dividen) का सही प्रयोग तथा नवयुवकों व नवयुवतियों, पुरुषों व महिलाओं की क्षमताओं का पूर्ण उपयोग (शिक्षा व कौशल के प्रसार द्वारा तथा रोजगार अवसरों में वृद्धि द्वारा) ।
  2. गरीबी का उन्मूलन तथा प्रत्येक भारतीय को इज्जत की जिन्दगी गुजारने का सुअवसर।
  3. लिंग-असमानताओं, जाति के आधार पर असमानताओं तथा आर्थिक असमानताओं का दूर करना।
  4. विकास प्रक्रिया में ग्रामीण क्षेत्रों का महत्त्वपूर्ण इकाई के रूप में समावेशन करना।
  5. पाँच करोड़ से अधिक छोटे व्यवसायों को नीतिगत समर्थन प्रदान करना (जो रोजगार सृजन का एक महत्वपूर्ण माध्यम हैं) ।
  6. अपने पर्यावरण की तथा प्राकृतिक संपदा की सुरक्षा।
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