मुद्रा का वर्गीकरण | प्रकृति के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण | वैधानिक आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण | पदार्थ के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण
मुद्रा का वर्गीकरण | प्रकृति के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण | वैधानिक आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण | पदार्थ के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण
मुद्रा का वर्गीकरण
(Classification of Money)
भूमिका (Introduction) मौद्रिक जगत में मुद्रा कितने प्रकार की होती है अर्थशास्त्रियों ने मुद्रा को विभिन्न प्रकार से वर्गीकृत किया है। वर्गीकरण के आधार पर मुद्रा तीन प्रकार की होती है। (अ) प्रकृति के आधार पर मुंद्रा, (ब) वैधानिक आधार पर मुद्रा, (स) पदार्थ के आधार पर मुद्रा।
प्रकृति के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण
(Money on the Basis of Nature)-
प्रकृति के आधार पर मुद्रा के दो भाग हैं। (i) वास्तविक मुद्रा (ii) हिसाब की मुद्रा
(i) वास्तविक मुद्रा (Actual Money)- वास्तविक मुद्रा को प्रो. जे. एम. कीन्स (J.M. Keynes) मुख्य मुद्रा (Mney Proper) प्रो. बेनहम (benham) चलन की इकाई (Unit of Currency) व प्रो. सेलिंगमैन (Seligman) यथार्थ मुद्रा (Real Money) कहकर सम्बोधित करते हैं। इस प्रकार वास्तविक मुद्रा किसी देश में प्रचलित वह मुद्रा होती है जो विनिमय का माध्यम, क्रय-शक्ति का संचय एवं भुगतान का आधार होती है। भारत में प्रचलित नोट एवं सिक्के वास्तविक मुद्रा की श्रेणी में आते हैं।
(ii) हिसाब की मुद्रा (Money ofAccount)- हिसाब की मुद्रा को लेखे की मुद्रा भी कहते हैं जो कीमतों एवं क्रय शक्ति को सूचित करने के लिए प्रयोग में आती है। भारत में लेखे की मुद्रा रूपया ही है, जिसका समयानुसार रूप परिवर्तित हुआ है, जबकि जर्मन में मार्क विनिमय का माध्यम होने के कारण वास्तविक मुद्रा है किन्तु लेखे के मुद्रा मार्क न होकर डालर एवं फ्रैंक सन् 1923 तक थी। इसी कारण विद्वानों ने लेखे की मुद्रा का एक अलग रूप मानकर वर्गीकरण किया है। सामान्यतः वास्तविक मुद्रा एवं हिसाब की मुद्रा एक ही रहती है। जैसे भारतीय रूपया, अमेरिका का डालर, इंग्लैण्ड का पौण्ड आदि।
वैधानिक आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण
वैधानिक मान्यता (सामान्य स्वीकृति) पर आधारित मुद्रा का वर्गीकरण करते हुए अर्थशास्त्रियों ने बताया कि किसी देश की प्रचलित मुद्राएँ वैधानिकता के आधार पर भी निर्गमित होती हैं। जो दो प्रकार की होती हैं-(1) विधि ग्राह्य मुद्रा (2) ऐच्छिक मुद्रा
(1) विधि ग्राह्य मुद्रा (Legal Tender Money) –अर्थशास्त्रियों के मतानुसार किसी देश में ऐसी प्रचलित मुद्रा जिसे सरकार ने कानून द्वारा मुद्रा घोषित कर दिया हो, उसे विधि ग्राह्य मुद्रा कहते हैं। विधि ग्राह्य मुद्रा को स्वीकार न करने वाला व्यक्ति अथवा संस्था कानून के द्वारा दण्ड भी प्राप्त करता है। भारत में धारा 13 के अधीन 1906 ई. में लागू “भारतीय टंकण अधिनियम के अन्तर्गत निर्गमित रूपये एवं पैसे विधि ग्राह्य मुद्रा घोषित किये गये हैं।
वैधानिक आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण निम्नवत् प्रस्तुत है-
