व्यूहरचनात्मक प्रबंधन / Strategic Management

स्थिर कार्यनीति की दशाएँ | विस्तार कार्यनीति की विशेषताएँ | विस्तार कार्यनीति क्यों करनी चाहिए | एक फर्म को स्थिर कार्यनीति कब अपनानी चाहिए?

स्थिर कार्यनीति की दशाएँ | विस्तार कार्यनीति की विशेषताएँ | विस्तार कार्यनीति क्यों करनी चाहिए | एक फर्म को स्थिर कार्यनीति कब अपनानी चाहिए? | Stable Strategy Conditions in Hindi | Features of Expansion Strategy in Hindi | Why should expansion strategy be done in Hindi | When should a firm adopt a static strategy in Hindi

स्थिर कार्यनीति की दशाएँ-

निम्नलिखित कुछ दशाएँ ऐसी होती हैं जिनमें स्थिर कार्यनीति को अपनाया जाता है। ये दशाएँ इस प्रकार हैं-

  1. व्यवसाय परिभाषा के प्रति वचनबद्धता को पूरा करना- प्रत्येक फर्म को व्यवसाय परिभाषाओं की अपेक्षाओं को पूरा करना होता है। व्यवसाय की परिभाषा यह बताती है कि फर्म को क्या करना है? प्रत्येक फर्म को अपने उद्देश्यों, प्रयोजनों तथा ध्येयों को प्राप्त करना होता है, जिसके लिए उसके अनुरूप संगठन का निर्माण करना होता है। अधिकतर फर्मे केवल अल्पकाल के लिए ही स्थिर कार्यनीति का प्रयोग करती हैं। अल्पकाल में वातावरण सम्बन्धी तत्व परिवर्तित नहीं होते, अगर परिवर्तित होते भी हैं तो उनका प्रभाव बहुत कम होता है। इसका कारण है कि फर्म स्थिर कार्यनीति का अनुसरण करने के लिए तैयार रहती है।
  2. जब फर्म को समान (उन्हीं) उद्देश्यों को लागू करना होता है- जब फर्म को वर्तमान लक्ष्य तथा उद्देश्यों को प्राप्त करना होता है तब उस समय स्थिर कार्यनीति महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। उदाहरण के लिए, फर्म का उद्देश्य पहले साल की बिक्री पर 8 प्रतिशत विक्रय को प्राप्त करना है तथा बाजार हिस्सा भी पूर्व की तरह 48 प्रतिशत बनाये रखना है।

इस स्थिति में, व्यवसाय विचलनों, उत्पाद, बाजार तथा क्रियाओं को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं है। किसी को भी इस बात का भ्रम नहीं होना चाहिए कि जब फर्म स्थिर कार्यनीति का अनुसरण करती है तो विकास नहीं होता। भले ही वही प्रतिशत रखा जाये विकास फिर भी होता है। यद्यपि इस विकास के लिए अतिरिक्त कोषों की आवश्यकता नहीं होती।

  1. मूल क्षमता के लाभों को प्राप्त करना- कोई भी संगठन उस समय स्थिर कार्यनीति का अनुसरण कर सकता है जब व्यवसाय के अंदर किसी उत्पाद पंक्ति में विस्तार के लिये पर्याप्त अवसर होते हैं। ऐसे अवसरों में स्थिति का पूरा लाभ उठाने का एक-एक सुनहरा मौका होता है। उदाहरण के लिए, फर्म को नये उत्पादों, नयी प्रक्रियाओं, नये बाजारों के विकास में भारी सफलता प्राप्त है। यह सफलता पैकिंग, वितरण, विज्ञापन आदि में भी हो सकती है। यह पूर्व विनियोग तथा प्रयासों का परिणाम हो सकता है जिनका फर्म लाभ उठाती है। यदि फर्म को अपनेप पर प्रतियोगी लाभ प्राप्त है तो उसे वैकल्पिक कार्यनीतियों के बारे में सोचने की आवश्यकता नहीं है। यह उसके लिए एक अतिरिक्त लाभ होगा, इस प्रकार, प्राप्त भौतिक तथाम संसाधनों का कुशल तथा प्रभावपूर्ण उपयोग है, जिससे बिना किसी अतिरिक्त खर्चों के अच्छी आय प्राप्त होती है।

