वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting Transpiration in Hindi

वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting Transpiration in Hindi
सामान्य रूप में वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता है।
- सौर्य विकिरण के प्रभाव से 95 प्रतिशत वाष्पोत्सर्जन दिन के समय में ही होता है।
- सामान्यता पत्तियों के पास नम वायु रहती है किन्तु पवन प्रवाह से नम वायु की जगह गर्म वायु आ जाने से पत्तियों के बाहरी एवं अन्दरूनी वाष्पदाब में अन्तर स्थापित हो जाने से वाष्पोत्सर्जन बढ़ता है। बहुत अधिक वेग से प्रवाहित वायु की जगह थोड़ी कम वेग की वायु वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ाने में अधिक सक्षम होती है।
- मिट्टी की नमी का अधिक प्रभाव वाष्पोत्सर्जन पर उस समय हाता है जबकि स्थायी विल्टिंग प्रतिशत में कमी हो जाती है। मिट्टी की नमी की उस मात्रा को विल्टिंग प्वाइंट कहते हैं जिसको पोधे नहीं ग्रहण कर पाते। अतः जब मृदा नमी बिल्टिंग, प्वाइन्ट से नीचे चली जाती है तो वाष्पोत्सर्जन पर मिट्टी के नमी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। क्योंकि पौधे उस नमी को नहीं ले पाते।
- वाष्पोत्सर्जन वनस्पतियों के विकास दर से भी प्रभावित होता है। वनस्पतियों के उगने के समय वाष्पोत्सर्जन कम तथा विकसित होने पर अधिक होता है।
- मृदा का स्वभाव, प्रकृति, करणों की मात्रा, रासायनिक गुण, रन्ध्रों की संख्या तथा वनस्पतियों की जड़ों की लम्बाई वाष्पोत्सर्जन क्रिया को प्रभावित करती है। पौधों की जड़ों द्वारा नमी अवशोषण क्षमता तथा उसके विस्तार, पत्तियों की सतह, पत्तियों पर रन्ध्रीय स्थिति इत्यादि भी वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करते हैं। जिन पत्तियों में प्रति इकाई कम रन्ध्रीय क्षेत्र तथा विकिरण के लिए कम धरातलीय क्षेत्र होता है अपेक्षाकृत कम जल का वाष्पीकरण वाष्पोत्सर्जन होता है। ऐसे पौधें जिनकी जड़े जल तल तक जाती है वे ऐसे जल का वाष्पोत्सर्जन करते हैं जो वातन क्षेत्र में नमी से यूक्त होते हैं। सभी पौधे रन्ध्रीय क्षेत्र का कुछ भाग एक निश्चित सीमा तक नियन्त्रण करते है तथा सूखे की स्थिति में वाष्पोत्सर्जन कम करने की क्षमता रखते हैं। यदि मृदा जल पर्याप्त उपलब्ध हो तथा धरातल वनस्पतियों से आच्छादित हो तो वाष्पोत्सर्जन दर पौधे के प्रकार से अप्रभावित रहती है।
- पत्तियों की संरचना का भी प्रभाव वाष्पोत्सर्दन दर पर पड़ता है। जिन पौधों की पत्तियों की वाह्य सतह पर मोम या उपचर्म का मोटा आवरण होता है या जिन वनस्पतियों में रन्ध सतह पर न होकर कोशिकाओं के नीचे की ओर धंसे होते हैं जैसे – चीड़, नारियल आदि या जो पत्तियाँ छोटी है जिस पर कांटे पाये जाते हैं तथा कांटे में परिवर्तित होती है अथवा जिन पत्तियों के रन्धों के आसपास रोमों की उपस्थिति होती है वहाँ वाष्पोत्सर्जन कम होता है।
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