सामान्य ज्ञान / General knowledge

पुनर्जागरण का अर्थ – विशेषताएँ, कारण, पुनर्जागरण की शुरुआत, मानववाद का उदय

पुनर्जागरण का अर्थ – विशेषताएँ, कारण, पुनर्जागरण की शुरुआत, मानववाद का उदय

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प्रस्तावना (Introduction)

यूरोप में तेरहवीं सदी के उत्तराद्धं से सत्रहवीं सदी के मध्य जो सांस्कृतिक उन्नति हुई और जीवन मूल्य में परिवर्तन आये उसके फलस्वरूप एक नये युग का सूत्रपात हुआ। युग परिवर्तन इतने धीरे-धीरे स्वाभाविक गति से होता है जो भी लोग इस समय में मौजूद होते हैं, उनको इस परिवर्तन का आभास ही नहीं होता। इसका कारण यह है कि इतिहास के युगों के मध्य सदा एक संक्रमण काल होता है, जिसमें पुराने विचार मर रहे होते हैं और नये विचार जन्म ले रहे होते हैं। ये नये विचार ही नये युग के आगमन का सन्देश देते हैं। आधुनिक युग का प्रारम्भ पुनर्जागरण काल से होता है। भौगोलिक खोजों, वैज्ञानिक प्रगति, व्यापारिक एवं औद्योगिक क्रान्ति, धर्म-सुधार आन्दोलन, राष्ट्रीयता की भावना का विकास तथा लोकतन्त्र की स्थापना के निमित्त हुई राजनीतिक क्रान्तियों जैसी घटनाओं ने आधुनिक युग के उदय तथा विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

पुनर्जागरण का अर्थ (Meaning of Renaissance)

पुनर्जागरण एक फ्रेंच शब्द (रेनेसाँ) है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- ‘फिर से जागना’। इसे ‘नया जन्म’ अथवा ‘पुनर्जन्म’ भी कह सकते हैं। परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से इसे मानव समाज की बौद्धिक चेतना और तर्कशक्ति का पुनर्जन्म कहना ज्यादा उचित होगा। प्राचीन यूनान और रोमन युग में यूरोप में सांस्कृतिक मूल्यों का उत्कर्ष हुआ था। परन्तु मध्यकाल में यूरोपवासियों पर चर्च तथा सामान्तों का इतना अधिक प्रभाव बढ़ गया था कि लोगों की स्वतंत्र चिन्तन-शक्ति तथा बौद्धिक चेतना ही लुप्त हो गई। लैंटिन तथा यूनानी भाषाओं को लगभग भुला दिया गया । शिक्षा का प्रसार रुक गया था। परिणामस्वरूप सम्पूर्ण यूरोप सर्दियों तक गहन अन्धकार में डूबा रहा। ईश्वर, चर्च और धर्म के प्रति यूरोपवासियों की आस्था चरम बिन्दु पर पहुँच गई थी। धर्मशास्त्रों में जो कुछ सच्चा-झूठा लिखा हुआ था अथवा चर्च के प्रतिनिधि जो कुछ बतलाते थे, उसे पूर्ण सत्य मानना पड़ता था। विरोध करने पर मृत्युदण्ड दिया जाता था। इस प्रकार, लोगों के जीवन पर चर्च का जबरदस्त प्रभाव कायम था । चर्च धर्मग्रन्थों के स्वतन्त्र चिन्तन और बौद्धिक विश्लेषण का विरोधी था। सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्र में भी चर्च और सामन्त व्यवस्था लोगों को जकड़े हुए थी। किसान लोग सामन्त की स्वीकृति के बिना मेनर (जागीर) छोड़कर नहीं जा सकते थे। मध्ययुग के अन्त में मानवीय दृष्टिकोणों में आमूल परिवर्तन आया। जब भूमि के द्वारा उदर-पोषण का स्रोत उपलब्ध न रहा तो लोग मेनर से अपना सम्बन्ध तोड़कर कृषि फार्मों पर स्वतंत्र रूप से मजदूरी करने लगे या गाँवों में जाकर अन्य कोई काम करने लगे अथवा कस्बों या गाँवों में अपनी स्वयं की दुकानें खोलने लगे। इन्हीं लोगों से ‘मध्यम वर्ग’ का उदय हुआ जिसने पुनर्जागरण के उदय में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। अब प्राचीन ग्रन्थों के अध्ययन-अध्यापन से पुन: नई आस्था का जन्म हुआ। पीढ़ियों से निर्विरोध चले आ रहे विचारों को सन्देह की दृष्टि से देखा जाने लगा। चर्च तथा धर्मशास्त्रों की बातों पर शंका की जाने लगी। परिणामस्वरूप कला साहित्य, विज्ञान, दर्शन एवं जीवन के प्राय: सभी दृष्टिकोणों में महान् परिवर्तन आ गया। इस सांस्कृतिक एवं सामाजिक परिवर्तन को ही इतिहास में ‘पुनर्जागरण’ की संज्ञा दी गई है।