विस्तार कार्यनीति की विशेषताएँ

विस्तार कार्यनीति की निम्नलिखित विशेषाताएँ हैं-

  1. यह तीव्रगति से विकास की सूचक है- विस्तार कार्यनीति स्थिर विकास कार्यनीति की ठीक विपरीत है। स्थिर विकास कार्यनीति की स्थिति में, प्रोत्साहनों की संख्या कम होती है जबकि विकास कार्यनीति में उनकी मात्रा बहुत अधिक होती। क्योंकि प्रोत्साहनों की मात्रा ऊँची होती है इसलिए खतरे भी अधिक होते हैं। विस्ततार कार्यनीति वास्तव में विकास कार्यनीति होती है। एक फर्म जो विकास के लिए अत्यधिक आशावान होती है वह अपने उद्देश्यों को केवल विस्तार कार्यनीति द्वारा ही पूरा कर सकती है।
  2. इसके अंतर्गत व्यवसाय को पुनः परिभाषित किया जाता है- विस्तार कार्यनीति में फर्म के व्यवसाय को पुनः परिभाषित किया जाता है। क्योंकि उसे अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए उत्पादन, बाजार तथा क्रियाओं को पुनः परिभाषित करना होगा। इसका तात्पर्य यह हुआ कि नवीनीकरण की प्रक्रिया केवल नये निवेश, भये व्यवसाय, उत्पाद, बाजार तथा क्रियाओं के द्वारा ही सम्भव हो सकती है। इसके अंतर्गत पुराने संसाधनों तथा प्रतियोगी लाभों का पूंजीकरण नहीं किया जाता है।
  3. यह अत्यधिक अस्थिर कार्यनीति होती है- विस्तार कार्यनीति अस्थिर व चंचल होती है। क्योंकि इसमें विकास के लिए विभिन्न व्यवस्थाओं तथा संयोगों का सहारा लिया जाता है। एक फर्म जो विस्तार कार्यनीति को स्वीकार करती है उसे कार्यनीति के अंदर विभिन्न विकल्पों को विचलनों में परिवर्तन के लिए विकसित करना होता है इसके अंतर्गत विभिन्न विचलन जैसे- उत्पाद, बाजार, क्रियाओं आदि का विशेष परिस्थितियों के अनुसार चुनाव करना होता है।
  4. इसमें विस्तार के दो रास्ते होते हैं- विस्तार कार्यनीति में दो शाखाएँ होती हैं जिनके द्वारा विकास को प्राप्त किय जा सकता है। ये हैं- तीव्र गति तथा विभेदीकरण । तीव्र गति तथा विभेदीकरण दोनों ही कार्यनीति के अंतर्गत आते हैं लेकिन दोनों विचाराधाराओं में अन्तर है। तीव्र गति (गहन खोज) कार्यनीति के अन्तर्गत फर्म विकास को अपने वर्तमान चालू व्यवसाय में ही अतिरिक्त कार्य करके प्राप्त कर सकती है। इसके विपरीत, दिभेदीकरण कार्यनीति के अंतर्गत फर्म जिस व्यवसाय या उत्पाद का उत्पादन नहीं करती, उन्हें फर्म की उत्पाद पंक्ति में जोड़ा जाता है अर्थात् विभेदीकरण (विकास) कार्यनीति के अंतर्गत उन उत्पादों, बाजारों तथा क्रियाओं को जोड़ा जाता है। जिनके अंतर्गत फर्म व्यवसाय नहीं करती यानि वे फर्म के लिए नई होती हैं।
  5. यह सार्वजनिक कार्यनीति है- यह बहुत ही सामान्य कार्यनीति है जिसका फर्म सहारा लेती है। यह फर्म जो विकास अवस्था में होती है और अधिक विकास करना चाहती है। कोई भी विस्तार या विकास के लिए तब तक आगे नहीं आ सकता जब तक उसके अन्दर विकास की संभावनाएँ नहीं होतीं। उसी प्रकार कोई भी संगठन जब तक विकास के लिए इकाई (यूनिट) के अंदर तैयार न हो, विकास नहीं किया जा सकता। यह अधिक महत्वपूर्ण है कि फर्म में उपलब्ध संसाधनों की अपेक्षा विकास तेज गति के साथ होता है।

विस्तार कार्यनीति क्यों करनी चाहिए?

