आर्थिक नियोजन

आर्थिक नियोजन | आर्थिक नियोजन के कुछ प्रमुख प्रकार

आर्थिक नियोजन | आर्थिक नियोजन के कुछ प्रमुख प्रकार | economic planning in Hindi |  Some major types of economic planning in Hindi

आर्थिक नियोजन

आर्थिक नियोजन के कई प्रकारों का वर्णन लेखकों ने किया है तथा नियोजन कोक्षकई दृष्टिकोण या आधारों पर वर्गीकृत किया है। ये आधार और प्रकार निम्नानुसार हैं-

(अ) संगठन की प्रकृति के आधार पर नियोजन के प्रकार हैं- पूँजीवादी, प्रजातात्रिक, समाजवादी, साम्यवादी तानाशाही एवं गांधीवादी नियोजन ।

(ब) साधन का आधार के अनुसार- भौतिक एवं वित्तीय नियोजन ।

(स) अवधि के आधार के अनुसार- स्थायी, आपत्तिकालीन, अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन नियोजन ।

(द) आर्थिक कार्य क्षेत्र आकार के अनुसार- क्रियात्मक व संरचनात्मक नियोजन, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय नियोजन, सामान्य एवं आंशिक नियोजन, सुधारवादी एवं विकासवादी नियोजन ।

(य) आर्थिक निर्णयों के संचालन का आधार- आज्ञामूलक एवं प्रोत्साहन मूलक नियोजन, ऊपर से नियोजन एवं नीचे से नियोजन केंद्रित एवं विकेंद्रित नियोजन।

आर्थिक नियोजन के कुछ प्रमुख प्रकार

नियोजन के कुछ प्रमुख प्रकारों का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है-

(1) प्रजातांत्रिक नियोजन (Democratic Planning):  इस प्रकार का नियोजन मुख्य रूप से प्रजातांत्रिक देशों में अपनाया जाता है। प्रजातांत्रिक नियोजन पूँजीवाद और समाजवाद का मिश्रण है। समाजवादी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जब प्रजातांत्रिक तरीकों का उपयोग किया है तो उस व्यवस्था को ‘प्रजातांत्रिक नियोजन’ कहा जाता है। इस प्रकार के नियोजन में जनता नियोजन के संबंध में स्वतंत्रतापूर्वक अपने विचार व्यक्त कर सकती है। इसमें निजी एवं लोक क्षेत्र दोनों को ही स्थान दिया जाता है। आधारभूत उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र में तथा अन्य निजी क्षेत्र में रखे जाते हैं। वास्तव में प्रजातांत्रिक नियोजन प्रोत्साहन द्वारा नियोजन है, क्योंकि इसमें सरकारी नियंत्रण बहुत कम देखने को मिलता है।

प्रजातांत्रिक नियोजन में जनता के हितों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। व्यक्ति को धर्म, जाति, लेखन तथा बोलने की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है। इसमें सभी कार्य जनता की राय के आधार पर किये जाते हैं। प्रजातांत्रिक नियोजन में योजनाएँ इस ढंग से बनाई जाती हैं कि धन का कुछ व्यक्तियों के हाथों में केंद्रीयकरण न हो तथा शोषण का अंत हो। इसमें योजनायें जनता पर थोपी नहीं जातीं। इस प्रकार के नियोजन में विदेशी सहायता का विशेष महत्व होता है। करारोपण नीति द्वारा समाज कल्याण तथा धन की असमानताओं को दूर करने का प्रयास किया जाता है। हमारे देश में अपनाया गया नियोजन प्रजातांत्रिक नियोजन का ही एक रूप है।

(2) साम्यवादी नियोजन (Communistic Planning) : साम्यवादी देशों में अपनाये जाने वाले नियोजन को ‘साम्यवादी नियोजन’ कहा जाता है। इसमें अर्थव्यवस्था के सभी कार्यों पर पूर्णतः राजकीय नियंत्रण होता है। निजी क्षेत्र का साम्यवादी नियोजन में कोई स्थान नहीं रहता। साथ ही इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं संपत्ति का अंत हो जाता है। इस नियोजन में न केवल उत्पादन के सायनों बल्कि उपभोग की वस्तुओं को भी सरकारी नियंत्रण में रखा जाता है। नियोजन संबंधी सभी निर्णय केंद्रीय स्तर पर लिए जाते हैं, जिनका पालन अर्थव्यवस्था की प्रत्येक इकाई को अनिवार्य रूप से करना पड़ता