पुनर्जागरण की विशेषताएँ (Characteristics of Renaissance)

पुनर्जागरण काल में प्राचीन आदर्शों, मूल्यों और विचारों का तत्कालीन सामाजिक एवं राजनीतिक स्थिति से समन्वय स्थापित करके एक नई संस्कृति का विकास किया गया इस दृष्टि से पुनर्जागरण की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार थी-

(1) पुनर्जागरण की प्रथम विशेषता धार्मिक आस्था के स्थान पर स्वतंत्र चिन्तन को प्रतिष्ठित करके तर्कशक्ति का विकास करना था। मध्यवुग में व्यक्ति के चिन्तन एवं मनन पर धर्म का कठोर अंकुश लगा हुआ था पुनर्जागरण ने आलोचना को नई गति एवं विचारधारा को नवीन निडरता प्रदान की।

(2) दूसरी विशेषता मनुष्य को अन्धविश्वासों, रूढ़ियों तथा चर्च द्वारा आरोपित बन्धनों से छुटकारा दिलाकर उसके व्यक्तित्व का स्वतंत्र रूप से विकास करना था।

(3) तीसरी विशेषता मानबबादी विचारधारा थी। मध्ययुग में चर्च ने लोगों को उपदेश दिया था कि इस संसार में जन्म लेना ही घोर पाप है। अतः तपस्या तथा निवृत्ति मार्ग को अपनाकर मनुष्य को इस पाप से मुक्त होने का सतत् प्रयास करना चाहिए। इसके विपरीत पुनर्जागरण में मानव जीवन को सार्थक बनाने की शिक्षा दी।

(4) चौथी विशेषता देशज भाषाओं का विकास थी। अब तक केवल यूनानी और लैटिन भाषाओं में लिखे गये ग्रन्थों को ही महत्त्वपूर्ण समझ जाता था। पुनर्जागरण ने लोगों की बोलचाल की भाषा को गरिमा एवं सम्मान  दिया, क्योंकि इन भाषाओं के माध्यम से सामान्य लोग बहुत जल्दी ज्ञानार्जन कर सकते थे। अपने विचारों को सुगमता के साथ अभिव्यक्त कर सकते थे।

(5) चित्रकला के क्षेत्र में पुनर्जागरण की विशेषता थी – यथार्थ का चित्रण, वास्तविक सौन्दर्य का अंकन। इसी प्रकार, विज्ञान के क्षेत्र में पुनर्जागरण की विशेषता थी-निरीक्षण, अन्वेषण, जाँच और परीक्षण।

पुनर्जागरण के कारण (Causes of Renaissance)

पुनर्जागरण किसी एक व्यक्ति, एक स्थान, एक घटना, एक विचारधारा अथवा आन्दोलन के कारण सम्भव नहीं हो पाया था। इसके उदय एवं विकास में असंख्य व्यक्तियों के सामृहिक ज्ञान एवं विविध देशों की विभिन्न परिस्थितियों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। फिर भी, निम्न कारणों को इसके लिए उत्तरदायी माना जा सकता है-

