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प्रथम विश्व देशों की विशेषताएं एवं समस्याएं (Characteristics and problems of first world countries)

प्रथम विश्व देशों की विशेषताएं एवं समस्याएं (Characteristics and problems of first world countries)

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औद्योगिक -व्यापारिक आर्थिक तन्त्र वाले विकसित (OECD) प्रदेश-

इसके अन्तर्गत आंग्ल-अमेरिका, यूरोपीय समुदाय, जापान, आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड आते है। ये विश्व के सर्वाधिक समृद्ध देश है। इनमें औसत प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 1998 ई० में $25570 थी जबकि विश्व का औसत $4,890 था। वार्षिक आय में वृद्धि 1980-93 में विश्व औसत 1.2% की तुलना में 2.2% थी जबकि 1997-98 में विश्व के 0.1%की तुलना में 1.1% थी। इनमें सबसे कम प्रति व्यक्ति आय पुर्तगाल की $10690 तथा सर्वाधिक स्वीटजरलैंड $40,080 की है। (प्रथम 2 अज्ञात) यद्यपि इस क्षेत्र के बाहर कुछ अन्य देशों जैसे ईजरायल 15,940 कुवैत (19,360) सिंगापुर (30,060) तथा संयुक्त अरब अमीरात (21,430) की प्रति व्यक्ति आय इसी कोटि की है परन्तु अर्थतन्त्र की अन्य संरचनात्मक खामियों के चलते इन्हें इस कोटि में नहीं रक्खा जा सकता, यद्यपि विश्व बैंक इन्हें भी उच्च आय कोटि में शामिल करता है। इस आय वर्ग की औसत वार्षिक वृद्धि भी 1965-87 के बारह वर्षों की अवधि में विश्व के औसत 1.5 प्रतिशत से अधिक 2.3% थी। दूसरी ओर इन देशों में मुद्रा स्फीति की औसत वृद्धि 1990-98 ई० के मध्य जापान में 0.2% से इटली 4.4% तक थी। इसका तात्पर्य यह हुआ कि इन देशों में न सिर्फ प्रति व्यक्ति औसत आय बहुत अधिक है। वरन मुद्रा की प्रति इकाई क्रय शक्ति भी उच्चस्तर की है । क्रय क्षमता आधारित (Purchasing Power Parity) प्रति व्यक्ति आय “98 में विश्व के औसत $6526 थी जबकि इस कोटि के देशों में $23,928। (परिशिष्टि IV A) इस आधार पर सर्वोच्च आय संयुक्त राज्य ($29340) की है। (प्रथम दो अज्ञात) तथा न्यूनतम $13010 ग्रीस का है।

दूसरे शब्दों में, इन क्षेत्रों के निवासियों को विविध प्रकार की उपभोक्ता वस्तुयें सहज उपलब्ध है । इस प्रकार ये देश आर्थिक विकास के उच्च्तम सोपान अर्थात उपभोग बहुल (mass consumption) अवस्था में है। इन देशों में आर्थिक विकास के अन्य सभी लक्षण यथा अत्यल्प जनसंख्या वृद्धि दर, अनुकूल (सेवाओं-उद्योगों बहुल) व्यावसायिक संरचना, उच्चस्तरीय प्राविधिकी एवं ऊर्जा उपभोग स्तर, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का भारी आयतन, अनुकूल भुगतान सन्तुलन, घरेलू उपभोग में सापेक्षतया भोजन पर अल्प एवं टिकाऊ उपभोक्ता सामग्री तथा मनोरंजन पर बहुत अधिक व्यय, कैलरी उपभोग अधिक, शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर अपेक्षाकृत अधिक व्यय, नगर निवासियों का उच्च अनुपात एवं इन सबके परिणामस्वरूप उच्च स्तरीय जीवन गुणवत्ता निर्देशांक, (0.893) मौजूद है। इन तत्वों का संक्षिप्त विवेचन निम्नवत है।

