प्रशिक्षण के प्रकार

प्रशिक्षण के प्रकार | Types of Training in Hindi

प्रशिक्षण के प्रकार | Types of Training in Hindi

प्रशिक्षण के प्रकार

(Types of Training)

प्रशिक्षण एक व्यापक स्वभाव का कार्यक्रम है। विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण दिये जाते हैं। प्रशिक्षण की कोई एक विधि सर्वमान्य नहीं हो सकती हैं, इसीलिए प्रशिक्षण का वर्गीकरण कई आधारों पर किया जा सकता है। प्रशिक्षण के उद्देश्य, विधि, साधन, प्रशिक्षण प्राप्तकर्ता आदि के आधारों को सम्मिलित करते हुए प्रशिक्षण के निम्नलिखित प्रकार बताये जा सकते हैं :

  1. प्रवेशात्मक या प्रारम्भिक प्रशिक्षण (Induction and Orientation Training) प्रवेशात्मक या प्रारम्भिक प्रशिक्षण नये नियुक्त कर्मचारियों को दिया जाता है। नये कर्मचारियों को किसी पद पर पद-स्थापित करने के पूर्व इस प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि कर्मचारी अपने संगठन व कार्य, कार्य वातावरण, उनकी नीतियों, लक्ष्यों नियमों व परिनियमों आदि की जानकारी प्राप्त कर सके। वास्तव में, यह परिचयात्मक प्रशिक्षण है, जिसके द्वारा अन्य कर्मचारियों व प्रवन्धकों से परिचित कराया जाता है। इस प्रकार का प्रशिक्षण नये कर्मचारियों में संस्था के प्रति रुचि, निष्ठा एवं आत्मविश्वास उत्पन्न करने तथा संस्था के साथ एकात्मकता स्थापित करने के लिए आवश्यक होता है। वास्तव में नये कर्मचारी संगठन के वातावरण तथा संस्कृति से परिचित नहीं रहते हैं उन्हें डर व चिन्ता बनी रहती है कि वे संगठन में जाकर क्या और कैसे कार्य करेंगे। इस प्रकार का प्रशिक्षण उनके अन्दर के भय को निकालने में तथा नये कर्मचारियों को संगठन के अनुकूल बनाने में सहायक साबित होता है। प्रारम्भिक प्रशिक्षण या अभिमुख की प्रक्रिया तीन चरण में पूरी की जा सकती है :

(1) सामान्य अभिमुख (General Orientation)

(2) विभागीय अभिमुख (Departmental Orientation)

(3) विशिष्ट कार्य अभिमुख (Specific job Orientation)

सामान्य अभिमुख के अन्तर्गत संगठन की मूलभूत बातों से कर्मचारियों को परिचित कराया जाता है। इसमें संगठन का इतिहास, विकास, लक्ष्य, प्रबन्ध नीतियाँ, योजनाएं, कर्मचारी नीति, सेवा की शर्तें, कार्य के घंटे, पदोन्नति, वेतन, भत्ते, सामाजिक सुरक्षा की योजनाएँ आदि की जानकारी दी जाती है। विभागीय अभिमुख के अन्तर्गत जिस विभाग में नये कर्मचारी को कार्य करना है, उस विभाग से उसे परिचित कराया जाता है। साथ ही उस विभाग के नियमों, परिनियमों, उस विभाग में उनकी भूमिका, जिम्मेदारियों, उनके वरिष्ठ पदाधिकारियों व अधीनस्थों आदि के साथ-साथ कर्मचारी के कार्य के अन्य कार्यों व विभागों से सम्बन्ध आदि से परिचित कराया जाता है। विशिष्ट कार्य अभिमुख के द्वारा जिस कार्य को कर्मचारी को करना है, उस कार्य की विशिष्टता और उससे सम्बन्धित भूमिका व जिम्मेदारी की जानकारी के साथ कार्य विवरण आदि की जानकारी दी जाती है, ताकि एक कर्मकारी संगठन में अपनी जिम्मेदारियों का वहन अच्छी प्रकार से कर सके।