(1) धर्मयुद्ध (क्रूसेड)- ईसाई धर्म के पवित्र तीर्थ-स्थान जेरूसलम के अधिकार को लेकर ईसाइयों और मुसलमानों (सैल्जुक तुर्क) के बीच लड़े गये बुद्ध इतिहास में ‘धर्मयुद्धों’ के नाम से विख्यात हैं । ये युद्ध लगभग दो सदियों तक चलते रहे। इन धर्मयुद्धों के परिणामस्वरूप यूरोपवासी पूर्वी रोमन साम्राज्य (जो इन दिनों में बाइजेन्टाइन साम्राज्य के नाम से प्रसिद्ध था) तथा पूर्वी देशों के सम्पर्क में आये। इस समय में जहाँ यूरोप अज्ञान एवं अन्धकार में डूबा हुआ था, पूर्वी देश ज्ञान के प्रकाश से आलोकित थे। पूर्वी देशों में अरब लोगों ने यूनान तथा भारतीय सभ्यताओं के सम्पर्क से अपनी एक नई समृद्ध सभ्यता का विकास कर लिया था । इस नवीन सभ्यता के सम्पर्क में आने पर यूरोपवासियों ने अनेक वस्तुएं देखीं तथा उन्हें बनाने की पद्धति भी सीखी। इससे पहले वे लोग अरबों से कुतुबनुमा, वस्त्र बनाने की विधि, कागज और छापाखाने की जानकारी प्राप्त कर चुके थे।

धर्मयुद्धों के परिणामस्वरूप यूरोपवासियों को नवीन मार्गों की जानकारी मिली और यूरोप के कई साहसिक लोग पूर्वी देशों की यात्रा के लिए चल पड़े। उनमें से कुछ ने पूर्वी देशों की यात्राओं के दिलचस्प वर्णन लिखे, जिन्हें पढ़कर यूरोपबासियों की कूप-मंडूकता दूर हुई।

मध्ययुग में लोग अपने सर्वोंच्च धर्माधिकारी पोप को ईश्वर का प्रतिनिधि मानने लगे थे । परन्तु जब धर्मयुद्धों में पोप की सम्पूर्ण शुभकामनाओं एवं आशीर्वाद के बाद भी ईसाइयों की पराजय हुई तो लाखों लोगों की धार्मिक आस्था डगमगा गईं और वे सोचने लगे कि पोप भी हमारी तरह एक साधारण मनुष्य मात्र है।

(2) व्यापारिक समृद्धि- धर्मयुद्धों के समय में अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण इतालवी नगरों ने व्यावसायिक समृद्धि का लाभ उठाया। मुस्लिम बन्दरगाहों पर वेनिसी तथा अन्य इतालवी व्यापारिंक बेड़े सुदूरपूर्व से आने वाली विलास-सामग्रियाँ उठाते थे। वेनिस के रास्ते वे सामग्रियाँ अन्ततोगत्वा फ्लैंडर्स और जर्मनी के नगरों तक पहुँच जाती थीं। कालान्तर में जर्मनी के नगर भी व्यापारिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बन गये। यूरोप के बढ़ते हुए व्यापार- वाणिज्य से उसकी व्यापारिक समृद्धि बढ़ती गई। इस धन-सम्पदा ने पुनर्जागरण की आर्थिक पृष्ठभूमि तैयार कर दी ।

(3) धनी मध्यम वर्ग का उदय- व्यापार-वाणिज्य के विकास ने नगरों में धनी मध्यम वर्ग को जन्म दिया। धनिक वर्ग ने अपने लिये भव्य एवं विशाल भवन बनवाये। समाज में अपनी शान-शौकत तथा प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए इस वर्ग ने मुक्त हाथों से धन खर्च किया। भविष्य में अपनी ख्याति को चिरस्थायी बनाने के लिए विद्वानों और कलाकारों को आश्रय प्रदान किया। इसमें फ्लोरेन्स के मैडीसी परिवार का नाम उल्लेखनीय है।