  1. इन देशों में जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर 1985- 90 की अवधि में 0.1% से 1.5% तथा 1998 में 0.4-1.1% तक था जो विश्व के औसत क्रमशः 1.7 तथा 1.4% की तुलना में अत्यल्प है। इस वर्ग के कुछ देशों में जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर 1980-93 अवधि में ऋणात्मक (-0.1) रही। अनुमानतः 2005-10 ई० तक इटली -0.3 एवं यूरोपीय समुदाय (E-15) के अधिकतर देशों में भी वृद्धि दर ऋणात्मक हो जायेगी। इस. वर्ग के देशों में 1995 के मध्य सर्वाधिक जनसंख्या वृद्धि दर आस्ट्रेलिया में 1.1% थी। इस वर्ग के देशों में जीवन प्रत्याशा (Longevity) 76.4वर्ष, महिलाओं की 78 एवं परूषों की 73 वर्ष से अधिक है।
  2. इस वर्ग के देशों में कुल राष्ट्रीय उत्पादन में सर्वाधिक अंशदान सेवाओं का होता है। 1998 ई० में इन देशों में 60% से अधिक योगदान इसी प्रखण्ड (sector) का था। स्पेन में न्यूनतम (25%)तथा संयुक्त राज्य में अधिकतम (72%) राष्ट्रीय उत्पादन इसी प्रखण्ड से प्राप्त हुआ इस वर्ग के देशों मे कृषि का सकल राष्ट्रीय उत्पादन में औसत योगदान 2% है। सिर्फ ग्रीस (10.6%) में कृषि का योगदान सापेक्षतया अधिक है। कृषि का इस दृष्टि से सापेक्षिक महत्व 1965 के पश्चात तीव्र गति से घटा है। आस्ट्रिया, जर्मनी, बेल्जियम में 1992 ई० में सकल राष्ट्रीय उत्पादन का 1% कृषि से प्राप्त हुआ।

उसी प्रकार कुल कार्यरत व्यक्तियों (Labour force) का अधिसंख्य सेवाओं में संलग्न हैं तत्पश्चात उद्योग का स्थान आता है जबकि कृषि में संलग्न लोगों का अनुपात अल्प रहता है। 1980 ई० में इन देशों में सेवाओं, उद्योग एवं कृषि में संलग्न श्रमिकों का औसत प्रतिशत क्रमशः 58, 35 एवं 7 था। संयुक्त राज्य में यह प्रतिशत क्रमशः 66, 31, एवं जापान में 55, 34, 11, फिनलैंड में 53, 35, 12; तथा स्पेन में 46, 37 एवं 17 था। तत्पश्चात इस संरचना में उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं हुआ। WDR’95 के अनुसार इन देशों की 75%से अधिक श्रम शक्ति आधुनिक एवं गैर कृषिगत प्रखण्ड में थी।

