सम्पादन के आधारभूत तत्व | सम्पादन कला

सम्पादन के आधारभूत तत्व | सम्पादन कला

सम्पादन के आधारभूत तत्व

पत्रकारिता अपने मूल रूप में ऐसे लेखन में निहित रहती है, जो पाठक को उसे आद्योपान्त पढ़ने के लिये विवश कर दे। बहुत से लोग अपने मित्रों तथा सम्बन्धियों को पत्र लिखते हैं, परन्तु इनमें ऐसे पत्र बहुत कम होते हैं, जिन्हें पत्र प्राप्तकर्ता किसी औपचारिक सूचना या सन्देश से अधिक समझते हैं, इसी कारण पत्रकारिता का उद्गम सूचना सन्देश से माना गया है। इस नित्यपति के पत्र भंडार में जो पत्र साधारण-स्वभावी पत्रों से भिन्न होते हैं, उन्हें पत्र प्रापक आद्योपान्त ही नहीं, बल्कि उनके एक-शब्द को पढ़ता भी है तथा उसकी विषय-वस्तु पर कुछ या अधिक मनन भी करता है। लेखन कला का उद्गम स्थल ऐसे ही पत्र कहे जा सकते हैं। इस प्रकार की लेखन कला में अनेक प्रकार की भावात्मक लहरे भी होती हैं जो पत्र प्रेषक और प्रापक के बीच विद्यमान करती है अतः वह उनमें प्रवाहित रहती है। उनकी क्या गहराई हैं यह बात दोनों पक्षों के बीच की होती है, फिर भी यदि ऐसे पत्रों को किसी तीसरे व्यक्ति को पढ़ने का अवसर मिले तो उनमें कितनी रुचि लेगा, कहा नहीं जा सकता। सम्भवतः वह उनमें यदि कोई मनोरंजक तत्व होगा तो अवश्य रुचि लेगा या फिर कोई वैचारिक विश्लेषण होगा और वह भी ऐसी भाषा में जो उसके लिये बोझिल नहीं हो या उसकी समझ से परे नहीं हो, साथ ही इस तरह की विश्लेषणात्मक विशिष्टता से युक्त हो कि ऐसा प्रतीत हो कि वह किसी विशेष व्यक्ति मात्र के प्रति ही सन्दर्भित नहीं है तो वह उसके लिये भी आद्योपान्त पठनीय होगा। हालाँकि यह बात लेखन- कला को परिलक्षित करने वाली होगी, लेकिन ऐसा लेखन अपने भीतर सम्पादकीय तत्वों से निहित होता है।

अतः सम्पादक कला का यही मूल तत्व है कि वह समाचार-पत्र में समाचारों को शीर्षकीकरण से लेकर प्रस्तुति प्रक्रिया में इस बात का पालन करे कि समाचार विवरण और वैचारिक विश्लेषण से लेकर मुद्रण स्थिति तक पाठक के नेत्रों से लेकर ह्दय तक रोमांच स्पर्श कर सके। उसे उसकी सज्जा में भी विशिष्टता की प्रतीति हो। यदि ऐसा होता हैं तो समाचार पत्र के व्यावसायिक पक्ष पर बहुत प्रभाव पड़ता है तथा उसके समाचार-विचार पाठकों के लिसे तटस्थ प्रकार के नहीं रह जाते और वह चर्चा का विषय बनते हैं, साथ ही वह अपनी ही तरह सामाजिक और राजनीतिक रूप में नायक बने लोगों को मार्गदर्शन देकर गौरवान्वित स्तर प्राप्त करते है।

सम्पादन कला में दक्ष होने के लिये सम्पादक को निम्नलिखित आधारभूत तत्वों पर ध्यान देना चाहिये-

(1) शीर्षकीकरण, (2) पृष्ठ विन्यास, (3) आमुख, (4) समाचार पत्र की प्रस्तुति-प्रक्रिया।

(1) शीर्षकीकरण

शीर्षकीकरण उन समाचारों का जो समाचार होते हैं, उन विशिष्ट लेखों और सम्पादकीय का जो वैचारिक मन्थन करते हैं, करना होता है। सबसे पहले किसी कृति, लेख आदि में यदि प्रत्यक्षतः कोई आकर्षण होता है तो वह उसके शीर्षक में होता है। बहुत से लेखक तो अपनी किसी कृति, लेख, कहानी, कविता आदि के लिए उपयुक्त शीर्ष भी नहीं खोज पाते, जहाँ इसके विपरीत सम्पादक को तो अपने हर समाचार को, चाहे वह छोटा हो या बड़ा हो, शीर्षक देना पड़ता हैं। समाचार-पत्र की दृष्टि से यह सरल कार्य नहीं है।