नगरों के विकास ने एक और दृष्टि से भी सहयोग दिया। चूँकि ये नगर व्यापार-वाणिज्य के केन्द्र बन गये थे, अतः विदेशों से व्यापारी लोग इन नगरों में आते-जाते रहते थे। इन विदेशी व्यापारियों से नगरवासी विचारों का आदान-प्रदान किया करते थे। देश-विदेश की बातों पर भी विचार-विमर्श होता रहता था जिससे नगरवासियों का दृष्टिकोण अधिक व्यापक होता था।

(4) अरब और मंगोल-यूरोप के पुनर्जागरण में अरब और मंगोल लोगों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। अरबों के माध्यम से ही यूरोप को कुतुबनुमा, कागज और छापेखाने की जानकारी मिली थी। यूरोप के बहुत से क्षेतों विशेषकर स्पेन, सिसली और सार्डिनिया में अरबों के बस जाने से पूर्व यूरोपवासियों को बहुत-सी बातें सीखने को मिलीं। अरब लोग स्वतन्त्र चिन्तन के समर्थक थे और उन्हें यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिकों प्लेटो तथा अरस्तु की रचनाओं से विशेष लगाव था। ये दोनों विद्वान् स्वतंत्र विचारक थे और उनकी रचनाओं में धर्म का कोई सम्बन्ध न होता था। अरबों के सम्पर्क से यूरोपबासियों का ध्यान भी प्लेटो तथा अरस्तु की ओर आकर्षित हुआ। तेरहवीं सदी के मध्य में कुबलाई खाँ ने एक विशाल मंगोल साम्राज्य स्थापित किया और उसने अपने ही तरीके से यूरोप और एशिया को एक-दूसरे से परिचित कराने का प्रयास किया। उसके दरबार में जहाँ पोप के दूत तथा यूरोपीय देशों के व्यापारी एवं दस्तकार रहते थे, वहीं भारत तथा अन्य एशियाई देशों के विद्वान् भी रहते थे।

(5) पांडित्यवाद- मध्ययुग के उत्तरार्द्ध में यूरोपीय दर्शन के क्षेत्र में एक नई विचारधारा प्रारम्भ हुई जिसे ‘विद्वुतावाद’ (स्कालिस्टिक) अथवा पांडित्यावाद के नाम से पुकारा जाता है। इस पर अरस्तु के तर्कशास्त्र का गहरा प्रभाव था। बाद में इसमें सेन्ट आगस्टाइन के तत्वज्ञान को भी सम्मिलित कर दिया गया। अब इसमें धार्मिक विश्वास और तर्क दोनों सम्मिलित हो गये। पेरिस, ऑक्सफोर्ड, बोलो न आदि विश्वविद्यालयों ने इस विचारधारा को तेजी से आगे बढ़ाया और उसी बात को सही मानने का निर्णय किया जो तर्क की सहायता से सही पाई जा सके। कालान्तर में इस विचारधारा का प्रभाव जाता रहा परन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि इसने यूरोपवासियों की चिन्तनशक्ति को विकसित करके ठनकी तर्कशक्ति को भी सबल बनाया था ।

(6) कागज और छापाखाना- चीन ने प्राचीन युग में ही कागज और छापाखाना का आविष्कार कर लिया था । मध्ययुग में अरबों के माध्यम से यूरोपवासियों को भी इन दोनों की जानकारी मिली। कागज और छापाखाना ने पुनर्जागरण को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया जिसके पूर्व हस्तलिखित (हाथ से लिखी हुई) पुस्तकों का प्रचलन था जो काफी मूल्यवान होती थीं और जिनकी संख्या भी काफी कम होती थी। अत: ज्ञान-विज्ञान के इन साधनों पर कुछ धनी लोगों का ही एकाधिकार था। परन्तु कागज और छापाखाना के कारण अब पुस्तकों की कमी न रही और वे अब काफी सस्ती भी मिलने लगीं । अब सामान्य लोग भी पुस्तकों को पढ़ने में रुचि लेने लगे। इससे जनता में ज्ञान का प्रसार हुआ। विज्ञान और तकनीकी की प्रगति का रास्ता खुल गया। यही कारण है कि इन दोनों को इतना अधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है।

