हड़प्पा-मोहन जोदड़ों सभ्यता | सिन्धु घाटी की सभ्यता (3000-1500 ई० पू०)

हड़प्पा-मोहन जोदड़ों सभ्यता | सिन्धु घाटी की सभ्यता (3000-1500 ई० पू०)
हड़प्पा-मोहन जोदड़ों सभ्यता
उन्नीसवीं शाताब्दी के अन्त तक अधिकांश विद्वानों का मत था कि भारतीय इतिहास लगभग 3000 वर्ष पुराना है पर 1922-23 ईo में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा डी० आर० साहनी, आर० डी० बनर्जी, जान मार्शल के नेतृत्व में सिन्धु प्रान्त के लरकाना जिले में सिंधु नदी के तट पर एवं पंजाब प्रान्त के मांटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर की गयी खुदाई से प्राप्त अवशेषों ने इन विद्वानों के भ्रम को दूर किया। फलतः अधिकांश विद्वानों का यह मत बना कि भारतीय इतिहास एवं संस्कृति 5200 वर्ष से भी अधिक पुरानी है।
(कार्बनडेटिंग प्रॉसेस द्वारा सिन्धु घाटी सभ्यता को 5000 वर्ष पुराना बताया गया है) एवं उस समय वह काफी विकसित थी। इसे हम सिन्धु घाटी की सभ्यता के नाम से जानते हैं। लूरकाना जिले में पाप्त नगर अवशेष को मोचन जोदड़ो (मृतकों का टीला)एवं भांटगोमरी जिले में प्राप्त नगर अवशेष को हड़प्पा कहते हैं जो वर्तमान में पाकिस्तान में है ।
तवीनतम खोजों से यह प्रमाणित हो गया है कि सिन्धुधाटी की सभ्यता का विस्तार, सोत का कोह ( बलूचिस्तान) रोपड़ (पंजाब, हरियाणा), कालीबंगा (राजस्थान ), लोयल, रंगपुर, देसलपुर (गुजरात ), आलमगीरपुर सहारनपुर, कीशाम्बी (गगाधाटी-उ० प्र० ) तक था । कुछ विद्वान सिन्धुघाटी के निवासियों को द्रविण, कुछ आर्य एवं कुछ नगरीय सभ्यता के कारण मिली-जुली नस्ल का बताते हैं । पर कुछ लोगों का विचार है कि आर्य भारत के मूल निवासी थे एवं वृहत्तर भारत के दक्षिण से उत्तर तक, पूर्व से पश्चिम तक इनका विस्तार था । द्रविण आदि सभी आर्य हैं एवं परस्पर भिन्नता का कारण भौगोलिक परिस्थितियाँ तथा उससे उत्पन्न प्रभाव है । अर्थात सिन्धु घाटी की सभ्यता आर्य सभ्यता है ।
भारत के मूल निवासियों को अनार्य बताना अंग्रेजों की कूटनीति थी क्योंकि वे अपने को श्रेष्ठ एवं भारतीयों को निम्न साबित करके राज्य करना चाहते । अंग्रेजी शासन में फले-फूले कुछ विद्वानों ने इस चाल को नहीं समझा एवं आर्यो को बाहर से आया सिद्ध करने का निन्दनीय प्रयास किया । इन्हीं सबका परिणाम है कि आज हम अपने सांस्कृतिक धार्मिक-ऐतिहासिक ग्रन्थों के विवरण को गलत एवं अंग्रेजी इतिहास को सही मानकर अपने प्राचीन गौरव की उपेक्षा कर रहे हैं । जबकि सच्चाई यह है कि धर्म, संस्कृति, विज्ञान, कला, दर्शन के क्षेत्र में उच्च स्तर पर पहुँचने वाला विश्व का प्रथम देश भारत था एवं सभी भारतीय आर्य थे । हमें हीन मानसिकता, अन्धानुकरण, रूढ़िवादिता को त्याग कर अपने प्राचीन उच्चस्तरीय गौरव के लिए प्रयास करना चाहिए ।
सिन्धु घाटी सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ
(1) नगरों का निर्माण योजना बद्ध, सहकें कच्ची थीं एवं परस्पर समकोण पर काटती थी । प्रकाश के साथ सफाई के लिए पक्ती नालियाँ थीं।
( 2) भवन- निर्माण कला उत्तम थी, भवनों में खिड़़की, दरवाजे, रसोईघर, आँगन, शौचालय, स्नानागार आदि थे । सार्वजनिक भवन एवं स्नानागार भी थे।
(3) इनका गेहूँ, जौ, मटर, तिल, फल, दूध, मांस, मछली प्रमुख भोजन, , सूती, ऊनी, कपड़े, मुख्य वस्त्र, कंठहार, भुजबंड, अंगूठी, कमरबन्द, कर्णफूल मुख्य आभूषण,कटोरा, तश्तरी, लकड़ी की कुर्सी, चौकी, चारपाई, कुल्हाड़ी, चाकू एवं ताँबे तथा मिट्टी के बर्तन आदि दैनिक जीवन की वस्तुएँ शिकार खेलना, तीतरबटेर, सांड़ लड़ाना, नाच-गाना प्रमुख मनोरंजन,छपाई, कताई, बुनाई, मूर्ति-निर्माण, चित्रकारी आदि मुख्य उद्योग था ।
(4) स्त्री-पुरुष दोनों अभूषण प्रेमी थे । ये स्थल एवं जलमार्ग द्वारा अफगानिस्तान, मिस्र, मैसोपोटामिया से व्यापार करते थे और पीपल, शिव, मातृ देवी, सूर्य, जल, अग्नि आदि शक्तियों की पूजा करते थे । ये मृतकों का अन्तिम संस्कर करते थे, इनकी अपनी चित्र लिपि धी जो अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है ।
(5) यह एक विकसित नगर सभ्यता थी जिस पर हम भारतीय गर्व कंर सकते है । इसकी बहुत-सी बातें मिस्र एवं मैसोपोटामिया सभ्यता में पायी जाती हैं ।
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