  1. कार्य प्रशिक्षण (Job Training) – कार्य प्रशिक्षण कर्मचारियों को अपने कार्य के प्रति विशिष्टता दिलाने से है ताकि कर्मचारी अपने कार्यों को ठीक से कर सके। कार्य प्रशिक्षण कर्मचारियों को कार्य विशेष में दक्ष एवं निपुण बनाने तथा कार्य की बारीकियों को समझने के लिए दिया जाता है। इस प्रशिक्षण विधि में नये कर्मचारियों को प्लॉट में या कार्यस्थल पर उपयोग किये जाने वाले मशीन, उपकरणों, तकनीकी, पदार्थ, कार्य विधि आदि से परिचित कराया जाता है ताकि कर्मचारी की कार्यकुशलता एवं उत्पादकता में वृद्धि की जा सके। इस प्रकार का प्रशिक्षण नये व पुराने दोनों प्रकार के कर्मचारियों को दिया जा सकता है।
  2. प्रशिक्षु प्रशिक्षण (Apprenticeship Training) – इस प्रकार का प्रशिक्षण कार्यक्रम व्यावहारिक शिक्षा ग्रहण करने के समय दिया जाता है। प्रशिक्षु प्रशिक्षण में अध्ययन करते समय प्लॉट के अन्तर्गत कार्य की विशिष्टता, उसकी तकनीकी, बदलती तकनीक, आदि का प्रशिक्षण वर्ग शिक्षा के साथ-साथ दिया जाता है। इस सन्दर्भ में सरकार के द्वारा प्रशिक्षु प्रशिक्षण अधिनियम भी पारित किये गये हैं, जिससे यह प्रावधान है कि शिक्षा के साथ कमाई भी की जा सकती है अर्थात् प्रशिक्षु को प्रशिक्षण के दौरान कार्य के बदले कुछ मजदूरी भी प्राप्त होती है। यह सस्ते श्रम का एक माध्यम है। मूलतः यह तकनीकी योग्यता वाले पदों व कार्यों के लिए ही उपयोगी है।
  3. अंतरंग प्रशिक्षण (Internship Training) – इस प्रकार का प्रशिक्षण उच्च शिक्षा या उच्च तकनीकी शिक्षा, उच्च प्रबन्धकीय शिक्षा आदि के लिए दिया जाता है, जिसमें अधिकांश शिक्षण व व्यावहारिक शिक्षण संस्थान विभिन्न औद्योगिक उपक्रम में अपने विद्यार्थियों को अन्तरंग प्रशिक्षण के लिए व्यवस्था करता है ताकि उस विषय की विशिष्टता की व्यावहारिक जानकारी उन्हें प्राप्त हो सके। इस प्रशिक्षण में शिक्षण संस्थानों द्वारा प्राप्त उच्च सैद्धांतिक ज्ञान को व्यावहारिक ज्ञान व अनुभवों के साथ परिचित कराया जाता है। सभी इन्जीनियरिंग कोर्स के लिए, मेडिकल कोर्स के लिए, प्रबन्धकीय कोर्स के लिए या फिर पेशेवर कोर्स के लिए इस प्रकार के प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती है। इसकी अवधि प्रायः 6 महीने से 2 वर्ष तक की होती है और इस अवधि में विद्यार्थियों को उचित मात्रा में वृत्ति (stipend) भी दिया जाता है।
  4. प्रबोधन या पुनअभ्यास प्रशिक्षण (Refresher Training) – प्रबोधन प्रशिक्षण प्रायः पुराने कर्मचारियों को दिया जाता है। इस प्रकार का प्रशिक्षण पुराने कर्मचारियों को नवीनतम ज्ञान व जानकारियों से अवगत कराने के लिए दिया जाता है। परिवर्तनशील वातावरण के तीव्र गति से ज्ञान व तकनीकी में विकास व परिवर्तन इस प्रकार के प्रशिक्षण का महत्व काफी बढ़ गया है। प्रबोधन प्रशिक्षण के समय-समय के अन्तराल पर आये नवीन परिवर्तनों, नवीनतम ज्ञान, नवीनतम तकनीकी, नवीन मशीनों के प्रयोग आदि से अवगत कराया जाता है। इस प्रकार का प्रशिक्षण विशिष्ट कार्यक्रम आरोपित कर विशेषज्ञों के द्वारा वर्तमान कर्मचारियों के ज्ञान व कार्यकुशलता को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। प्रायः प्रबोधन प्रशिक्षण का कार्यक्रम 15 दिनों से 21 दिनों तक के बीच में आयोजित कर दिया जाता है। पुराने कर्मचारियों के ज्ञान को ताजा करने, उनकी मिथ्या धारणाओं को दूर करने, उन्हें नये सुधारों, नवीन कार्य पद्धतियों से परिचित करवाने तथा उन्हें नवीन परिवर्तनों से अवगत कराने, नवीनीकरण व विकास के साथ-साथ वैयक्तिक विकास के लिए यह प्रशिक्षण आवश्यक माना जाता है।