(7) कुस्तुनतुनिया पर तुर्कों का अधिकार- 1453 ई. में तुर्की लोगों ने पूर्वो रोमन साम्राज्य (बाइजेन्टाइन साम्राज्य) की राजधानी कुस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया और बाल्कन प्रदेशों में भी प्रवेश करने लगे। कुस्तुनतुनिया गत दो सदियों से यूनानी ज्ञान, कला और कारीगरी का केन्द्र बना हुआ था। परन्तु बर्बर तुर्कों को सांस्कृतिक मूल्यों से विशेष लगाव नहीं था और उन्होंने इस क्षेत्र के सभी लोगों को समान रूप से लूटना-खसोटना शुरू कर दिया। इन बर्नर विधियों से बचने के लिए बहुत से यूनानी विंद्वान प्राचीन पांडुलिपियों को अपने साथ लेकर व हाँ से भाग निकले और इटली, फ्रांस, जर्मनी आदि देशों में जा बसे। उनके बस जाने से यूरोगीय देशों में यूनानी ग्रन्थों के संग्रह तथा पडन-पाठन की तरफ रचि बढ़ी। यूनानी साहित्य के अध्ययन- अक्यापन से यूरोपवासियों का दृष्टिकोण व्यापक होता चला गया जिससे पुनर्जागरण में महत्त्वपूर्ण योगदान मिला।

 इटली में ही पुनर्जागरण की शुरुआत वयों हुई? (Why Renaissance started from Italy?)

यूरोप में पुनर्जागरण का बास्तविक प्रारम्भ इटली में हुआ और बहाँ से फ्रांस, इंग्लैण्ड आदि अन्य देशों में पुनर्जागरण फैला। यहाँ पर हमारे सामने यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि पुनर्जागरण की शुरुआत इटली से ही वयों हुई? इसके लिए निम्न परिस्थितियाँ उत्तरदायी थी –

(1) बारहीं सदी के प्रारम्भ में इटली के बहुत से राज्य पवित्र रोमन साम्राज्य के नियन्त्रण से मुक्त होने लग गये थे और इन राज्यों ने अपनी शासन व्यबस्था, मुद्रा, व्यापार और उद्योग स्थापित कर लिये थे इसके अलावा उत्तरी यूरोप से आने वाले व्यापारी इटली होकर ही पश्चिमी एशिया जाते थे और एशियाई वस्तुएँ भী इटली होकर ही अन्य यूरोपीय देशों में जाती यही। 12वीं से लेकर 16 वीं सदी तक यूरोप के व्यापार और औद्योगिक विकास का केंद्र इटली ही था। व्यापार और उद्योंग के कारण इटली यूरोप क्रा सर्वाधिक्र धनाढय देश बन गया था। अत; यहाँ के धनिक लोग कला, साहित्य और विज्ञान को संरक्षण देने में समर्थ शे। वे लोग ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे। उन्होंने अपने रहने के लिए विशाल भव्य भवन बनवाये और उन भवनों को चित्रों तथा मूर्तियों से सजाने के लिए कलाकारों को आश्रय दिया।

(2) व्यापार- वाणिज्य के विकास के परिणामस्वरूप इटली के लोग अनेक विदेशी संस्कृत के लोगों के सम्पर्क में आये। नवीन जलमार्गों की खोज के पहले भूमभ्य सागर पश्चिम और पूर्वी देशों के व्यापार का केंद्र था। अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण इटली ने भूमध्य सागरीय व्यापार पर अपना एकाधिकार जमा रखा था। इटली के व्यापारी बाल्कन प्रायद्वीप, बाइजेन्टाइन, पश्चिमी एशिया तशा मिस्र की बात्रा करते थे। इन देशों के साथ सम्पत्क होने से उन लोगों की अपने धर्म (ईसाई ध्रम्म) के प्रति रूढ़िगत कट्टरता में काफी कमी आ गई।

(3) इटली के नगरीय जीवन ने भी पुनर्जागरण को आहूत करने में महत्वपूर्ण योग प्रदान किया। मध्ययुग के उत्तरार्द्ध में जब अधिकांश यूरोपीय नगर तथाकथित अन्धिकार में डूबे हुए थे तब पी इटली नगर जीवित थे इतावली नगर विशेषकर पलोरेन्स, वेनिस और मिलान समृद्ध तथा उन्नत हो रहे थे। पवित्ञ रोमन साम्राज्य की पतनोन्मुख स्थिति का लाभ उठाकर इटली के बहुत से नगर उसके प्रभुतव से स्वतंत्र हो गये शे। अब उनके सामने अपनी स्वतंत्रता को बनाये रखाने का सवाल शा। इसके अलावा अन्य नगरों के साथ व्यापारिंक प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई थी। ऐसी स्थिति में गरवासियों को एकजुट होकर संघर्ष और त्याग के लिए सतर्क होना पड़ा जिससे उन लोगों में नया उसाह उत्पन्न हुआ। अब वे एक-दूसरे के साथ विचारों का आदान-प्रदान करने लगे। एक-दूसरे के साथ सहयोग करने लगे। इससे उनके दृष्टिक्रोण में बड़ा परिवर्तन आ गया। यही पुनर्जागरण की पृष्ठभूमि थी। इतावली नगरों में पुनर्जांगरण के प्रारम्भ होने के लिए कुछ अन्य कारण भी उत्तरदाई थे। इटली रोमन सभ्यता से जुड़ा हुआ शा। बह प्राक्तीन रोमन साम्रान्य और संस्कृति का प्रतीक शा। इतालवी नगरों में प्राीन रोमन सभ्यता के बहुत से स्मारक अब भी लोगों को उसकी स्मृति का आभास कराते थे। पुनर्जागरण को प्राचीन रोमन संस्कृति से प्रेरणा मिलती रही। इस दृष्टि से इतालवी नगर पुनर्जागरण के लिए उपयुक्त क्षेत्र थे दूसरा कारण यह था कि रोम अब भी सम्पूर्ण पश्चिमी यूरोपीय ईसाई जगत् का केन्द्र बना हुआ था। रोमन कैथोलिक चर्च का सवोच्च धर्माधिकारी ‘पोप’ रोम में ही रहता था। संयोगवश कुछ पोप भी पुनर्जागरण की भावना से प्रभावित हुए और उन्होंने विख्यात विद्वान् तथा कलाकारों को रोम में बसने के लिए आमन्त्रित किया और उन लोगों से यूनानी ग्रन्थों का लैटिन भाषा में अनुवाद करवाया।

1453 ईं. में जब तुरकों ने कुस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया तो वहाँ से भागकर आने वाले यूनानी विद्वानों, कलाकारों तथा व्यापारियों ने सर्वप्रथम इतालवी नगरों में ही आश्रय लिया था और उनमें से बहुत से लोग तो इटली के विभिन्न नगरों में स्थायी रूप से बस भी गये थे । उनके माध्यम से यूनानी ज्ञान विज्ञान का व्यापक अध्ययन एवं मनन इन्हीं नगरों में शुरू हुआ था इससे लोगों में एक नई चेतना का प्रादुर्भाव हुआ संक्षेप में, भूमध्य सागरीय व्यापार के द्वारा इटली के नगर काफी समृद्ध हो गये थे सांस्कृतिक उन्नति के लिए आर्थिक समृद्धि आवश्यक होती है। समृद्ध लोगों ने विद्वानों तथा कलाकारों को आश्रय एवं प्रोत्साहन दिया। राजनीतिक दृष्टि से भी इतालवी नगर उपयुक्त थे। इटली के नगर पवित्र रोमन साम्राज्य के नियन्त्रण से मुक्त हो चुके थे यूरोप के अन्य नगरों की भाँति इटली के नगरों में सामन्त प्रथा पनप नहीं पाई थी। यूनानियों की धर्मनिरपेक्ष शिक्षा ने चर्च के प्रति कट्टर आस्था को सहिष्णु बना दिया था। इसलिए इन नगरों का स्वतंत्र वातावरण पुनर्जागरण के लिए अनुकूल सिद्ध हुआ।

मानववाद का उदय (Rising of Humanism)