फर्मे विकास कार्यनीति का अनुसरण क्यों करती हैं उसके निम्नलिखित मुख्य कारण हैं-

  1. जीवित बने रहना विकास पर निर्भर करता है- जो व्यक्ति अल्पकाल में जीवित रहता है यह आवश्यक नहीं है कि वह दीर्घकाल में भी जीवित रह सके। क्योंकि संगठन के जीवित (बने) रहने के लिए विकास का होना जरूरी है। विशेष जब बाहरी वातावरण समस्या पैदा करता है। कोई भी संगठन जो विकास नहीं कर रहा है उसे उद्योग में नये तथा वर्तमान प्रतियोगियों द्वारा बाहर कर दिया जाता है। कोई भी स्थायित्व / तदर्थ कार्यनीति का सहारा लेकर जीवित नहीं रह सकती क्योंकि कच्चे माल, मजदूरी तथा परिव्ययों को लागतों में वृद्धि के कारण फर्म अपने लाभों को देती है जिसके परिणामस्वरूप, मशीनरी तथा संयन्त्रों में अप्रचलन के कारण उत्पादकता के स्तर में कमी आ जाती है तथा वर्तमान उत्पादों से होने वाली आय भी घट जाती है, इस प्रकार, इससे अच्छा है कि विकास किया जाये और स्थिरता की स्थिति से बाहर निकला जाये।
  2. संसाधनों के उचित तथा प्रभावी उपयोग के लिए विकास आवश्यक है- विकास अवसरों का एक साधन है। एक कम्पनी जो तीव्र गति से या विभेदीकरण या दोनों के द्वारा विकास करतीक्षहै वह बड़ी मात्रा में विक्रय से होने वाली मितव्यतों तथा मानवीय संसाधनों के क्षेत्र में भी विकसित होती है। नये अवसर जो बाह्य वातावरण में व्याप्त होते हैं उनका तभी लाभ उठाया जा सकता है जब कम्पनी के पास संसाधनों के रूप में तथा उन्हें प्रयोग करने के लिए शक्ति विद्यमान होती है। भारतवर्ष में, वे कम्पनियाँ जो निर्माणी कार्य में लगी हैं जिनके पास पर्याप्त सामर्थ्य (शक्ति) है तथा चुनैतियों का मुकाबला करने के लिए तैयार हैं उन्हें अवसर का लाभ उठाने के लिए आगे आना होगा तथा ईराक में उन्हें उस शक्ति का पूरा लाभ मिलेगा क्योंकि सद्दाम के बाद की अर्थव्यवस्था पूर्ण रूप से नष्ट हो गयी। भारतीय कम्पनियों को निर्माणी क्षेत्र में निश्चितरूप से लाभ मिलेगा।
  3. विकास प्रबन्धकीय अभिप्रेरणा है- कार्य कराने में प्रबन्धकीय अभिप्रेरणा महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। प्रबन्ध जिनका दृष्टिकोण धनात्मक होता है, वे बेहतरी की ओर परिवर्तन के लिए चुनौतियों को स्वीकार करते हैं तथा वायदों की अपेक्षा वास्तविक निष्पादन में विश्वास करते हैं, यह एक अभिप्रेरणा है जो उन्हें उच्च शिखर तक ले जाती है। यह जो प्राप्त किया जा चुका है वह लगातार विकास तथा लगातार सुधार के द्वारा ही सम्भव है। एक सही (वास्तविक) नेता तथा प्रबन्धक के लिए कार्य ही अपने आप में प्रोत्साहन होता है तथा आत्मसंतुष्टि का एक साधन होता है। वे संगठन सौभाग्यशाली हैं जिनके पास ऐसे प्रबन्धक हैं जो विकास की नयी ऊँचाइयों को प्राप्त करते हैं। उनके लिए संगठन का विकास ही बहुत बड़ा प्रोत्साहन होता है।
  4. विकास अदृश्य होता है- एक संगठन जो विकास की राह पर चल रहा होता है तथा उन ऊंचाइयों को प्राप्त करता है जिन्हें सभी के द्वारा पसंद किया जाता है उन ऊंचाइयों को संगठन के कर्मचारी, ग्राहक, विनियोक्ता, आपूर्तिकर्ता, लेनदार, राष्ट्रीय सरकार सभी के द्वारा पसंद किया जाता है। केवल विकासशील संगठन ही समाज के हर वर्ग को संतुष्ट कर सकता है। लेनदार तथा ऋणदाता अपने उधार दिये गये मूलधन की वापसी तथा उस ब्याज की लगातार वापसी की गारन्टी चाहते है। उपभोक्ता तथा ग्राहक उस समय प्रसन्न होते हैं जब उन्हें सही समय पर कम कीमत पर अच्छी वस्तुएँ तथा सेवाएँ उनके अनुसार प्राप्त होती हैं। कर्मचारी इस बात से प्रसन्न होते हैं कि वे एक अच्छे संगठन के साथ जुड़े हुए हैं, जहाँ पर उनका आत्मसम्मान है, उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है तथा उन्हें सही मजदूरी प्राप्त होती है। विनियोक्ता भी इस बात से प्रसन्न होते हैं, कि उनके द्वारा विनियोग किया गया धनस है तथा उस पर वे लगातार अच्छी प्रत्याय (Return on Investment) प्राप्त कर रहे हैं, जिससे पूंजी में वृद्धि होती है। इन सबके अलावा, सरकार खुश रहती क्योंकि अच्छा प्रशासन चलता हैत व्यवहारों में पारदर्शिता पायी जाती है। संगठन सरकार के सामने सही बातों को प्रस्तुत करता है तथा कर की अदायगी भी समय पर करता है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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