  5. बहुमुखी प्रशिक्षण (Versatility Training) – बहुमुखी प्रशिक्षण प्रक्रिया में कर्मचारियों के सम्पूर्ण विकास व चहुमुखी विकास के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। इस प्रशिक्षण में कर्मचारियों को कई प्रकार के कौशल, ज्ञान, प्रमुख कार्यों के अतिरिक्त अन्य कार्यों आदि के बारे में जानकारी देकर प्रशिक्षित किया जाता है। इस प्रकार के प्रशिक्षण से प्रशिक्षित कर्मचारी विशेष परिस्थिति में उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने में सहायक होते हैं। विशेषकर व्यावसायिक समृद्धि तथा मन्दीकाल में बहुमुखी प्रशिक्षित श्रमिक अधिक उपयोगी होते हैं। इसमें कर्मचारियों को क्रमवार (Rotate) से कार्य परिवर्तित कर कई प्रकार के कार्यों को निष्पादित करने का प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे कर्मचारियों में सभी कार्यों के प्रति जानकारी प्राप्त हो जाये और वह संगठन में उत्पन्न विभिन्न चुनौतियों का मुकाबला दृढ़ता के साथ कर सके।
  6. मनोवृत्ति प्रशिक्षण (Attitude Training) – मनोवृत्ति प्रशिक्षण में कर्मचारियों के बीच संगठन के प्रति सकारात्मक मनोवृत्ति में वृद्धि करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। मनोवृत्ति प्रशिक्षण का उद्देश्य कर्मचारियों में संस्था के प्रति सहयोग, अपनत्व, निष्ठा, सद्विश्वास, स्वामिभक्ति, सकारात्मक दृष्टिकोण, हितकारी चित्रण एवं रचनात्मक मनोवृत्ति का विकास करना होता है। मनोवृत्ति प्रशिक्षण की प्रक्रिया सतत चलने वाली प्रक्रिया है और इसके लिए परिसम्वाद, अध्ययन गोष्ठी, सभाओं, व्याख्यानों, मार्गदर्शन, सामूहिक परिचर्चा आदि का प्रबन्ध किया जाता है। यह प्रशिक्षण संस्था के प्रति एक सकारात्मक सोच विकसित करने में सहायक साबित होता है, जिससे संगठन से दीर्घकालीन व स्थायी सम्बन्ध स्थापित करने में सफलता मिलती है। आज प्रायः मानव संसाधन विकास का यह प्रमुख दायित्व है कि कर्मचारियों के अन्दर संगठन के प्रति एक सकारात्मक सोच व भावना कैसे विकसित हो।
  7. सुरक्षा प्रशिक्षण (Safety Training) – मानव जीवन जोखिमों से भरा पड़ा है। संस्था में कार्यरत कर्मचारियों को कई दुर्घटनाओं व जोखिमों का सामना करना पड़ता है। अतः कर्मचारियों को उपक्रम की सुरक्षा व्यवस्था करने, कार्य के दौरान आवश्यक सावधानियाँ बरतने तथा दुर्घटनाओं में आवश्यक रोकथाम करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। इस प्रशिक्षण में कर्मचारी के स्वयं की सुरक्षा, उपक्रम की सम्पत्तियों की सुरक्षा तथा अन्य सामान्य सुरक्षा व्यवस्था में योगदान देने के सम्बन्ध में जानकारी दी जाती है। आज के वैश्विक वातावरण में अन्य प्रकार के व्यावसायिक सुरक्षा, ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण नियन्त्रण आदि के सम्बन्ध में भी कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि इन सभी से सुरक्षा दिलाई जा सके।
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