(3) केंद्रित व विकेंद्रित नियोजन (Centralised and Decentralised Planning): केंद्रित नियोजन में संपूर्ण आर्थिक सत्ता केंद्रीय सरकार के अधीन होती है और सभी आर्थिक निर्णय उसी के द्वारा लिए जाते हैं। इस प्रकार का नियोजन समाजवादी देशों के लिए अधिक उपयुक्त होता है। इसके विपरीत, विकेंद्रित नियोजन में अधिकांश आर्थिक निर्णय ग्रामीण, स्थानीय तथा राज्य सरकारों द्वारा लिए जाते हैं। मिश्रित तथा प्रजातंत्रात्मक अर्थव्यवस्थाओं में इस प्रकार का नियोजन अधिक सफल होता है। भारत में नियोजन के समन्वित ढंग कोक्षअपनाया गया है अर्थात् कुछ आर्थिक निर्णय तो केंद्र सरकार लेती है और शेष निर्णय राज्य, स्थानीय एवं ग्रामीण सरकारों द्वारा लिए जाते हैं।

(4) क्रियात्मक एवं संरचनात्मक नियोजन (Functional and Structural Planning) : क्रियात्मकं नियोजन से आशय- जब किसी देश की सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था के वर्तमान स्वरूप के अनुसार ही विकास कार्यक्रम तैयार किये जाते हैं ती समस्याओं का हल निकाला जाता है लेकिन अर्थव्यवस्था में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जाता है तो ऐसे नियोजन को ‘क्रियात्मक नियोजन’ की संज्ञा दी जाती है। अन्य शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि जब आर्थिक नियोजन का उद्देश्य विद्यमान सामाजिक व्यवस्था में आमूल परिवर्तन नहीं करते हुए जब उसके दोषों में सुधार करने का प्रयत्न किया जाता है तो उसे ही क्रियात्मक नियोजन कहा जाता है। इस प्रकार के नियोजन में अर्थव्यवस्था के ढाँचे में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जाता।

संरचनात्मक नियोजन से आशय- जब वर्तमान अर्थव्यवस्था में परिवर्तन करते हुए विकास की योजनाएँ तैयार की जाती हैं तो इस प्रकार के नियोजन को संरचनात्मक नियोजन कहा जाता है। अन्य शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि जब विद्यमान सामाजिक एवं आर्थिक ढाँचे को परिवर्तित कर उसे नया स्वरूप, अर्थ और आयाम दिया जाता है तो उसे संरचनात्मक नियोजन की संज्ञा दी जाती है। संरचनात्मक नियोजन के अंतर्गत अर्थव्यवस्था में आमूल परिवर्तन करके हमनवीन व्यवस्था लागू की जाती है। इस प्रकार के नियोजन का उद्देश्य अर्थव्यवस्था में पूर्णतः करना होता है।

क्रियात्मक नियोजन का प्रयोग पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में किया जाता है। अल्प विकसित राष्ट्रों के आर्थिक विकास के लिए संरचनात्मक नियोजन का ही प्रयोग किया जाता है। इसका प्रमुख कारण यह बताया जाता है कि अल्प विकसित देशों की अर्थव्यवस्था में जब तक अनेक आर्थिव, राजनैतिक तथा सामाजिक परिवर्तन नहीं हों यह लागू नहीं हो सकता। विकासशील देश में संपूर्ण अर्थव्यवस्था एवं समाज को एक नये साँचे में ढालना पड़ता है, जिससे उनका पुराना स्वरूप पूर्णतः समाप्त हो जाये। कार्यात्मक नियोजन में अल्प विकसित देशों का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्युग ने कार्यात्मक नियोजन के संबंध में कहा है, “कार्यात्मक नियोजन केवल सुधार करेगा कोई नव-निर्माण नहीं करेगा, वह विद्यमान क्रम में कार्य को सुधारेगा, परंतु उसे नया स्वरूप प्रदान नहीं करेगा। यह एक अनुदार या क्रमिक विकास वाला नियोजन है जो विद्यमान ढाँचे में आमूल परिवर्तन नहीं करेगा अपितु एक निश्चित सीमा में ही सुधार करेगा।” हमारे देश में कार्यात्मक एवं संरचनात्मक नियोजन साथ-साथ चल रहे हैं।