हम यहाँ कुछ अग्र लेखों के शीर्षक चातुर्य पर प्रकाश डाल देना उचित समझते हैं, जिनमें स्वयं ही बौद्धिक और ह्दय रोमांच करने की शक्ति है।

व्यापारिक मानववाद- गैट समझौते से विश्व व्यापार पर पूरी तरह कब्जा करते ही पश्चिमी देशों की योजना के कारण मराकशा में विकसित और विकासशील देशों के बीच गहरे मतभेद पैदा होने ही थे। हैरानी की बात यह है कि इस मामले में अमेरिका का साथ यूरोपीय समुदाय के देश मिलकर दे रहे हैं, जबकि शुरू में फ्रांस ही भावी एजेण्डा में नये मुद्दे जोड़ने के पक्ष में था। इससे साफ है कि गैट वार्ता को अमेरिका ही नहीं हर विकसित देश विकासशील विश्व पर आर्थिक साम्राज्य स्थापित करने की समर नीति मानता है। क्योंकि यूरोपीय समुदाय अपने आपमें काफी शक्तिशाली आर्थिक गुट है और इसे भविष्य में अमेरिका के साथ सीधे मुकाबले में भी पड़ सकता है। इसलिए उसके लिये भी जरूरी है कि भारत जैसे विशाल बाजार में दाखिल हो भारतीय प्रतियोगिता की सम्भावनाओं को उभरने न दे।

बुर्का, परिचयपत्र व शेषन चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन ने बुर्का पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं को मतदाता परिचय-पत्र बनवाने के लिये फोटो खिंचवाने की छूट देने से इंकार कर दिया। उनका कहना है कि “यदि वे पासपोर्ट बनवाने के लिये फोटो खिंचवा सकती हैं तो मतदाता परिचय पत्र के लिये फोटो खिंचवाने में उन्हें क्या आपत्ति हो सकती है, और क्यों होनी चाहिये?” तर्क की तराजू पर तोला जाय तो शेषन की बात एकदम खरी लगती है और उनके तर्क को काटना प्रायः असंभव है।…..अतः कहना होगा कि यदि मतदाता पत्र बनाये जाने हैं तो वे सचित्र ही होने चाहिये।

वैसे हमारे देश में बात-बेबात हर मामले को सम्प्रदायिक रंगत दे दी जाती है और मतदाता परिचय- पत्रों के लिए फोटो खिंचवाना अनिवार्य बनाये जाने को भी ऐसी रंगत दिये जाने की प्रबल सम्भावना है।

(2) पृष्ठ विन्यास

उक्त शीर्षकों में पाठक के लिये पर्याप्त आकर्षण है। इसी प्रकार समाचार-पत्र में पृष्ठ विन्यास भी सम्पादन कला के तत्वों से जुड़ा हुआ है। सम्पादन विभाग की यह एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है कि समाचार-पत्र का पृष्ठ विन्यास आकर्षक हो। इस कार्य की प्रधान उप-सम्पादक द्वारा किया जाता है। प्रधान उप-सम्पादक समाचार-पत्र का विश्वकर्मा या वस्तुकार होता है। समाचार-पत्र के कार्यालय में आने वाले समाचार उसकी मेज पर आते हैं। वह शीघ्रतापूर्वक समाचारों के छपने के बारे में निर्णय लेता है तथा यह भी निर्णय लेता है कि क्रिन समाचारों को आधा करना होगा और किस समाचार को कुछ ही पंक्तियों में समाप्त कर देना होगा।

सम्पादक, समाचार-सम्पादक और प्रधान उप-सम्पादक अपनी बैठकों में उन घटनाओं की अनुसूची पर जो समाचार-सम्पादक द्वारा तैयार की जाती है, विचार करते हैं और मदों को स्थूल क्रम उनके महत्व की दृष्टि से देते हैं। यह अगले दिन के समाचार-पत्र की रूपरेखा होती है। पहले पृष्ठ पर और अन्य पृष्ठों पर जाने वाले समाचारों के लिये, चित्रों के लिये और अन्य सभी बातों के लिये कच्चे ढंग से स्थान नियत कर दिया जाता है। जो मेकअप सीटों पर पेन्सिल से नियत कर दिये जाते हैं, “डमी” कहलाते हैं। विज्ञापन का प्रभारी व्यक्ति यह पहले से बता देता है कि उसे प्रत्येक पृष्ठ पर कितना स्थान चाहिये।