(1) सीमित विधिग्राह्य मुद्रा (Limited legal Tender Money)- अर्थशास्त्रियों के अनुसार कनून के आधार पर जिसे एक सीमित मात्रा तक ही भुगतान किया जा सकता हो, ऐसी मुद्रा सीमित विधि ग्राह्य मुद्रा कहलाती है। जैसे भारत सरकार द्वारा टंकण हुए पैसे एवं रूपये जैसे, 10 पैसा, 20 पैसा, 25 पैसा, 50 पैसा व एक रूपया। इनका भुगतान एक रूपया तक ही सीमित है। इस प्रकार का भुगतान स्वीकार करने वाला व्यक्ति अथवा संस्था उक्त सीमा के पश्चात् अधिक भुगतान स्वीकारने से इन्कार कर सकता है।
(ii) असीमित विधि ग्राह्य मुद्रा (Unlimited legal Tender Money)- अर्थशास्त्रियों के मतानुसार असीमित विधि ग्राह्य मुद्रा जो असीमित मात्रा में स्वीकार की जाती हो, उसे भुगतान पाने वाला व्यक्ति अथवा संस्था किसी भी सीमा तक स्वीकार कर सकती है। इतना ही नहीं, ऐसी मुद्रा से कोई भी व्यक्ति किसी भी सीमा तक ऋण प्राप्त कर सकता है। क्योंकि मुद्रा का ऐसा लेनदेन कानून के द्वारा वैधानिक होता है। जैसे-एक व्यक्ति 10 लाख रूपये दूसरे व्यक्ति को भुगतान कर सकता है, अथवा इससे भी अधिक।
असीमित विधि ग्राह्य मुद्रा के दो उपभाग हैं-(क) बहु विधि ग्राह्य प्रणाली (ख) मिश्रित प्रणाली।
(क) बहुविधि ग्राह प्रणाली (Meltiple Legal Tender System)- बहुविधि ग्राम प्रणाली वह है जिसके अन्तर्गत कानून द्वारा दो अथवा दो से अधिक प्राकर की धातुओं के टंकण किये हुए सिक्कों प्रमाणित सिक्कों के रूप में प्रचलित होते हैं। जैसे-सोने, चाँदी, गिलट आदि के प्रचलित सिक्के। ऐसे सिक्कों की भुगतान सीमा कुछ भी हो सकती है।
(ख) मिश्रित प्रणाली (Composite System)- असीमित विधि ग्राह्य मुद्रा में मिश्रि प्रणाली वह है जिसमें वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य स्तर के अनुसार मुद्रा (50 पैसे, 1रूपयें एव 2 रू., 5 रू., 10 रू., 50 रू., 100 रू.) किसी भी सीमा तक लेन-देन में स्वीकार की जाये। भारत में एक रू. तक के सिक्के भारत सरका व 2 रू. से 2000 रू तक के नोट रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा निर्गमित हैं। जब दोनों प्रकार की मुद्राएँ भुगतान में स्वीकार की जायें तो वह मिश्रित प्रणाली कहलाती है।
(2) ऐच्छिक मुद्रा (Optional Money)- वैधानिक आधार पर मुद्रा का दूसरा भाग ऐच्छिक मुद्रा है। ऐसी मुद्रा का भुगतान स्वीकार करने के लिये बाध्यता नहीं है। अतः ऐच्छिक मुद्रा एक ऐसी मुद्रा होती है जिसे स्वीकार करने अथवा स्वीकार न करने के लिए व्यक्ति अथवा संस्था स्वतंत्र है। ऐच्छिक मुद्रा को साख मुद्रा (Credit Money) भी कह सकते हैं-चेक, ड्राफ्ट, हुण्डी, बिल आदि ऐच्छिक मुद्रा है, जिन्हें स्वीकार करने के लिए कोई कानूनी बाध्यता नहीं है।
पदार्थ के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण
पदार्थ के आधार पर मुद्रा तीन प्रकार की होती है- (1) पदार्थ मुद्रा (2) धातु मुद्रा (3) पत्र मुद्रा। विश्व के मौद्रिक इतिहास में मुद्रा की विशिष्टता एक इकाई के रूप में आधुनिक युग तक दिखाई देती है, किन्तु प्राचीन काल में वह ऐसी नहीं थी, क्योंकि इतिहास साक्षी है कि मुद्रा में निरन्तर परिवर्तन होते रहे हैं।
1. पदार्थ-मुद्रा (Commodity Money)- पदार्थ मुद्रा को वस्तु-मुद्रा भी कह सकते हैं। प्राचीन युग में जिस समय मानव ने धातुओं की खोज नहीं की थी, उस समय विनिमय का माध्यम कुछ पदार्थ विशेष ही थे। अतः वे सभी पदार्थ या वस्तुएँ जो मुद्रा के रूप में प्रचलित थीं, पदार्थ मुद्रा समझी जा सकती है। उदाहरणार्थ – हड्डी के तीर व कमान, खालें, सीपियों की माला व कौड़ी पशु आदि।
2. धातु-मुद्रा (Metallic Money)- मानव ने जब धातुओं की खोज कर ली, तो पदार्थ मुद्रा के स्थान पर धातुओं के टुकड़े मुद्रा के रूप में प्रयोग होने लगे। इस प्रकार धातु मुद्रा वह है जिसमें किसी भी धातु के सिक्के चलन में होते हैं। जैसे-सोने व चाँदी के सिक्के।
अर्थशास्त्री धातु मुद्रा को दो निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत करते हैं।
(अ) धातु चलन (ब) धातु मान
(अ) धातु-चलन (Metal circulation)- धातु चलन से तात्पर्य यह है जब वस्तुओं अथवा सेवाओं के बदले में धातु के टुकड़े विनिमय का कार्य सम्पन्न करते हों तो उसे धातु चलन कहते हैं। धातु चलन के प्रमुख तीन प्रकार है।
(i) प्राणामिक मुद्रा (Standard Coin)- धातु चलन में प्रमाणिक मुद्रा वह होती है जो स्वतंत्र ढलाई से पूर्ण वजन के बनाये जाते हैं जिनका अंकित मूल्य व वास्तविक मूल्य समान होता है। इतना ही नहीं, अंकित मूल्य के बराबर कीमत निहित होने के कारण इसकी ढलाई स्वतन्त्र अर्थात् किसी भी सरकारी टकसाल में की जा सकती है। इंग्लैण्ड मे “ब्रिटिश साबरेन” प्रमाणिक-सिक्का था। भारत में भी 1906 ई. से पूर्व प्रामाणिक सिक्का चलन में रहा हैं जिसे मोहर कहते थे।
(ii) सांकेतिक मुद्रा (Token coin)- धातु चलन में सांकेतिक मुद्रा वैह है, जिसकी स्वतंत्र ढलाई नहीं की जा सकती है क्योंकि उनका आन्तरिक मूल्य अंकित मूल्य से कम होता है। इसीलिए ऐसी मुद्रा सीमित विधिग्राह्य होती है।
वर्तमान युग में विश्व के सभी देश सांकेतिक सिक्के का प्रयोग कर रहे हैं, जिनमें शुद्ध धातु की मात्रा कम होती है। अतः भारतीय चलन में सभी सिक्के सांकेतिक सिक्के हैं, जो न तो पूर्णरूपेण प्रमाणिक और न सांकेतिक ही हैं। अतः भारतीय सिक्का “सांकेतिक प्रमाणिक सिक्का (Token Standard Coin) कहलाता है।
(iii) गौण मुद्रा (Secondary Coin)- धातु चलन में गौण मुद्रा या अन्य सिक्के बेरोजगारी की सुविधा के लिए ढलाई करके लेन में लाये जाते हैं, क्योंकि इन सिक्कों की ढलाई में लागत कम आती है। ऐसे सिक्के मुख्य रूप से अंकित मूल्य से कम मूल्य के होते हैं जो वस्तुओं की विनिमय व्यवस्था में सहायक रहते हैं। भारत में अप्रैल 1957 से 50 पैसे, 25 पैसे, 10 पैसे, 5 पैसे, 3 पैसे 2 पैसे व 1 पैसा चलन में आये। इसके पूर्व 1 आना, 2 आना प्रचलित थे।
(ब) धातु-मान (Metallic Standard)- धातु-मुद्रा में विभिन्न धातुओं के सिक्के चलन में रहे हैं। इन्हें तीन भागों में विभाजित किया गया है।
(i) एक धातु मान (Single Metallic Standard)- एक धातुमान से तात्पर्य यह है कि जब किसी देश में एक ही धातु के सिक्के चलन मे हों तो उसे एक धातु मान कहा जाता है। जैसे सोने के सिक्के या चाँदी के सिक्के।
विश्व के सभी देशों में 18वीं शताब्दी के मध्य एक धातु मान ही प्रचलित था।
(ii) द्विधातु मान (Double-metallic Standard)- द्विधातु मान से तात्पर्य यह है कि जब किसी देश में दो धातुओं का अनुपात निश्चित करके मुद्रा की ढलाई की जाये एवं ऐसे सिक्के चल में हो तो उसे द्विधातु मान कहते हैं। इस प्रकार की प्रणाली में स्वर्ण एवं रजत मान एक साथ रहा है।
विश्व के प्रमुख देश अमेरिका में सन् 1792 से द्विधानुमान अपनाया गया, जिसमें स्वर्ण एवं चांदी का अनुपात 1:15 निर्धारित किया गया जबकि फ्रान्स में 1:16 निश्चित हुआ।
(iii) मिश्रित-धातुमान (Mixed & Metallic-Standard)- द्विधातुमान के बाद विश्व के मौद्रिक इतिहास मे ‘ग्रेशम का नियम’ क्रियाशील हुआ, जिसमें “बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर करने लगी।” इस अव्यवस्था से तंग आकर विश्व के देशों में मिश्रित धातुमान’ अपनाया गया।
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