वास्तव में कार्यात्मक एवं संरचनात्मक नियोजन में कोई विशेष अंतर नहीं है। दोनों में अंतर केवल मात्रा का है। इसका प्रमुख कारण यह बताया जाता है कि संरचनात्मक नियोजन भी कुछ वर्षों बाद कार्यात्मक का स्वरूप ले लेता है, क्योंकि एक बार आर्थिक एवं सामाजिक ढाँचे  में परिवर्तन के बाद उसमें तत्काल किसी परिवर्तन की आवश्यकता नहीं रहती। हम कार्यात्मक एवं संरचनात्मक नियोजन को साथ-साथ चला सकते हैं।

(5) निर्देशन द्वारा नियोजन (Planning by Direction): इस प्रकार के नियोजन के अंतर्गत एक केंद्रीय अधिकारी होता है, जो पूर्व निर्धारित उद्देश्यों के अनुसार नियोजन का निर्देशन करता है तथा उसके क्रियान्वयन का आदेश देता है। इस प्रकार के नियोजन में राज्य प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप करता है। निर्देशन द्वारा नियोजन साम्यवादी देशों में देखने को मिलता है। इसमें केंद्रीय योजना अधिकारी ऐसे निर्देश एवं आज्ञा देता है कि अमुक कार्य किया जाना चाहिए और अमुक कार्य नहीं। इस प्रकार के नियोजन में नागरिकों को किसी भी प्रकार की आर्थिक स्वतंत्रता नहीं होती, क्योंकि राज्य केवल नियोजन के उद्देश्यों व लक्ष्यों को ही निर्धारित नहीं हैकरता बल्कि वह लक्ष्यों की पूर्ति तथा राष्ट्रीय उत्पादन के वितरण व उपभोग के लिए भी निर्देश देता है। इसमें बैंकों को आशा दी जा सकती है कि वे निश्चित कार्यों के लिए ही ऋण दें। इस प्रकार के नियोजन में विकास की गति अधिक तीव्र होने की संभावना रहती है। इसमें केंद्रीय नियोजन सत्ता ही आर्थिक साधनों के विभिन्न उद्योगों तथा व्यवसायों के लिए आवंटन करती है। इस प्रकार का नियोजन तभी सफल हो सकता है, जबकि केंद्रीय निर्देशन कुशल हो।

(6) प्रोत्साहन द्वारा नियोजन (Planning by Inducement) : प्रोत्साहन द्वारा नियोजन से आशय ऐसे नियोजन से है, जिसमें राज्य आर्थिक क्रियाओं को परोक्षा रूप से नियोजित करता है। इस प्रकार के नियोजन में निजी साहस की प्रधानता रहती है। इसमें मौद्रिक एवं राजकोषीय नीतियों के द्वारा लोगों को एक निश्चित ढंग से कार्य करने का प्रोत्साहन दिया जाता है। प्रोत्साहन द्वारा नियोजन के अंतर्गत राज्य केंद्रीय स्तर पर लिए गये निर्णयों का पालन दबाव डालकर नहीं करवाता, बल्कि लोगों को उन निर्णयों के अनुरूप काम करने के लिए अपनी आर्थिक नीतियों द्वारा प्रोत्साहन प्रदान करता है।

प्रोत्साहन द्वारा नियोजन में सरकार आयात-निर्यात करारोपण एवं अन्य नीतियों में परिवर्तन करके निजी क्षेत्र को अधिक बचत तथा विनियोग के लिए प्रेरित करती है। इसमें विभिन्न नीतियों से जनता को प्रोत्साहित किया जाता है, ताकि वह निश्चित ढंगों को अपनाये तथा निश्चित किस्म का उत्पादन करे अथवा न करे। इसमें उत्पादकों को अनेक प्रकार के प्रोत्साहन देकर कहा जाता है कि वह उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन करे जो सामाजिक दृष्टि से आवश्यक हो। हम घरयह भी कह सकते हैं कि इसमें निश्चित प्रकार का उत्पादन करने के लिए उद्योगपतियों को निर्देश दिये जा सकते हैं। प्रोत्साहन द्वारा नियोजन में नियोजन अधिकारी उत्पादकों तथा उपभोक्ताओं को अनेक प्रकार के आर्थिक एवं अनार्थिक प्रोत्साहन देकर अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

अर्थशास्त्र महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *