नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण पहलू (Important aspects related to the life of Netaji Subhash Chandra Bose)

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण पहलू
(Important aspects related to the life of Netaji Subhash Chandra Bose)
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानियों में से एक नेताजी सुभाषचन्द्र बोस भी थे। इनका जन्म 23 जनवरी 1887 को उड़ीसा राज्य की राजधानी कटक में हुआ था। आपके पिता जानकीनाथ बोस कटक के सुप्रसिद्ध वकील थे । सुभाषचन्द्र की आरम्भिक शिक्षा एक विदेशी स्कूल में हुई। मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद सुभाष चन्द्र बोस ने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कालेज में दाखिला लिया । कालेज में एक अंग्रेज अध्यापक भारतीय छात्रों का अपमान करता रहता था । सुभाष चन्द्र बोस को इसकी यह आदत अच्छी नहीं लगती थी। एक दिन मौका पाकर उन्होंने उस अध्यापक की पिटाई कर दी। इस कारण उन्हें कालेज से निकाल दिया गया । इसके बाद आपने एक अन्य विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की । इसके कुछ दिनों तक आपने नौकरी की क्योंकि घर की आर्थिक दशा ठीक नहीं थी।। कुछ पैसे जोड़ने के बाद आप इंग्लैंड चले गये। जहाँ से दो वर्षों बाद आप बैरिस्टर बनकर लौटे । भारत लौटकर आपने देशबन्धु चितरंजन दास को अपना राजनीतिक गुरु मानकर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े ।
आराम परस्त जिन्दगी से बेहतर आपने देश की दशा सुधारना समझा। 1921 में भारतीय प्रशासनिक सेवा की नौकरी छोड़ वे राष्ट्र सेवा से जुड़ गये । असहयोग आंदोलन में शामिल एवं बंदी हुए । 1922 में स्वराज्य पार्टी में सक्रिय फारवर्ड पत्र का सफल संचालन संपादन किया 1924 में कलकत्ता महापालिका के कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किये गये। इसी वर्ष बंगाल अध्यादेश के विरोध के कारण माडले जेल में उन्हें कैद कर दिया गया। जेल में दुर्व्यवहार के विरुद्ध 1926 में उपवास पर रहे। 1928 में वे प्रांतीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये। गांधी जी से मतभेद होने के कारण आपने कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्याग पत्र दे दिया। उन्होंने महसूस किया कि शान्तिपूर्वक व आग्रह करके आजादी हासिल नहीं हो सकती। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने स्वराज्य प्राप्ति के लिए फारवर्ड ब्लाक दल का गठन किया। इस दल के कारण आपने काग्रेस से त्याग पत्र दे दिया। आपके उत्साह, सूझ-बूझ और बेमिसाल योजना के कार्यान्वयन से अंग्रेजी सत्ता कांपने लगी। अंग्रेजों द्वारा आपको कई बार गिरफ्तार किया गया और छोड़ा गया। एक बार आपको अंग्रेजी सरकार के खिलाफत के कारण घर में ही नजरबंद कर दिया गया।
सुभाष चन्द्र बोस छदम वेश धारण कर घर से फरार हो गये। गूंगे-बहरे पठान के रूप में पन्द्रह हजार मील का सफर तय करके सुभाषचन्द्र बोस अफगानिस्तान होते हुए बर्लिन पहुंचे। उस समय जर्मनी में हिटलर का शासन था। हिटलर ने सुभाष चन्द्र बौस का सम्मान किया साथ ही उसे हर सम्भव मदद देने का आश्वासन दिया। हिटलर ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को दो वर्ष का सैनिक प्रशिक्षण दिया। इस प्रकार वह एक अच्छा जनरल साबित हुआ। 1942 में नेताजी ने जापान में आजाद हिन्द फौज का गठन किया। सुभाष चन्द्र बोस द्वारा गठित इस आजाद हिन्द फौज में शामिल युवक काफी हिम्मती व बहादुर थे। आजाद हिन्द फौज की बहादुरी को देख ब्रिटिश सत्ता एक बार के लिए हिल गयी थी। उसके पांव उखड़ने लगे थे। आजाद हिन्द फौज के गठन के बाद नेताज़ी ने गुलामी की जिन्दगी जी रहे भारतीयों को उत्साहित करने के लिए ही नारा दिया था- तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।