मानववाद अथवा मानववादी विचारधारा पुनर्जागरण का एक प्रमुख लक्षण था शिक्षा के प्रसार के कारण इस विचरधारा का दर्शन सर्वप्रथम इटली में ही होता है। इस विचारधारा का सीधा-सादा अर्थ है-मानव जीवन में रुचि लेना, मानव जीवन को सुखी, समृद्ध एवं उन्नत बनाकर उसके व्यक्तित्व को प्रतिष्ठित करना। प्राचीन यूनानी साहित्य में जीवन के प्रति एक विशेष रुचि झलकती हैं क्योंकि यूनानी लोग उस संसार में गहरी रुचि रखते थे, जिसमें वे लोग जी रहे थे। पुनर्जागरण काल में जो विद्वान मानव एवं प्रकृति की रुचियों का विवेचन करके उसमें रुचि लेने लगे थे, उन्हें ‘मानववादी’ के नाम से पुकारा जाता है। उन्होंने मौजूदा संसार और उसमें रहने वाले लोगों की समस्याओं पर अपनी लेखनी उठाई थी, जबकि मध्ययुग के लेखकों का दृष्टिकोण ठीक इसके विपरीत था। मध्ययुगीन लेखकों के लिए मानव तथा उसके संसार का विशेष स्थान न था । उनके विचारों पर चर्च एवं धर्म का जबरदस्त प्रभाव छाया हुआ था और धर्म की ओट में अन्धविश्वासों तथा रूढ़ियों को प्रश्रय मिल रहा था।

इटली के नगरों की आर्थिक समृद्धि और विदेशों के साथ बढ़ते हुए सम्पर्क ने मानववादी विचारधारा को जन्म दिया। इस विचारधारा के विकास के परिणामस्वरूप मध्ययुगीन वातावरण में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आ गये। अब धार्मिक विषयों के स्थान पर इतिहास, भूगोल, विज्ञान, सौन्दर्यशास्त्र जैसे विषयों के अध्ययन पर जोर दिया जाने लगा और लेखकों ने भी मानव जीवन की विभिन्न समस्याओं-प्रेम, घृणा, विरह, मिलन, दाम्पत्य जीवन, नारी सौन्दर्य आदि पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। मानववादियों का कहना था कि परलोक की चिन्ता छोड़कर इस लोक को ही स्वर्ग बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म की उपासना करने की स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए और राष्ट्र के प्रति निष्ठा का विकास होना चाहिए।

मानववादी आन्दोलन के प्रारम्भिक समर्थकों में पेट्राक का स्थान सर्वोपरि है। कुछ विद्वानों ने तो उसे ‘मानववाद का पिता’ कहा है। वह फ्लोरेन्स नगर का निवासी था। लोगों में यूनानी तथा लेटिन साहित्य के प्रति अभिरुचि पैदा करना उसकी सबसे बड़ी देन है। उसने ईसाई मठों के बन्द कमरों में पड़ी प्राचीन पांडुलिपियों की खोज का काम हाथ में लिया क्योंकि मौजूदा पांडुलिपियों में बहुत-सी त्रुटियाँ सम्मिलित हो गई थी। पेट्राक ने पुरानी पांडुलिपियों की सहायता से इन त्रुटियों को सुधारने का काम किया। उसका दूसरा महत्त्वपूर्ण काम था- पुस्तकालयों की स्थापना। इटली के दूसरे मानववादियों ने पेट्राक के अधूरे काम को पूरा करने का अथक प्रयास किया। परिणामस्वरूप मानववादी विचारधारा का यूरोप के अन्य देशों में भी प्रसार हुआ। इंग्लैण्ड में इसका नेतृत्व वहाँ के विश्वविद्यालयों ने किया था।

साहित्य के क्षेत्र में पुनर्जागरण (Renaissance in the Field of Literature)

कला के क्षेत्र में पुनर्जागरण (Renaissance in the field of Art)

भौगोलिक अनुसंधान (Geographical Research)

विज्ञान के क्षेत्र में पुनर्जागरण (Renaissance in the Field of Science)

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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