प्रधान उप-सम्पादक को समाचार-पत्र के चित्रों के उपयोग की रूपरेखा बनाने वाला कलाकार भी कहना चाहिये। उसे चित्रों का चयन तथा ब्लॉक (चित्र) का आकार तय करना होता है। वह चित्रों के शीर्षक भी निश्चित करता है। वह मुख्य समाचार की और अन्य सभी शीर्षकों की सावधानीपूर्वक जाँच भी करता है।

वास्तव में समाचार-पत्र में जो कुछ भी प्रकाशित होता है वह समाचार-पत्र कार्यालय में आने वाले समाचारों का एक छोटा सा अंश होता है। जितनी सामग्री प्रकाशित की जाती है उससे कहीं अधिक रद्द कर दी जाती है। उप-सम्पादक को शीघ्रता और कुशलतापूर्वक यह निश्चित करना होता है कि कौन सी सामग्री रद्द की जाय, कौन सी घटा दी जाय तथा कौन सी समाविष्ट की जाय और कितनी की जाय। यह कार्य समाचार-पत्र की पृष्ठ संख्या को ध्यान में रखकर भी करना होता है। प्रत्येक समाचार-पत्र में सर्वाधिक और सर्वोत्तम समाचार के लिये मुखपृष्ठ होता है। एक सम्पादकीय के लिये पृष्ठ होता है। उसके बाद उसमें वह पृष्ठ होते हैं जिनमें व्यापारिक खेलकूद, स्थानीय आदि समाचार होते हैं। सबके लिये पृष्ठ नियत होते है।

(3) आमुख

सम्पाद कला का मुख्य तत्व तो समाचार का प्रभावोत्पादक ढंग ही होता है। इसके लिये यह आवश्यक है कि समाचार का सूत्रपात आकर्षक ढंग से किया जाय। सूत्रपात से आशय वह वाक्य या वे वाक्य हैं जिससे किसी समाचार का आरम्भ होता है अथात् आमुख। इसका विकास सम्भवतः प्रथम सम्पादकीय के अग्रलेख बनाने की परिपाटी से हुआ समाचार एकत्र करने के बाद संवाददाता के सामने कठिन कार्य यह होता है कि वह अपने समाचार का आरम्भ किस प्रकार करे। पहले कुछ शब्द ही समाचार का पाठनीयता की कसौटी का काम करते हैं। सूत्रपात का प्रयोजन समाचार को गतिपूर्वक चालू करना और पाठकों को उसे पढ़ने के लिये प्रेरित करना होता है। अच्छा सूत्रपात या आमुख पाठकों को युवा प्रत्याशित रोमांच की ओर खींचता है और यदि समाचार की प्रस्तुति उसके अनुकूल हुई तो पाठक उसे एक ही साँस में पढ़ जाता है। कई बार समाचार एक चमक या काँच के रूप में दिया जाता है। ‘आमुक’ है। यह सत्य है कि आज के युग में किसी भी भाषण को अक्षरशः प्रकाशित नहीं किया जा सकता, फिर भी यदि संवाददाता  को आशुलेखन का ज्ञान हो तो वह टिप्पणी तेजी से और सही रूप से ले सकता है। विशेषतः तब जब कोई भाषण या इन्टरव्यू तेजी से हो रहा है।

संवाददाता को सतर्क और चुस्त दुरुस्त होना चाहिए। उसे समाचार बोध हो तथा अविलम्ब सम्पूर्ण घटना चक्र के प्रति उसकी स्पष्ट धारणा बन जानी चाहिए। उसकी प्रस्तुति भी आकर्षक होनी चाहिए।

संवाददाता मानव-जाति और मानवीय गतिविधियों की दृष्टा होता है। अपने प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करने के लिए उसे मानवीय होना चाहिए, खिन्न और रूखा नहीं। उसकी दृष्टि व्यापक होनी चाहिए। जिससे जीवन का कोई भी पक्ष अछूता न रहें। संवाददाता को समय के साथ दौड़ना पड़ता है। समय कभी किसी की प्रतिक्षा नहीं करता। वह संवाददाता की भी प्रतिक्षा नहीं करता। उससे वह नवीन समाचारों को ताजगी के साथ प्रस्तुत कर सकता है। उसे शीघ्रातिशीघ्र समाचार शार्ट करना चाहिए।

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