  1. ऊर्जा प्राविधिकी का आधार है। किसी देश में प्रतिव्यक्ति ऊर्जा उपभोग का स्तर वहां की प्राविधिकी स्तर का सूचक होता है। विकसित औद्योगिक देशें में 1997 ई० में विश्व में औसत वार्षिक ऊर्जा उपभोग प्रति व्यक्ति 2,383 कि.वा.घं. थी। इसकी तुलना में OECD में 8,008 नार्वे में 26,124, संयुक्त राज्य में 13,284 जापान में 8,252 तथा आस्ट्रेलिया में 10,000 कि.वा.घं. थी। इस वर्ग के देशों में सबसे कम ऊर्जा उपभोग पुर्तगाल का (3760) था। इस वर्ग के देशों में प्राविधिकी के उच्च स्तर की झलक इनके निर्यात स्वरूप में भी मिलती है। इन देशो के निर्यात में 1997 ई० में औसतन 81% अंश मशीनें, परिवहन उपकरण एवं अन्य उद्योग-निर्मित वस्तुओं का था जिनके निर्माण हेतु अद्यतन उच्चस्तरीय प्राविधिकी की आवश्यकता पड़ती है। तथापि, इस वर्ग में मात्र न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया ऐसे देश हैं इनके निर्यात मूल्य का मात्र 19 एवं 27% इस वर्ग से प्राप्त होता है। अधिकांश ईंधन, खनिज, धातु एवं अन्य प्राथमिक पदार्थों से ही प्राप्त होता है। न्यूजीलैण्ड से दुग्ध-पदार्थों का अधिक निर्यात होता है जबकि आस्ट्रेलिया से विविध खनिज (36%) एवं खाद्य पदार्थों (29% ) का। नार्वे के निर्यात मूल्य का भी अधिकांश (59%) खनिज,पट्रोल, एवं धातुओं से ही प्राप्त होता है। विश्व में व्यापारिक सेवाओं के निर्यात में 78.6% ( 1997) इन्हीं उच्च आय देशों का अंशदान है। उसी प्रकार ऐसी सेवाओं के 75% का आयात भी यही देश करते हैं।
  2. इस वर्ग के देशों की आर्थिक समृद्धि एवं उच्चतम उपभोग स्तर का सूचक इनके निर्यात आयात का आयतन एवं भुगतान संतुलन की अनुकूलता है विश्व के आयात में 70% अंशदान इन्हीं देशों का रहता है। इस वर्ग के देशों में 1980-93 अवधि में निर्यात की वार्षिक वृद्धि दर 5.1% थी। इनके आयात दर में वृद्द्धि 1980-93 में 5.8% थी। इन देशों में भुगतान संतुलन 1993 में 100 अर्थात बराबर मूल्य के निर्यात-आयात के आधार पर 99 अर्थात अनुकूल रहा। स्पेन का सर्वाधिक अनुकूल 114 था आयरलैंड (92) नीदरलैंड (99) कनाडा (97) फिनलैंड (98) आस्ट्रिया तथा नार्वे (97) जैसे कुछ ही देशों का संतुलन किंचित प्रतिकूल था। स्मरणीय है कि यह प्रतिकूलता भी इनके इसी वर्ग के देशों में अधिक आयात के कारण थी। 1998 में सकल घरेलू आय का 21.7% वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात से प्राप्त हुआ। उसी प्रकार 20.7% आयात में इनका अंशदान था। दोनों में 1990 की लगभग 4% की वृद्धि थी।
  3. एंजेल्स नियम के अनुसार जैसे-जैसे आर्थिक सम्पन्नता बढ़ती है लोगों की कुल आय का भोजन पर व्यय सापेक्षतया कम एवं शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर पर्याप्त तथा विलासिता के सामानों एवं मनोरंजन पर अधिक होता है। विकसित औद्योगिक देशों की उपभोग संरचना से इस तथ्य की पुष्टि होती है। 1980-85 की अवधि में इन देशों में औसत पारिवारिक आय का मात्र 12-20% भाजन पर व्यय हुआ जबकि भारत में 52, बांग्लादेश में 59 तथा सूडान में 60% इन देशों में पारिवारिक आय के 7-15% चिकित्सा तथा 9-15% शिक्षा पर व्यय होता है। सर्वाधिक व्यय 26% (आस्ट्रिया) से 38% (स्वीटजरलैंड) विविध उपभोक्ता वस्तुओं पर होता है। यह इनके उपभोग बहुल अवस्था में पहुंचने का प्रतीक है।
  4. भोजन पर पारिवारिक आय का अल्पांश व्यय करने पर भी इन विकसित देशों में प्रति व्यक्ति दैनिक कैलरी उपलब्धता प्रचुर है। 1988 90 में औसत कैलोरी आपूर्ति दैनिक आवश्यकता (100%) से पर्याप्त अधिक है। न्यूनतम 133 (स्वीडन) से अधिकतम 151 (जर्मनी) तक कैलोरी आपूर्ति है फलस्वरूप कम वजन वाले जन्मे शिशुओं का प्रतिशत 7 से कम (1990-97 औसत) है।
  5. इन देशों के विकसित होने का एक और प्रमाण है, इन में उच्चस्तरीय साक्षरता एवं शिक्षा अधिकतर देशों मे 12-17 वर्ष की उम्र के लगभग शत प्रतिशत बच्चे माध्यमिक शिक्षा ग्रहण करते हैं (औसत 93%) तथा इसमें लड़के-लड़कियों के बीच कोई अन्तर नहीं मिलता। प्रति 100 लड़कों पर 99 लड़कियां माध्यमिक शिक्षा ग्रहण करती हैं। वयस्क साक्षरता कहीं भी 97% से कम नहीं है।
  6. नगरीकरण का उच्च स्तर (2000 में औसत 81%) भी इनके विकास का द्योतक है। आयरलैंड में न्यूनतम 59% नगर निवासी हैं जबकि बेल्जियम में विश्व में अधिकतम 97%। नगर निवासी जनसंख्या प्रायः छोटे और मध्यम आकार (जनसंख्या) के साफ सुथरे सुव्यवस्थित सभी साधन-सुविधा सम्पन्न नगरों में रहते हैं। यही कारण है कि यहां 7.5 लाख से अधिक आबादी बाले नगरों में कुल नगरीय जनसंख्या का मात्र 11% ( बेल्जियम) से 58% के (आस्ट्रेलिया) ही मिलता है; औसत 30% नगरीय जनसंख्या दस लक्षी नगरों में रहती है जबकि विश्व का औसत 35। एवं विकासशील देशों का औसत 36 है।
  7. उक्त सभी तत्वों का समाकलित स्वरूप जीवन के गुणात्मक स्तर (Quality of Ife) में प्रतिबिम्बित होता है। इसका मापन तीन निर्देशांकों जीवन प्रत्याशा, साक्षरता स्तर एवं शिशु मृत्यु दर से किया जाता है। विकसित देशों में जीवन की प्रत्याशा औसत् 76.4 (डेनमार्क) से 80 (जापान) तक (1998) है। शिशु (1 वर्ष से कम आयु) मृत्यु दर 1985 ई० में प्रति 100 पैदा हुए बच्चों में विश्व के औसत 32 की तुलना में इन विकसित देशों में मात्र 9 थी। यह दर 1965 ई० में 23 थी, अर्थात इस दर में तीव्र हास हुआ है। जैसा पहले बताया गया है इनमें साक्षरता शत प्रतिशत है। स्पष्ट है कि औद्योगिक-विकसित देशों में जीवन की गुणवत्ता अति उच्च स्तर(0.920) की है । उच्च मानव जीवन गुणवत्ता में कोटि में प्रथम 2 यही देश हैं, जबकि मात्र दो ग्रीस एवं पुर्तगाल 25वें एवं 23वें स्थान (Human Development Report 2000) पर हैं।