नेताजी के मूल्य एवं सिद्धान्त युग- युगान्तर तक संपूर्ण देशवासियों को दिशा दृष्टि देते रहेंगे। उनके हर अनुयायी पर उनके ओजस्वी व्यक्तित्व का जादुई प्रभाव पड़ता था। वास्तव में सुभाषचन्द्र बोस आत्मा से महान भारतीय थे नेता जी के शब्दों में भारतीय राष्ट्रवाद न तो संकुचित है न स्वार्थी और न ही आक्रामक । भारतीय राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्च आदर्शो-सत्यम, शिवम्, सुन्दरम, से प्रेरणा ग्रहण करता है। भारतीय राष्ट्रवाद साधना, ईमानदारी, मानवता और सेवा की शिक्षा देता है। चाहे कैसी भी परिस्थितियां रही हों हर र्थिति-परिस्थिति में वे उदात्त बने रहे। सुभाष चन्द्र बोस स्वभावतः भारतीय निष्ठा वाले सच्चे भारतीय थे। सुभाष चन्द्र बोस का कहना था – “हमने अखण्ड व स्वतंत्र भारत के निर्माण का प्रस्ताव किया है अतः हम उसके विभाजन और उसे टुकड़ों में काट देने के सभी प्रयत्नों का विरोध करेंगे” ।… हम महसूस करते हैं कि देश का विभाजन उसे आर्थिक, सांस्कृतिक व राजनैतिक रूप से नष्ट कर देगा।
सुभाषचन्द्र की समस्त अभिधारणाओं-मान्यताओं, क्रियाकलापों, योजना – परियोजनाओं की एक ही धुरी थी भारत मुक्ति। स्वतंत्रता के सबल स्वाभिमानी के रूप में भारत की प्रतिष्ठा । नेता जी का व्यक्तित्व विरल था । वे स्वयं में अनुशासित और कर्तव्यनिष्ठ थे । कर्तव्य को वे अपने जीवन का कर्मपथ मानते थे। उनका कहना था हममें असीम शक्ति है और जो नहीं है वह है आत्मविश्वास और श्रद्धा । हमारे देश में व्यक्ति और जाति के जीवन में प्रेरणा की कमी है । हम आदर्श भूल गये हैं और हमारी इच्छा शक्ति क्षीण हो गयी है। यही दोनों चीजें हमारी राष्ट्रीय हीनता का प्रमुख कारण है। माडले जेल में बंदी के दौरान इन्होंने अपने जीवन के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहा था-अपने संपूर्ण जीवन और शिक्षा के निचोड़ से मुझे इसी सत्य की उपलब्धि हई है कि पराधीन जाति का सब कुछ व्यर्थ है। शिक्षा-दीक्षा, कर्म सब कुछ यदि वह स्वाधीनता प्राप्ति में सहायक या उसके अनुकूल न हो। उनका कहना था-आपका जीवन आपका है उसे उन्नत बनाने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है ।
साधन व सुविधाओं के अभाव के बावजूद आजाद हिन्द फौज ने अदम्य साहस का परिचय दिया। उसने कई बार अंग्रेज सैन्य शक्ति को कई मोर्चो पर करारी शिकस्त दी। हालांकि बाद में जर्मनी और जापान की पराजय के कारण आजाद हिन्द फौज को भी विवश होकर हथियार डालने पड़े।
23 अगस्त 1945 को टोकियो आकाशवाणी ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु का समाचार प्रसारित किया। बताया जाता है कि उनकी मृत्यु हवाई जहाज की दुर्घटना के कारण हुई। लेकिन कई लोगों का मानना है कि सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु हवाई जहाज दुर्घटना में नहीं हुई है। सम्पूर्ण विश्व में एकमात्र श्रद्धा-विश्वास और सम्मान के साथ नेताजी की उपाधि को प्राप्त करने वाले सुभाषचन्द्र बोस की देश भक्ति का आदर्श आज भी हमें प्रेरित और उत्साहित करता है और आने वाली पीढ़ी को भी इसी तरह भाव-विभोर करते रहेगा।
उल्लेखनीय है कि नेताजी के कथित तौर पर गायब होने की जांच करने के लिए कई बार आयोग भी गठित किये गये। 1956 में शाहनवाज खान समिति तथा 1974 में खोसला आयोग मामले की जांच कर चुके हैं। इन दोनों आयोगों ने ने सबूतों के जीर्णशीर्ण पृष्ठों की बारीकी से जांच-पड़ताल की थी और लगभग उन्हीं गवाहों से पूछताछ की । दोनों का निष्कर्ष एक सा ही था। इनका मानना था कि 18 अगस्त, 1945 को ताइहोकू (अब ताईवान में) उनका बमवर्षक विमान गिरने के बाद नेताजी की एक सैनिक अस्पताल हो गयी थी। उनकी अंत्येष्टि इसके दो दिन बाद ही कर दी गयी थी।
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