मानव विकास के उच्चकोटि में शामिल इन देशों में भी सूक्ष्म भिन्नतायें मिलती हैं। इन देशों में भी विभिन्न स्तर तक मानव प्रवंचिता (Human deprivation) मिलती है। जो 60 वर्ष के नीचे सम्भावित मृत्यु होने वाले लोगों के प्रतिशत, वयस्क निरक्षरता प्रतिशत, तथा अपर्याप्त निजी आय एवं बेरोजगार लोगों के प्रतिशत को प्रतिबिम्बित। करती है। संयुक्त राज्य, यू.के तथा आयरलैंड के 20% लोग वस्तुतः निरक्षर हैं जबकि इन देशों में आयपरक निर्धनता क्रमशः 15.8, 14.6 तथा 15% है। आस्ट्रेलिया, कनाडा, इटली तथा जापान के भी 10% से अधिक लोगआयपरक निर्थनता से ग्रस्त हैं। दूसरी ओर नार्वे, स्वीडन एवं नीदरलैंड में अल्पतम (8% से कम) मानव निर्धनता है। (HDR 2000 P.152.)

OECD का सदस्य सही होते हुए भी कारिया गण. (द,कोरिया) मासव विकास की उच्च कोटे में है। यहां प्रति त्यक्ति आय अपेक्षाकृत निम्न, $13478 है परन्तु व्यस्क साक्षरता (97,5%) जीवन प्रत्याशा (72.6) एवं लिंग परक निर्देशांक (0.847) उच्च है।

महत्वपूर्ण संबन्धित लिंक

  1. राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990- आयोग का गठन, महिलाओं के खिलाफ हिंसा की समस्या से निपटने के लिए एक बहु-प्रचारित रणनीति
  2. Renunciation of citizenship
  3. कठोर एवं लचीला संविधान
  4. भारतीयसंविधान के स्रोत (Sources of Indian Constitution)
  5. अरब लीग – 1945 [ARAB LEAGUE – 1945]
  6. लोकतंत्र (Democracy in hindi)
  7. मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties)
  8. मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)
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  10. तीसरे विश्व के देशों की सामान्य विशेषताएं (THE CHARACTERISTICS OF THE THIRD WORLD COUNTRIES)
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  12. दक्षिण-पूर्वी एशिया सन्धि संगठन – सीटो 1954 (South-East Asia Treaty Organization- SEATO 1954
  13. वार्सा समझौता – 1955-91 (WARSAW PACT)
  14. आर्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड तथा संयुक्त राज्य समझौता – एंज़स 1951 (Australia, New Zealand and United States Pact – ANZUS 1951)
  15. उत्तरी अटलाटिक संधि संगठन : नाटो 1949
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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